अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड ऐंड पूअर्स रेटिंग सर्विसेज (एसऐंडपी) ने भारत की रेटिंग के बारे में अपना दृष्टिकोण नकारात्मक से स्थिर कर लिया है।
इसने लंबी अवधि के लिए बीबीबी- और छोटी अवधि के लिए ए-3 की भारत की सार्वभौम क्रेडिट रेटिंग जारी रखी है। एसऐंडपी ने अपने दृष्टिकोण में बदलाव के लिए राजनीतिक स्थिति को प्रमुख कारण बताया है। इसने कहा है कि भारत की सुधरी हुई राजनीतिक परिस्थिति (यानी पूर्ण बहुमत वाली स्थिर केंद्र सरकार बनने) से सुधारों के लिए एक अनुकूल माहौल बना है, जो विकास की संभावनाओं को बढ़ा सकता है और सरकारी घाटे के प्रबंधन में सुधार ला सकता है।
भारत की मजबूतियों में इसने देश की मजबूत वैदेशिक स्थिति, घरेलू संस्थानों और मुक्त प्रेस को गिना है, जिनके चलते नीतिगत स्थिरता आती है। वहीं देश की कमजोरियों में इसने प्रति व्यक्ति आय कम होने और सरकारी वित्तीय स्थिति की ओर ध्यान दिलाया है। वैदेशिक स्थिति को लेकर इसने कहा है कि भारत पर तुलनात्मक रूप से कम विदेशी कर्ज है। साथ ही इसका विदेशी मुद्रा भंडार भी बेहतर हुआ है।
एसऐंडपी ने भविष्य में भारत की रेटिंग बढ़ाये जाने का भी संकेत दिया है। इसने कहा है कि अगर देश की आर्थिक विकास दर (जीडीपी) 5.5% पर पहुँचती है और सरकारी घाटे, वैदेशिक स्थिति या महँगाई दर में सुधार होता है तो देश की रेटिंग बढ़ायी जा सकती है। लेकिन साथ ही इसने सचेत किया है कि अगर संरचनात्मक सुधारों का सरकारी कार्यक्रम अटक गया और उसके चलते विकास दर में तेजी नहीं आयी या सरकारी घाटे और ऋण अनुपातों में सुधार नहीं आया तो रेटिंग घटायी जा सकती है।
मजबूत हुआ उद्योग जगत का आत्मविश्वास
उद्योग संगठन फिक्की के ताजा बिजनेस कॉन्फिडेंस सर्वे ने कॉर्पोरेट भारत के आत्मविश्वास में और बढ़ोतरी का संकेत दिया है। इस सर्वेक्षण के अनुसार बिजनेस कॉन्फिडेंस इंडेक्स यानी कारोबारी आत्मविश्वास का सूचकांक 72.7 पर पहुँच गया है, जो सवा तीन साल का सबसे ऊँचा स्तर है। ठीक पिछले सर्वेक्षण में यह सूचकांक 69.0 पर था। हालाँकि वर्तमान की तुलना में भविष्य की उम्मीदें कहीं बेहतर नजर आ रही हैं। ताजा सर्वेक्षण में वर्तमान स्थिति का सूचकांक 57.8 से सुधर कर 65.4 पर आया है। वहीं उम्मीदों का सूचकांक (एक्सपेक्टेशन इंडेक्स) पिछली बार के 74.6 से बढ़ कर 76.3 हो गया है। छह महीने पहले की तुलना में वर्तमान स्थिति के बारे में प्रतिभागियों की धारणा में काफी सुधार दर्ज किया गया है। सर्वेक्षण में शामिल 93% कंपनियों ने जवाब दिया है कि वे अगले छह महीनों में कुल मिला कर आर्थिक स्थिति बेहतर होने की उम्मीद कर रही हैं। कामकाजी पैमानों को लेकर सर्वेक्षण के नतीजे साल भर पहले की तुलना में स्थिति काफी बेहतर होने की ओर इशारा करते हैं। लेकिन पिछले सर्वेक्षण की तुलना में बिक्री और निर्यात के बारे में अनुमान थोड़े-से ही बेहतर हुए हैं।
एजेंटों को ऊँचे कमीशन पर सेबी की चढ़ी त्यौरी
एजेंटों को भारी-भरकम कमीशन देने के मुद्दे पर बाजार नियामक सेबी और म्यूचुअल फंडों के बीच खींचतान अब भी जारी है। इससे पहले सेबी ने निवेशकों के हितों की रक्षा को ध्यान में रखते हुए शुल्कों और कमीशन को लेकर जो नियम बनाये, उससे म्यूचुअल फंड क्षेत्र अरसे तक सदमे में रहा। ताजा मामला यह है कि एसोसिएशंस ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (एम्फी) की सालाना आम बैठक में सेबी चेयरमैन यू. के. सिन्हा ने फिर से वितरकों को ऊँचे कमीशन देने की खबरों पर ऐतराज जताया। खबरें हैं कि हाल में कुछ नयी योजनाओं (स्कीमों) पर वितरकों को 6त्न तक कमीशन दिया गया। सिन्हा की चेतावनी का सार यह है कि म्यूचुअल फंड उद्योग खुद संयम दिखाये जिससे सेबी को बार-बार दखल देने की जरूरत नहीं पड़े। दरअसल इस साल शेयर बाजार में आयी तेजी के बीच करीब छह साल बाद म्यूचुअल फंडों के न्यू फंड ऑफर (एनएफओ) की भी भरमार लगी है। इन नयी योजनाओं की ओर निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कई फंड घरानों ने एजेंटों को ऊँचा एकमुश्त कमीशन देने का रास्ता अपनाया है, खास कर नियत अवधि (क्लोज एंडेड) की योजनाओं में।
म्चूचुअल फंडों की संपत्ति नये रिकॉर्ड पर
म्यूचुअल फंडों के अच्छे दिन आ गये हैं! इस क्षेत्र का कुल एयूएम (एसेट्स अंडर मैनेजमेंट) सितंबर 2014 में समाप्त तिमाही में 10.58 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड पर पहुँच गया है। जून 2014 में समाप्त तिमाही के 9.87 लाख करोड़ रुपये की तुलना में बीते तीन महीनों में इसमें 0.71 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि हो गयी। केवल चार बड़े फंड घरानों - एचडीएफसी एमएफ, आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल, रिलायंस म्यूचुअल फंड और बिड़ला सन लाइफ का कुल एयूएम 4.94 लाख करोड़ रुपये है, यानी सभी फंडों के कुल एयूएम का लगभग आधा। इसके बाद यूटीआई एमएफ, एसबीआई एमएफ, फ्रैंकलिन टेंप्लेटन और आईडीएफसी का स्थान है।
इस दौरान निवेशकों से मिलने वाले नये निवेश के चलते इक्विटी यानी शेयरों में म्चूचुअल फंडों के निवेश ने भी तेजी पकड़ी है। जुलाई-सितंबर 2014 तिमाही में भारतीय शेयरों में म्यूचुअल फंडों का शुद्ध निवेश पिछले 14 वर्षों में सबसे अधिक रहा है। सेबी के आँकड़ों के मुताबिक जुलाई-सितंबर तिमाही में म्यूचुअल फंडों ने शेयरों में 16,192.7 करोड़ रुपये का निवेश किया, जो मार्च 2000 के बाद सबसे अधिक है। मँझोले फंडों में बड़ी मात्रा में निवेश हुआ है। जुलाई-सितंबर तिमाही में म्यूचुअल फंडों द्वारा शेयरों की कुल खरीद 59,725.2 करोड़ रुपये रही, जो 2008 की पहली तिमाही के बाद से सबसे अधिक है। 30 सितंबर को समाप्त हुई तिमाही में म्यूचुअल फंडों द्वारा शेयरों की कुल बिक्री 43,532.5 करोड़ रुपये रही।
मौजूदा फंडों में बढिय़ा निवेश के साथ एनएफओ यानी नयी योजनाओं और एसआईपी को लेकर भी निवेशकों ने अच्छा उत्साह दिखाया है। सितंबर तिमाही में 17, जून तिमाही में 18 और मार्च तिमाही में 19 एनएफओ पेश किये गये। नये निवेश में आयी तेजी का आलम यह है कि कई म्यूचुअल फंडों ने छोटे-मँझोले शेयरों वाली योजनाओं में निवेश के लिए सीमा बाँध दी है। दरअसल बीते एक साल में छोटे-मँझोले शेयरों में निवेश वाली योजनाओं का प्रदर्शन काफी शानदार रहा है, लेकिन अब इन स्तरों से वैसे प्रदर्शन को दोहरा पाना मुश्किल लगता है।
(निवेश मंथन, अक्टूबर 2014)