सुभाष लखोटिया, कर सलाहकार :
आपको संभवत: पता होगा कि उपहार कर कानून को खत्म किया जा चुका है।
अगर उसके बाद भी हम उपहार और उससे जुड़े कर बोझ की बात करें तो बहुत-से लोग इसकी प्रासंगिकता को शायद न समझ सकें। यह तथ्य है कि उपहार कर कानून खत्म किया जा चुका है। पहले उपहार देने वाले व्यक्ति को इस पर कर देना पड़ता था। आजकल खुशी की बात यह है कि उपहार देने वाले व्यक्ति को किसी भी तरह के आय कर का भुगतान नहीं करना पड़ता है, चाहे उपहार की राशि कुछ भी हो।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यदि उपहार किसी संबंधी या गैर-संबंधियों को दिया जाये या फिर किसी धर्माथ और धार्मिक संस्था को दिया जाये, तो इन सभी स्थितियों में आयकर कानून के वर्तमान प्रावधान के तहत उपहार देने वाले व्यक्ति को उपहार के लिए किसी भी तरह का आय कर देने की जरूरत नहीं है।
हालाँकि सबसे ज्यादा खुशी की बात यह है कि नकद या किसी भी रूप में उपहार लेने वाला व्यक्ति भी किसी भी तरह के कर के दायरे में नहीं आयेगा। विशेष रूप से जब ऐसे उपहार सगे-संबंधियों से प्राप्त हुए हो। आय कर अधिनियम 1961 की धारा 56 में उन सगे-संबंधियों की सूची दी गयी है। अगर आपको अपने रिश्तेदारों से चल-अचल संपत्ति किसी भी मात्रा में उपहार मिल रहा हो तो आपको किसी कर भुगतान के बारे में घबराने की जरूरत नहीं है। हालाँकि अगर आपको किसी गैर-संबंधियों से उपहार मिलता है, उदाहरण के लिए यदि आपको कोई उपहार राशि अपने किसी दोस्त आदि से मिलती है तो आय कर अधिनियम 1961 की धारा 56 के प्रावधानों के तहत यदि एक कारोबारी वर्ष के दौरान उपहार की राशि 50,000 रुपये से अधिक है तो आपको ऐसे में 50,000 रुपये से अधिक की राशि पर आय कर का भुगतान करना पड़ेगा। उदाहरण के लिए यदि बनवारी को अपने 40वें जन्मदिन के अवसर पर अपने कई दोस्तों से 1,20,000 रुपये के उपहार मिले तो 50,000 रुपये तक की राशि को कर से छूट प्राप्त होगी, लेकिन 70,000 रुपये की राशि बनवारी की करयोग्य आय में जुड़ेगी। इस राशि पर बनवारी आय कर भुगतान के अधीन होगा, जो कि उनकी अन्य आय में जमा होगी औऱ इस तरह बनवारी द्वारा उपयुक्त कर का भुगतान किया जायेगा।
इसके विपरीत अगर बनवारी को अपने 40वें जन्मदिन के अवसर पर अपने पिता से पाँच लाख रुपये की राशि प्राप्त होती है तो बनवारी को इस पाँच लाख रुपये की राशि पर किसी आय कर का भुगतान करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह राशि उसे अपने संबंधियों से प्राप्त हुई है।
अब आप यह तो समझ गये कि बिना किसी ऊपरी सीमा के अपने सगे-संबंधियों से उपहार पर कर का प्रावधान नहीं है, लेकिन अभी भी करदाता को कर भुगतान में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। विशेष रूप से अगर उपहार महिला ने प्राप्त किया है और उसे यह उपहार अपने पति, ससुर या सास से मिला हो।
अगर हम आय कर अधिनियम 1961 की धारा 56 में शामिल प्रावधानों का सावधानीपूर्वक अध्ययन करें तो हम स्पष्ट रूप से इस निष्कर्ष पर पहुँचेगे कि यदि किसी शादीशुदा महिला को यह उपहार राशि अपने पति, ससुर या फिर सास से प्राप्त होती है तो भी इस उपहार राशि पर महिला को किसी तरह के कर का भुगतान नहीं करना होगा क्योंकि आय कर कानून के तहत यह उपहार सगे-संबंधियों से प्राप्त हुआ है।
एक उदाहरण में देखें। यदि शशि को 10 लाख रुपये की राशि अपने पति से प्राप्त होती है और पाँच लाख रुपये की राशि अपने सुसर से भी प्राप्त होती है और अगर वह अपनी सास से भी चार लाख रुपये की राशि प्राप्त करती है तो शशि द्वारा प्राप्त किये गये इस पूरे 19 लाख रुपये की राशि पर उसे आय कर नहीं देना होगा, क्योंकि यह राशि रिश्तेदारों द्वारा उपहार स्वरूप प्राप्त की गयी है। चिंता मत करिये, लेकिन याद रखिये कि अब हम अपने पाठकों को यह बता चुके हैं कि धारा 56 के तहत अपने सगे-संबंधियों पति, ससुर और सास से लिये गये उपहार की राशि पर कर का प्रावधान नहीं है।
लेकिन आय कर अधिनियम 1961 की धारा 64 के तहत प्रावधानों पर गौर करें तो ज्ञात होगा कि इस प्रावधान के तहत एक शादीशुदा महिला को अपने पति, ससुर या सास द्वारा दी गयी किसी भी तरह की राशि पर होने वाली आय उपहार देने वाले की आय मानी जायेगी। हालाँकि, आय कर कानून का यह प्रावधान मुख्य रूप से एक शादीशुदा महिला द्वारा इन उपहारों से हुई आय पर कर का प्रावधान करता है, जिसके तहत इन उपहारों से हुई आय पर कर पति की आय पर लागू होगा, सास की आय पर या फिर ससुर की आय पर।
उदाहरण के लिए यदि शशि को अपने पति से 10 लाख रुपये प्राप्त हुए और यदि वह इस राशि का निवेश बैंक के मियादी जमा (एफडी) में करती है तो उसे अपने नाम से ऐसे बैंक एफडी पर 90,000 रुपये की सालाना आय प्राप्त होगी। लेकिन आय कर अधिनियम 1961 की धारा 64 में शामिल प्रावधानों की वजह से यह 90,000 रुपये की राशि शशि के पति की आय में जुड़ेगी। इसी तरह आय कर अधिनियम 1961 की धारा 64 के प्रावधानों के तहत शशि को अपने ससुर और सास से किसी भी तरह की उपहार राशि मिले और वह बैंक एफडी में उस समान राशि का निवेश करती है तो उस बैंक एफडी से प्राप्त हुई आय को भी ससुर और सास की आय के रूप में ही रखा जायेगा।
इस तरह यह स्पष्ट है कि धारा 56 के संदर्भ में सगे-संबंधियों से मिले उपहार प्राप्तकत्र्ता के लिए आय कर के दायरे से बाहर हैं। लेकिन हमें साथ ही यह भी देखना होगा कि धारा 64 में शामिल प्रावधानों के तहत एक शादीशुदा महिला को पति, ससुर और सास से मिले उपहार को दाता की आय के रूप में ही माना जायेगा।
इसलिए अपने पति, ससुर और सास से किसी भी तरह के उपहार लेने से बचना चाहिए। हालाँकि मेरी यह सलाह महिलाओं के लिए उपयुक्त नहीं होगी।
बेहतर यह होगा कि शादीशुदा महिलाओं को पति, ससुर और सास से उपहार लेने के बदले उनसे एक उचित ब्याज दर पर ऋण लेना चाहिए। इस तरह उपहार राशि से अर्जित आय पर कर की दिक्कत नहीं होगी, क्योंकि अब यह एक उपहार राशि न होकर एक ऋण राशि है। इस तरह यदि एक शादीशुदा महिला अपने पति से ऋण ले कर और जमीन-जायदाद में निवेश करती है, उस संपत्ति को किराये पर देती है और पति को उचित ब्याज दर पर भुगतान करती है तो इस स्थिति में कर देने की स्थिति से बचा जा सकता है, क्योंकि पति से मिली इस तरह की राशि उपहार में मिली राशि नहीं है, बल्कि पति से लिया गया ऋण है।
इसलिए, अगर आप एक महिला के नाम से भावी आय और धन के लिए पैसा बनाने के इच्छुक हैं तो आयकर के लिहाज से यही सही होगा कि भविष्य में किसी तरह की समस्या या झंझट से बचने के लिए वह पति, ससुर और सास से उपहार न लेकर ऋण राशि लेनी चाहिए।
हालाँकि, यह ध्यान देना चाहिए कि शादीशुदा महिला अपने पिता, माँ, दादा, चाचा, चाची और भाइयों आदि से किसी भी राशि का उपहार ले सकती है। इस स्थिति में इन रिश्तेदारों से उपहार राशि लेने से क्लबिंग का प्रावधान लागू नहीं होगा और महिला द्वारा ली गयी उपहार राशि के संदर्भ में किसी भी तरह के आयकर का भुगतान नहीं करना होगा।
अंत में, दोस्तों और संबंधियों के बीच में उपहार से संबंधित किसी भी लेनदेन में बेहद सतर्क रहें। विशेष रूप से किसी गैर-संबंधी से प्रति वर्ष 50,000 रुपये से अधिक की उपहार राशि पर कर के विषय में प्रावधानों का ध्यान रखें। आयकर अधिनियम 1961 की धारा 64 के संदर्भ में आय की क्लबिंग के विषय के प्रावधानों पर विशेष ध्यान भी दें, विशेष रूप से जब उपहार राशि किसी शादीशुदा महिला को प्राप्त हुई हो।
(निवेश मंथन, सितंबर 2014)