फ्लिपकार्ट क्या है, यह बताने की जरूरत अब शायद कम ही लोगों को हो।
कम-से-कम शहरी आबादी में तो लोग इसके बारे में जानने ही लगे हैं, और यह केवल बड़े नगरों की बात नहीं है। इंटरनेट पर खुदरा बिक्री (ई-रिटेलिंग) की इस प्रमुख वेबसाइट ने देश के शहरी क्षेत्रों में काफी हद तक अपनी पहुँच बना ली है। हाल में इस कंपनी में टाइगर ग्लोबल और नैपस्टर के नेतृत्व में निवेशकों के एक समूह ने एक अरब डॉलर यानी लगभग 6,000 करोड़ रुपये का बड़ा निवेश किया है, जिसके बाद इसके संस्थापकों की तुलना इन्फोसिस के संस्थापकों से होने लगी है।
दरअसल इस ताजा निवेश में फ्लिपकार्ट का मूल्यांकन लगभग सात अरब डॉलर यानी 42,000 करोड़ रुपये आँका गया है। इस मूल्यांकन से फ्लिपकार्ट के दो संस्थापकों सचिन बंसल और बिन्नी बंसल को सबसे अमीर भारतीयों में गिना जाने लगा है। इस जोड़ी के पास फ्लिपकार्ट की लगभग 15% हिस्सेदारी है, जिसका मूल्यांकन एक अरब डॉलर से कुछ ज्यादा बैठता है। इस आधार पर वे इन्फोसिस के नारायणमूर्ति से थोड़े ही पीछे हैं जिनके पास इन्फोसिस के लगभग 8,700 करोड़ रुपये के शेयर हैं। नंदन नीलकेणी की तो उन्होंने लगभग बराबरी कर ही ली है, जिनके पास इन्फोसिस के लगभग 6,500 करोड़ रुपये के शेयर हैं।
दिलचस्प यह है कि इन्फोसिस के तीन दशकों के सफर के बाद नारायणमूर्ति और नीलकेणी जितनी बड़ी संपदा जुटा सके हैं, उतनी हैसियत फ्लिपकार्ट संस्थापकों की इस जोड़ी ने केवल छह साल में हासिल कर ली है। यह इंटरनेट की शक्ति और रफ्तार है।
लेकिन एक और बड़ा अंतर है। जहाँ इन्फोसिस ने देश के बाहर अपनी सेवाएँ दे कर, यानी आईटी सेवाओं का निर्यात करके एक बड़ा अवसर तलाशा, वहीं फ्लिपकार्ट ने यह अवसर देश के अंतर इंटरनेट के फैलते संजाल में पाया। भले ही फ्लिपकार्ट ने ऐसा कुछ अनोखा नहीं किया जो विकसित देशों के बाजार न हो चुका हो, मगर भारत में इंटरनेट के विस्तार को सही समय पर समझ कर उसने अपनी जगह बना ली।
वैश्विक स्तर पर बंसल-युगल अभी फेसबुक संस्थापकों या चीन के अलीबाबा के संस्थापक से काफी पीछे हैं, मगर इतना तो है कि इंटरनेट उद्यमियों की वैश्विक कतार में अब उन्हें गिना जाने लगा है। सचिन बंसल और बिन्नी बंसल ने अक्टूबर 2008 में केवल चार लाख रुपये की शुरुआती पूँजी से फ्लिपकार्ट की शुरुआत की थी। उन्हें पहला बड़ा सहारा मिला पौने दो साल बाद जुलाई 2010 में, जब टाइगर ग्लोबल ने एक करोड़ डॉलर का निवेश किया।
उसके बाद तो आगे की राह आसान हो गयी और कंपनी लगातार बड़े निवेश आकर्षित करती चली गयी। केवल बीते तीन सालों के भीतर, साल 2011 से 2014 के दौरान कंपनी ने अपनी सालाना बिक्री को लगभग एक करोड़ डॉलर से दो अरब डॉलर यानी लगभग 12,000 करोड़ रुपये पर पहुँचा लिया है। लेकिन यह चमत्कार नहीं, शायद चमत्कार की शुरुआत है। भारत में इंटरनेट ने अभी-अभी तो वह जगह बनायी है, जहाँ लोग भरोसे से कह सकें कि इंटरनेट पर सामान खरीदे-बेचे जा सकते हैं। इसीलिए जब बंसल दावा करते हैं कि अगले 10 सालों में भारत में 100 अरब डॉलर वाली कई इंटरनेट कंपनियाँ होंगी, तो इस दावे को हँसी में नहीं उड़ाया जा सकता।
हालाँकि फ्लिपकार्ट जैसी ही दूसरी प्रमुख वेबसाइट स्नैपडील के संस्थापक कुणाल बहल ने फ्लिपकार्ट में हुए ताजा निवेश की घोषणा के बाद इसे मिले मूल्यांकन पर सवाल उठाया है। बहल कह रहे हैं कि फ्लिपकार्ट को उसके निवेशकों ने उचित से ज्यादा मूल्यांकन दे दिया है। अब कोई हैरत में पड़ सकता है कि जिन खुर्राट निवेशकों का काम ही उद्यमों का मूल्यांकन करके उनमें पैसा लगाना हो, जो जबरदस्त मोलभाव करने और उद्यमियों को बेहद कड़ी शर्तों पर पूँजी देने के लिए कुख्यात हों, वे भला फ्लिपकार्ट पर ऐसी मेहरबानी क्यों करेंगे! तो फिर कुणाल बहल ने ऐसी टिप्पणी क्यों की? क्या इसे केवल ईष्र्या समझें? आखिर फ्लिपकार्ट को ज्यादा मूल्यांकन मिलने से बहल की कंपनी स्नैपडील को भी फायदा है, क्योंकि तुलनात्मक रूप से स्नैपडील का भी मूल्यांकन बढ़ जाता है।
दो महीने पहले ही मई 2014 में फ्लिपकार्ट में रूसी अरबपति यूरी मिलनेर की अगुवाई में निवेशकों ने 21 करोड़ डॉलर का जो निवेश किया था, उसमें फ्लिपकार्ट का मूल्यांकन तीन अरब डॉलर आँका गया था। इसलिए यह सवाल अस्वाभाविक नहीं कि दो महीनों में ऐसा कौन-सा चमत्कार हुआ, जिससे फ्लिपकार्ट का मूल्यांकन बढ़ कर दोगुने से भी ज्यादा हो गया! लेकिन निजी स्वामित्व वाली ऐसी कंपनियों का मूल्यांकन पूरी तरह से खरीदने वाले और बेचने वाले के आपसी मोलभाव पर निर्भर करता है। इस मोलभाव का नतीजा इस बात पर निर्भर करता है कि निवेश करने वाला ज्यादा तत्पर है, या निवेश माँगने वाला। इसलिए जो सबसे ताजा सौदा है, उसी को वर्तमान मूल्यांकन मानना होगा।
पर कहीं यह एक और अंधी दौड़ का नतीजा तो नहीं? क्रिसिल की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि साल 2016 में, यानी अब से दो साल बाद जा कर भारत में इंटरनेट पर खुदरा बाजार (ऑनलाइन रिटेलिंग) 50,000 करोड़ रुपये का हो सकेगा। अतीत के अनुभव बताते हैं कि अक्सर ऐसे अनुमान वास्तविकता की तुलना में ज्यादा आशावादी होते हैं। लेकिन अगर मान भी लें कि दो साल बाद वाकई यह बाजार 50,000 करोड़ रुपये का हो जायेगा तो क्या पूरे बाजार के दो साल बाद के कारोबार के बराबर का मूल्यांकन आज ही किसी एक कंपनी को मिल सकता है, भले ही वह इस बाजार की सबसे बड़ी कंपनी हो?
फ्लिपकार्ट में इस बड़े निवेश का कारण यह है कि इंटरनेट पर खुदरा बिक्री के बाजार में प्रतिस्पर्धा तीखी हो रही है और खेल बड़ा हो गया है। स्नैपडील के पीछे भी कम बड़े निवेशक नहीं हैं। इसे अंतरराष्ट्रीय कंपनी ई-बे का सहारा मिला हुआ है। साथ ही टेमासेक और विप्रो के अजीम प्रेमजी जैसे बड़े निवेशक भी इसके साथ हैं। वहीं अमेरिका में इंटरनेट पर किताबों की बिक्री की प्रणेता कंपनी अमेजन खुद भारतीय बाजार में जोर-शोर से उतर चुकी है। अमेजन ने फ्लिपकार्ट में एक अरब डॉलर के निवेश की घोषणा के तुरंत बाद कह दिया कि वह भारतीय बाजार में दो अरब डॉलर का नया निवेश करने जा रही है।
मगर इतने बड़े खिलाडिय़ों और फैलते कारोबार के बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि इंटरनेट खरीदारी का कारोबारी मॉडल ठीक से जम गया है। फ्लिपकार्ट अब भी घाटे में है, भले ही इसका घाटा पहले से कम हुआ है। यह हर महीने करीब 15 करोड़ रुपये का घाटा उठाती है। अमेरिका में इंटरनेट का पूरा विस्तार होने के बाद भी अमेजन ढंग से मुनाफा नहीं कमा पा रही।
एक और सवाल यह है कि क्या अब इंटरनेट व्यक्तिगत उद्यमिता का क्षेत्र रह गया है? करीब 15% हिस्सेदारी के साथ सचिन बंसल और बिन्नी बंसल भले ही फ्लिपकार्ट के संस्थापक और प्रतिनिधि चेहरे के रूप में देखे जायें, लेकिन वास्तव में कंपनी की कमान अब इसके बड़े निवेशकों के पास है। बेशक वे रोजमर्रा के कामकाज में दखल नहीं देंगे। उन्हें इतनी फुर्सत नहीं या इन चीजों में उलझने की इच्छा नहीं।
और इस बाजार में कल कोई और सचिन, बिन्नी या कुणाल अपने किसी नये विचार के साथ उतरना चाहे, तो क्या यह संभव रह गया है? जहाँ अरबों डॉलर का खेल हो रहा हो, वहाँ अब चार लाख रुपये की पूँजी के साथ कोई नयी शुरुआत संभव रह गयी है क्या?
आलोक मित्तल, एमडी, कनान पार्टनर्स :
बाजार संभावनाओं को दिखाता है फ्लिपकार्ट सौदा
फ्लिपकार्ट का यह सौदा इस बाजार की संभावनाओं के साथ-साथ उसकी टीम की ओर से किये गये काम की गवाही देता है। क्रिसिल का यह अनुमान सच के करीब हो सकता है कि साल 2016 तक ऑनलाइन खरीदारी के क्षेत्र का कुल कारोबार 50,000 करोड़ रुपये का हो जायेगा। यह रकम लगभग आठ अरब डॉलर की होती है। इस समय ही फ्लिपकार्ट का सालाना कारोबार दो अरब डॉलर का होने की खबरें हैं। साथ ही एमेजन और स्नैपडील दोनों करीब एक-एक अरब डॉलर का कारोबार कर रहे हैं। इस आधार पर क्रिसिल का आकलन सही होने की काफी संभावना लगती है। इस बाजार में अकेली कंपनी को पूरे बाजार के कारोबार जितना मूल्यांकन मिल जाना असामान्य नहीं लगता है। मिसाल के तौर पर ऑनलाइन भर्तियों का बाजार 15-20 करोड़़ डॉलर का है और इन्फोएज का मूल्यांकन कई वर्षों से लगभग 60 करोड़ डॉलर का है। अगर ऑनलाइन क्लासीफाइड में जस्ट डायल का उदाहरण देखें, तो वहाँ भी यही कहानी है। मगर यह जरूर है कि ई-कॉमर्स में लाभ मार्जिन क्लासीफाइड या नौकरियों वाली श्रेणी से काफी कम है। इस सौदे के बाद क्या स्नैपडील जैसी अन्य वेबसाइटें भी इसी तरह बड़े मूल्यांकन पर पूँजी जुटाने की ओर बढ़ेंगी या नहीं, बाहर बैठ कर इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। लेकिन निश्चित रूप से इस क्षेत्र में काफी पूँजी खप रही है।
(निवेश मंथन, सितंबर 2014)