सुशांत शेखर : आपको ऐसे बीमा एजेंट अक्सर मिल जायेंगे, जो आपकी मौजूदा पॉलिसी में तमाम कमियाँ गिनायेंगे।
उनकी पूरी कोशिश होती है कि आप अपनी पुरानी पॉलिसी वापस करके नयी पॉलिसी ले लें। खास कर 1 जनवरी 2014 से बीमा के नये नियम लागू होने के बाद ऐसी शिकायतों की बाढ़ सी आयी है। ऐसे में बीमा नियामक इरडा ने पॉलिसी वापस करने के नियम सख्त करने की तैयारी शुरू कर दी है।
दरअसल 1 जनवरी 2014 से भारतीय जीवन बीमा निगम और दूसरी निजी बीमा कंपनियों ने कई पुरानी बीमा योजनाएँ बंद कर दीं। उनके बदले नयी योजनाएँ पेश की जा रही हैं, लेकिन इसमें वक्त लग रहा है। हालाँकि जिन ग्राहकों ने पुरानी योजनाएँ ली हुई हैं, उन्हें उनके फायदे मिलते रहेंगे। लेकिन बीमा नियामक इरडा को शिकायतें मिली हैं कि एजेंट मौजूदा स्थिति का फायदा उठाकर ग्राहकों से पुरानी पॉलिसी सरेंडर कराकर नई पॉलिसी लेने पर जोर दे रहे हैं। इरडा को मिली शिकायतों के मुताबिक कई एजेंट ग्राहकों को गलत जानकारियाँ दे रहे हैं कि 1 जनवरी 2014 से उन्हें पुरानी पॉलिसी के पूरे फायदे नहीं मिलेंगे। ऐसे में इरडा चाहता है कि एजेंट और बीमा कंपनियाँ ग्राहकों को पॉलिसी वापस करने के बारे में सही जानकारी दें।
इरडा ने नये नियमों के ड्रॉफ्ट प्रस्तावों में कहा है कि बीमा कंपनियाँ और एजेंट ग्राहकों को पुरानी पॉलिसी सरेंडर करने पर जोर ना दें। बीमा कंपनियों और एजेंटों को साबित करना होगा कि पुरानी पॉलिसी सरेंडर कर नयी पॉलिसी लेना क्यों फायदेमंद होगा। बीमा कंपनियों से कहा गया है कि एजेंटों से एक साथ पॉलिसी रद्द करने और नयी पॉलिसी बेचने की अर्जियाँ ना लें।
इरडा के मुताबिक अगर अपवाद स्वरूप पुरानी पॉलिसी को वापस करना आवश्यक लग रहा हो तो निवेशक को लिखित रूप में समझायें कि पॉलिसी वापस करने से कितना नुकसान होगा। प्रस्ताव फॉर्म में यह हिदायत भी डालनी होगी कि लोग पुरानी पॉलिसी वापस कर नयी पॉलिसी न खरीदें।
इरडा ने यह भी साफ किया है कि बीमा कंपनियाँ नयी पॉलिसी लेते समय पुरानी पॉलिसी की कोई भी रकम पास न रखें। अक्सर एजेंट ग्राहकों को पुरानी पॉलिसी की सरेंडर वैल्यू से नयी पॉलिसी का शुरुआती प्रीमियम काटे जाने का झाँसा देते हैं।
बीमा एजेंटों की नजर ग्राहकों से ज्यादा अपने फायदे पर रहती है। यही वजह है कि बहुत बार बीमा कंपनियों के एजेंट निवेशकों को ज्यादा लाभ का लालच देकर नयी पॉलिसी बेच देते हैं। एजेंट ऐसा इसलिए करते हैं कि क्योंकि नयी पॉलिसी की बिक्री पर उन्हें पहले साल में प्रीमियम की 30-35% रकम कमीशन के तौर पर मिल जाती है।
वहीं दूसरी ओर ग्राहकों के लिए पुरानी पॉलिसी सरेंडर करके नयी पॉलिसी लेना काफी नुकसानदायक होता है। निवेशकों के लिए वैसे ही नयी पॉलिसी लेने पर प्रीमियम का बोझ बढ़ जाता है। अगर उम्र का अंतर ज्यादा हो तो पॉलिसी की सहूलियतें भी कम हो जाती हैं। पुरानी पॉलिसी को समय से पहले वापस करने पर नुकसान अलग से होता है, क्योंकि बीमा कंपनियाँ पॉलिसी वापस करने पर तमाम तरह के शुल्कों के नाम पर एक बड़ी रकम काट लेती हैं। इरडा ने यह भी साफ किया है कि अगर ग्राहक की मौजूदा बीमा कंपनी ने उसे पुरानी पॉलिसी वापस करके नयी पॉलिसी देते समय सही जानकारियाँ नहीं दी हैं तो ग्राहक के पास नयी पॉलिसी मिलने के सात दिनों के भीतर पुरानी पॉलिसी दोबारा शुरू करने का अधिकार होगा। दोबारा शुरू हुई पॉलिसी में सभी लाभ देने होंगे। पुरानी पॉलिसी दोबारा शुरू होने पर ग्राहक को नयी पॉलिसी के लिए दिये गये पूरे प्रीमियम की वापसी का अधिकार होगा। कंपनी को नयी पॉलिसी वापस करने का पूरा खर्च उस बीमा एजेंट से वसूलना होगा, जिसने ग्राहक को नयी पॉलिसी बेची थी।
बीमा नियामक ने प्रस्ताव दिया है कि बीमा कंपनियाँ अपने एजेंटों को उसके नये निशानिर्देशों के बारे में प्रशिक्षण दें। साथ ही बीमा कंपनियाँ बीमा फॉर्म में ग्राहकों को यह स्पष्ट सलाह दें कि वे नयी पॉलिसी लेने के लिए पुरानी पॉलिसी खत्म ना करें।
वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान इरडा को करीब 1.80 लाख शिकायतें मिली थीं। इनमें से हर दूसरी शिकायत धोखे से पॉलिसी बेचने या पॉलिसी वापस करने से जुड़ी थी। इन बढ़ती शिकायतों के मद्देनजर इरडा चाहता है कि पॉलिसी बिक्री और वापसी के नियमों में पारदर्शिता बढ़े। इरडा ने सभी पक्षों से मसौदा नियमों पर टिप्पणियाँ मंगायी हैं, जिनके बाद अंतिम नियम जारी किए जायेंगे। उम्मीद की जा सकती है कि नये नियम लागू होने के बाद बीमा क्षेत्र में पारदर्शिता और बढ़ेगी।
(निवेश मंथन, सितंबर 2014)