सुशांत शेखर :
भारत में बैंकिंग की दुनिया बदलने वाली है।
बैंकिंग की पहुँच बढ़ाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने छोटे बैंक और पेमेंट बैंक खोलने पर ड्राफ्ट दिशा निर्देश जारी कर दिये हैं। ये वित्तीय संस्थान वंचित तबके की बैंकिंग तक पहुँचने की आंकाक्षाओं को पूरा करने के साथ सरकार के वित्तीय समावेश के सपने को भी साकार करने में मदद करेंगे। रिजर्व बैंक ने कंपनियों ही नहीं, बल्कि व्यक्तियों को भी छोटे बैंक खोलने के योग्य माना है। किसी व्यक्ति के पास अगर 10 साल का बैंकिंग का अनुभव है तो उसे शर्तें पूरी करने पर बैंकिंग लाइसेंस मिल सकेगा। रिजर्व बैंक ने वित्तीय समावेश यानी फाइनेंशियल इन्क्लूजन प्लान के तहत छोटे बैंक खोलने के लिए जिन्हें योग्य माना है, उनमें गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थान यानी एनबीएफसी, माइक्रोफाइनेंस कंपनियाँ और बैंकिंग का तजुर्बा रखने वाले व्यक्ति भी हैं।
हालाँकि इसके लिए 100 करोड़ रुपये की पूँजी का इंतजाम करना होगा। इसमें से कम-से-कम 40 करोड़ रुपये अपनी जेब से लगाने होंगे। रिजर्व बैंक के नियमों के हिसाब से खुद को योग्य यानी फिट एंड प्रॉपर साबित करना होगा। रिजर्व बैंक के इन मसौदा दिशानिर्देशों से बैंकिंग और फाइनेंस के उन पेशेवर व्यक्तियों के लिए रास्ता खुलेगा, जिनके पास अनुभव है और जेब में पैसे भी हैं। छोटे बैंक विशेष तरह के बैंक होंगे। इनके कामकाज का तरीका मौजूदा बैंकों से अलग होगा। इन बैंकों को एक सीमित क्षेत्र में कारोबार के लिए लाइसेंस मिलेगा। शुरुआत में छोटे बैंक ऋण बाँटने और पैसे जमा करने का ही काम करेंगे। बाद में रिजर्व बैंक कामकाज की समीक्षा कर दूसरी सेवाओं की अनुमति देगा। छोटे बैंक मुख्य तौर पर गरीब किसानों, छोटे कारोबारियों, एमएसएमई और असंगठित क्षेत्र की इकाइयों को ही ऋण देंगे। छोटे बैंकों को अपनी लोन बुक का आधा 25 लाख रुपये से ऊपर नहीं रखना होगा। ऐसे बैंक मौजूदा बैंकों की तरह बड़ी-बड़ी शाखाएँ न खोल कर बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट के सहारे भी काम कर सकेंगे। साथ ही उनका कारोबार काफी कुछ सूचना तकनीक (आईटी) पर आधारित होगा।
ये छोटे बैंक ग्राहकों के लिए सुरक्षित रहें, इसके लिए आम बैंकों की तरह ही कड़ी शर्तें रखी गयी हैं। किसी एक ही ग्रुप या संस्था को अपनी पूँजी के 15% से अधिक ऋण देने की छूट नहीं होगी। साथ ही छोटे बैंकों को भी नकद आरक्षित अनुपात यानी सीआरआर और वैधानिक तरलता अनुपात यानी एसएलआर की शर्तों को मानना होगा। प्रमोटर्स पाँच साल से पहले हिस्सा नहीं बेच सकेंगे। प्रमोटरों को तीन साल बाद हिस्सेदारी घटा कर 40% और 12 साल के भीतर 26% तक लाना होगा।
छोटे बैंकों के साथ आरबीआई ने पेमेंट बैंकों के लिए भी दिशानिर्देशों का मसौदा जारी किया है। आरबीआई ने पेमेंट बैंक खोलने के लिए जिन्हें काबिल माना है, उनमें बड़ी खुदरा कंपनियाँ, एनबीएफसी, मोबाइल ऑपरेटर, प्री-पेड कार्ड कंपनियाँ, बेहतर नेटवर्क वाले कॉरपोरेट घराने और बड़े बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट भी शामिल हैं। देश के दूरदराज के इलाकों तक फैली सरकारी कंपनियाँ भी पेमेंट बैंक खोल सकेंगी। छोटे बैंकों की तरह ही पेमेंट बैंक के लिए भी 100 करोड़ रुपए की पूँजी और प्रमोटरों की ओर से कम-से-कम 40 करोड़ रुपये की पूँजी लगाने की शर्त होगी।
पेमेंट बैंक का काम मुख्य तौर पर ग्राहकों को आसानी से भुगतान की सुविधा देना होगा। पेमेंट बैंक एक ग्राहक से पैसे लेंगे और फिर उसके बताये गये व्यक्ति या खाते में रकम पहुँचायेंगे। भुगतान की यह सेवा शाखा, बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट या मोबाइल बैंकिंग के जरिये दी जा सकती है। एटीएम, प्री-पेड कार्ड, प्वाइंट ऑफ सेल्स पर कार्ड के उपयोग और इंटरनेट बैंकिंग से भी यह सेवा देने का विकल्प होगा। पेमेंट बैंक चालू खाते और बचत खाते के तहत जमा स्वीकार कर सकेंगे। शुरुआत में पेमेंट बैंक को किसी ग्राहक के एक लाख रुपये से ज्यादा जमा करने की छूट नहीं होगी। पेमेंट बैंक ग्राहकों को ऋण नहीं दे सकेंगे। पेमेंट बैंक के लिए भी मौजूदा बैंकिंग लाइसेंस की सारी अहम शर्तें लागू होंगी। पेमेंट बैंक का मकसद बिना बैंक वाले इलाकों में फंड ट्रांसफर और बेसिक बैंकिंग की सुविधा कम-से-कम कम लागत में मुहैया कराना होगा। रिजर्व बैंक ने मसौदा दिशानिर्देशों पर सभी पक्षों से राय मांगी है। सभी पक्षों की राय मिलने के बाद आरबीआई छोटे बैंक और पेमेंट बैंकों पर अंतिम नियम जारी करेगा।
नये बैंक लाइसेंस के लिए 20 से ज्यादा कंपनियों ने अर्जी दी थी। लेकिन रिजर्व बैंक ने इस साल अप्रैल में सिर्फ आईडीएफसी और बंधन को ही नये बैंकिंग लाइसेंस दिये थे। ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग की पहुँच बढ़ाने के लिए छोटे बैंकों की जरूरत महसूस की जा रही थी। आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन पिछले साल से ही अलग तरह के बैंकों की चर्चा कर रहे थे। ऐसे में छोटे और पेमेंट बैंकों पर मसौदा दिशानिर्देशों को रख कर आरबीआई ने वित्तीय समावेश की दिशा में एक बड़ा कदम उठा लिया है।
(निवेश मंथन, सितंबर 2014)