पिछले कुछ महीनों में, खास कर जून में बनी तलहटी के बाद से सोने की कीमत में सुधार आया है।
जून में सोने की कीमत 26,000 रुपये के भी नीचे चली गयी थी। वहाँ से सँभलने के बाद इसकी कीमत वापस 29,000 के करीब लौटी, लेकिन ऊपरी स्तरों पर टिकने के लिए इसे संघर्ष करना पड़ रहा है।
दरअसल जून 2013 की तलहटी 24,830 रुपये से अगस्त 2014 के शिखर 35,074 तक की जो तीखी उछाल आयी थी, उसके बाद से सोने की कीमत अब तक उसी बड़े दायरे के अंदर, लेकिन नकारात्मक रुझान के साथ चलती रही है। उसी कड़ी में जून 2013 में सोना 26,000 रुपये के नीचे भी फिसल गया, लेकिन वहाँ से सँभल गया।
अगर हम जून-अगस्त 2013 की उछाल की वापसी के स्तरों पर निगाह डालें तो 61.8% वापसी 28,743 पर है। बीते अगस्त महीने में सोने ने इस बाधा को पार करने का प्रयास किया, लेकिन इसके ऊपर टिक नहीं पाया। अब यह 28,743 से 27,268 के स्तरों के बीच अटका हुआ है।
तकनीकी नजरिये से अगर सोना 27,268 के सहारे को निर्णायक रूप से न तोड़े और फिर से 28,743 के ऊपर निकले तो यह अगले ऊपरी स्तर यानी 50% वापसी को छूने का प्रयास करेगा जो 29,952 पर है। यानी मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि यदि सोने के अनुकूल स्थितियाँ रहीं तो आने वाले महीनों में यह फिर से 30,000 के करीब जाने की चेष्टा करेगा।
हालाँकि ऐसा करने के लिए एक बड़ी शर्त यही होगी कि सोना मई और फिर अगस्त में लगभग 29,000 के पास बने एक जैसे शिखरों को पार करे। अगर यह ऐसा कर सका तो अगस्त 2013 से अब तक लगातार निचले शिखर बनने का सिलसिला भी टूटेगा, जो इसके लिए सकारात्मक संकेत होगा। क्या यह ऐसा कर पायेगा?
रेलिगेयर सिक्योरिटीज के प्रेसिडेंट जयंत मांगलिक का मानना है कि आने वाले महीनों में यह संभव हो सकता है। वे सलाह देते हैं कि सोने की कीमतों में मौजूदा कमजोरी को निवेशक गिरावट में खरीदारी के अवसर की तरह देखें। वे कहते हैं कि दीपावली तक हमारे छोटी अवधि के अनुमानों के मुताबिक सोने की कीमत ऊपर 30,000 रुपये प्रति 10 ग्राम की ओर जा सकती है, क्योंकि शादी-विवाह के मौसम में माँग बढऩे के साथ-साथ रुपये में कमजोरी का भी असर हो सकता है। हालाँकि आज की स्थिति में तो डॉलर में गिरावट का रुझान है। इसके अलावा, यूक्रेन और लीबिया वगैरह में संघर्ष की स्थितियों के कारण भी सोने की कीमतों को सहारा मिलता रहेगा। वहीं ऊँची महँगाई दर की आशंका ने डॉलर की कीमत को नीचे थामे रखा है।
मांगलिक की सलाह है कि सोना सबके पोर्टफोलियो का हिस्सा होना चाहिए और लोगों को निवेश लायक अपनी अधिशेष रकम का 15% हिस्सा सोने में लगाना चाहिए।
मगर मोतीलाल ओसवाल कमोडिटीज के एसोसिएट डायरेक्टर किशोर नार्ने मानते हैं कि सोने की कीमतें एक दायरे में ही बँधी रहेंगी। वे कहते हैं, ‘नीचे की ओर 26,500-26,800 के स्तरों पर सहारा है। ऊपर की ओर 28,500-28,800 के स्तर हैं। सोने का भाव इसी दायरे के अंदर रहना चाहिए।'
वे इसका कारण यह बताते हैं कि सोने की कीमत को सहारा देने वाला कोई खास पहलू अभी नहीं है। केवल यूरोप में मौद्रिक ढील (मॉनिटरी ईजिंग) के चलते वहाँ से नयी नकदी बाजार में आने पर उसका एक हिस्सा सोने में जा सकता है। इसके चलते सोने के भावों में हल्का सकारात्मक रुख रह सकता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में 1340-1360 डॉलर प्रति औंस तक भाव जाने की गुंजाइश लगती है। उस हिसाब से अगले कुछ हफ्तों में थोड़ी-बहुत उछाल आ सकती है। लेकिन ऊपरी भावों पर यह टिक नहीं पायेगा, क्योंकि भौतिक (फिजिकल) रूप से ज्यादा ठोस माँग नहीं है।
नार्ने कहते हैं, ‘सोने की भौतिक माँग अभी बहुत कमजोर है। चाहे चीन हो या भारत हो, पिछले साल की तुलना में भौतिक माँग काफी कम हो गयी है। इसलिए ऊपरी भावों पर नयी खरीदारी नहीं आयेगी और भाव अटक जायेगा। वहीं नीचे की ओर 1270-1280 के पास जाने पर नयी बिकवाली भी नहीं उभरती है। इसलिए 1270-1360 का दायरा बना रहेगा और इसी तरह से भारतीय बाजार में भी कीमतें दायरे के अंदर चलती रहेंगी। अगले दो-तीन महीनों में सोना अपने इस दायरे से बाहर आता हुआ नहीं दिख रहा है।'
नार्ने त्योहार और शादी-विवाह के चलते माँग में ज्यादा तेजी आने की भी उम्मीद नहीं कर रहे। वे कहते हैं कि जौहरी पहले से सोना खरीद कर गहने तैयार करके रख लेते हैं। इसलिए त्योहारों वाली माँग के लिए जो आयात होना था, वह हो चुका है। पिछले दो महीने के आयात के आँकड़े भी बहुत कमजोर हैं। इस बार जौहरियों ने अपने पास कम सोना जमा करके रखा है।
(निवेश मंथन, सितंबर 2014)