धीरज सचदेव, सीनियर वीपी, एचएसबीसी एएम इंडिया :
हमारे मिडकैप फंड का प्रदर्शन बीते एक साल में तो अच्छा रहा ही है,
अगर बीते तीन साल का औसत लाभ भी देखें तो हम दूसरे चतुर्थांश (क्वार्टाइल) वाले फंडों में हैं। जहाँ तक हमारे इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड (प्रोग्रेसिव थीम्स) की बात है, उसका तीन सालों का प्रदर्शन इसलिए हल्का है कि पहले दो सालों में इन्फ्रास्ट्रक्चर में कुछ खास हो नहीं रहा था, निवेश नहीं हो रहा था। प्रोग्रेसिव थीम्स फंड का मुख्य जोर बुनियादी ढाँचे (इन्फ्रास्ट्रक्चर) पर है और उसमें आईटी, दवा और उपभोक्ता कारोबार जैसे क्षेत्रों में निवेश नहीं हैं। बुनियादी ढाँचा शेयर तो बीते एक साल में ही चलने शुरू हुए हैं।
हमारे मिडकैप फंड में वित्तीय क्षेत्र में निवेश पर जो जोर है, वह इसलिए है कि इस बाजार में चक्रीय (साइक्लिकल) तेजी होगी। सरकारी खर्च बढऩे, बुनियादी ढाँचे पर खर्च होने और अर्थव्यवस्था में सुधार का सबसे पहला फायदा बैंक क्षेत्र को होगा, क्योंकि उनका ऋण-खाता बड़ा हो जाता है और डूबे कर्जों (एनपीए) की स्थिति में सुधार होता है। फाइनेंस में हमने एनबीएफसी, निजी बैंक और थोड़े सरकारी बैंकों में निवेश किया है। इसके पीछे नजरिया यही है कि चक्रीय तेजी में एनबीएफसी और चुनिंदा बैंकों का प्रदर्शन अच्छा रहेगा।
इसके बाद इंजीनियरिंग क्षेत्र पर जोर है, क्योंकि अगर सरकारी निवेश बढ़ता है तो चक्रीय तेजी में कैपिटल गुड्स, इन्फ्रास्ट्रक्चर और मशीन उत्पादक कंपनियों के लिए भी माँग बढ़ जायेगी। कैपिटल गुड्स और इंजीनियरिंग में हमने जिन कंपनियों में निवेश किया है, उनमें काफी विविधता है जिनको निवेश चक्र में सुधार का फायदा मिलेगा।
इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड में हमने लॉजिस्टिक्स पर ज्यादा ध्यान दिया है, क्योंकि इसमें गेटवे डिस्ट्रीपाक्र्स, अदाणी पोट्र्स, गुजरात पिपावाव जैसी कंपनियों ने जिस तरह के कारोबार को खड़ा किया है, उसकी नकल कोई आसानी से नहीं कर सकता है। इन व्यवसायों में प्रवेश बाधाएँ (एंट्री बैरियर) काफी ज्यादा हैं। साथ ही इनकी आय में वृद्धि भी मजबूत रही है।
इस फंड में हमने वित्तीय क्षेत्र से भी जो नाम चुने हैं, उनमें बुनियादी ढाँचा के लिए ऋण देने वाली संस्थाएँ और बैंक शामिल हैं। हमने खुदरा ग्राहकों पर ज्यादा जोर देने वाले निजी बैंकों को नहीं चुना है। भारतीय बाजार की आगे की चाल के बारे में हमारा नजरिया काफी सकारात्मक है। बाजार में समय-समय पर कुछ नरमी आती रहेगी, लेकिन ऐसी नरमी कम समय तक ही रहेगी। हम अच्छी तेजी की उम्मीद कर रहे हैं, क्योंकि करीब तीस साल के बाद हमें पूरे बहुमत वाली ऐसी सरकार मिली है जो सुधारों के कार्यक्रम के आधार पर चुनी गयी है। इसलिए यह सरकार साहसिक फैसले कर सकती है और नीतियों में काफी परिवर्तन कर सकती है।
दूसरी बात यह है कि जो आर्थिक मुद्दे तीन साल से हमारे बाजार के लिए नकारात्मक थे, जैसे चालू खाते का घाटा (सीएडी), धीमी विकास दर (जीडीपी) या ऊँची महँगाई दर, उनको लेकर अब स्थिति में सुधार के संकेत मिलने लगे हैं। चालू खाते का घाटा बढ़ कर जीडीपी के 3.5-4% पर चला गया था, जो अब 2% से कम हो गया है। सोने के आयात पर नियंत्रण के लिए सरकार और आरबीआई ने अच्छे कदम उठाये। आर्थिक विकास दर भी अपनी तलहटी तक जाने के बाद वापस सँभलने लगी है। इस कारोबारी साल में यह सँभल कर 5.5% हो सकती है, उसके बाद शायद 6% और इस तरह धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था का रुझान ऊपर की ओर रहेगा।
इस तरह जो नकारात्मकता थी, वह हट रही है और स्थिरता लौट रही है। रुपये में भी अब स्थिरता दिखने लगी है। इसलिए हमारे हिसाब से आर्थिक कारणों और सरकार से उम्मीदों, खास कर नीतिगत सुधारों की उम्मीदों से बाजार नयी ऊँचाइयों की ओर बढ़ेगा। इसलिए तीन से पाँच वर्षों के नजरिये से बाजार में काफी तेजी की उम्मीदें कर रहे हैं।
अर्थव्यवस्था और बाजार में इस तेजी का सबसे ज्यादा फायदा चक्रीय क्षेत्रों को ही मिलेगा। कैपिटल गुड्स, बिजली, बुनियादी ढाँचा में चुनिंदा कंपनियाँ, सड़क निर्माण कंपनियाँ, बंदरगाह और ऑटो जैसे क्षेत्रों में मजबूती आयेगी। ऑटो में व्यावसायिक वाहनों के लिए चक्रीय सुधार होगा। हालाँकि इसका मतलब यह नहीं है कि आईटी और दवा जैसे क्षेत्रों को नजरअंदाज किया जाये, क्योंकि उनका कारोबार भी काफी अच्छी गुणवत्ता है और इनमें चक्रीय उतार-चढ़ाव नहीं है। इसलिए पोर्टफोलिओ में इन सब क्षेत्रों का एक संतुलन रखना होगा। लेकिन आय में एक बड़ा परिवर्तन चक्रीय क्षेत्रों में ही दिखेगा।
(निवेश मंथन, सितंबर 2014)