सुनील सिंहानिया, सीआईओ-इक्विटी, रिलायंस एएमसी :
हमें एक ही चीज आती है कि कैसे अच्छे शेयरों को खोजा जाये और उनमें निवेश किया जाये।
बीते दो-तीन वर्षों से जब शेयर बाजार का प्रदर्शन अच्छा नहीं था, तब एक दिलचस्प बात यह हो रही थी कि लोगों की दिलचस्पी केवल 10-20 गिने-चुने शेयरों में सिमट कर रह गयी थी। बाकी तमाम कंपनियों को बाजार नजरअंदाज कर रहा था। एक किताब है, जेब्रा इन ए लायंस कंट्री। कभी एक जेब्रा अकेला नहीं दिखता। वे हमेशा झुंड में मिलते हैं। हर जेब्रा झुंड के बीच में रहना पसंद करता है, ताकि अगर शेर हमला करे तो उसे सुरक्षा मिले। इसी तरह का व्यवहार बाजार में दिख रहा था। सब लोग केवल बड़ी-बड़ी 10-15 कंपनियों में निवेश कर रहे थे। वे किनारे वाले जेब्राओं को नजरअंदाज कर रहे थे, जबकि किनारे वाले जेब्राओं को अच्छी घास खाने का मौका मिलता है। बीच वाले जेब्रा को घास खाने का मौका नहीं मिलता, लेकिन सुरक्षा का एक भाव रहता है।
हमें यह बात बहुत स्पष्ट थी कि छोटी कंपनियों में काफी संभावनाएँ हैं। इसी वजह से हम एक अच्छा पोर्टफोलिओ बना पाये। जैसे ही अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार में कुछ सुधार आया, तो ये शेयर सबसे तेजी से आगे बढ़े।
छोटे शेयरों में जोखिम ज्यादा होता है, लेकिन छोटी अवधि में। अगर लंबे समय में देखें तो छोटे शेयरों में मिलने वाला लाभ हमेशा दिग्गज शेयरों के लाभ से ज्यादा होता है। साथ ही अपने फंड में हमने स्पष्ट नीति बना रखी है कि हम ज्यादा जोखिम वाली कंपनियों को नहीं चुनेंगे। इसलिए जिनमें ऋण ज्यादा हो या जहाँ आय की क्षमता नहीं दिखती है, वैसे शेयरों को हम नहीं लेते हैं। इसीलिए हमने कंस्ट्रक्शन शेयरों में निवेश नहीं किया। साथ ही किसी एक कंपनी में हम 4-5% से ज्यादा हिस्सेदारी नहीं लेते हैं। इस तरह हम जोखिम को बाँटने का प्रयास करते हैं। हमारे पास अपनी एक बड़ी रिसर्च टीम है और हम लोग 450-500 कंपनियों पर नजर रखते हैं।
हमारे पोर्टफोलिओ में अभी 52 शेयर हैं। यह संख्या सामान्य ही है। अमूमन 40-50 शेयर तो हमारे पोर्टफोलिओ में रहते ही हैं। यह जोखिम को अलग-अलग कंपनियों में फैलाने की रणनीति है। साथ ही काफी कंपनियाँ ऐसी होती हैं, जिनमें आप जल्दी से हिस्सेदारी बढ़ा नहीं पाते हैं क्योंकि बाजार में ज्यादा शेयर उपलब्ध नहीं रहते हैं। वैसे भी इन 52 में से पोर्टफोलिओ का अधिकांश हिस्सा करीब 40 कंपनियों में ही होगा। जो बाकी नाम हैं, वे या तो बेचे जाने या उनमें हिस्सा बढ़ाये जाने की प्रक्रिया में हैं।
हमने अपने पोर्टफोलिओ में केमिकल क्षेत्र पर जो दाँव लगाया, उसका परिणाम काफी अच्छा रहा है। जब हमने केमिकल कंपनियों में निवेश शुरू किया, उस समय कोई इन्हें खरीद नहीं रहा था। अभी भी हमारे पोर्टफोलिओ में जो केमिकल क्षेत्र के नाम हैं, वे काफी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। इसके बाद हमारा बड़ा निवेश बैंकिंग क्षेत्र में है, जो अपने-आप में एक बड़ा क्षेत्र है। इसके बाद हमारे पोर्टफोलिओ में इंजीनियरिंग क्षेत्र है, जिसके जरिये हम घरेलू अर्थव्यवस्था के फिर से तेज होने फायदा उठाना चाहते हैं। हमने जो इंजीनियरिंग शेयर चुन रखे हैं, वे सब काफी अच्छे नाम हैं। हमने ज्यादा जोखिम वाले ऐसे शेयर नहीं लिये हैं, जिनमें ज्यादा ऋण हो। हमने सिर्फ उम्मीदों के आधार पर कुछ नहीं लिया है।
आने वाले समय के लिए हमें विभिन्न क्षेत्रों में मजबूत ब्रांड वाली कंपनियाँ अच्छी लग रही हैं। मिसाल के तौर पर ब्रांडेड कपड़े, ब्रांडेड टाइल, पेंट, फर्नीचर वगैरह की कंपनियों पर हमारी नजर है। जहाँ भी घरेलू रूप से विकसित ब्रांड दिखता है, उनको लेकर हमारा नजरिया सकारात्मक है। साथ ही मीडिया क्षेत्र हमें ठीक लग रहा है।
अभी शेयर बाजार में तेजी आने के साथ हम धीरे-धीरे जहाँ भी अवसर दिख रहा है, वहाँ पैसा लगा रहे हैं। हमारे पोर्टफोलिओ में 18% से कुछ ज्यादा पैसा मनी मार्केट में लगा है, जो एक तरह से नकदी है और हम धीरे-धीरे इसका निवेश शेयरों में करेंगे। अभी उस निवेश की प्रक्रिया चल रही है। मुझे लगता है कि एक-डेढ़ महीने में यह निवेश काफी हद तक हो जायेगा। यह नकदी इस वजह से नहीं है कि हमने कोई शेयर बेचा हो।
शेयर बाजार की चाल इस समय काफी अच्छी लग रही है। हमारा आकलन है कि अगले 5-6 सालों में भारत की आय (सूचीबद्ध कंपनियों की ईपीएस) तिगुनी हो जायेगी। इसलिए ऐसा लगता है कि इन सालों में शेयरों में निवेश किसी अन्य संपदा-वर्ग की तुलना में सबसे ज्यादा लाभ दे सकेगा। हालाँकि यह कह पाना तो मुश्किल है कि क्या अगले 5-6 सालों में सूचकांक भी तिगुना हो जायेगा। हो सकता है कि इससे कम बढ़े, और इससे ज्यादा बढऩा भी संभव है। साल 2002 से 2008 तक सेंसेक्स आय तिगुना बढ़ी, जबकि इस दौरान बाजार छह गुना बढ़ा। साल 2008 से 2014 तक सेंसेक्स आय सपाट रही और बाजार भी सपाट रहा। बाजार को अंतत: आय में वृद्धि दिखनी चाहिए। हमारा अनुमान है कि आने वाले वर्षों में 15% सालाना औसत आय वृद्धि तो होगी ही, अगर सरकारी प्रोत्साहनों से मदद मिले तो आय वृद्धि 20% भी हो सकती है। ऐसी वृद्धि अगर हो सकी तो भारत का पीई मूल्यांकन भी और बढऩे की उम्मीद होगी।
बाजार में आने वाले वर्षों में जो वृद्धि होगी, उसमें काफी क्षेत्रों की सहभागिता होगी। यह अर्थव्यवस्था से जुड़ी हुई वृद्धि होगी। अगर आप 2002 से 2008 को देखेंगे तो उस दौरान काफी व्यापक रूप से वृद्धि हुई थी। सरकारी खर्चों के बढऩे से बैंकों को और कैपिटल गुड्स को फायदा होगा, उसके बाद सहायक क्षेत्रों को फायदा होगा। अर्थव्यवस्था की तेजी से लोगों की आमदनी बढ़ती है और उससे खपत बढ़ती है। इसलिए यह काफी व्यापक हो जाता है। निवेशकों ने पिछले 4-5 सालों में शेयर बाजार से काफी पैसा बाहर निकाला है। अब ऐसा समय नहीं है कि आप शेयर बाजार में निवेश कम रखने की बात सोचें। आपको शेयरों में निवेश बढ़ाना होगा, वरना अपने लिए संपदा-निर्माण में आप काफी पीछे रह जायेंगे।
(निवेश मंथन, सितंबर 2014)