अनुज पुरी, चेयरमैन, जेएलएल इंडिया :
रियल एस्टेट क्षेत्र में इन चुनावी नतीजों के चलते छोटी अवधि में निवेश की धारणा में सुधार की उम्मीद निश्चित रूप से की जा सकती है।
देश में निवेश बढ़ाने में मदद मिलेगी। वित्तीय वर्ष 2014-15 के दौरान औद्योगिक जीडीपी (जिसमें खनन, उत्पादन जैसे भारी निवेश वाले क्षेत्र शामिल हैं) में 3.5% की वृद्धि होने के अनुमान लगाये गये हैं। ये आरबीआई की ताजा रिपोर्ट में विशेषज्ञों का औसत अनुमान है। इसक तुलना पिछले वित्तीय वर्ष से करें तो 2013-14 में इसकी वृद्धि दर मात्र 0.6% रही है।
विभिन्न निवेशकों के साथ हमारी जो रोजमर्रा की बातचीत होती है, उससे यह स्पष्ट है कि घरेलू पूँजी अच्छे निवेश के विकल्पों की तलाश में है। निवेशक आकर्षक मूल्यांकन पर सौदा करने के इच्छुक हैं। हालाँकि विदेशी पूँजी हाल में किनारे बैठ कर इंतजार करती रही है, क्योंकि उसे भारत में निवेश करने से पहले राजनीतिक स्थिरता का इंतजार था।
इस संदर्भ में एक स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनने का मतलब सबसे अच्छी संभावना का साकार होना है। निवेशक चाहते हैं कि सरकार के सामने उसके स्पष्ट लक्ष्य हों और उन लक्ष्यों को पाने के लिए उसके पास इच्छाशक्ति और मजबूती भी हो। भाजपा को भारी बहुमत से जीत मिलने के साथ निवेशकों में यह स्पष्ट धारणा बनी है कि अब ऐसी ही स्थिति बन गयी है।
पिछले कुछ महीनों से हम रियल एस्टेट निवेश परिदृश्य में पहले से ही सुधार देख चुके हैं। वर्तमान में कम-से-कम 1.8 अरब डॉलर की पूँजी जुटाये जाने की प्रक्रिया में है। अब भाजपा के सत्ता में आने के बाद हम अधिक आकर्षण पैदा होने और देश में विभिन्न निवेशकों के आने की उम्मीद करते हैं।
किसी भी सरकार के पास एक झटके में तुरंत सभी समस्याओं का समाधान कर देने के लिए जादू की कोई छड़ी नहीं है। अर्थव्यवस्था में सुधार होना एक धीमी प्रक्रिया है और हमें धैर्य रखने की जरूरत है। लेकिन जैसा मैंने पहले कहा है, केंद्र में एक स्थिर सरकार होने से उत्साह बढ़ता और उसके चलते विदेशी पूँजी आकर्षित होती है। हालाँकि भूसंपदा (प्रॉपर्टी) की कीमतों में हम उस तरह की तेजी आने की उम्मीद नहीं कर सकते, जैसी तेजी वैश्विक वित्तीय संकट उत्पन्न होने से पहले आयी थी। मेरे ख्याल से उस तरह की तेजी और कम-से-कम 12 से 18 महीने दूर है।
आवास की कमी पुरानी समस्या है। भारत सरकार ने हमेशा सस्त आवासीय योजनाओं पर ध्यान दिया है। लेकिन ज्यादातर डेवलपर इस क्षेत्र पर ध्यान देने से हिचकते रहे हैं, क्योंकि सस्ते आवास बनाना सामान्य तौर पर कम मुनाफे वाला कारोबार है, जबकि उच्च महँगाई दर की स्थिति में लाभदायकता उनके लिए मुख्य चिंता बनी हुई है। सस्ते आवासीय क्षेत्र में प्राइवेट इक्विटी फंडों की इक्विटी भागीदारी भी सीमित रही है।
नयी सरकार तेजी से भूमि अधिग्रहण, जल्द स्वीकृति मिलने, आसान एवं कम लागत पर वित्त की उपलब्धता और बेहतर बुनियादी ढाँचा तैयार करने में मदद करने पर ध्यान दे सकती है। ऐसा होने पर डेवलपरों और निवेशकों के लिए यह क्षेत्र अधिक आकर्षक बन सकता है।
नरेंद्र मोदी के गृह-राज्य गुजरात में राज्य सरकार डेवलपरों को कम लागत वाले घर बनाने में मदद करती रही है। हालाँकि सस्ती पूँजी की उपलब्धता, मंजूरी मिलने की लंबी प्रक्रिया और किफायती भूमि की उपलब्धता जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
अर्थव्यवस्था के अन्य पहलुओं को देखें तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि जीएसटी लागू करना नयी सरकार के एजेंडा में एक मुख्य बिंदु होगा। हालाँकि इसमें मुख्य चुनौती राज्यों को विश्वास में लेने की होगी, जिन्हें वर्तमान में अपनी कर स्वायत्तता के समाप्त हो जाने का खतरा लग रहा है।
जीएसटी से सबसे बड़ा लाभ रसद और भंडारण (लॉजिस्टिक्स ऐंड वेयरहाउसिंग) क्षेत्रों को होगा, क्योंकि इससे वे अधिक संगठित हो जायेंगे और इच्छित पैमाने पर लक्ष्य को हासिल कर सकेंगे। भारत में रियल एस्टेट क्षेत्र पर भी इसका सशक्त और अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। डेवलपर कराधान प्रक्रिया व्यवस्थित होने की उम्मीद कर सकते हैं, क्योंकि जीएसटी उन्हें स्टांप शुल्क, विद्युत शुल्क जैसे असमान लेवी उगाही से मुक्त करेगा।
भाजपा ने अपने घोषणापत्र में कह रखा है कि वह खुदरा (रिटेल) क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के विरुद्ध है। लेकिन यदि देश को एफडीआई और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का स्वागत करना है तो किनारे खड़े हो कर इंतजार कर रहे अंतरराष्ट्रीय रिटेलरों की संख्या पर विचार करने की जरूरत है।
मेरा अनुमान है कि मध्यम अवधि में सेवा-सत्कार (हॉस्पिटैलिटी) क्षेत्र में अच्छी वृद्धि होगी, क्योंकि नयी सरकार को पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए स्पष्ट जनादेश मिला है। सरकार का ध्यान किफायती होटल सुविधाओं के साथ 50 पर्यटन सर्किट के निर्माण पर है। यहाँ तक कि मुंबई जैसे विकसित शहरों में कुल उपलब्ध कमरों की संख्या में किफायती होटलों, सर्विस अपार्टमेंट और मध्यम-स्तरीय होटलों का हिस्सा 17-20% से अधिक नहीं है। लिहाजा यह श्रेणी महत्वपूर्ण वृद्धि के लिए तैयार है।
(निवेश मंथन, जून 2014)