उद्योग जगत ने नयी सरकार के पहले बजट से जहाँ अपने लिए करों (टैक्स) और शुल्क (ड्यूटी) में कमी माँगी है,
वहीं सरकार को अपना घाटा सँभालने की नसीहत भी दी है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को जल्दी लागू करने पर भी उद्योग जगत का खास जोर है।
वित्त मंत्रालय के साथ बजट पूर्व बैठक में प्रमुख उद्योग संगठन सीआईआई ने जल्द-से-जल्द जीएसटी के क्रियान्वयन का आग्रह किया, जिससे निवेशकों के उत्साह को बढ़ाया जा सके और भारतीय अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाया जा सके। सीआईआई का कहना है कि उद्योगों को प्रोत्साहन के लिए जीएसटी से बेहतर कुछ नहीं हो सकता। इसने माँग की है कि केंद्र सरकार इसके लिए संविधान में संशोधन और अन्य मुद्दों को राज्य सरकारों के साथ मिल कर जल्दी सुलझाये और बताये कि जीएसटी कब से लागू होगा। सीआईआई का यह भी कहना है कि जीएसटी को लागू करने में हो रही देरी के मद्देनजर केंद्रीय बिक्री कर (सीएसटी) को 2% से घटा कर 1% कर देना चाहिए।
दूसरे प्रमुख उद्योग संगठन फिक्की की बजट-पूर्व माँगों की फेहरिश्त में भी जीएसटी को 2015 से लागू करने को प्रमुखता मिली है। फिक्की का कहना है कि सारे अप्रत्यक्ष करों को जीएसटी में मिला देना चाहिए और अर्थव्यवस्था के किसी भी क्षेत्र को जीएसटी से बाहर नहीं रखना चाहिए।
वहीं दिलचस्प है कि प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) को जल्द लागू करने के लिए फिक्की ने जोर नहीं डाला है। उल्टे इसका कहना है कि डीटीसी की प्रासंगिकता पर सोचना चाहिए, क्योंकि इसमें प्रस्तावित ज्यादातर बदलाव पहले ही मौजूदा कानूनों में शामिल किये जा चुके हैं।
उत्पाद शुल्क (एक्साइज ड्यूटी) और सीमा शुल्क (कस्टम ड्यूटी) में कमी के जरिये उद्योग जगत ने जहाँ अप्रत्यक्ष करों में रियायतें माँगी हैं, वहीं कॉर्पोरेट टैक्स को घटा कर प्रत्यक्ष कर में भी छूट माँगी है। सीआईआई की माँग है कि सरचार्ज और सेस समेत कॉर्पोरेट टैक्स घटा कर 25% कर दिया जाना चाहिए। आर्थिक धीमापन आने के मद्देनजर व्यक्तिगत आय कर की विभिन्न श्रेणियों को ऊपर करने का भी सुझाव दिया गया है।
सीआईआई ने छोटी अवधि के लिए प्रोत्साहन पैकेज के विस्तार का सुझाव दिया, जिसमें 31 मार्च 2015 तक कुछ खास वस्तुओं पर उत्पाद शुल्क में कटौती शामिल है। फरवरी में पेश अंतरिम बजट में उत्पाद शुल्क में कटौती 2% से 6% तक की कटौती 30 जून 2014 तक के लिए दी गयी थी।
सीआईआई ने सरकार से यह भी आग्रह किया है कि अर्थव्यवस्था में फिर से माँग बढ़ाने के लिए उत्पाद शुल्क की सामान्य दर 12% से घटा कर 10% कर दी जाये। प्रोत्साहन पैकेज पर सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा है कि प्रोत्साहन को वापस लेने के लिए यह समय ठीक नहीं है, क्योंकि इस समय में अर्थव्यवस्था कमजोरी के दौर से गुजर रही है और उत्पादन क्षेत्र में गिरावट का रुख है। सरकार को एक कठिन संतुलन साधना होगा, क्योंकि नकारात्मक क्षेत्र से बाहर निकलने के लिए उद्योगों को अभी कुछ और समय तक वित्तीय प्रोत्साहन की जरूरत होगी।
फिक्की ने सहायक और उचित कर-नियमन का माहौल लाने को वक्त की जरूरत बताया है। फिक्की ने इस बात पर जोर दिया है कि भारत पूँजी का स्वागत करता दिखे, जिसके लिए स्पष्ट और भरोसेमंद नीतियाँ हों। फिक्की के अध्यक्ष सिद्धार्थ बिड़ला का यह बयान महत्वपूर्ण है कि उद्योगों और प्रशासन दोनों को यह भरोसा होना चाहिए कि अच्छी नीयत के साथ हुए फैसलों और कामों का सम्मान होगा और उनकी रक्षा होगी।
इन सारी बातों में वोडाफोन टैक्स विवाद के साथ-साथ 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला खान आवंटन को लेकर चल रही जाँच की छाया दिखती है। यहाँ सरकार के लिए चुनौती यह है कि उसे एक तरफ सरकार से उद्योग जगत को मिलने वाले किसी भी लाभ को भ्रष्टाचार के संदेहों से मुक्त रखना होगा, दूसरी तरफ एक सहायक माहौल बनाने और एक बार फैसला हो जाने के बाद उसके पलट जाने की आशंका खत्म करने की उद्योग जगत की उम्मीदों का भी ध्यान रखना होगा।
सीआईआई ने भी ऐसी सरल और स्थायी कर व्यवस्था की माँग की है, जिसमें विरोध का भाव नहीं हो। इसने ध्यान दिलाया है कि कारोबार में आसानी का निवेशकों की धारणा पर काफी प्रभाव पड़ता है, लेकिन कारोबार के लिए अनुकूल 189 देशों की सूची में इस समय भारत 134वें स्थान पर है।
इसका कहना है कि पिछली तारीख से संशोधनों को खत्म करने, जीएएआर को टालने, बुनियादी ढाँचे और एसईजेड से मैट समाप्त करने, विवाद को निपटाने की प्रणाली को अद्र्ध-न्यायिक संस्था बनाने और कर प्रशासन में सुधारों को लागू करने की समय-सीमा तय करने से भारत एक बार फिर कारोबार करने के लिहाज से आकर्षक स्थान बन जायेगा।
फिक्की ने ध्यान दिलाया है कि जब सरकार की ओर से कर अधिकारियों पर राजस्व संग्रह के लिए बहुत दबाव है, जिसके चलते ये मनमाने ढंग से टैक्स जोड़ देते हैं, रिफंड या ड्रॉबैक के लिए मना या देरी करते हैं। इन सबसे अनावश्यक विवाद और मुकदमेबाजी होती है। फिक्की ने सरकार के सामने दलील रखी है कि राजस्व संग्रह देश में आर्थिक गतिविधियों पर निर्भर है और अधिकारियों के सामने कृत्रिम रूप से ऊँचे लक्ष्य रख देने से सरकार की आय को नहीं बढ़ाया जा सकता है। फिक्की ने सरकार से आक्रामक कर वसूली के नजरिये को छोड़ कर एक अनुकूल कर वातावरण बनाने की माँग की है। जाहिर है कि उद्योग जगत की यह तकलीफ पिछली सरकार के रवैये को लेकर है और उन्हें उम्मीद है कि नयी सरकार यह रवैया बदलेगी।
विकास और निवेशकों के भरोसे को बढ़ाने के प्रस्ताव पर सीआईआई ने जोर दिया है कि वित्तीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने के लिए रोडमैप तैयार किया जाना चाहिए, जिसका बजट में ऐलान किया जाना चाहिए।
वित्तीय अनुशासन बनाये रखने की जरूरत पर बनर्जी ने कहा है कि वित्तीय सुदृढ़ता सुधार के एजेंडा का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है और एक स्थायी निवेश स्थल के रूप में भारत की छवि को बनाये रखने के लिए यह जरूरी है। इसलिए वित्तीय समझदारी को बनाये रखते हुए विकास दर को फिर से बढ़ाने के लिए सरकार को खास रणनीति बनानी होगी।
सीआईआई ने रचनात्मक हस्तक्षेप के जरिये आमदनी बढ़ाने का सुझाव दिया है, जिससे खपत बढ़ाने के लिए वित्तीय गतिशीलता मिल सके। सीआईआई ने सुझाव दिया कि सब्सिडी खर्च को तार्किक बना कर इसमें 10% कमी लाने से 25,000 करोड़ रुपये तक की बचत हो सकती है। सीआईआई ने सरकार की आय बढ़ाने के लिए पीएसयू बैंकों में होल्डिंग कंपनी संरचना का मॉडल अपनाने, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी 51% तक घटाने और आक्रामक तरीके से विनिवेश जारी रखने के सुझाव भी रखे।
सीआईआई सरकार से अपील की है कि वह जल्द-से-जल्द परियोजनाओं को मंजूरी दे कर माँग बढ़ाने को प्राथमिकता दे। साथ ही इसने सीसीआई की मंजूरी के लिए नियत सीमा को 1,000 करोड़ रुपये से घटा कर 500 करोड़ रुपये करने का सुझाव दिया है।
सीआईआई ने माँग की है कि अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए उत्पादन (मैन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र को बढ़ावा देना सरकार की प्राथमिकताओं में से एक होना चाहिए। उत्पादन क्षेत्र में निरंतर निवेश की जरूरत होती है, लेकिन यह उतना ही रोजगार सृजन भी करता है। सीआईआई का कहना है कि निवेश भत्ता (इन्वेस्टमेंट एलाउएंस) से उत्पादन क्षेत्र में पूँजी निर्माण को बढ़ावा मिलता है और कुछ सुधारों के साथ इसके दायरे को बढ़ाया जा सकता है। सीआईआई ने संयंत्रों और मशीनों में निवेश के लिए 25% त्वरित मूल्यह्रास (डेप्रिसिएशन) को मंजूरी, मैट दरों में कमी और लाभांश वितरण कर को घटा कर 10% करने की भी माँग की है।
उद्योग संगठन का मानना है कि वित्तीय बचत में कमी आ रही है, जिसके चलते निवेश के लिए पूँजी जुटाना एक चुनौती बन सकती है। बचत को बढ़ाने के लिए आय कर में छूट की मूल सीमा बढ़ाने और सरचार्ज हटाने की जरूरत है, जिससे लोगों के हाथ में बचत और खर्च के लिए ज्यादा पैसा उपलब्ध हो। साथ ही केंद्र सरकार को सब्सिडी और अन्य राजस्व व्यय में कटौती के जरिये राजस्व घाटा कम करना चाहिए। पूँजी जुटाने के अन्य तरीकों के तौर पर बीमा, रक्षा आदि क्षेत्रों में एफडीआई सीमा बढ़ाने के सुझाव दिये गये हैं।
बनर्जी मानते हैं कि धीमी होती विकास दर, ऊँचे सरकारी घाटे और उच्च खाद्य महँगाई दर ने निवेश और उपभोक्ता माँग को कमजोर बना दिया है। यह एक दुष्चक्र बनता जा रहा है। बनर्जी कहते हैं कि हमें इस दुष्चक्र को तोडऩा होगा। इसके लिए सुधारों पर जोर देना होगा, जिससे आपूर्ति संबंधी बाधाओं को दूर किया जा सके। सरकारी घाटे को कम करते हुए भी इन कदमों को उठाने का एक अच्छा अवसर केंद्रीय बजट के रूप में सरकार के सामने है।
(निवेश मंथन, जून 2014)