सुशांत शेखर :
नोएडा के सेक्टर 93ए स्थित सुपरटेक के एमराल्ड कोर्ट में स्थित दो टॉवर गिराने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद निवेशक एक बार फिर ठगे महसूस कर रहे हैं।
अदालत के फैसले से बिल्डर और सरकारी विभागों के भ्रष्ट अधिकारियों का नापाक गठजोड़ भी सामने आया, जिससे अंतत: गाढ़ी कमाई से घर खरीदने वालों को ही नुकसान उठाना पड़ रहा है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एमराल्ड कोर्ट रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए 11 अप्रैल को 40 मंजिले दो टावर, एपेक्स और सियान को 4 महीने में गिराने का आदेश दिया। साथ ही इसके बिल्डर सुपरटेक और नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने और निवेशकों को 14% ब्याज के साथ पूरी रकम लौटाने का आदेश दिया।
उच्च न्यायालय ने कहा कि इस परियोजना में नोएडा अथॉरिटी यूपी अपार्टमेंट ऐक्ट का पालन कराने में नाकाम रही। इस कानून के मुताबिक बिल्डर अथॉरिटी की मंजूरी से फ्लोर एरिया रेश्यो यानी एफएआर बढ़ा सकता है, लेकिन इसके लिए मौजूदा खरीदारों से मंजूरी लेना जरूरी है। साथ ही दो टॉवरों के बीच कम-से-कम दूरी 16 मीटर होनी चाहिए। लेकिन इन टॉवरों के मामले में दोनों नियमों का उल्लंघन किया गया।
2004-05 में नोएडा अथॉरिटी ने सुपरटेक को सेक्टर 93 ए में 15 टॉवर वाली ग्रुप हाउसिंग सोसायटी के लिए 48,263 वर्ग मीटर जमीन आवंटित की थी। जून 2006 में अथॉरिटी ने बिल्डर को 6,556 वर्ग मीटर अतिरिक्त जमीन दी। इसमें एक शॉपिंग सेंटर और 11 मंजिला एक और टॉवर बनाने की इजाजत दी गई। लेकिन 2009 में अथॉरिटी ने बिल्डर को शॉपिंग सेंटर और नये टॉवर के बजाए 24 मंजिले दो टॉवर सेयान और एपेक्स बनाने की मंजूरी दे दी। मार्च 2012 में बिल्डर को 2.75 का अतिरिक्त एफएआर खरीदने और टॉवरों की ऊँचाई 40 मंजिल तक बढ़ाने की इजाजत मिल गयी। परियोजना के मौजूदा निवासियों का आरोप है कि उनसे मंजूरी लेना तो दूर, उन्हें अतिरिक्त फ्लोर बनाने की जानकारी भी नहीं दी गयी।
फँस गये निवेशक
उच्च न्यायालय के फैसले के बाद इन दोनों टॉवरों के निवशकों ने सुपरटेक के दफ्तर के सामने जम कर विरोध-प्रदर्शन किया। निवेशकों को फ्लैट पाने का सपना टूटता दिख रहा है। इनका आरोप है कि सुपरटेक ने एपेक्स और सियान टॉवर के निवेशकों को यह जानकारी कभी नहीं दी कि इन टॉवरों को लेकर कोई विवाद चल रहा है। कई निवेशकों को तो इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद ही पता चला कि आरडब्ल्यू ने कोई याचिका भी दायर की है। नोएडा अथॉरिटी ने उच्च न्यायालय के आदेश के बाद दोनों टॉवरों को सील कर दिया है।
हालाँकि अब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में आ गया है क्योंकि सुपरटेक, इन दो टावरों के निवेशकों और अथॉरिटी ने सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिकाएँ (एसएलपी) दायर कर दी हैं।
‘निवेश मंथन’ ने सुपरटेक के प्रबंधन से जब संपर्क किया तो कंपनी ने कोई टिप्पणी करने से इन्कार कर दिया। हालाँकि कुछ बयानों में इसने दावा किया है कि उसने नोएडा अथॉरिटी की मंजूरी के बाद ही दोनों टॉवरों का निर्माण किया था। एपेक्स और सियान टॉवर में कुल मिलाकर 857 फ्लैट हैं। इनमें से करीब 600 फ्लैट बिक चुके हैं और अगले साल से इनमें कब्जा मिलना था। सुपरटेक को फ्लैट बेचने से करीब 170 करोड़ रुपये मिले हैं।
सुपरटेक ने उच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद बयान दिया था कि वह रकम वापस चाहने वाले निवेशकों को पैसा वापस करने के लिए तैयार है। लेकिन निवेशकों का कहना है कि उन्होंने 2009 में 2600 रुपये वर्ग फुट की दर से फ्लैट बुक कराया था। इलाके में मौजूदा कीमत करीब 6000 रुपये प्रति वर्ग फुट है। ऐसे में कई निवेशक चाहते हैं कि सुपरटेक उन्हें उसी इलाके में दूसरा फ्लैट दे।
नजीर बनेगा फैसलानोएडा और नोएडा एक्सटेंशन में मूल लेआउट प्लान में फेरबदल की शिकायतें आम हो चली हैं। निवेशकों को शुरू में बताया जाता है कि परियोजना में इतने पार्क, स्विमिंग पूल और अन्य सुविधाएँ विकसित की जायेंगी। लेकिन काम आगे बढऩे पर पता चलता है कि जहाँ पार्क बनने थे, वहाँ बिल्डर ने एक और टॉवर खड़ा कर दिया है। ऐसे में अच्छी धूप और हवादार फ्लैट की ग्राहक की उम्मीद तो टूटती ही है, साथ ही मौजूदा सुविधाओं पर और दबाव भी बढ़ता है। एमराल्ड कोर्ट पर उच्च न्यायालय के फैसले के बाद मूल लेआउट में बदल कर नये टॉवर खड़े करने की घटनाओं पर लगाम लगने की उम्मीद है। बिल्डर और खरीदार के बीच समझौते में लिखा जाता है कि बिल्डर बाद में मूल लेआउट में बदलाव कर सकता है। लेकिन गैर कानूनी प्रावधानों को ग्राहक की मंजूरी के बावजूद अदालत में चुनौती दी जा सकती है। ऐसे में ग्राहकों को अपनी परियोजना के स्थल पर बीच-बीच में जाकर देखना चाहिए कि निर्माण मंजूर लेआउट प्लान के मुताबिक ही हो रहा है या नहीं। अगर कुछ गलत दिखे तो विरोध करने से ना चूकें।
(निवेश मंथन, मई 2014)