रीतू तोमर :
भारतीय रिजर्व बैंक ने ग्राहकों के साथ हो रहे भेदभाव के लिए बैंकों की आलोचना की है।
आरबीआई ने कहा है कि नये ग्राहकों की तुलना में पुराने ग्राहकों से ज्यादा ब्याज दर वसूलने को स्वीकार नहीं किया जायेगा। ग्राहकों के साथ भेदभाव को समाप्त करने के लिए आरबीआई ने एक कार्यकारी समिति का गठन किया है। यह कार्यकारी समिति बैंकों का कर्ज मूल्य-निर्धारण करेगी, ताकि समान प्रोफाइल वाले नये और पुराने ग्राहकों के साथ भेदभाव न किया जा सके। आरबीआई ने इस कार्यकारी समूह की कमान आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर आनंद सिन्हा को सौंपी है। इस कार्यकारी समिति के सदस्यों में विभिन्न बैंकों, इंडियन बैंक एसोसिएशन (आईबीए) और आरबीआई से जुड़े लोगों को शामिल किया गया है। आरबीआई ने इस समिति का गठन कर्ज मूल्य निर्धारण में भेदभाव की जाँच और कर्जों के मूल्य निर्धारण में पारदर्शिता और स्पष्टता लाने के लिए किया है।
इसी दिशा में कार्यकारी समिति ने बैंकों को सुझाव दिया है कि जोखिम भरे प्रोफाइल के अलावा मौजूदा ग्राहकों पर स्प्रेड शुल्क बढ़ाया जाना सही नहीं है। समिति ने कहा है कि कर्ज मूल्य निर्धारण में अधिक पारदर्शिता लाने के लिए सख्त नियम बनाये जाने की जरूरत है। गौरतलब है कि आमतौर पर बैंक पुराने ग्राहकों की तुलना में नये ग्राहकों को कम ब्याज दर मुहैया कराते हैं, विशेष रूप से होम लोन पर।
समिति ने बैंकों को तय समय पर फ्लोटिंग ब्याज दरें बढ़ाने का सुझाव दिया है। इसके साथ ही बैंकों को बीपीएलआर से बेस दरों में आने वाले ग्राहकों से किसी भी तरह का अतिरिक्त शुल्क नहीं लेने का भी सुझाव दिया है। बैंकों को ईएमआई की तारीख का इंतजार करने के बजाये प्री-पेमेंट के दिन ही ब्याज दरें घटाने को कहा है। आरबीआई का मानना है कि कर्ज लेने की प्रक्रिया सभी बैंकों में एक समान होनी चाहिए। इसके लिए आईबीए को कड़े नियम बनाने की जरूरत है, जिससे कर्ज मूल्य निर्धारण में अधिक पारदर्शिता बढऩे के साथ-साथ ग्राहकों की शिकायतें कम होंगी और बैंकों का परिसंपत्ति देनदारी प्रबंधन में सुधार होगा।
आरबीआई ने आईबीए को फ्लोटिंग ब्याज दरों के लिए नया बेंचमार्क बनाने का भी सुझाव दिया है। आरबीई का मानना है कि फ्लोटिंग ब्याज दरों के लिए इंडियन बैंक बेस रेट सिस्टम (आईबीबीआर) बनाया जाये। आईबीए कर्ज रूपांतरण को आसान और तेज बनाने और ग्राहक सेवा को बेहतर बनाने के लिए कदम उठाये। इसके साथ ही कर्ज प्रक्रिया का मानक प्रारूप बनाये जाने का भी सुझाव दिया गया है। आरबीआई और बैंक दोनों को उपभोक्ता शिक्षा अभियान के जरिये वित्तीय शिक्षा पर जोर देने की आवश्यकता है। आरबीआई ने सुझाया कि खुदरा कर्ज के लिए ग्राहकों के पास ‘बाहर निकलने’ और ‘बने रहने’ का विकल्प होना चाहिए।
आरबीआई ने आईबीए को सभी बैंकों में इस्तेमाल के लिए एक समान शब्दावली तैयार करने का सुझाव भी रखा है, जिससे कि ग्राहकों को विभिन्न बैंकों में कर्ज दरों और शुल्कों की आपस में तुलना करने में मदद मिले। इसके साथ ही समिति ने कर्ज रूपांतरित करने वाले कर्जदारों की मदद नहीं करने की स्थिति में बैंकों पर जुर्माना लगाने को भी कहा है। आरबीआई ने कहा है कि आईबीए को ग्राहक सेवा की बेहतर कार्यप्रणाली के लिए गहन अध्ययन करना होगा और उद्योग प्रतिनिधियों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी होगी। समिति ने बैंको को वार्षिक प्रतिशत दर (एपीआर) प्रदान करने का भी सुझाव दिया है।
आरबीआई का सुझाव है कि बैंको के निदेशक मंडल द्वारा निर्देशित नीति के अनुसार स्प्रेड दरों पर विचार किया जा सकता है। बैंकों को ब्याज दरों और शुल्क आदि का ब्यौरा अपनी वेबसाइट पर देना होगा। खुदरा ग्राहकों के लिए मानकीकृत कर्ज प्रारूप की व्यवस्था की जा सकती है। ग्राहकों की जरूरत के मुताबिक बैंकों में शिकायत निपटारा प्रणाली को मजबूत और जवाबदेह बनाना होगा। कर्ज वितरण में अधिक पारदर्शिता के लिए समिति ने सुझाव दिया है कि बैंकों द्वारा अपनी ब्याज दरों में बदलाव के स्थान पर कर्ज अनुबंध के आधार पर फ्लोटिंग दरों को दोबारा व्यवस्थित किया जाना जरूरी है।
समिति का कहना है कि अगर बैंक अपनी जमाओं (डिपॉजिट) के प्रोफाइल की वजह से भारी औसत लागत का इस्तेमाल करते हैं तो इससे पुराने और नये ग्राहकों के बीच अंतर बढऩे की संभावना है। बैंकों के निदेशक मंडल को यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि यह अंतर कर्जदारों के बीच भेदभाव के रूप में नहीं बढ़े। अभी बैंकों में ऐसे अनेक अप्रत्यक्ष नियम हैं, जिनमें बैंक बिना ग्राहकों को बताये बदलाव कर देता है।
आरबीआई ने इन सुझावों पर बैंकों से 16 मई 2014 तक जवाब माँगा है। यदि इन सुझावों को स्वीकार कर लिया जाता है तो इससे कर्ज मूल्य निर्धारण और अन्य संबंधित कार्यों में व्यापक पारदर्शिता आयेगी। इसके साथ ही बैंक ग्राहकों के लिए कर्ज सस्ता भी हो सकता है।
(निवेश मंथन, मई 2014)