शेयर बाजार हाल तक पूरे जोश में नजर आ रहा था।
बाजार में जिससे पूछो, वही कह रहा था कि नरेंद्र मोदी की सरकार बनने को लेकर कोई शक ही नहीं है। लेकिन अब चुनावी नतीजे आने में महज दो हफ्ते बाकी रहने के समय लोग थोड़ा महसूस करने लगे हैं कि चुनाव तो आखिर चुनाव ही होता है। इसके नतीजे किसी को पहले से मालूम नहीं होते। अब तक एकदम निश्चिंत दिखने वाले शेयर बाजार विश्लेषक कहने लगे हैं कि चुनाव परिणाम अनिश्चित ही होते हैं और किसी भी अनिश्चितता के साथ एक जोखिम तो जुड़ा ही रहता है। परीक्षा जारी है, कुछ परचे बाकी हैं और अब तक एकदम आश्वस्त दिखने वाले परीक्षार्थी परीक्षा-फल को लेकर जरा सशंकित हो गये हैं और धड़कनें बढ़ गयी हैं। बाजार की नब्ज टटोल रहे हैं राजीव रंजन झा --
शेयर बाजार इस समय एक बड़ी घटना, लोकसभा चुनावों के नतीजे से पहले खड़ा है। इतिहास बताता है कि चुनावी नतीजे बाजार में काफी बड़ी हलचल पैदा करते हैं। पाँच साल पहले 18 मई 2009 को ऐसा ही हुआ था। सेंसेक्स शुक्रवार 15 मई 2009 को 12,173 पर बंद हुआ था। सप्ताहांत के दौरान नतीजे आये और कांग्रेस को अप्रत्याशित सफलता मिली। सोमवार 18 मई 2009 को बाजार खुलते ही सेंसेक्स और निफ्टी ने ऊपरी सर्किट छू लिया। सेंसेक्स ने सीधे 1,306 अंक ऊपर 13,479 पर खुल कर 10% का सर्किट तोड़ा और कारोबार को दो घंटे के लिए रोक दिया गया। इसके बाद जब कारोबार फिर चालू हुआ तो बाजार और ऊपर चढ़ा। आखिरकार उस दिन यह 2,111 अंक या 17% से ज्यादा की बढ़त के साथ 14,284 पर बंद हुआ था। इसी तरह निफ्टी भी उस दिन 713 अंक या 19.4% की उछाल के साथ 4,384 पर बंद हुआ था। यह केवल एक दिन की उछाल नहीं थी, बल्कि वहाँ लंबी अवधि के लिए एक मील का पत्थर खड़ा हो गया। उस दिन सेंसेक्स और निफ्टी ने जिन स्तरों को पार किया था, वे तब से आज तक दोबारा लौट कर नहीं आये।
इसके पाँच साल पहले कुछ उल्टा हुआ था। हालाँकि तब सर्किट नहीं लगा था। तब मई 2004 में बाजार की उम्मीदों के विपरीत एनडीए को चुनावी पराजय का सामना करना पड़ा था। इंडिया शाइनिंग की चमक में खोये बाजार के लिए यह एक सदमे जैसा था। नतीजतन, इन नतीजों के चलते सेंसेक्स पहले 14 मई 2004 को 6.1% गिरा और उसके अगले दिन फिर से 11.14% गिरा। हालाँकि जब यह स्पष्ट हो गया कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व में नयी सरकार बनने जा रही है तो वहाँ से बाजार खूब सँभला भी। इसलिए 17 मई 2004 को सेंसेक्स ने 4,227 की जो तलहटी बनायी थी, वहाँ यह पलट कर फिर कभी नहीं लौटा।
इन अनुभवों से ऐसा मानना स्वाभाविक है कि इस बार के चुनावी नतीजे भी बाजार में बड़ी हलचल पैदा कर सकते हैं। इस बार असर इसलिए भी ज्यादा बड़ा हो सकता है कि बाजार ने चुनावी नतीजों के साथ अभूतपूर्व ढँग से अपनी उम्मीदें जोड़ ली हैं। यूपीए-2 से निराश बाजार और उद्योग जगत ने यह मान लिया है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनेगी और वह निर्णायक फैसले करके डूबी अर्थव्यवस्था को उबारने का काम करेगी। अब अगर चुनावी नतीजे शेयर बाजार के मन-मुताबिक नहीं रहे और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बन सके तो निस्संकोच कहा जा सकता है कि बाजार बुरी तरह टूटेगा। हो सकता है कि निचला सर्किट भी लग जाये।
सर्किट के नियम भी बीते वर्षों में कुछ बदले हैं। ऊपर या नीचे सर्किट की सीमा तीन चरणों में है - 10%, 15% और 20% पर। सेंसेक्स या निफ्टी में 10% और 15% सर्किट लगने पर कारोबार कितनी देर के लिए रुकेगा, यह सर्किट लगने के समय पर निर्भर है। वहीं 20% सर्किट लगने पर पूरे दिन के लिए कारोबार रुक जायेगा।
याद रखने की बात है कि अगस्त 2013 की तलहटी 5,119 से निफ्टी 33% से ज्यादा की उछाल दर्ज कर चुका है। उस तलहटी से यहाँ तक की उछाल में आंशिक योगदान इस बात का भी माना जा सकता है कि भारत का चालू खाते का घाटा नियंत्रण में आया, सरकारी घाटा भी सँभला, रेटिंग एजेंसियों की ओर से भारत की रेटिंग घटाये जाने का खतरा टला और डॉलर के मुकाबले रुपया भी अच्छी तरह सँभला। लेकिन इन सबके बीच बाजार में इस बात की उम्मीद भी परवान चढ़ती रही थी कि अब यूपीए-2 से छुटकारा मिलने के दिन करीब आ रहे हैं। ऐसा नहीं है कि शेयर बाजार अपने स्वभाव में कांग्रेस या यूपीए का विरोधी है। ऐसा होता तो 2009 में कांग्रेस की सफलता से यह ऊपरी सर्किट नहीं चढ़ता। मगर यूपीए-2 के दौर में केंद्र सरकार की निष्क्रियता और अर्थव्यवस्था को सँभालने में इसकी नाकामी ने बाजार को यकीन दिला दिया कि इस सरकार के जाने के बाद ही दिन फिरेंगे।
दिसंबर 2013 में निफ्टी ने नया रिकॉर्ड भी बनाया था, जिसके बाद यह कुछ फिसला। अगर निफ्टी की फरवरी 2014 की तलहटी 5,933 से आयी उछाल को देखें, तो इसका एकमात्र कारण राजनीतिक बदलाव की उम्मीद है। फरवरी में चुनावी सर्वेक्षणों के जो नतीजे आने शुरू हुए, उन्होंने नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए को बढऩे की मिलने की संभावनाएँ दिखायीं। शुरुआत में एनडीए के अनुमानित आँकड़े बहुमत से थोड़े नजर आ रहे थे, लेकिन बाजार मान कर चल रहा था कि चुनाव के बाद एनडीए को गठबंधन के साथी मिल जायेंगे जिनकी मदद से 272 का आँकड़ा हासिल हो जायेगा। जो सबसे ताजा सर्वेक्षण आये, उनमें तो एनडीए का आँकड़ा 250 के ऊपर जाता दिखाया गया, जिसके बाद यह धारणा बन गयी कि अब एनडीए की सरकार बनना केवल एक औपचारिकता है।
लेकिन सरकार जनमत सर्वेक्षणों से नहीं, जनता के मतदान से आये चुनावी परिणामों के अनुसार बनती है। भारतीय जनता अपने फैसलों से अक्सर ही चौंकाती रही है। इसने 2004 में भी चौंकाया था और 2009 में भी। इस बार भी कौन दावे से कह सकता है कि राजनीतिक पंडितों को चुनाव परिणाम देखने के बाद दाँतों तले अंगुली दबाने की नौबत नहीं आयेगी!
क्या पता कि जनता जनमत सर्वेक्षणों और टेलीविजन कैमरों में दिखती लहर को शांत करके एनडीए को केवल 200 सीटों के आसपास ही समेट दे? क्या पता कि जनता इस लहर को तूफान में बदल दे और अकेले भाजपा ही 250 सीटों के पार, यानी बहुमत के करीब चली जाये? भाजपा की पारंपरिक भौगोलिक सीमाएँ हमें उकसाती हैं कि हम उसे 250 के आसपास सीटें मिलने की संभावना को एकदम खारिज कर दें। लेकिन यह भी पहली बार हो रहा है कि गैर-हिंदी भाषी प्रदेशों में भी किसी भाजपा नेता को सुनने के लिए लाखों की संख्या में भीड़ उमड़ रही हो। इसलिए जनता के फैसले का पूर्वानुमान लगाना कतई आसान नहीं है। इस समय केवल एक ही बात भरोसे के साथ कही जा सकती है कि यूपीए की विदाई पक्की लग रही है और एनडीए ने साफ बढ़त बना ली है। लेकिन एनडीए की सीटें 200 होंगी या 300, इस बारे में दावा करना सट्टा लगाने के बराबर ही है।
शुक्रवार 16 मई को चुनावी नतीजे आने से पहले ही 12 मई को अंतिम दौर का मतदान पूरा होने के बाद तमाम चैनलों पर एक्जिट पोल के नतीजे आने लगेंगे। इसलिए बाजार में 13 मई को ही उथल-पुथल शुरू हो जायेगी। मगर पूरे नाटक का चरम तो 16 मई को ही सामने आयेगा। अगर 16 मई को बाजार बंद होते-होते तस्वीर साफ हो गयी तो चुनावी नतीजों का ज्यादातर तात्कालिक असर उसी दिन दिख जायेगा। बाजार में दीवाली भी मन सकती है, काला शुक्रवार भी बन जा सकता है। लेकिन अगर उस समय तक तस्वीर धुंधली बनी रही तो लोग सप्ताहांत के दौरान दिल थाम कर राजनीतिक घटनाक्रम को देखेंगे और फिर बाजार के लिए चरम उथल-पुथल का दिन सोमवार 19 मई का होगा।
अगर कोई भी ऐसी परिस्थिति बनी, जिसमें नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना संदिग्ध हो जाये तो बाजार तुरंत गोता खा जायेगा। चूँकि फरवरी 2014 की तलहटी 5,933 से मौजूदा स्तरों तक की उछाल को मोटे तौर पर चुनावी उम्मीदों से ही जोड़ा जा सकता है, इसलिए मोदी के प्रधानमंत्री नहीं बन पाने की सूरत में बाजार इस पूरी उछाल का बड़ा हिस्सा गँवा सकता है। अगर 10% नीचे आ गया तो 6,000 के करीब आ जायेगा। क्या पता कि यह लगभग 20% टूट कर 5,500 के आसपास न चला जाये।
लेकिन अगर बाजार के मन की मुरादें पूरी हो गयीं तो क्या 2009 की कहानी दोहरायेगी? वैसा होना जरा मुश्किल लगता है, क्योंकि फरवरी के पहले हफ्ते से ले कर अब तक की उछाल का मुख्य कारण यही उम्मीदें हैं, यानी इन उम्मीदों का बड़ा असर दिख चुका है और फरवरी की तलहटी से निफ्टी 15% से ज्यादा की उछाल दर्ज कर चुका है।
ऐसे में भाजपा को साफ जीत मिलने और मोदी के प्रधानमंत्री बनने में कोई अड़चन न दिखने पर बाजार में फौरी उत्साह जरूर बनेगा, हालाँकि ऊपरी सर्किट लगने की उम्मीदें जरूरत से ज्यादा आशावादी होंगी। भाजपा को जितनी ज्यादा सीटें मिलेंगी, नरेंद्र मोदी को अपनी शर्तों पर काम करने का उतना ही अधिक मौका मिलेगा। अगर वे किसी तरह मुश्किल से बहुमत जुटा कर प्रधानमंत्री बने तो गठबंधन की मजबूरियाँ उन्हें भी बाँध सकती हैं। इसलिए भाजपा की जीत जितनी ज्यादा स्पष्ट होगी, यानी वह खुद अपने बूते पर बहुमत के जितने करीब होगी, बाजार का उत्साह उतना ज्यादा होगा।
मध्यम से लंबी अवधि के बदलाव
तकनीकी नजरिये से देखा जाये तो सेंसेक्स और निफ्टी के चार्ट पर मध्यम से लंबी अवधि के लिए कुछ महत्वपूर्ण बदलाव दिख रहे हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि साल 2008 से ही अब तक ये दोनों सूचकांक जिन ऐतिहासिक ऊपरी स्तरों पर अटक रहे थे, उन्हें पार कर के ये नये उच्चतम स्तरों पर आ गये हैं। सेंसेक्स ने जनवरी 2008 में 21,207 का उच्चतम स्तर बनाया था। लगभग तीन साल के उतार-चढ़ाव के बाद यह नवंबर 2010 में वापस इस मुकाम के करीब आया, लेकिन 21,109 पर अटक कर फिर से नीचे लौट गया।
फिर करीब तीन साल बाद अक्टूबर 2013 में यह 21,000 के ऊपर आया। दिसंबर 2013 में यह 21,484 के नये उच्चतम स्तर को छूने में भी सफल रहा, मगर फिर से पलट कर फरवरी 2014 में 20,000 के नीचे चला गया। मगर मार्च 2014 में इसने निर्णायक रूप से 2008, 2010 और 2013 के ऊपरी स्तरों पर बन रही बाधा को पार कर लिया। अप्रैल 2014 में भी इसकी तेजी जारी रही और यह नये उच्चतम स्तरों को छूता रहा।
निफ्टी का भी यही हाल रहा। यह जनवरी 2008 के उच्चतम स्तर 6,357 के आसपास साल 2013 तक अटकता रहा। मगर मार्च और अप्रैल 2014 में यह निर्णायक रूप से इन बाधाओं को पार कर गया। यह 25 अप्रैल 2014 को 6,870 तक चढ़ा।
इसके अलावा, गौर करें कि साल 2011 से सेंसेक्स और निफ्टी एक चढ़ती हुई बड़ी पट्टी (राइजिंग चैनल) के अंदर चलते रहे हैं। अप्रैल 2014 में ये इस पट्टी से ऊपर निकलते दिख रहे हैं। हालाँकि इस पट्टी के लिए यह जरूर कहा जा सकता है कि इसकी ऊपरी रेखा के सारे बिंदु एक सीध में नहीं हैं। यही बात निचली रेखा के लिए भी सच है। इसलिए यह पट्टी ठीक-ठीक किस तरह खींची जाये, इसे लेकर जरा असमंजस हो सकता है। यहाँ ध्यान रखना होगा कि अगर हम निफ्टी के चार्ट पर फरवरी 2012 के ऊपरी स्तर 5,630 और जनवरी 2013 के ऊपरी स्तर 6,112 को मिलाती रुझान रेखा (ट्रेंड लाइन) खींचें तो 25 अप्रैल 2014 का ऊपरी स्तर 6870 बिल्कुल उसी रेखा पर आता है। इसलिए मौजूदा स्तरों पर ही बाधा मिल सकने की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता। अगर इस बाधा पर अटक कर निफ्टी निचले शिखर और निचली तलहटियों का सिलसिला बनाने लगे तो यह चिंता की बात होगी।
लेकिन पहली नजर में देखें तो यही लगता है कि एक पट्टी साल 2011 के अंत से अब तक चल रही थी और अब सेंसेक्स-निफ्टी इस पट्टी से ऊपर निकलने लगे हैं। अगर ये थोड़ा छका कर वापस इस पट्टी के अंदर लौट न आयें, और साफ तौर पर इस पट्टी के ऊपर निकल जायें तो यह मध्यम अवधि के लिए बाजार में नयी ऊपरी चाल का संकेत होगा।
ऊपर नये लक्ष्य कहाँ
अगर मध्यम से लंबी अवधि के लिए नयी तेजी की चाल बन रही है तो प्रश्न उठता है कि अगले बड़े स्वाभाविक लक्ष्य क्या हैं? अगर सेंसेक्स के नवंबर 2010 के शिखर 21,109 से ले कर दिसंबर 2011 की तलहटी 15,136 तक की गिरावट की वापसी के स्तरों को देखें तो 100% वापसी पूरी हो जाने के बाद 138.2% वापसी का अगला मुकाम 23,390 पर है। अभी सेंसेक्स लगभग 23,000 तक तो पहुँच ही चुका है। इसलिए माना जा सकता है कि इस मुकाम को सेंसेक्स ने काफी हद तक छू लिया है। इसके आगे जाने पर 161.8% वापसी के स्तर 24,800, या मनोवैज्ञानिक रूप से कहें तो 25,000 को अगला बड़ा लक्ष्य माना जा सकता है।
निफ्टी के चार्ट पर इसी संरचना को देखें तो 6,338 से 4,531 तक की गिरावट की 138.2% वापसी 7,028 पर और 161.8% वापसी 7,455 पर है। लगभग 7,000 के लक्ष्य की चर्चा निवेश मंथन के पिछले दो अंकों (मार्च और अप्रैल) में भी की गयी थी। इनमें जिक्र था कि अगस्त 2013 की तलहटी 5,119 से दिसंबर 2013 के शिखर 6,415 तक की उछाल और फिर फरवरी 2014 की तलहटी 5,933 तक की गिरावट का 80% विस्तार (प्रोजेक्शन) 6,967 यानी लगभग 7,000 और 100% विस्तार 7,226 पर पहुँचता है।
इन सब बातों का निष्कर्ष निकालें तो निफ्टी के लिए 7,000 के बाद लगभग 7,200 और फिर लगभग 7,500 के अगले पड़ाव सामने दिखते हैं। लेकिन बात यहीं तक नहीं रुकती। जनवरी 2008 के शिखर 6,357 से अक्टूबर 2008 की तलहटी 2,253 तक की गिरावट की 100% वापसी पूरी होने के बाद 138.2% वापसी 7,924 और 161.8% वापसी 8,893 पर है। यानी 7,500 के बाद 8,000 और फिर लगभग 9,000 के भी लक्ष्य बनते हैं। लेकिन ये अगले कई साल आगे की कहानी हो सकती है।
बड़ी मुनाफावसूली का खतरा
शेयर बाजार अगस्त 2013 की तलहटी से 33% और फरवरी 2014 की तलहटी से 15% से ज्यादा की उछाल दर्ज कर चुका है। इसलिए यह मानना गलत न होगा कि आगे यह किसी छोटी-सी भी बात को बहाना बना कर बड़ी मुनाफावसूली का रास्ता पकड़ सकता है। यह बहाना किसी खास मनोवैज्ञानिक या तकनीकी स्तर को छू लेना भी हो सकता है। इसलिए निफ्टी 7,000 के पास या इसके ऊपर 7200-7500 के स्तरों पर जाये तो बड़ी सजगता से बाजार के माहौल और इसकी दशा-दिशा पर निगाह रखने की जरूरत होगी।
निवेश मंथन के अप्रैल 2014 के अंक में लिखा गया था कि निफ्टी जब तक 6,430 के ऊपर कायम है, तब तक सकारात्मक रुझान बना रहेगा। यह बात बीते हफ्तों के दौरान सही साबित हुई। लेकिन अब खतरे के निशान को जरा ऊपर उठाना होगा, क्योंकि बाजार कुछ और ऊपर चढ़ चुका है। सबसे ताजा छोटी तलहटी अब 6,650 पर दिख रही है। इसके नीचे जाने पर बाजार की चाल बिगड़ सकती है। हालाँकि 6,650 के नीचे अगला बड़ा सहारा फिर से 6,430 को ही मानना होगा।
एक और अहम पहलू यह है कि निफ्टी को 50 दिनों के सिंपल मूविंग एवरेज (एसएमए) से ऊपर निकले काफी समय हो गया है। इसने फरवरी 2014 के अंतिम हफ्ते में 50 एसएमए को पार किया था। अब निफ्टी के मौजूदा स्तर 6,783 और और 50 एसएमए (अभी 6,477) के बीच एक बड़ा फासला भी बन चुका है। इसलिए संभव है कि अगले किसी उतार-चढ़ाव में निफ्टी फिर से 50 एसएमए को छूने के लिए नीचे लौटे। लेकिन ऐसा अभी तुरंत होगा या कुछ और हफ्तों के बाद, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।
चूँकि 50 एसएमए बाजार के साथ-साथ ऊपर चढ़ता जा रहा है, इसलिए बाजार में तेजी बने रहने पर यह अगले कुछ हफ्तों में यह 6500-6600 के आसपास नजर आ सकता है। मतलब यह है कि बाजार में एक बड़े उतार-चढ़ाव के लिए तैयार रहना चाहिए।
रुपये की चाल
इस बीच डॉलर के मुकाबले रुपये की मजबूती का सिलसिला थोड़ा रुका है। एक डॉलर की कीमत जो दो अप्रैल 2014 को 59.57 रुपये तक घट गयी थी, वह फिर से 61 रुपये के आसपास चली आयी है। अप्रैल अंक में इस बारे में लिखा गया था कि डॉलर की कीमत को 59.38 रुपये के पास सहारा मिल सकता है और वैसी हालत में यह 59-61 के मोटे दायरे में चल सकता है।
बीते कुछ हफ्तों की चाल बिल्कुल इसी तर्ज पर रही है। दिलचस्प है कि अप्रैल 2013 की तलहटी 53.56 रुपये से अगस्त 2013 के शिखर 68.81 रुपये तक की उछाल की 50% वापसी का स्तर 61.18 पर है और हाल में 23 अप्रैल को डॉलर की कीमत बिल्कुल 61.19 पर जा कर फिर से नीचे आती दिखी है। अगर यह 61.18 के बाधा स्तर को पार करने में विफल रहे तो फिलहाल 59-61 का दायरा कुछ और समय तक कायम रहेगा।
अगर शेयर बाजार में तेजी जारी रही और इसके साथ-साथ विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की खरीदारी चलती रही तो आने वाले समय में डॉलर की कीमत 59.38 के स्तर से नीचे भी जा सकती है। तब इसका अगला पड़ाव 56.61 का हो सकता है। लेकिन इसकी विपरीत स्थिति बनने पर अगर डॉलर की कीमत 61.18 रुपये के ऊपर निकल जाये तो यह 200 एसएमए (अभी 61.95) को छूने की ओर बढ़ेगा, जबकि इसके आगे 62.95 रुपये का स्तर दिखने की संभावना बन जायेगी।
(निवेश मंथन, मई 2014)