सुगंधा सचदेव, एवीपी, रेलिगेयर कमोडिटीज :
पिछले महीने एफओएमसी की मौद्रिक ढील (क्वाइंटिटेटिव ईजिंग) में 10 अरब डॉलर की तीसरी कटौती के ऐलान के बाद सोने की कीमतों में गिरावट देखी गयी।
एफओएमसी ने मासिक बांड खरीद कार्यक्रमों में 55 अरब डॉलर की कटौती को जारी रखा। फेडरल रिजर्व की अध्यक्ष जैनेट येलेन के आगामी शरद ऋतु में बांड खरीद कार्यक्रमों को समाप्त करने और उसके छह महीने के आसपास ब्याज दरें बढ़ाये जाने की संभावनाओं से सोने की कीमतों पर दबाव रहा।
फरवरी महीने में अमेरिकी गैर-कृषि भुगतान बाजार की उम्मीदों के 149,000 के विपरीत बढ़ कर 175,000 रहा है, जो बीते महीने 129,000 रहा था। इससे भी सोने की कीमतों में गिरावट आयी।
चीन के पहले घरेलू बॉंन्ड डिफॉल्ट से भी वित्तीय बाजार को धक्का लगा, जिससे विश्व में सर्राफा के सबसे बड़े उपभोक्ता चीन में सोने की माँग पर भी प्रभाव पड़ा। चीन की गोल्ड एसोसिएशन ने कहा कि कारोबारी साल 2014-15 की दूसरी तिमाही में चीन में सोने की माँग वार्षिक आधार पर 17% तक गिर सकती है।
मार्च में जर्मनी की विकास दर में गिरावट से यूरोपियन सेंट्रल बैंक से मौद्रिक ढील बढऩे की संभावना से यूरो कमजोर हुआ है। यूक्रेन को लेकर रूस और पश्चिम देशों के बीच राजनीतिक तनाव और चीन में आर्थिक मंदी की चिंता की वजह से मार्च महीने की शुरुआत के दौरान सोने की कीमतें लगभग छह महीने के ऊपरी स्तर पर पहुँच गयी थी। जी-8 देशों की ओर से रूस पर प्रतिबंध की खबरों ने भी बाजार में सोने की आपूर्ति के गंभीर अभाव के अनुमान को बढ़ाया, क्योंकि रूस विश्व के शीर्ष पाँच स्वर्ण-उत्पादक देशों में शामिल है।
यदि नये आयात नियमों को बरकरार रखा गया तो अनुमानों के मुताबिक पिछले साल के 255 टन की तुलना में साल 2013 की अंतिम तिमाही में भारत में सोने का आयात 70% से अधिक गिर सकता है। यह साल 2014 में सामान्य स्तरों के एकदम आधा हो कर 500-550 टन रहने की संभावना है। भारतीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी संकेत दिये कि इस साल के चालू खाता घाटे के अंतिम आँकड़े आने के बाद ही इन नियमों में संशोधन किया जा सकता है। चालू खाता घाटे के आँकड़े जून के शुरुआत में आने की संभावना है।
दो महीनों लगातार मजबूत रहने के बाद पिछले महीने कमजोर संकेतों से सोने की कीमतें नीचे रही हैं। इसने तीखी गिरावट के साथ साप्ताहिक चार्ट पर प्रमुख समर्थन स्तरों को तोड़ा है। सोने की कीमतों में दो सप्ताह से लगातार बिकवाली का रुख बना हुआ है। इससे यह आशंका बनती है कि इसमें और भी गिरावट आ सकती है।
हालाँकि सोने की कीमतों को प्रति 10 ग्राम 27,600 रुपये के आसपास कुछ सहारा मिल सकती है, लेकिन यह शायद पर्याप्त नहीं होगा। इसमें फिर से मजबूती के लिए जरूरी होगा कि भाव 28,800 रुपये के ऊपर जाये। तभी कारोबारी इसमें खरीदारी सौदे का साहस दिखा सकेंगे। वहीं यदि कीमत 27,600 रुपये के नीचे चली जाती है तो इससे बाजार में तेजडिय़ों की धारणा को चोट लग सकती है और उन्हें जल्दी इससे उबर पाना मुश्किल होगा।
छोटी अवधि में निवेशकों को सोने में वापस-उछाल (पुलबैक) आने का इंतजार करना चाहिए। जब तक यह 28,800 रुपये के ऊपर बंद न हो, तब तक इसमें बिकवाली का ही नजरिया रखें। कॉमेक्स में इसे 1278 डॉलर प्रति पाउंड के आसपास सहारा मिल सकता है, लेकिन इसके लिए ऊपर 1300 डॉलर का स्तर पार कर पाना मुश्किल होगा। वहीं 1278 डॉलर का स्तर तोडऩे पर यह नीचे 1230 डॉलर तक फिसल सकता है।
(निवेश मंथन, अप्रैल 2014)