सुशांत शेखर :
भारत में ऐसा कभी-कभार ही होता है कि किसी कंपनी के छोटे निवेशकों के भारी विरोध के चलते प्रबंधन को फैसला बदलना पड़ा हो।
मारुति सुजुकी के गुजरात संयंत्र (प्लांट) के मामले में ऐसा ही हुआ है। कंपनी ने ना सिर्फ संयंत्र के लिए करार पर छोटे निवेशकों की मंजूरी लेने का फैसला किया है, बल्कि उसने समझौते के कई अहम बिंदुओं में बदलाव भी किया है।
हरियाणा में मजदूरों के असंतोष झेल रही मारुति सुजुकी ने अपना तीसरा संयंत्र गुजरात के मेहसाणा में लगाने का फैसला किया था। लेकिन 28 जनवरी को मारुति सुजुकी ने बोर्ड बैठक के बाद ऐलान किया कि गुजरात संयंत्र का निर्माण पैतृक कंपनी सुजुकी मोटर की एक सहायक (सब्सिडियरी) कंपनी करेगी। इस संयंत्र से बनने वाली कारों को मारुति सुजुकी खरीदेगी। इस करार के ऐलान के साथ ही एचडीएफसी, एएमसी, रिलायंस कैपिटल, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल, एसबीआई फंड्स मैनेजमेंट सहित सात बड़े संस्थागत निवेशकों ने कंपनी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। मारुति सुजुकी में करीब 7% हिस्सेदारी रखने वाली एलआईसी ने भी कंपनी से सफाई मांगी। संस्थागत निवेशकों ने बोर्ड से कड़ा विरोध जताने के साथ सेबी से शिकायत भी की।
क्या थी निवेशकों की चिंताएँ
करार की शर्तों के मुताबिक गुजरात संयंत्र में जापान की सुजुकी मोटर की 100% हिस्सेदारी होगी। गाडिय़ाँ सुजुकी बनायेगी और मारुति सुजुकी उनकी बिक्री करेगी। निवेशकों की चिंता यह है कि इससे मारुति सुजुकी, सुजुकी मोटर की डीलर बन कर रह जायेगी। इससे मारुति सुजुकी के मुनाफे पर सेंध लगेगी। सामान्य तौर पर कार डीलरों का मार्जिन 2-5% तक रहता है। वहीं निर्माता कंपनी का मार्जिन 10-15% तक रहता है।
करार की शर्तों के मुताबिक गुजरात संयंत्र में सुजुकी मोटर शुरुआत में 3,000 करोड़ रुपये का निवेश करेगी। मारुति सुजुकी से मिले मुनाफे का इस्तेमाल संयंत्र की उत्पादन क्षमता बढ़ाने में किया जायेगा। निवेशकों का सवाल यह थी कि जब मारुति सुजुकी के पास ही 7,500 करोड़ रुपये की नकदी मौजूद है तो वह खुद संयंत्र क्यों नहीं बनाती। साथ ही मारुति सुजुकी से मिले मुनाफे का इस्तेमाल संयंत्र की क्षमता बढ़ाने को लेकर भी निवेशकों का ऐतराज था।
मारुति सूजूकी ने 15 मार्च की बोर्ड बैठक में फंडिंग को लेकर निवेशकों की चिंता काफी हद तक दूर कर दी है। बोर्ड ने तय किया है कि गुजरात प्लांट की फंडिंग पूरी तरह मूल्यह्रास (डेप्रिशिएशन) और सुजुकी मोटर के इक्विटी निवेश से की जायेगी। इससे मारुति सुजुकी के पैसे से ही संयंत्र की क्षमता बढ़ाने की चिंता दूर हो गयी है।
गुजरात संयंत्र के करार की एक अहम शर्त यह थी कि अगर संयंत्र का करार 15 साल से ज्यादा आगे नहीं बढ़ाया जाता है तो उसका मारुति सुजुकी के साथ विलय कर दिया जायेगा। विलय के दौरान बाजार के हालात के मुताबिक ‘फेयर वैल्यू’ का ध्यान रखा जायेगा। फेयर वैल्यू को लेकर अनिश्चितता ने निवेशकों की चिंता बढ़ा दी थी। कुछ निवेशकों की चिंता थी कि इससे सुजुकी मोटर को मारुति सुजुकी में हिस्सेदारी बढ़ाने का मौका मिल सकता है।
हालाँकि मारुति सुजुकी ने निवेशकों की यह चिंता दूर कर दी है। कंपनी के बोर्ड ने तय किया है कि 15 साल बाद करार नहीं बढऩे की सूरत पर संयंत्र का विलय ‘फेयर वैल्यू’ के बजाय ‘बुक’ वैल्यू के आधार पर किया जायेगा।
गुजरात संयंत्र के करार की एक अहम शर्त यह थी कि इसमें बनी गाडिय़ों को सुजुकी मोटर ना मुनाफा, ना घाटा आधार पर बेचेगी। कई निवेशकों ने सवाल उठाये थे कि प्लांट को ना मुनाफा, ना घाटा आधार पर चलाने का प्रस्ताव क्यों है। कोई भी कंपनी चैरिटी के लिए तो काम करती नहीं है।
निवेशकों की ये चिंता भी मारुति सुजुकी ने दूर करने की कोशिश की। कंपनी ने तय किया है कि वह ना तो सरप्लस मुनाफा कमायेगी और ना घाटा सहेगी। मारुति सुजुकी ने अभी यह नहीं बताया है कि छोटे निवेशकों से मंजूरी कब तक ली जायेगी। लेकिन कई संस्थागत निवेशकों ने संकेत दिये हैं कि वे अब गुजरात संयंत्र के लिए कंपनी की योजना का विरोध नहीं करेंगे।
सत्यम और मेटास के 2008 के सौदे पर संस्थागत निवेशकों के कड़े विरोध के बाद मारुति का पहला अहम मामला है, जब संस्थागत निवेशकों का विरोध रंग लाया है। इस विरोध को शेयरधारकों की सक्रियता के तौर देखा जा रहा है। नया कंपनी कानून लागू हो जाने के बाद कंपनियों को अहम फैसलों में छोटे निवेशकों से मंजूरी लेना जरूरी कर दिया गया है। इससे छोटे निवेशकों के हितों की सुरक्षा बेहतर तरीके से की जा सकेगी।
(निवेश मंथन, अप्रैल 2014)