आलोक द्विवेदी :
पिछले कुछ सालों में देश की बचत दर में भारी गिरावट आयी है।
जहाँ साल 2007-08 में बचत दर देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की 38.1% थी, वहीं साल 2011-12 में यह गिर कर जीडीपी की 31.3% रह गयी। साल 2012-13 में तो यह 30.1% तक फिसल गयी। यह लगातार चौथा साल था जब बचत दर में गिरावट दर्ज की गयी। दरअसल साल 2009 के आरंभ से नीतिगत निर्णयों में ठहराव की वजह से साल 2012-13 तक निवेश में बाधा आयी और इससे विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र को इतना नुकसान हुआ कि फैक्ट्री उत्पादन नकारात्मक हो गया। लेकिन बचत दरों में गिरावट ने अर्थव्यवस्था में वृद्धि, माँग और उपभोग को नुकसान पहुँचाया और भारतीय अर्थव्यवस्था में निराशा छा गयी। बचत दर में इस गिरावट की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
सवाल यह है कि आखिर बचत दर में गिरावट की वजह क्या है? सरकारी व्यय में वृद्धि, निजी कॉरपोरेट के मुनाफे में कमी और घरों की शुद्ध वित्तीय बचत में गिरावट की वजह से पिछले कुछ सालों में ऐसा हुआ है। इस पूरी समस्या का एक रूप देश के चालू खाते के घाटे (सीएडी) के आँकड़े में देखा जा सकता है। वित्तीय वर्ष 2012-13 की पहली छमाही में सीएडी देश के जीडीपी के तकरीबन 5% के आसपास था, जिसकी एक प्रमुख वजह सोने की भारी माँग को माना जा सकता है।
पारंपरिक तौर पर देश की बचत का सबसे प्रमुख स्रोत घरेलू क्षेत्र रहा है। साल 2011-12 में इस क्षेत्र की बचत दर जीडीपी का 22.8% रही थी, लेकिन साल 2012-13 में यह फिसल कर जीडीपी का 21.9% रह गयी। घरेलू बचत के प्रकार में बदलाव ने इस समस्या को और जटिल किया है। पिछले कुछ सालों में यह रुझान देखा गया है कि घरेलू बचत वित्तीय परिसंपत्तियों से भौतिक परिसंपत्तियों में बदलती जा रही है। यानी लोग पहले बचत कर उसे नकदी के रूप में जमा करते थे या वित्तीय उत्पादों में डालते थे, मगर यह प्रवृत्ति कम हुई है और अब वे बचत का एक हिस्सा सोने या रियल एस्टेट के रूप में रख रहे हैं।
पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री के कार्यकारी निदेशक सौरभ सान्याल के अनुसार, ‘वित्तीय बचत और भौतिक बचत के बीच का अंतर पिछले 13 सालों में सबसे अधिक हो गया है जो सर्राफा आयात में वृद्धि के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है, खास तौर पर सोने के आयात में बढ़ोतरी के लिए। यह अंतर मौजूदा संदर्भों में तो नहीं, लेकिन अतीत में महँगाई में वृद्धि के लिए भी आंशिक तौर पर जिम्मेदार रहा है।'
दरअसल घरेलू बचत के प्रकार में यह बदलाव रातों-रात नहीं हुआ है। दरअसल विभिन्न वित्तीय उत्पादों के खराब प्रदर्शन की वजह से लोगों का इनके प्रति आकर्षण घटा है। शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव और विभिन्न गड़बडिय़ों की वजह से लोग शेयरों में पैसा लगाने से कतराने लगे हैं। बीमा उत्पादों की गलत ढंग से बिक्री सहित विभिन्न वजहों से लोगों का इनके प्रति भरोसा कम हुआ है। इसकी वजह से बचत को सोने और रियल एस्टेट के रूप में दिशा मिली है। इसके अलावा उचित वित्तीय व्यवस्था के अभाव की वजह से भी घरेलू बचत सही दिशा में नहीं हुई है। भारत के अधिकांश सुदूर क्षेत्र अभी भी बैंकिंग व्यवस्था के दायरे में नहीं आ सके हैं जिनकी वजह से कई बार लोग अनुचित विकल्पों में पैसा लगा देते हैं।
बचत करने में इसके बाद निजी कॉरपोरेट क्षेत्र का क्रम आता है। इस क्षेत्र की बचत साल 2011-12 के 7.3% से गिर कर साल 2012-13 में 7.1% रह गयी। बचत करने में इसके बाद क्रम आता है सार्वजनिक क्षेत्र का। साल 2012-13 में सार्वजनिक क्षेत्र की बचत दर जीडीपी का 1.2% रही। पिछले कुछ सालों में इस क्षेत्र की बचत दर में बड़ी गिरावट आयी है। साल 2004-05 में यह जीडीपी का 2.3% रही थी।
इस समस्या से निबटने का तरीका क्या है? जब तक घरेलू बचत को सही दिशा में ले जाने वाले उपाय नहीं किये जायेंगे, यह समस्या कमोबेश बनी रहेगी। इसके अलावा, सरकार को अपने स्तर पर भी काम करने होंगे। सरकारी बचत को बढ़ाना होगा। इसके लिए विश्वसनीय वित्तीय कंसोलिडेशन जरूरी है। सान्याल के अनुसार, ‘लोक सभा के बाद आने वाली नयी सरकार को विश्वसनीय वित्तीय कंसोलिडेशन के जरिये अर्थव्यवस्था का समष्टि प्रबंधन करना होगा ताकि भारत की घरेलू बचत की दर 38% से ऊपर ले जायी जा सके जैसा परिदृश्य साल 2008 से पहले था। ऐसा करने से ही भारतीय अर्थव्यवस्था को तीव्र विकास के पथ पर आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।‘
(निवेश मंथन, अप्रैल 2014)