कई बार जब रियल एस्टेट बाजार थोड़ा मंदा होता है तो भी डेवलपर कीमतों को घटाना मुनासिब नहीं समझते। इसके बजाय वे खरीदारों के सामने विभिन्न प्रकार के ऑफर पेश कर देते हैं। इसी तरह की एक पेशकश है पजेशन-लिंक्ड यानी कब्जा-आधारित भुगतान योजना, जिसमें खरीदार उस फ्लैट की कीमत का 20-25% भाग अग्रिम राशि के तौर पर डेवलपर को अदा कर देता है, जबकि शेष राशि वह उस डेवलपर को तब देता है जब उसे उस फ्लैट पर कब्जा मिल जाता है।
दूसरी ओर यदि कोई खरीदार कंस्ट्रक्शन-लिंक्ड यानी निर्माण-आधारित योजना का चुनाव करता है तो विभिन्न चरणों में डेवलपर को फ्लैट की कीमत किश्तों में अदा करनी होती है। मोटे तौर पर इस योजना के तहत कीमत अदायगी का क्रम कुछ इस प्रकार होता है- फ्लैट की तय कीमत का 10% उसको बुक करने के समय दिया जाता है। उसके बाद निर्माण कार्य आरंभ होते समय फिर 10% देना होता है। उसके बाद विभिन्न मंजिलों के निर्माण कार्य पूर्ण होने के साथ बाकी रकम देनी होती है। जो लोग आवास ऋण ले कर कंस्ट्रक्शन-लिंक्ड योजना का चुनाव करते हैं, उनके मामले में डेवलपर को फ्लैट की लगभग 90% कीमत उस बैंक से हासिल होती है, जो उस खरीदार को आवास ऋण मुहैया कराता है। ग्राहकों के लिहाज से इस योजना की अहम बात यह है कि इसमें निर्माण कार्य के दौरान ग्राहक को बैंक से लिये गये कर्ज का सिर्फ ब्याज देना होता है। इसमें आवास ऋण की ईएमआई तब आरंभ होती है, जब फ्लैट पर खरीदार को कब्जा मिल जाता है।
ओमैक्स लिमिटेड के सीईओ मोहित गोयल का कहना है, ‘ये दो योजनाएँ दो अलग-अलग प्रकार के निवेशकों/ खरीदारों के लिए हैं। खरीदारों के लिए इन दोनों ही योजनाओं के अपने-अपने फायदे हैं। पजेशन-लिंक्ड योजना को मुख्यत: वे निवेशक तरजीह देते हैं, जो विभिन्न परियोजनाओं में थोड़ी-थोड़ी राशि का निवेश कर बैठे रहते हैं और उन पर कमाई की ताक में लगे रहते हैं।'
जानकारों की मानें तो कंस्ट्रक्शन-लिंक्ड योजना को चुनने वाले लोगों का प्रोफाइल थोड़ा अलग होता है। गोयल के अनुसार, ‘अधिकांश वेतनभोगी या कुछ कारोबारी भी कंस्ट्रक्शन-लिंक्ड योजना को प्राथमिकता देते हैं जहाँ निर्माण के प्रत्येक चरण के साथ बिल्डर को कुछ राशि दी जानी होती है। यह योजना इसलिए अहम है क्योंकि यह खरीदार को अपने बचत के अनुरूप योजना बनाने में मददगार होती है।' उनके मुताबिक बैंक भी अपनी ओर से कंस्ट्रक्शन-लिंक्ड योजना को बढ़ावा देते हैं और इस योजना के तहत आवास ऋण हासिल करना आसान है।'
डेवलपर भी आम तौर पर कंस्ट्रक्शन-लिंक्ड योजना को प्राथमिकता देते हैं। कई बार विभिन्न कारणों से वह डेवलपर उस फ्लैट का कब्जा नहीं दे पाता और 4-5 साल तक की देरी भी हो जाती है। ऐसे में फ्लैट पर कब्जा न मिलने के बावजूद खरीदार को उस राशि पर ब्याज चुकाना पड़ता है, जो राशि बैंक ने आवास ऋण के तौर पर उपलब्ध करायी है। हालाँकि कुछ डेवलपर पजेशन-लिंक्ड योजना की भी पेशकश करते हैं। वे इस बात का निर्णय अपनी परियोजना पूरी होने की स्थिति के आधार पर करते हैं।
पजेशन-लिंक्ड योजना के फायदे
किसी भी परियोजना से संबंधित सबसे अहम दो बिंदु कौन से होते हैं? पहला - समय से उस परियोजना को पूरा कर खरीदारों को कब्जा दे देना, और दूसरा - डेवलपर द्वारा उस परियोजना के निर्माण की खातिर लिया गया कर्ज। पजेशन-लिंक्ड योजना में आरंभ में बुकिंग के समय केवल 20-25% पैसे देने होते हैं और बाकी राशि कब्जा पाने के समय देनी होती है। यह खरीदारों के लिए काफी लाभदायक स्थिति होती है। बाकी योजनाओं में परियोजना के पूरा न होने के बावजूद खरीदारों को काफी पैसा बिल्डर को दे देना होता है, लेकिन इस योजना में ऐसा नहीं है। ऐसे में इस बात का जोखिम काफी घट जाता है कि वह डेवलपर इस परियोजना को समय पर पूरा नहीं करेगा। क्योंकि अगर वह इस समय से पूरा नहीं करेगा तो वह इसके फ्लैट इसके खरीदारों को सौंप नहीं सकेगा और तब तक उसे उसके बाकी पैसे नहीं मिलेंगे। यदि उसे उसके बाकी पैसे समय से नहीं मिले तो उसने इसके निर्माण के लिए जो कर्ज ले रखा है, उस पर डिफॉल्ट करने की नौबत भी आ सकती है।
ओम आहूजा, सीईओ, रेजिडेंशियल सर्विसेज, जेएलएल इंडिया, कहते हैं, ‘पजेशन-लिंक्ड योजना का लाभ यह है कि खरीदारों को उस फ्लैट के लिए पैसे नहीं देने होते जो अभी तैयार ही नहीं है। इसी वजह से काफी खरीदार इस योजना को अपनाते नजर आते हैं और इस योजना को कंस्ट्रक्शन-लिंक्ड योजना के बजाय तरजीह भी देते हैं। लेकिन इस योजना को चुनते समय खरीदार को इससे संबंधित विभिन्न जोखिमों को भी ध्यान में रखना चाहिए।'
खरीदार सबसे पहले यह देख लें कि डेवलपर ने सभी जरूरी अनुमोदन प्राप्त कर लिये हैं। इसके अलावा यह सुनिश्चित कर लें कि एक ही परियोजना में उस डेवलपर ने कहीं दो तरह की भुगतान योजनाएँ तो नहीं चला रखी हैं। इस संभावना ने इन्कार नहीं किया जा सकता कि एक ही परियोजना के लिए उसने कुछ लोगों के लिए कंस्ट्रक्शन-लिंक्ड अदायगी योजना की पेशकश की हो और कुछ के लिए पजेशन-लिंक्ड अदायगी योजना की। आहूजा कहते हैं कि अगर उस डेवलपर ने ऐसा कर रखा है तो इसका यह मतलब हुआ कि खरीदार अप्रत्यक्ष तौर पर उस डेवलपर के लिए वित्त की व्यवस्था कर रहा है, जो अच्छी स्थिति नहीं है। साथ ही इस तरह की योजना में पैसे लगाने से पहले दस्तावेजों को भी ध्यान से पढ़ लेना चाहिए। कहीं आप किसी ऐसी शर्त पर हस्ताक्षर न कर दें कि आपका शुरुआती 20-25% निवेश ही जोखिम में पड़ जाये।
पजेशन-लिंक्ड अदायगी योजना में यदि खरीदार पजेशन के समय अदायगी नहीं कर पाता तो ऐसी स्थिति में डेवलपर के पास यह अधिकार होता है कि वह विक्रय समझौते को रद्द कर दे। ऐसे में यह भी संभव है कि वह डेवलपर उस खरीदार की ओर से दी गयी पूरी अग्रिम राशि जब्त कर ले। हालाँकि प्रतिष्ठित डेवलपर उस राशि का एक हिस्सा ही जब्त करते हैं। ऐसे में इस योजना का चयन करते समय इस बिंदु पर भी ध्यान दें कि समय से अदायगी न कर पाने की स्थिति में आपकी अग्रिम राशि का क्या होगा।
पजेशन-आधारित योजनाओं में निवेश का सही समय
ओम आहूजा, सीईओ - रेजिडेंशियल सर्विसेज, जेएलएल इंडिया
डेवलपर माँग बढ़ाने के लिए कई तरह की योजनाएँ पेश कर रहे हैं। इससे साफ लगता है कि खरीदार अभी देखो और इंतजार करो की नीति पर चल रहे हैं। अखबारों में छपी खबरों में पिछली तीन तिमाहियों के दौरान दाम घटने की बात कही गयी है। लेकिन हमने कीमत में कोई गंभीर गिरावट नहीं देखी है। डेवलपर कीमतों में मोलभाव के बजाय पैकेज दे रहे हैं। इन्हीं में से एक एक पजेशन यानी कब्जे पर आधारित भुगतान योजना, जिसमें खरीदार को शुरुआत में लागत का 20-25त्न भुगतान करना पड़ा है और बाकी रकम कब्जे पर देनी होती है। चुनावों के बाद नीतिगत बदलावों की संभावनाओं को देखते हुए इस तरह की योजनाएँ शायद बहुत लंबे समय तक जारी ना रहें। ऐसे में खरीदारों के लिए पजेशन-आधारित योजनाओं में निवेश का यह सही समय है।
वेतनभोगी खरीदार चुनते हैं कंस्ट्रक्शन-लिंक्ड योजना
मोहित गोयल, सीईओ, ओमैक्स :
पजेशन-लिंक्ड और कंस्ट्रक्शन-लिंक्ड योजनाएँ दो अलग प्रकार के निवेशकों/ खरीदारों के लिए हैं। इन दोनों ही योजनाओं के अपने-अपने फायदे हैं। पजेशन-लिंक्ड योजना को मुख्यत: वे निवेशक तरजीह देते हैं, जो विभिन्न परियोजनाओं में थोड़ी-थोड़ी राशि का निवेश कर बैठे रहते हैं और उन पर कमाई की ताक में लगे रहते हैं। अधिकांश वेतनभोगी या कुछ कारोबारी भी कंस्ट्रक्शन-लिंक्ड योजना को प्राथमिकता देते हैं जहाँ निर्माण के प्रत्येक चरण के साथ बिल्डर को कुछ राशि दी जानी होती है। यह योजना इसलिए अहम है क्योंकि यह खरीदार को अपने बचत के अनुरूप योजना बनाने में मददगार होती है। बैंक भी अपनी ओर से कंस्ट्रक्शन-लिंक्ड योजना को बढ़ावा देते हैं और इस योजना के तहत आवास ऋण हासिल करना आसान है।
(निवेश मंथन, मार्च 2014)
- Details
- Category: मार्च 2014
- सातवाँ वेतन आयोग कहीं खुशी, कहीं रोष
- एचडीएफसी लाइफ बनेगी सबसे बड़ी निजी बीमा कंपनी
- सेंसेक्स साल भर में होगा 33,000 पर
- सर्वेक्षण की कार्यविधि
- भारतीय अर्थव्यवस्था ही पहला पैमाना
- उभरते बाजारों में भारत पहली पसंद
- विश्व नयी आर्थिक व्यवस्था की ओर
- मौजूदा स्तरों से ज्यादा गिरावट नहीं
- जीएसटी पारित कराना सरकार के लिए चुनौती
- निफ्टी 6000 तक जाने की आशंका
- बाजार मजबूत, सेंसेक्स 33,000 की ओर
- ब्याज दरें घटने पर तेज होगा विकास
- आंतरिक कारक ही ला सकेंगे तेजी
- गिरावट में करें 2-3 साल के लिए निवेश
- ब्रेक्सिट से एफपीआई निवेश पर असर संभव
- अस्थिरताओं के बीच सकारात्मक रुझान
- भारतीय बाजार काफी मजबूत स्थिति में
- बीत गया भारतीय बाजार का सबसे बुरा दौर
- निकट भविष्य में रहेगी अस्थिरता
- साल भर में सेंसेक्स 30,000 पर
- निफ्टी का 12 महीने में शिखर 9,400 पर
- ब्रेक्सिट का असर दो सालों तक पड़ेगा
- 2016-17 में सुधार आने के स्पष्ट संकेत
- चुनिंदा क्षेत्रों में तेजी आने की उम्मीद
- सुधारों पर अमल से आयेगी तेजी
- तेजी के अगले दौर की तैयारी में बाजार
- ब्रेक्सिट से भारत बनेगा ज्यादा आकर्षक
- सावधानी से चुनें क्षेत्र और शेयर
- छोटी अवधि में बाजार धारणा नकारात्मक
- निफ्टी 8400 के ऊपर जाने पर तेजी
- ब्रेक्सिट का तत्काल कोई प्रभाव नहीं
- निफ्टी अभी 8500-7800 के दायरे में
- पूँजी मुड़ेगी सोना या यूएस ट्रेजरी की ओर
- निफ्टी छू सकता है ऐतिहासिक शिखर
- विकास दर की अच्छी संभावनाओं का लाभ
- बेहद लंबी अवधि की तेजी का चक्र
- मुद्रा बाजार की हलचल से चिंता
- ब्रेक्सिट से भारत को होगा फायदा
- निफ्टी साल भर में 9,200 के ऊपर
- घरेलू बाजार आधारित दिग्गजों में करें निवेश
- गिरावट पर खरीदारी की रणनीति
- साल भर में 15% बढ़त की उम्मीद
- भारतीय बाजार का मूल्यांकन ऊँचा
- सेंसेक्स साल भर में 32,000 की ओर
- भारतीय बाजार बड़ी तेजी की ओर
- बाजार सकारात्मक, जारी रहेगा विदेशी निवेश
- ब्रेक्सिट का परोक्ष असर होगा भारत पर
- 3-4 साल के नजरिये से जमा करें शेयरों को
- रुपये में कमजोरी का अल्पकालिक असर
- साल भर में नया शिखर
अर्थव्यवस्था
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