मोबाइल अब डेस्कटॉप इंटरनेट की जगह छीनता जा रहा है और व्हाट्सऐप्प से बड़ा इसका कोई दूसरा प्रमाण नहीं हो सकता।
व्हाट्सऐप्प केवल मोबाइल पर है और डेस्कटॉप पर यह मौजूद नहीं है। फेसबुक ने सार्वजनिक रूप से माना था कि मोबाइल प्लेटफॉर्म पर उसे जूझना पड़ रहा है। इस अधिग्रहण से उसे मोबाइल की दुनिया में काफी मदद मिलेगी। इस तरह के बड़े अधिग्रहणों से स्टार्टअप कंपनियों या नव-उद्यमों के परिवेश को मजबूती मिलती है। उद्यमी और वेंचर कैपिटल फंड दोनों ही अरबों डॉलर वाले ऐसे सपनों के पीछे भागते हैं और उनमें से कुछ सच हो जाते हैं।
भारत में व्यापार और तकनीक दोनों में ही सेवाएँ प्रदान करने की ओर ज्यादा झुकाव है। इनमोबी जैसी कुछ भारतीय कंपनियाँ अरबों डॉलर वाली बड़ी कंपनी बनने की ओर अग्रसर हैं। इसके अलावा जो ई-कॉमर्स कंपनियाँ हैं, वे भी बड़ी बन रही हैं। मुझे उम्मीद है कि अगले पाँच वर्षों में कुछ और भी भारतीय टेक्नोलॉजी कंपनियाँ अरबों डॉलर के स्तर पर पहुँच सकेंगी।
हम जो यहाँ प्रोडक्ट बनाते हैं, वे यहाँ के हिसाब से बनते हैं। ग्लोबल मार्केट पहले से विकसित हैं, इसलिए उपभोक्ता के पास पहले से बहुत सारी चीजें होती हैं जिनको वह ले सकता है। इसलिए वहाँ का प्रोडक्ट मैनेजर और टेक्नोलॉजी का व्यक्ति उससे आगे की चीज बनाता है। भारत में बैठ कर आप भारत के लोगों के लिए ही कुछ बनायेंगे। जब यहाँ छोटे लेवल का सिस्टम नहीं है तो बड़े लेवल का सिस्टम वे कैसे बनायेंगे?
आपको अगर मैं एक गाँव में भेज दूँ और कहूँ कि बहुत अच्छा खाना खिलाइये, तो आप वह खाना खिलायेंगे जो गाँव के लोग खायेंगे। अगर आपको दिल्ली में कहूँ तो आप दिल्ली के लोगों की पसंद का खिलायेंगे। वहीं अगर आपको इटली में जा कर खाना बनाना हो तो वहाँ के लोगों की पसंद का बनायेंगे। हम जिस बाजार में उतरे हैं, उसी के हिसाब से उत्पाद सामने लायेंगे। अगर सिलिकन वैली में देखें तो बहुत सारी चीजें भारतीयों ने भी बनायी हैं। वैसे हम भारतीयों में एक बात होती है कि हम जरा कम जोखिम लेना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि कोई और जोखिम ले ले और हमें सुरक्षा दे दे। सांस्कृतिक रूप से हम जोखिम से बचने वाले लोग हैं।
लेकिन अब बहुत कुछ बदला है। हर पाँच साल में एक नयी चीज सामने आ ही जाती है। दुनिया भर में पसंद किये जा सकने वाले नये वैश्विक उत्पाद भारत में विकसित हो सकें, ऐसा होने में और पाँच साल लग सकते हैं। इसका मतलब यह भी नहीं है कि अगले पाँच साल में हम बड़ी अच्छी स्थिति में आ ही जायेंगे।
अभी जो नये उद्यमी आ रहे हैं, उनमें से बहुत सारे लोग चाहते हैं कि वे वैश्विक स्तर की चीज बना सकें। ऐसा कुछ बनते-बनते समय लगेगा। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि अब वैश्विक उत्पाद बनाने की चाहत रखने वाले उद्यमी आ रहे हैं।
लेकिन ऐसी चीज विकसित करने के लिए जो माँग-आपूर्ति का पूरा परिवेश होता है, वह भारत में ठीक से विकसित नहीं हो पाया है। अभी हमारे देश में बहुत कुछ करना बाकी है और यह इतनी जल्दी नहीं हो पायेगा। इसमें समय लगेगा। तब तक काफी कुछ यही होगा कि बाहर चल चुके
कारोबारी मॉडल का भारतीय बाजार में आयात किया जाता रहेगा।
(निवेश मंथन, मार्च 2014)