राजीव रंजन झा :
निवेश मंथन के पिछले अंक में मैंने सवाल उठाया था कि क्या निफ्टी 1,000 अंक टूटने की तैयारी में है?
उस समय 28 जनवरी 2014 के बंद स्तर के आधार पर निफ्टी 6,126 पर था। वहाँ से निफ्टी चार फरवरी को 5,933 तक फिसला, यानी 193 अंक या 3.2% नीचे गया। मैंने करीब 1,000 अंकों की गिरावट की बात दिसंबर 2013 के शिखर 6,415 से कही थी। अगर वहाँ से देखें तो निफ्टी 5,933 के स्तर पर 482 अंक या 7.5% नीचे था। मैंने जितनी गिरावट की संभावना बतायी थी, उसकी लगभग आधी गिरावट तो आ गयी। लेकिन उसके बाद बाजार अद्भुत गति से पलटा। सेंसेक्स-निफ्टी नये रिकॉर्ड ऊपरी स्तर पर नजर आ रहे हैं।
शुक्रवार सात मार्च को सेंसेक्स लगभग 22,000 को छू गया। यह 21,961 तक चढ़ा और 406 अंक की शानदार उछाल के साथ 21,920 पर बंद हुआ। निफ्टी भी 6,538 का नया रिकॉर्ड बनाने के बाद 125 अंक यानी 2% की उछाल के साथ 6,527 पर बंद हुआ।
आखिर फरवरी के पहले हफ्ते से मार्च के पहले हफ्ते के बीच ऐसा क्या हुआ, जिससे बाजार ने अपनी दिशा इस तरह बदल ली? दरअसल इस दौरान लगभग हर चुनाव-पूर्व जनमत सर्वेक्षण में यह बात सामने आयी कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) बहुमत के लिए जरूरी 272 सीटों के करीब खिसकती जा रही है।
कांग्रेस को 2009 में जितनी सीटें मिलने पर बाजार में ऊपरी सर्किट लग गया था, उससे कहीं ज्यादा सीटें इस बार भाजपा को मिलने की उम्मीदें बनने लगी हैं। अगर आज बाजार को लग रहा है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने की संभावना काफी मजबूत हो गयी है, तो यह उसके लिए मनमाँगी मुराद पूरी हो जाने जैसा है। इसलिए बाजार भी इन उम्मीदों को पहले से ही भुनाने में लग गया है। वह चुनावी नतीजों की औपचारिक घोषणा तक का इंतजार नहीं कर सकता।
महीने दो महीने पहले तक भी स्थिति इतनी साफ नहीं थी। तस्वीर बदलनी शुरू हुई थी दिसंबर 2013 के विधान सभा चुनावों के बाद। पाँच विधान सभाओं में से चार में भाजपा को बढ़त मिली थी, भले ही दिल्ली विधान सभा में वह बहुमत से जरा पीछे रह गयी। इन नतीजों के बाद ही बाजार ने एक उछाल दर्ज की थी, जिसमें निफ्टी उस समय तक के ऐतिहासिक शिखर 6,357 को पार करके 6,415 का नया रिकॉर्ड स्तर छू सका था।
लेकिन तब भी संशय के लिए जगह बाकी थी। विधानसभा चुनावों के नतीजे आने से पहले ही ‘निवेश मंथन’ के दिसंबर 2013 के अंक में मैंने लोकसभा चुनावों के संदर्भ में कहा था कि कांग्रेस की सीटें घटने की बहुत साफ भविष्यवाणी की जा सकती है, वहीं दावे के साथ यह कह पाना मुश्किल है कि भाजपा बहुमत के लिए जरूरी आँकड़ा जुटाने की स्थिति में आ चुकी है।
जनवरी 2014 के अंत तक भी स्थिति बहुत नहीं बदली थी। लोकसभा के लिए चुनावी प्रचार अभियान शुरू होने के बाद भी ताजा जनमत सर्वेक्षण वही निष्कर्ष दे रहे थे। इसीलिए फरवरी 2014 के अंक में मैंने लिखा था कि ‘अब यह तो स्पष्ट है कि कांग्रेस अपनी अब तक न्यूनतम संख्या की ओर बढ़ रही है। लेकिन क्या भाजपा अपनी अधिकतम संख्या की ओर बढ़ पायेगी? यह आज भी एक बड़ा प्रश्न-चिह्न है।'
लेकिन अब एक तरफ तो भाजपा के लिए हर नये जनमत सर्वेक्षण में सीटों के अनुमान पहले से कुछ बढ़े हुए दिखने लगे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस और यूपीए को मिलने वाली सीटों का अनुमान लगातार घटता दिख रहा है। सीएसडीएस ने जुलाई 2013 के सर्वेक्षण में कहा था कि भाजपा को 161 सीटें मिल सकती हैं। यह अनुमान अक्टूबर 2013 में बढ़ कर 191 पर और जनवरी 2014 में २०१ पर पहुँच गया। उसका सबसे ताजा सर्वेक्षण भाजपा को 213 तक सीटें मिलने की संभावना दिखा रहा है।
नीलसन ने जनवरी 2014 में भाजपा को 210 सीटें मिलने का आकलन किया था। फरवरी 2014 के सर्वेक्षण में यह संख्या बढ़ कर 217 हो गयी। पिछले साल से ही सी-वोटर के सर्वेक्षणों के आकलन भाजपा के लिए सबसे ज्यादा संकोची रहे हैं। लेकिन इनमें भी हर बार भाजपा की संख्या बढ़ती गयी है। इसने जुलाई 2013 में भाजपा को 131 सीटें मिलने का अनुमान जताया था। अक्टूबर 2013 में यह अनुमान 162 का और जनवरी 2014 में 188 सीटों का हो गया। फरवरी 2014 में इसका अनुमान भी 202 हो गया।
इन सर्वेक्षणों के अनुमान किस हद तक सही होंगे, कौन सबसे सटीक साबित होगा, यह कहना आसान नहीं है। लेकिन इन सबका एक संदेश बड़ा स्पष्ट है। भाजपा अपनी जमीन लगातार पुख्ता करती जा रही है और ऐसी स्थिति में पहुँचती दिख रही है, जहाँ बहुमत जुटा पाना उसके लिए मुश्किल नहीं होगा।
साथ ही एनडीए का कुनबा भी फैलता दिख रहा है। पहले यह संदेह जताया जाता रहा था कि बहुमत के आँकड़े को जुटाने के लिए क्या भाजपा के साथ पर्याप्त सहगोयी दल आ सकेंगे? खास कर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व से अन्य दलों को परहेज होने की बात उठायी जाती रही है। मोदी के मसले पर ही नीतीश कुमार जैसे पुराने साथी के एनडीए से अलग हो जाने का किस्सा सबके सामने थ।
लेकिन अब कहानी बदली है। साल 2002 के गुजरात दंगों के बाद एनडीए का कुनबा सबसे पहले छोडऩे वाले रामविलास पासवान एनडीए में वापसी करने में भी सर्वप्रथम हो गये। उनकी वापसी से एनडीए को सीटों की संख्या के मामले में भले ही बहुत फायदा न हो, लेकिन उनके लौटने का सांकेतिक महत्व काफी है और भाजपा उसे भुनाने में भी लग गयी है। इसी स्थिति को बाजार भी भुना रहा है।
बुनियादी बदलावों पर भी नजर
अगर हम विकास दर (जीडीपी) के ताजा आँकड़ों और भविष्य के अनुमानों को देखें तो ऐसा नहीं लगता कि अर्थव्यवस्था की स्थिति में कोई सुधार आया है या तुरंत आने की उम्मीद है। लेकिन अर्थव्यवस्था से जुड़ी कई बातों पर बाजार ने राहत महसूस की है। वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने भले ही आँकड़ों की बाजीगरी का सहारा लिया हो, लेकिन सरकारी घाटा (फिस्कल डेफिसिट) और चालू खाते का घाटा (सीएडी) नियंत्रण में रहने से बाजार कुछ आश्वस्त हुआ है।
डॉलर के मुकाबले रुपये में स्थिरता लौटी है, जिसके पीछे यह मुख्य कारण है। रुपये की स्थिरता से शेयर बाजार पर भी सकारात्मक असर पड़ा है। साथ ही, अंतरिम बजट के बाद से विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने लगातार खरीदारी का रुझान अपनाया है, जबकि इससे पहले फरवरी महीने में वे अक्सर बिकवाली कर रहे थे।
साल 2013-14 की तीसरी तिमाही के नतीजों ने भी बाजार का हौसला बढ़ाया है। ज्यादातर कंपनियों के नतीजे बाजार के अनुमानों के मुताबिक या कुछ बेहतर रहे हैं। नकारात्मक ढंग से चौंकाने वाली कंपनियों की संख्या कम रही है। इसी के चलते ब्रोकिंग फर्मों ने कंपनियों के संभावित ईपीएस अनुमानों में वृद्धि की है।
बाकी है तेजी या पलटेगी चाल
सेंसेक्स लगभग 22,000 को छू चुका है और निफ्टी 6500 पार कर चुका है। यहाँ एक नजरिया यह हो सकता है कि इसने अपना तात्कालिक लक्ष्य पा लिया है और अब इसे पलटना चाहिए। लेकिन दूसरी नजर से देखें तो इसने छह सालों से चली आ रही बाधा को पार किया है, लिहाजा यह उछाल काफी बड़ी होनी चाहिए।
मैंने जनवरी 2014 के अंक में लिखा था, ‘निफ्टी का मासिक चार्ट भी दिखाता है कि यह एक चढ़ती पट्टी में है, यानी लंबी अवधि का सकारात्मक रुझान कायम है। इस पट्टी की ऊपरी रेखा 6,500-6,600 के लक्ष्य दिखाती है। मगर इस ऊपरी रेखा पर अटकने और वहाँ से पलटने की संभावना पर नजर रखनी होगी, क्योंकि ऐसा होना निफ्टी में करीब 500 अंक तक की गिरावट का कारण बन सकता है।' यह दिसंबर 2013 के शिखर 6415 से फरवरी की तलहटी 5933 तक 482 अंक गिरा।
वह बात तो सही रही, लेकिन फरवरी अंक में मैंने 1000-1100 अंक तक की गिरावट की जो संभावना जतायी थी, वह गलत हो गयी। गनीमत है! मैंने पिछले अंक में लिखा था कि ‘अगर निफ्टी आने वाले हफ्तों में 5972 से भी नीचे जाने लगे तो यह बाजार के लिए ज्यादा बड़े खतरे का संकेत होगा।' फरवरी के पहले हफ्ते में निफ्टी 5972 से नीचे गया, लेकिन 5933 पर एक तलहटी बना कर तेजी से वापस पलट गया। तो क्या मैं जिस बड़े खतरे की बात कर रहा था, वह टल गया है?
निफ्टी के मासिक चार्ट पर जिस चढ़ती पट्टी का जिक्र मैंने किया था, उसमें यह दिसंबर में पट्टी की ऊपरी रेखा को छूने के बाद नीचे की ओर पलटा। इसलिए संभावना बनती थी कि यह इस पट्टी की निचली रेखा की ओर बढ़े। इसने ऐसा रुझान दिखाया भी, लेकिन बीच रास्ते से फिर पलट गया। कई बार ज्यादा चौड़ी पट्टियों में ऐसा देखा जाता है कि ऊपरी रेखा से पलटने के बाद सीधे निचली रेखा पर चले जाने के बदले पट्टी के मध्य में ही कहीं सहारा मिल जाये। इसी पट्टी में भी पहले अगस्त 2012 में और फिर अप्रैल 2013 में ऐसा हो चुका है। लेकिन जब तक यह पट्टी बरकरार रहे, तब तक यह जोखिम बना रहता है कि फिर से निचली पट्टी को छूने का प्रयास हो।
इस समय न केवल निफ्टी, बल्कि सेंसेक्स भी अपने मासिक चार्ट में बनी ऐसी पट्टी के एकदम ऊपरी छोर पर है। अब क्या सेंसेक्स-निफ्टी ठीक इसी मुकाम से या थोड़ा ऊपर जाकर छकाने के बाद पलट सकते हैं? या फिर इस पट्टी को ऊपर की ओर तोड़ कर वे नयी ऊँचाइयाँ हासिल करेंगे? इन दोनों स्थितियों के लिए तैयार रहना चाहिए।
अगर निफ्टी इस पट्टी से ऊपर निकले तो पहले 6,700 और फिर लगभग 7,000 के लक्ष्य बन सकते हैं। हाल में इसने 6,415 से 5,933 तक की जो गिरावट दर्ज की, उसमें 100% वापसी पूरी करने के बाद 161.8% वापसी का स्तर 6,713 पर है।
एक अन्य संरचना पर गौर करें। निफ्टी ने अगस्त 2013 की तलहटी ५११९ से दिसंबर 2013 के शिखर 6415 तक की छलाँग के बाद 5933 तक की जो गिरावट दर्ज की, उसके प्रोजेक्शन में 50% का स्तर ६,५७९ है, जिसके पास यह पहुँच चुका है। अगर यह 6,579 के ऊपर निकल कर टिक सका तो 61.8% के स्तर यानी 6,732 और फिर 80% के स्तर 6,967 यानी लगभग 7,000 को अगले लक्ष्यों के तौर पर देखना चाहिए।
लेकिन अगर मासिक चार्ट पर दिख रही पट्टी की ऊपरी रेखा से पलट कर सेंसेक्स-निफ्टी नीचे लौटे तो क्या होगा? एक बार फिर इस पट्टी की निचली रेखा तक गिरने की संभावना सजीव हो जायेगी, यानी इस ऊपरी रेखा पर जहाँ भी ताजा शिखर बने वहाँ से निफ्टी में 1000-1100 अंकों की गिरावट।
लेकिन अगर निफ्टी ने फरवरी की तलहटी 5933 तोड़ी, तभी ऐसी बड़ी गिरावट का रास्ता खुलेगा। अब इस संभावना को तभी बल मिलेगा, जब राजनीतिक अस्थिरता की आहट सुनाई पड़े। अगर आगामी सर्वेक्षणों में भी नमो मंत्र गूँजा और चुनाव के बाद वे प्रधानमंत्री बन सके तो अब बाजार के सामने ऐसा कोई बड़ा कारण नहीं होगा, जिसके चलते इतनी बड़ी गिरावट आये। तब तक किसी उठापटक में भी निफ्टी का 6,000 के नीचे जाना अब मुश्किल लगता है।
(निवेश मंथन, मार्च 2014)