सुशांत शेखर :
वित्तीय बाजार में यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्रोडक्ट यानी यूलिप, जितने बदनाम हुए हैं,
उतने शायद कोई और उत्पाद हुए होंगे। बाजार में ऐसे लोग भी मिल जाएंगे, जो कहते हैं कि म्युचूअल फंड और यूलिप की तुलना बल्लेबाजी में सचिन तेंदुलकर की तुलना ईशांत शर्मा से करने जैसी है। सितंबर 2009 के पहले यह बाद एक हद तक सही भी थी। लेकिन बीमा नियामक इरडा ने यूलिप के नियमों में जो बड़े बदलाव किये, उनके बाद ये पहले से काफी बेहतर हो गये हैं। खास कर लंबी अवधि में यूलिप योजनाओं से अच्छा लाभ मिल सकता है। साथ ही इनमें कर छूट तो मिलती ही है।
कैसे बेहतर हुए यूलिप
पहले यूलिप में सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि पहले साल में एजेंट कमीशन और अन्य शुल्क 65-70% तक हो जाते थे। लेकिन इरडा के नये नियमों के तहत कोई बीमा कंपनी 10 साल तक के यूलिप पर कुल रिटर्न के 3% और 10 से ज्यादा की अवधि की स्थिति में 2.25% से ज्यादा शुल्क नहीं ले सकती। हालाँकि मोर्टेलिटी शुल्क इसमें शामिल नहीं है। साथ ही बीमा कंपनियों को शुल्क पाँच साल में बराबर-बराबर बाँटना होगा।
बीमा कंपनियों ने शुल्क की अधिकतम सीमा से कम दरों वाली योजनाएँ पेश की हैं। कई कंपनियों ने ऑनलाइन यूलिप भी पेश किये हैं, जिनमें एजेंट कमीशन नहीं लगता। इनमें प्रीमियम के अधिकतम हिस्से का निवेश होता है।
यूलिप के लिए लॉक-इन अवधि तीन साल से बढ़ा कर पाँच साल कर दिया गया है। जितने लंबे समय तक आप योजना में बने रहेंगे, चक्रवृद्धि बढ़त का फायदा उतना ज्यादा मिलेगा। साथ ही इरडा ने बीमा कंपनियों को यूलिप पर कर्ज देने से रोक दिया है। बीमा एजेंट इसका लालच दिखा कर ग्राहकों को यूलिप योजनाएँ नहीं बेच सकेंगे।
इरडा की सख्ती के बाद बीमा कंपनियों ने साफ-साफ बताना शुरू कर दिया है कि यूलिप योजनाओं में बीमा सुरक्षा का कितना खर्च आयेगा। साथ ही इन योजनाओं में बीमाधारक की मृत्यु पर मिलने वाली राशि भी बढ़ कर सालाना प्रीमियम के 40 गुना तक हो गयी है। इन योजनाओं पर न्यूनतम बीमा राशि (मिनिमम सम अश्योर्ड) सालाना प्रीमियम के 10 गुना से कम नहीं हो सकती।
यूलिप के पाँच फायदे
1: ये योजनाएँ इक्विटी (शेयर बाजार) और ऋण (डेट) योजनाओं में अदला बदली का विकल्प देती हैं। कुछ बदलाव मुफ्त होते हैं। जब लगे कि शेयर बाजार में तेजी आने वाली है तो आप ज्यादा निवेश इक्विटी योजनाओं में लगवा सकते हैं। जब शेयर बाजार कमजोरी लगे तो ऋण योजनाओं में चले जा सकते हैं।
2: फंड बदलते समय आपको कैपिटल गेंस टैक्स नहीं देना पड़ता। म्युचूअल फंड और अन्य निवेश योजनाओं में कैपिटल गेंस टैक्स देना पड़ता है।
3: यूलिप में निवेश पर आय कर कानून की धारा 80 सी के तहत 1 लाख रुपये की कर छूट मिलती है। परिपक्वता पर मिली रकम भी कुछ शर्तों के साथ करमुक्त होती है। शर्त यह है कि कुल सालाना प्रीमियम न्यूनतम बीमा राशि के 20% से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
4: बीमाधारक की मौत होने पर फंड वैल्यू मिलती है, जबकि पॉलिसी की अवधि पूरी होने पर सुनिश्चित बीमा राशि मिल जाती है। इससे वित्तीय लक्ष्य पूरे करना आसान होता है।
5: यूलिप बचत में अनुशासन लाते हैं। लंबी अवधि के उत्पाद होने से आपको बेहतर फायदे के लिए लगातार निवेश करना पड़ता है।
ऐसा नहीं है कि यूलिप में सब कुछ अच्छा ही है। इनमें भी कई जोखिम हैं, जो आपको निवेश से पहले समझने चाहिए। मसलन अगर आप यूलिप में इक्विटी में ज्यादा निवेश का विकल्प चुनते हैं तो इसके लाभ बाजार की चाल पर निर्भर करेंगे। बाजार अगर गिरा तो आपका लाभ नकारात्मक भी हो सकता है। ऐसे में इनसे किसी %नियतÓ लाभ की उम्मीद ना करें। म्युचूअल फंड में निवेश के मुकाबले ये अब भी थोड़े महँगे हैं। दूसरी बात यह है कि पाँच साल के लॉक-इन की वजह से आपके पास खराब प्रदर्शन कर रहे यूलिप से निकलने का कोई रास्ता नहीं है। ऐसे में यूलिप में निवेश से पहले सारे पहलुओं को ध्यान में रख कर ही कोई फैसला करें।
(निवेश मंथन, मार्च 2014)