आखिरी दिनों की आपाधापी, आय कर (इन्कम टैक्स) बचाने के लिए 31 मार्च तक की समय-सीमा, बीमा एजेंट को झटपट बुलाना और वह जो भी बीमा योजना बताये उसमें पैसे लगा देना,
ताकि एचआर विभाग को वह कागज सौंपा जाये और मार्च के वेतन में से ज्यादा टीडीएस कटने से बचा जा सके। क्या यह आपकी भी कहानी है? अगर हाँ, तो यह जान लीजिए कि कर बचाना बीमा कराने का सबसे छोटा लक्ष्य होना चाहिए। इसे बीमा कराते समय केवल एक अतिरिक्त फायदे के रूप में देखना चाहिए, मुख्य लक्ष्य के रूप में नहीं।
यह बात इसलिए याद दिलानी जरूरी है कि आम तौर पर बीमा उत्पादों की लगभग 70% बिक्री हर कारोबारी साल में अंतिम तीन महीनों, यानी जनवरी से मार्च के बीच होती है। आप पहले यह बात दिमाग में बिठा लें कि बीमा का मुख्य मकसद स्वयं और अपने परिवार को जोखिम से सुरक्षा दिलाना है, उसके बाद आपको बताते हैं कि बीमा योजनाओं से किस तरह आपको कर बचाने में मदद भी मिलती है।
बीमा से कितनी कर छूट?
आय कर कानून की धारा 80-सी के तहत अधिकतम एक लाख रुपये के जीवन बीमा प्रीमियम के पर कर में छूट मिलती है, यानी वह राशि आपकी कर योग्य आय में से घटा दी जाती है। ध्यान रखें कि 80-सी के तहत अलग-अलग तरह के सभी निवेश पर छूट की कुल अधिकतम सीमा एक लाख रुपये है। चार्टर्ड एकाउंटेंट एस. के. अग्रवाल कहते हैं कि पहले आपको यह जोड़ कर देख लेना चाहिए कि 80-सी के तहत उपलब्ध विकल्पों में से कौन-कौन आपके पास पहले से हैं या अनिवार्य रूप से होने वाले हैं।
इसलिए भविष्य निधि (पीएफ) में आपका योगदान (नियोक्ता का योगदान नहीं), पीपीएफ, आवास ऋण के मूलधन की वापसी, बैंक की एफडी यानी मियादी जमा (कम-से-कम पाँच साल की), बच्चों का शिक्षण शुल्क (ट्यूशन फी) वगैरह पर जो निवेश या खर्च आप कर चुके हैं, उसे एक लाख रुपये में से घटाने के बाद देखें कि 80-सी का पूरा फायदा उठाने के लिए, यानी एक लाख रुपये की सीमा पूरी करने के लिए और कितने निवेश की जरूरत है।
अगर बाकी मदों से ही एक लाख रुपये की सीमा पूरी हो रही हो, तो आपको कर बचत के लिए बीमा पॉलिसी लेने की जरूरत नहीं होगी। लेकिन इस लेख में सबसे पहले यही कहा गया है कि बीमा कराते समय कर बचत सबसे छोटा लक्ष्य है, असली लक्ष्य तो है स्वयं और अपने परिवार को वित्तीय सुरक्षा देना। उस लक्ष्य के लिए तो आपको बीमा कराना ही चाहिए, भले ही कर बचत के लिए इसकी जरूरत हो या नहीं।
बीमा पॉलिसी की अवधि पूरी होने पर आपको जो राशि मिलती है, वह भी पूरी तरह कर-मुक्त होती है। पॉलिसी की अवधि के दौरा बीमाधारक की मृत्यु होने पर उसके परिजनों को जो बीमा राशि मिलती है, वह भी आय कर कानून की धारा 10 के तहत पूरी तरह कर-मुक्त है।
गौरतलब है कि पारंपरिक बीमा योजनाओं के साथ-साथ यूलिप पर भी कर छूट मिलती है, लेकिन एक शर्त पूरी होने पर। सभी बीमा योजनाएँ कर छूट नहीं दिलातीं। शर्त यह है कि प्रीमियम की राशि बीमा राशि के 10% से ज्यादा न हो।
कई व्यक्ति हर साल कर बचत के लिए नयी बीमा पॉलिसी ले लेते हैं। बीमा कराते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि आपने पहले से कौन-कौन सी पॉलिसी ले रखी है और उन सबकी सालाना प्रीमियम देनदारी कितनी है। कहीं ऐसा न हो कि एक तरफ तो आप नयी पॉलिसी लेते जायें, और दूसरी तरफ आपकी पुरानी पॉलिसी प्रीमियम न भरने के चलते निरस्त हो जाये। बीमा पॉलिसी आप उतनी ही लें, जितने का प्रीमियम भुगतान आप हर साल नियमित रूप से करते रह सकें।
कभी-कभी बीमा एजेंट आपको पुरानी पॉलिसी सरेंडर यानी वापस करके कोई नयी पॉलिसी लेने की भी सलाह देते हैं। ऐसी सलाह मिलने पर आपको यह जरूर देखना चाहिए कि कहीं वह एजेंट केवल अपना कमीशन बनाने के फेर में तो नहीं है? यह देखना चाहिए कि क्या वाकई आपकी पिछली पॉलिसी अलाभदायक हो गयी है और जिस नयी पॉलिसी को लेने की सलाह दी जा रही है, उससे मिलने वाले फायदे वाकई कहीं ज्यादा हैं।
पुरानी पॉलिसी परिपक्वता से पहले वापस करते समय यह भी ध्यान रखें कि अगर आपने पाँच से कम प्रीमियम का भुगतान किया है तो पॉलिसी की वापसी पर मिलने वाली राशि उस वर्ष आपकी कर-योग्य आमदनी में जोड़ी जायेगी। यानी समय से पहले पॉलिसी लौटाने के चलते अगर कोई नुकसान हुआ तो वह अलग, और कर देनदारी भी जुड़ गयी।
अगर आपकी पॉलिसी किसी पेंशन योजना की है, तो उसे समय से पहले निरस्त कराने पर आपने उसके जितने भी प्रीमियम पर 80सी के तहत कर छूट ली होगी, वह सारी छूट भी वापस हो जायेगी और आपको उस पर कर भुगतान करना होगा। साथ ही पेंशन योजना निरस्त कराने पर मिलने वाली राशि उस साल आपकी आमदनी में जुड़ेगी, जिस पर कर चुकाना होगा।
पेंशन योजना के संदर्भ में यह याद रखना चाहिए कि इसे पूरी अवधि तक चलाने के बाद भी जो राशि मिलती है, उसका आप तुरंत कर-मुक्त ढंग से उपयोग नहीं कर सकते। आपको उस राशि का दो तिहाई हिस्सा एन्विटी योजना में फिर से लगाना होता है और केवल एक तिहाई हिस्सा आपको कर-मुक्त ढंग से प्राप्त होता है।
सावधि बीमा पर सर्वाधिक सुरक्षा
सरकार ने अगर बीमा उत्पादों को खरीदने पर कर में छूट दी है, तो इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को बीमा सुरक्षा पाने के लिए प्रोत्साहित करना है। लेकिन लोग असली मकसद को भूल कर प्रोत्साहन पर ही पूरा ध्यान लगा देते हैं। अगर असली मकसद यानी बीमा सुरक्षा पर गौर करें, तो बीमा उत्पादों में आपके लिए सबसे अच्छा विकल्प सावधि बीमा (टर्म इंश्योरेंस) है। इसमें सबसे कम प्रीमियम भुगतान पर सबसे अधिक बीमा सुरक्षा मिलती है।
किसी 25 वर्ष के व्यक्ति को 20 लाख रुपये का सावधि बीमा लगभग ३००0-४000 रुपये के सालाना प्रीमियम पर मिल सकता है। बीमाधारक की उम्र अगर अधिक हो तो उसके मुताबिक ही प्रीमियम राशि भी ज्यादा लगती है। लेकिन इसके बाद भी सावधि बीमा का प्रीमियम बहुत बड़ा नहीं होता। मसलन, 45 वर्ष के व्यक्ति को 20 लाख रुपये का सावधि बीमा ८000-१०,000 रुपये में भी मिल सकता है।
आपको तमाम बीमा कंपनियों के ऐसे विज्ञापन देखने को मिलते होंगे कि सालाना केवल 6200 रुपये (या ऐसी ही कोई छोटी राशि) खर्च कर आप एक करोड़ रुपये का जीवन बीमा करा सकते हैं। ये विज्ञापन सावधि बीमा के लिए ही होते हैं। हालाँकि आम तौर पर होता यह है कि जो आकर्षक छोटी राशि विज्ञापन में बतायी गयी होती है, वह सबसे अधिक अवधि के बीमा के लिए और सबसे कम आयु वर्ग के लिए लागू होती है। यदि 35-40 वर्ष की आयु के किसी व्यक्ति को एक करोड़ रुपये का सावधि बीमा लेना हो तो सालाना 15,000-20,000 रुपये या इससे अधिक भी खर्च करने पड़ सकते हैं।
पॉलिसी बाजार के सीईओ यशीश दहिया बताते हैं कि प्रीमियम की राशि बीमा कराने वाले व्यक्ति की उम्र पर निर्भर है। जिसकी उम्र ज्यादा होगी, उसके लिए प्रीमियम भी ज्यादा होगा। इसलिए सावधि बीमा आप जितनी कम उम्र में ले लें, उतना ही अच्छा है। अगर आप पाँच साल बाद बीमा कराने जायें तो आप उस समय अधिक उम्र वर्ग में होंगे, लिहाजा आपको प्रीमियम ज्यादा देना होगा।
अच्छी बात यह है कि एक बार सावधि बीमा करा लेने पर आपके सालाना प्रीमियम की राशि हर साल एक बराबर ही रहती है। यशीश कहते हैं, ‘यह बीमा कंपनी के साथ आपका समझौता है, जिसके तहत आपको उतनी ही राशि के प्रीमियम पर बीमा योजना की पूरी अवधि के दौरान सुरक्षा मिलेगी। आपके लिए प्रीमियम की राशि बदलती नहीं है।'
इसलिए अच्छा होगा कि आप कम उम्र में ही अधिक-से-अधिक वर्षों का सावधि बीमा करा लें। अगर कोई व्यक्ति 25 वर्ष की आयु में केवल 10 वर्ष का सावधि बीमा कराये तो उतनी ही राशि का बीमा 35 वर्ष की आयु में फिर से कराते समय उसका प्रीमियम काफी बढ़ सकता है। आखिर बीमा की जरूरत तो 35 वर्ष में भी होगी, 45 वर्ष में भी और उसके आगे भी। हालाँकि यशीश कहते हैं कि 65 वर्ष से आगे के लिए सावधि बीमा कराने की जरूरत नहीं लगती, क्योंकि उस समय तक आपकी वित्तीय जिम्मेदारियाँ पूरी हो चुकी होती हैं।
बीमा + निवेश = सुरक्षा + लाभ?
यह तो निर्विवाद है कि शुद्ध बीमा यानी टर्म प्लान से ही आपको न्यूनतम खर्च पर अधिकतम बीमा सुरक्षा मिलती है। लेकिन यह मानव स्वभाव है कि लोगों को शुद्ध खर्च करने के बदले पैसे वापस पाना अच्छा लगता है। इसीलिए बीमा कंपनियाँ ऐसे उत्पाद लाती हैं, जिनमें बीमा के साथ निवेश भी जोड़ दिया जाता है। ऐसे उत्पादों को बेचना आसान होता है, क्योंकि ग्राहक को लगता है कि उसे बीमा सुरक्षा मिलने के साथ-साथ अपने लगाये पैसे पर लाभ भी मिलेगा। एस. के. अग्रवाल कहते हैं कि अगर 80सी में एक लाख रुपये की सीमा पूरी नहीं हुई हो तो निवेश वाले बीमा उत्पाद लेने में कोई हर्ज नहीं है।
लेकिन ऐसे उत्पादों को लेते समय आप यह अच्छी तरह समझ लें कि वह उत्पाद आपको कितनी बीमा सुरक्षा दे रहा है, उस बीमा सुरक्षा के मद में कितने पैसे जा रहे हैं, आपके प्रीमियम भुगतान का कितना हिस्सा निवेश किया जा रहा है और उस पर कितना लाभ मिलने वाला है।
कई बार लोग बीमा कंपनी के निवेश उत्पाद में बड़ी राशि लगा कर सोचते हैं कि बीमा सुरक्षा संबंधी उनकी जरूरत पूरी हो गयी। लेकिन बीमा के जरिये निवेश करने पर एक बड़ी राशि दे कर भी आपको पर्याप्त बीमा सुरक्षा मिल रही हो, यह जरूरी नहीं है।
मिसाल के तौर पर अगर आपने निवेश वाले बीमा उत्पाद में 50,000 रुपये का प्रीमियम दिया और उस पर बीमा सुरक्षा पाँच लाख रुपये की मिली, तो शायद यह राशि आपके परिवार को पूरी वित्तीय सुरक्षा देने के लिए पर्याप्त न हो। दरअसल आपके प्रीमियम का बड़ा हिस्सा निवेश में चला जाता है और एक छोटे हिस्से से ही बीमा सुरक्षा दी जाती है। इसलिए बीमा सुरक्षा में जो कमी हो रही हो, उसे पूरा करने के लिए आप बेहद कम प्रीमियम पर सावधि बीमा करा लें।
स्वास्थ्य बीमा से अतिरिक्त कर बचत
स्वास्थ्य बीमा या मेडिकल इंश्योरेंस, जिसका लोकप्रिय शब्द मेडिक्लेम है, आपको 80-सी की एक लाख रुपये की सीमा से ऊपर अतिरिक्त कर बचत का मौका देता है। एस. के. अग्रवाल बताते हैं कि धारा ८०डी के तहत 15,000 रुपये तक के स्वास्थ्य बीमा पर आय कर से छूट मिलती है। साथ ही अपने बुजुर्ग माता-पिता का 20,000 रुपये तक स्वास्थ्य बीमा कराने पर उतनी छूट और मिल जाती है। यानी स्वास्थ्य बीमा के जरिये एक साल में कुल 35,000 रुपये तक की कर छूट पायी जा सकती है।
स्वास्थ्य बीमा कराते समय अक्सर यह प्रश्न उठता है कि परिवार के हर सदस्य के लिए अलग-अलग व्यक्तिगत पॉलिसी ली जाये या पूरे परिवार के लिए एक ही फेमिली फ्लोटर पॉलिसी ली जाये। यदि कर प्रावधानों के लिहाज से देखा जाये तो फेमिली फ्लोटर में कर की छूट केवल उस एक व्यक्ति को मिलती है, जो उस पॉलिसी का प्रपोजर है, यानी जिसने उस पॉलिसी के प्रीमियम का भुगतान किया है।
लेकिन व्यक्तिगत रूप से अलग-अलग पॉलिसी लेने पर हर व्यक्ति के लिए सालाना 15,000 रुपये तक की कर छूट का लाभ उठाया जा सकता है। मान लें कि किसी परिवार में अगर पति-पत्नी दोनों की कर-योग्य आमदनी हो तो फेमिली फ्लोटर में कर छूट केवल पति या पत्नी को मिल सकेगी। लेकिन अलग-अलग व्यक्तिगत पॉलिसी लेने पर पति को भी अपनी सालाना आय पर 15,000 रुपये तक की छूट मिलेगी और पत्नी को भी।
(निवेश मंथन, मार्च 2014)