राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक :
सोलहवीं लोक सभा के चुनावों की घोषणा हो चुकी है।
सरकार के पिछले दस सालों के कामकाज की समीक्षा का यह सही वक्त हो सकता है। यूपीए सरकार के वित्त मंत्री पी. चिदंबरम मौजूदा कार्यकाल का अंतिम बजट पेश कर चुके हैं। स्वाभाविक है कि लोक सभा में पेश अंतरिम बजट में उन्होंने यूपीए सरकार की उपलब्धियों और अपने प्रयासों की सफलता और सार्थकता के कसीदे पढऩे का कोई मौका गँवाना गवारा नहीं समझा।
अगस्त 2012 में दोबारा वित्त मंत्री बनने के बाद सरकारी और चालू खाते के घाटे के संकट से उबारने के लिए उन्होंने अपने प्रयासों की भरपूर चर्चा की। उन्होंने 2013-14 में सरकारी घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.6% पर और चालू खाते के घाटे को 45 बिलियन डॉलर तक अंकुश में रखने के लिए अपनी पीठ भी थपथपायी। राजकोषीय स्थिरता की उपलब्धि पर उन्होंने यह कहने में कोई संकोच नहीं किया कि घरेलू विशेषज्ञ भी सहमत होंगे कि यूपीए सरकार ने जो कहा वह कर दिखाया।
उन्होंने इस बजट भाषण में कहा कि यूपीए सरकारों ने भारत और भारतीयों को विनम्रतापूर्वक यह एहसास कराया है कि विकास अनिवार्य है और इसे ज्यादा-से-ज्यादा समावेशी होना चाहिए। उन्होंने यह भी दावा किया कि यूपीए शासन का विकास रिकॉर्ड अच्छा रहा है। इसके लिए उन्होंने कई उपलब्धियाँ गिनायी, जैसे दस साल पहले खाद्यान्न का उत्पादन 21.30 करोड़ टन था, जो अब 26.30 करोड़ टन है। 2004 में संस्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता 1,12,700 मेगावाट थी, जो आज 2,34,600 मेगावाट है। दस वर्ष पहले कोयले का उत्पादन प्रति वर्ष 36.10 करोड़ टन था, जो आज 55.40 करोड़ टन है (कोयला घोटाले के बावजूद)। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क परियोजना के अंतर्गत दस साल पहले 51,511 किलोमीटर लंबी सड़कें थीं, जो अब 3.90 लाख किलोमीटर लंबी सड़कें हो गयी हैं। दस साल पहले शिक्षा और स्वास्थ्य पर व्यय 10,154 करोड़ रुपये और 7,248 करोड़ रुपये था, जो आज 79,451 करोड़ रुपये और 36,322 करोड़ रुपये हो गया है।
भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार शंकर आचार्य यूपीए सरकार के निर्मम आलोचक हैं। वे भी कहते हैं कि यूपीए कार्यकाल में कुल मिला कर विकास दर औसत 7.5% रही, जो भारतीय इतिहास में सर्वाधिक है। इसी प्रकार औसत आय में तेज वृद्धि हुई, जो प्रति व्यक्ति आय से परिलक्षित होती है। महँगाई के समायोजन के बाद 7.5% की वास्तविक आय वृद्धि हुई है, जो इतिहास में सर्वाधिक वृद्धि है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली आबादी में ऐतिहासिक गिरावट दर्ज हुई है। 2004-05 में 37% लोग गरीबी रेखा के नीचे (तेंदुलकर कमेटी के अनुसार) बसर करते थे, जो 2011-12 में घट कर 22% रह गये।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्राध्यापक हिमांशु का कहना है कि ग्रामीण भारत में पिछले दस सालों में ऐतिहासिक सकारात्मक बदलाव हुए हैं। आजाद भारत के इतिहास में पहली बार गाँवों में आय और व्यय शहरी क्षेत्र की तुलना में ज्यादा बढ़ी है। ग्रामीण भारत में बढ़ी संपन्नता को कृषि उत्पादकता के अलावा अन्य संकेतकों, जैसे ट्रैक्टर, दोपहिया वाहनों की बिक्री आदि से भी आँका जा सकता है।
यूपीए काल में कृषि विकास दर औसत 3.5% के आसपास रही है। यूपीए-2 के शुरू के चार सालों में कृषि विकास दर 4% रही। चालू वर्ष में कृषि विकास दर 4.6% रहने का अनुमान है। कृषि क्षेत्र में 4% विकास दर का सपना कम-से-कम 50 साल पुराना है, जो अब हकीकत में दिख रहा है।
यूपीए-2 का कार्यकाल रोजगार अवसरों के हिसाब से निराशाजनक रहा है। लेकिन ग्रामीण भारत में कृषि मजदूरों की संख्या में 2004 की तुलना में 3.40 करोड़ की गिरावट दर्ज हुई है। आजाद भारत में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है। इससे प्रति व्यक्ति कृषि उत्पादकता की दर में सर्वकालिक उच्चतम वृद्धि हुई है।
इतनी उपलब्धियों के बावजूद जनता यूपीए सरकार से असंतुष्ट ही नहीं, बल्कि कहना चाहिए कि नाराज है। यूपीए-2 के कार्यकाल में बढ़ी हुई महँगाई (खासकर खाद्यानों की महँगाई) और घोटालों ने यूपीए सरकार की उपलब्धियों पर पानी फेर दिया है। कुशासन और नीतिगत निष्क्रियता से निवेश को गहरा धक्का लगा है। देश की विकास दर सबसे कमतर हो गयी और नगण्य रोजगार अवसरों ने कांग्रेस की उम्मीद राहुल गाँधी को बेअसर कर दिया है। यूपीए सरकार के पास गिनाने को तो बहुत कुछ है, लेकिन भुनाने के लिए कुछ भी नहीं है। यही वजह है कि आज कांग्रेस के हाथ को कोई साथ मिलता नहीं दिखायी दे रहा है।
(निवेश मंथन, मार्च 2014)