मूल्यांकन-आधारित निवेश
(वैल्यू इन्वेस्टिंग)
शेयरों में निवेश का मूलभूत नियम यह है कि निवेशक सस्ता खरीद कर महँगा बेचे।
वह निवेश रणनीति वैल्यू इन्वेस्टिंग कही जाती है जिसमें अपने अंतर्निहित मूल्य से कम कीमत पर उपलब्ध शेयरों का निवेश के लिए चयन किया जाता है। गौरतलब है कि कीमत (प्राइस) वह होती है जो निवेशक अदा करता है और मूल्य (वैल्यू) वह होता है जो निवेशक को प्राप्त होता है।
जब बाजार किसी कंपनी से जुड़ी किसी खराब खबर के ऊपर प्रतिक्रिया देता है तो ऐसे में उसके शेयर की कीमत में गिरावट आने लगती है और कई बार वह शेयर अपने वास्तविक अंतर्निहित मूल्य से काफी नीचे चला जाता है। किसी शेयर में आने वाली हर गिरावट खराब नहीं होती इसकी वजह से कई बार कोई शेयर काफी सस्ते में उपलब्ध होने लगता है। कुशल निवेशकों के लिए यह वैल्यू इन्वेस्टिंग का बेहतरीन मौका होता है।
लेकिन इस रणनीति की सबसे बड़ी समस्या है किसी शेयर के वास्तविक अंतर्निहित मूल्य का निर्धारण, क्योंकि किसी शेयर का कोई सही अंतर्निहित मूल्य नहीं होता। ऐसे में निवेशक वैल्यू इन्वेस्टिंग के लिए शेयर के चयन के अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। कुछ निवेशक इसके लिए शेयर का पीबी अनुपात देखते हैं, तो कुछ लोग पीई अनुपात का सहारा लेते हैं।
रुझान-विरुद्ध या धारा-विरुद्ध निवेश
(कंट्रा इन्वेस्टिंग)
कंट्रा इन्वेस्टिंग निवेश की वह रणनीति है जिसमें निवेशक बाकी लोगों से विपरीत राह अपनाने का जोखिम उठाता है। इस रणनीति के तहत ऐसे क्षेत्र या शेयर का चयन किया जाता है जिसके बारे में बाजार की आम राय अच्छी न हो, लेकिन उसमें भविष्य में बेहतर प्रदर्शन करने की क्षमता हो।
कई बार अर्थव्यवस्था का चक्र उस क्षेत्र के विरुद्ध काम कर रहा होता है, जिसके कारण उस क्षेत्र का प्रदर्शन खराब होता चला जाता है। लेकिन इस रणनीति को अपनाने वाले इस उम्मीद के तहत उस क्षेत्र पर दाँव लगाते हैं कि कुछ समय बाद अर्थव्यवस्था का चक्र उस क्षेत्र के पक्ष में काम करेगा। कंट्रा इन्वेस्टिंग रणनीति अपना कर तुरंत पैसे नहीं कमाये जा सकते। कई बार निवेशक को इसके लिए काफी लंबा इंतजार करना पड़ता है। कंट्रा इन्वेस्टिंग रणनीति अपनाने वाले में बाजार को यह बताने का साहस होता है कि उसका आकलन सही है और बाजार का गलत। इस रणनीति में यह जोखिम भी होता है कि उस क्षेत्र या शेयर से लगायी गयी उम्मीदें शायद कभी भी पूरी न हों। लेकिन यदि रणनीति कामयाब हुई तो निवेशक को काफी ऊँचे लाभ हासिल होते हैं।
रुझान-आधारित निवेश
(मोमेंटम इन्वेस्टिंग)
मोमेंटम इन्वेस्टिंग निवेश की वह रणनीति होती है जिसके तहत कोई निवेशक बाजार में जारी किसी रुझान (ट्रेंड) का अधिकतम लाभ उठाने की कोशिश करता है। यह रणनीति धारा के विपरीत न चल कर धारा की दिशा में चलने पर आधारित है। इसका प्रमुख आधार यह है कि कोई रुझान स्थापित हो जाने के बाद उसके उसी दिशा में आगे बढऩे की संभावना अधिक होती है। ऐसे में इसका फायदा लेने के लिए कारोबारी उस शेयर में खरीदारी सौदे करते हैं जो तेजी का रुझान दिखा रहे हों। साथ ही वे उन शेयरों में बिकवाली सौदे करते हैं जिनमें कमजोरी का रुझान दिख रहा हो। यह रणनीति लंबी अवधि के निवेशकों के बजाय कारोबारियों के लिए बेहतर होती है। आम तौर पर यह रणनीति छोटी अवधि के लिए अपनायी जाती है और रुझान के पलटते ही सौदे को निपटा दिया जाता है। यदि कारोबारी के अनुमान के अनुरूप रुझान जारी रहा तो यह रणनीति फायदेमंद साबित होती है। लेकिन यदि आकलन गलत हुआ और लाभ में आने से पहले ही यह रुझान पलट गया तो इसमें नुकसान उठाना पड़ सकता है। ऐसे में इसमें निहित जोखिम को ध्यान में रखते हुए ही इस रणनीति को अपनाना चाहिए।
सूचकांक-आधारित निवेश
(इंडेक्स इन्वेस्टिंग)
इंडेक्स इन्वेस्टिंग वह रणनीति होती है जिसके तहत निवेशक किसी खास सूचकांक के समतुल्य लाभ हासिल करने का लक्ष्य बनाते हैं। चूँकि किसी सूचकांक में विविध क्षेत्रों के शेयर शामिल होते हैं, ऐसे में इंडेक्स इन्वेस्टिंग की रणनीति अपनाने वाले निवेशक का पोर्टफोलिओ डाइवर्सिफाइड होता है।
चूँकि इंडेक्स इन्वेस्टिंग किसी खास सूचकांक के प्रदर्शन की बराबरी करने का लक्ष्य बनाता है, ऐसे में यह भी माना जाता है कि उस सूचकांक के प्रदर्शन को पीछे छोडऩा असंभव है। यह रणनीति लंबी अवधि के निवेशकों के लिए कारगर साबित होती है क्योंकि ऐतिहासिक तौर पर सिद्ध हो चुका है कि लंबी अवधि में सूचकांक बेहतरीन प्रदर्शन करते हैं। यह रणनीति उन निवेशकों के लिए भी मुफीद होती है जिनके पास इस काम के लिए अधिक समय नहीं होता। उस खास सूचकांक के समतुल्य रिटर्न हासिल करने के लिए निवेशक आम तौर पर उस सूचकांक पर आधारित विकल्पों जैसे ईटीएफ या इंडेक्स फंड का इस्तेमाल करते हैं। इंडेक्स फंड में पूँजी लगाने वाले निवेशक को प्रबंधन शुल्क के तौर पर सक्रिय फंडों के मुकाबले कम राशि अदा करनी होती है।
(निवेश मंथन, फरवरी 2014)