भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा है कि वह साल 2005 से पहले जारी किये गये सभी बैंक नोटों को 31 मार्च 2014 तक चलन से हटा लेगा।
आरबीआई द्वारा पिछले दिनों जारी की गयी एडवाइजरी के अनुसार 01 अप्रैल 2014 से इस तरह के नोटों को बदलने के लिए लोगों को बैंक जाना होगा। नोट बदलने की यह सुविधा आरबीआई की अगली सूचना तक जारी रहेगी।
आरबीआई ने स्पष्ट किया है कि साल 2005 से पहले जारी किये गये नोटों की पहचान करना बेहद आसान है क्योंकि इससे पहले जारी नोटों के पिछले भाग पर प्रिंटिंग का वर्ष अंकित नहीं है। इसके अलावा आरबीआई ने यह भी साफ किया है कि साल 2005 से पहले जारी किये गये नोट विधिक मुद्रा बने रहेंगे। इसका तात्पर्य यह हुआ कि बैंकों को सभी लोगों के नोट बदलने होंगे चाहे वे उनके ग्राहक हों या न हों। आरबीआई ने यह भी कहा है कि जो बैंकों के ग्राहक नहीं हैं, उनके लिए 01 जुलाई 2014 से यह जरूरी होगा कि वे 500 रुपये और 1000 रुपये के 10 से अधिक नोटों को बदलने के लिए अपना पहचान पत्र और आवासीय प्रमाण पत्र बैंक की उस शाखा में पेश करें जहाँ वे नोट बदलना चाहते हैं।
देश के केंद्रीय बैंक ने इस घोषणा की कोई वजह नहीं बतायी है। साथ ही इसने यह भी कहा है कि उसका यह कदम नया नहीं है और वह पुराने नोटों को लगातार चलन से बाहर करता रहता है। लेकिन जानकार आरबीआई की इस घोषणा के कई निहितार्थ देख रहे हैं। कर विशेषज्ञ सुभाष लखोटिया के अनुसार इन नियमों की वजह से देश में काले धन के लेन-देन पर निश्चित तौर पर असर पड़ेगा। वे कहते हैं, यदि कोई व्यक्ति अपने बैंक खाते में एक साल में 10 लाख रुपये से अधिक नकदी जमा करता है तो उसका बैंक यह सूचना आय कर विभाग को दे देता है। इसके अलावा किसी बैंक खाते में 50,000 रुपये से अधिक नकदी जमा करने की स्थिति में पैन संख्या देनी होती है। जिसके पास पैन संख्या नहीं है, उसे ऐसा करते समय फॉर्म 60 भरना होता है। यानी इन दो स्थितियों में भी यह सूचना आय कर विभाग तक जाती है। इसका मतलब यह है कि अधिक मात्रा में नकदी बैंक में जमा करने वाले आय कर विभाग की नजर में आ सकते हैं।
आरबीआई ने लोगों से संयम बनाये रखने और इस प्रक्रिया में सहयोग करने की अपील की है। लखोटिया के अनुसार लोगों के लिए बेहतर यही है कि बैंक जा कर वे इस तरह के नोट बदल लें और साल 2005 के बाद के नोट ले लें।
स्वर्ण आभूषण के बदले कर्ज के नियमों में बदलाव
भारतीय रिजर्व बैंक ने विभिन्न गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं द्वारा स्वर्ण आभूषण गिरवी रख कर दिये जाने वाले कर्ज से संबंधित नियमों में बदलाव की घोषणा की है। आरबीआई ने इससे संबंधित कर्ज-मूल्य अनुपात को मौजूदा 60% को तत्काल प्रभाव से बढ़ा कर 75% तक करने का निर्णय लिया है। इस बदलाव का मतलब यह हुआ कि यदि ग्राहक द्वारा गिरवी रखे जाने वाले आभूषण का मूल्य 100 रुपये तय होता है तो उसे अब 75 रुपये तक बतौर कर्ज मिल सकते हैं। आरबीआई ने स्पष्ट किया है कि कर्ज आवंटन के उद्देश्य से मूल्यांकन करते समय केवल सोने के अंतर्निहित मूल्य के आधार पर ही निर्णय लिया जाना चाहिए, अन्य किसी लागत को इसमें शामिल नहीं किया जाना चाहिए।
सोने की शुद्धता से संबंधित प्रमाण पत्र दिया जाना अब भी अनिवार्य होगा। अभी उन आभूषणों के बारे में रसीद पेश कर मालिकाना साबित कर पाना संभव नहीं होता जो लोगों को पिछली पीढिय़ों से हासिल होते हैं। ऐसे में आरबीआई ने स्पष्ट किया है कि गिरवी रखे जाने वाले आभूषणों का मालिकाना असली रसीदों के जरिये साबित करना जरूरी नहीं है। इसके लिए एक उचित दस्तावेज तैयार कराया जा सकता है।
सामूहिक निवेश योजनाओं में नकद निवेश पर रोक
सेबी ने सामूहिक निवेश योजनाओं में नकद निवेश पर रोक लगा दी है। इन योजनाओं के जरिये संभावित मनी लांड्रिंग गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए पूँजी बाजार नियामक ने इसमें निवेश के लिए बैंकिंग माध्यम के इस्तेमाल को अनिवार्य कर दिया है। सेबी ने कहा है कि सामूहिक निवेश योजनाओं में चेक या डिमांड ड्रॉफ्ट या किसी अन्य बैंकिंग माध्यम से पूँजी लगायी जानी चाहिए।
सेबी के इस कदम के बाद ऐसी योजनाओं के जरिये पूँजी जुटाने की गतिविधियों में पारदर्शिता बढ़ेगी, साथ ही इन योजनाओं के असली निवेशकों और इन योजनाओं के जरिये जुटायी गयी पूँजी के वास्तविक स्रोत की भी पहचान हो सकेगी। साथ ही सेबी ने कहा है कि इस तरह पूँजी जुटाने वाली किसी भी कंपनी को सामूहिक निवेश प्रबंधन कंपनी के तौर पर पंजीकरण कराना होगा। इसके अलावा इस कंपनी को केवाईसी (अपने ग्राहक को जानो) मानकों का भी अनुपालन करना होगा। साथ ही इसने यह भी स्पष्ट किया है कि सामूहिक निवेश योजनाओं में निवेश करने वालों को इसकी इकाइयाँ डीमैट रूप में दी जानी चाहिए। इसके लिए इन कंपनियों को किसी डिपॉजिटरी के साथ समझौता करना होगा।
अर्थव्यवस्था में वी-आकार बहाली की संभावना नहीं
इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च का अनुमान है कि साल 2014-15 में देश के जीडीपी विकास की दर बढ़ कर 5.6% रह सकती है। निवेश मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीआई) द्वारा परियोजनाओं को स्वीकृति दिये जाने के कारण निवेश में बढ़ोतरी और औद्योगिक व सेवा क्षेत्र की ग्रोथ की आंशिक बहाली की उम्मीद की वजह से इसने यह अनुमान दिया है।
इसके अनुसार, घरेलू और वाह्य मोर्चों पर मौजूदा माहौल को देखते हुए साल 2014-15 में विकास दर की यह बहाली क्रमिक रूप में होने की उम्मीद है, यानी वी-आकार की बहाली की संभावना नहीं के बराबर है। इसके अनुसार उम्मीद से बेहतर मानसून, निर्यात में वृद्धि, त्वरित नीतियों, परियोजनाओं की स्वीकृति, आरबीआई के कुशल मुद्रा प्रबंधन ने कारोबारी माहौल को सुधारा है।
इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के अनुसार चालू खाते के घाटे में जबरदस्त सुधार देखने को मिला है और इसके साल 2013-14 और साल 2014-15 में जीडीपी के 2.2% रहने की संभावना है। ऐसे में रुपये में मजबूती आने की उम्मीद है और मार्च 2015 के आखिर तक यह 56-57 रुपये प्रति डॉलर के स्तर के आसपास रह सकता है।
(निवेश मंथन, फरवरी 2014)