सुशांत शेखर :
पिछले कुछ समय से देश में कर का ढाँचा आसान बनाने और कर का बोझ घटाने को लेकर बहस छिड़ गयी है।
इस मसले पर देश के मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी में अंदरखाने बहस तेज हो गयी है। योग गुरु बाबा रामदेव द्वारा भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को सारे कर खत्म करके सिर्फ एक कर लगाने का सार्वजनिक तौर पर प्रस्ताव देने के बाद इस बहस में अर्थशास्त्री और उद्योग जगत के दिग्गज भी कूद पड़े हैं।
देश में कम से कम 32 प्रकार के प्रत्यक्ष और 50 प्रकार के अप्रत्यक्ष कर लागू हैं। कर के बोझ से आम आदमी से लेकर कंपनियाँ तक त्रस्त हैं। पेट्रोल, सीमेंट, मोटरसाइकिल जैसे दर्जनों ऐसे उत्पाद हैं, जिनमें कर का बोझ उनकी उत्पादन लागत से कहीं ज्यादा है। करों की भरमार और इसके जटिल ढाँचे की वजह से कर चोरी और भ्रष्टाचार बढ़ता है। ऐसे में कर ढाँचे के सरलीकरण की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है।
क्या है गडकरी-रामदेव प्रस्ताव
विभिन्न करों पर शोध करने वाली पुणे-संस्था अर्थक्रांति ने आयात कर को छोड़ कर अन्य सभी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों को खत्म करने का प्रस्ताव दिया है। इस राजस्व की भरपाई के लिए संस्था ने 2% का बैंकिंग ट्रांजैक्शन टैक्स (बीटीटी) लगाने का प्रस्ताव दिया है। यह कर बैंक में जमा धन पर लगाने का सुझाव दिया गया है। संस्था का दावा है कि 2% के बैंकिंग ट्रांजैक्शन टैक्स से सालाना 40 लाख करोड़ रुपये का राजस्व मिल सकता है। हालांकि कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इससे करीब 14 लाख करोड़ रुपये के राजस्व की ही वसूली हो सकती है, पर वह भी मौजूदा करीब 10 लाख करोड़ रुपये की कर वसूली से करीब 40% ज्यादा होगी।
अर्थक्रांति के बीटीटी लगाने के प्रस्ताव को भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी जोर-शोर से उठा रहे हैं और इसे आगामी लोक सभा चुनाव के लिए पार्टी के घोषणा पत्र और भाजपा के विजन 2025 में शामिल करने की कोशिशें कर रहे हैं। दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान बाबा रामदेव ने भी मोदी की उपस्थिति में इसी तरह का प्रस्ताव दिया। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी इस विषय पर विचार किया गया। अटकलें हैं कि भाजपा मध्य वर्ग को लुभाने के लिए इस प्रस्ताव को आगामी लोक सभा चुनाव के लिए पार्टी के घोषणा पत्र में शामिल कर सकती है। इसे देश के मध्य वर्ग के बीच आम आदमी पार्टी के बढ़ते असर की काट के रूप में देखा जा रहा है।
कितना व्यावहारिक है प्रस्ताव
भाजपा द्वारा बीटीटी के प्रस्ताव को औपचारिक तौर पर पेश करने से पहले ही इसकी व्यावहारिकता को लेकर बहस छिड़ गयी है। उद्योग और अर्थशास्त्रियों के एक तबके का मानना है कि इस सुझाव को हकीकत में ढाला जा सकता है। वहीं एक दूसरा तबका भी है जो इसे बिल्कुल भी व्यावहारिक नहीं मानता।
उद्योग संगठन फिक्की के अध्यक्ष सिद्धार्थ बिरला ने बीटीटी के प्रस्ताव को %आकांक्षापूर्णÓ बताते हुए कहा है कि अगर इन प्रस्तावित कदमों के जरिये करदाताओं का आधार बढ़ाते हुए राजस्व में वृद्धि हो सके और नियामक ढाँचे में अधिक पारदर्शिता आ सके तो हम इसका स्वागत करेंगे। पर बिरला इस प्रस्ताव को लागू करने से पहले राजस्व के नुकसान और बीटीटी से भरपाई का पूरा हिसाब-किताब लगाने की राय देते हैं। बिरला के मुताबिक देश को एक स्थिर, निष्पक्ष और उद्योग हितैषी कर ढाँचे की जरूरत है। एक अन्य उद्योग संगठन पीएचडीसीसीआई के अध्यक्ष शरद जयपुरिया भी मानते हैं कि निजी आय कर को वैकल्पिक संसाधनों से खत्म या कम किया जाना चाहिए। सरकार के पास अन्य संसाधनों से राजस्व जुटाने की क्षमता है, जिन्हें आजमाने के बारे में सोचा भी नहीं गया है।
भारत में केपीएमजी के सहप्रमुख (कर) गिरीश वनवारी के मुताबिक अगर बीटीटी प्रस्ताव को लागू किया जाता है तो इससे भ्रष्टाचार तो कम होगा ही साथ ही उद्योग और सरकारी एजेंसियों के बीच टकराव भी खत्म हो जाएगा। साथ ही खातों में गड़बड़ी, मनी लॉण्ड्रिंग और कर चोरी भी बंद हो जायेगी।
लेकिन बीटीटी के प्रस्ताव को अव्यावहारिक बताने वालों की भी कमी नहीं है। पूर्व वित्त मंत्री और भाजपा नेता यशवंत सिन्हा ने गडकरी के प्रस्ताव को अव्यावहारिक बताया है।
दरअसल एक समान बीटीटी लगाने की अपनी मुश्किलें भी हैं। मसलन कर के नजरिये से अमीर और गरीब में कोई फर्क नहीं रह जायेगा। कुछ हजार पाने वालों को भी लाखों कमाने वालों के बराबर दर से कर देना होगा। इसी तर्क को आगे बढ़ाते हुए उद्योग संगठन एसोचैम के महासचिव डी एस रावत इस प्रस्ताव को गरीब विरोधी और अव्यावहारिक बताते हैं। इसके अलावा बैंकिंग पर कर लेने का एक खतरा यह है कि लोग नकद में लेन-देन पर ज्यादा जोर दे सकते हैं। लेन-देन का एक बड़ा हिस्सा गैर-बैंकिंग माध्यम से होने पर कर वसूली कम होने का खतरा भी होगा।
सारे कर हटा कर सिर्फ 2% बैंकिंग ट्रांजैक्शन टैक्स लगाने से न केवल करदाताओं पर कर बोझ कम होगा, बल्कि देश के लोगों को महँगाई के मोर्चे पर भी बड़ी राहत मिलेगी। लेकिन कर ढाँचे में आमूल-चूल बदलाव के लिए मजबूत राजनैतिक इच्छा शक्ति की जरूरत है, जो मौजूदा हालात में नहीं नजर आती।
कर ढाँचे में सुधार के लिए उत्पाद एवं सेवा कर (जीएसटी) कई सालों से लटका है। जो भाजपा सारे कर खत्म करने की बात कर रही है, उसी के शासित राज्य जीएसटी की राह में सबसे ज्यादा अड़ंगे लगा रहे हैं। इसके साथ ही कर सुधार के लिए प्रत्यक्ष कर संहिता (डायरेक्ट टैक्स कोड) भी लंबे समय से अटकी हुई है। ऐसे में बीटीटी का प्रस्ताव कर ढाँचा सरल करने की गंभीर कोशिश कम और आगामी लोक सभा चुनावों को देखते हुए मध्य वर्ग के मतदाताओं को ललचाने का जरिया अधिक लगता है।
(निवेश मंथन, फरवरी 2014)