कर बचाने के लिए आप सीधे शेयर भी खरीद सकते हैं।
आयकर अधिनियम 1961 में एक नयी धारा 80सीसीजी जोड़ कर निवेशकों के लिए कारोबारी साल 2012-13 (आकलन वर्ष 2013-14) से एक नयी कर बचत योजना राजीव गाँधी इक्विटी सेविंग्स स्कीम (आरजीईएसएस) पेश की गयी थी। हालाँकि साल 2013-14 के बजट में इससे संबंधित कुछ नियमों को संशोधित कर दिया गया, ताकि और अधिक निवेशकों को आकर्षित किया जा सके। आरजीईएसएस के तहत निवेशक बीएसई-100 या सीएनएक्स-100 में शामिल शेयर या महारत्न, नवरत्न और मिनीरत्न सरकारी कंपनियों के शेयर खरीद सकते हैं। इसके अलावा वे नियत अवधि वाले आरजीईएसएस म्यूचुअल फंड या आरजीईएसएस ईटीएफ में भी निवेश कर सकते हैं।
इस योजना के तहत केवल वही नये निवेशक निवेश कर सकते हैं जिनकी सालाना आमदनी 12 लाख रुपये तक है। हालाँकि नया निवेशक किसे माना जायेगा, इस सवाल का जवाब सीधा नहीं है। अगर किसी निवेशक ने इससे पहले डीमैट खाते के जरिये या इसके बगैर म्यूचुअल फंड, बॉण्ड आदि में पैसे लगाये हों तो उसे इस योजना के तहत नया निवेशक माना जायेगा। इसका मतलब यह है कि वह आरजीईएसएस में निवेश कर सकता है और छूट का लाभ ले सकता है। लेकिन इस योजना के तहत छूट का फायदा वे निवेशक नहीं ले सकते जिन्होंने इससे पहले कभी डीमैट खाते के जरिये शेयरों या डेरिवेटिव बाजार में पैसे लगाये हों। साथ ही ईसॉप के जरिये शेयर हासिल करने वाले कर्मचारी भी इस योजना के लिए अर्ह नहीं होते।
आरजीईएसएस के तहत निवेशक हर साल अधिकतम 50,000 रुपये तक का निवेश कर सकते हैं और निवेश की गयी राशि के अधिकतम 50% पर छूट का दावा कर सकते हैं। मान लीजिए यदि कोई निवेशक आरजीईएसएस में 30,000 रुपये का निवेश करता है तो उसकी कर-योग्य आय में से 15,000 रुपये घटा दिये जाते हैं। आरजीईएसएस के तहत कर की छूट के लिए नये निवेशक लगातार तीन साल तक निवेश कर सकते हैं। अहम बात यह भी है कि इसके तहत मिलने वाली छूट धारा 80सी के तहत एक लाख रुपये की छूट से अलग है।
आरजीईएसएस के तहत तीन सालों का लॉक-इन होता है। लेकिन पहले साल के बाद के दो सालों को फ्लेक्सिबल लॉक-इन अवधि कहा गया है, जिसके दौरान इनको बेचा भी जा सकता है और गिरवी भी रखा जा सकता है। हालाँकि ऐसा करते हुए इस अवधि के प्रत्येक साल में 270 दिनों तक उसे निवेश की मूल राशि को बरकरार रखना होगा। इसका मतलब यह हुआ कि अगर निवेशक का निवेश एक साल के बाद बढ़ गया तब तो ऐसा करने में कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन यदि एक साल के बाद उसके निवेश की कीमत घट गयी तब तो चुपचाप बैठे रहने में ही भलाई है। मान लीजिए किसी निवेशक ने 40,000 रुपये का निवेश आरजीईएसएस में किया था। लेकिन एक साल के बाद यह घट कर 20,000 रुपये रह गया है।
ऐसे में उसके पास दो रास्ते हैं। पहला यह कि वह उसे हाथ न लगाये। दूसरा, यदि वह इस स्थिति में बिक्री करता है तो उसे कम से कम उतनी राशि की खरीद भी उस योजना के तहत करनी होगी। मोटे तौर पर तो ऐसा करने का कुछ लाभ नहीं दिखता, लेकिन यह जरूर है कि इस स्थिति में उसे खराब शेयरों से बाहर निकल कर अच्छे शेयरों में निवेश का मौका मिल जाता है। साथ ही यह जरूरी नहीं कि इसमें कोई निवेशक एकमुश्त 50,000 रुपये का निवेश करे। वह चाहे तो किस्तों में भी ऐसा कर सकता है। लेकिन ऐसे में उसे अपनी आखिरी किस्त की अदायगी की तारीख से ले कर अगले तीन सालों तक यह पूँजी निवेशित रखनी होती है।
आरजीईएसएस में निवेश करने वालों को फार्म ए और फार्म बी के बारे में भी ध्यान रखना चाहिए। फार्म ए वह फार्म होता है जो आरजीईएसएस में निवेश करते समय निवेशक द्वारा डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट (डीपी) के पास जमा किया जाता है। इस फार्म के जरिये निवेशक यह प्रमाणित करता है कि वह पहली बार निवेश कर रहा है और आरजीईएसएस में निवेश की अर्हता रखता है। आरजीईएसएस में निवेश के बाद अगर निवेशक ने 50,000 रुपये की सीमा के भीतर ही खरीदारी की है लेकिन इसके बावजूद वह चाहता है कि उसके निवेश को आरजीईएसएस के तहत न माना जाये, तो उसे फार्म बी भर कर डीपी के पास जमा करना होता है।
जो निवेशक म्यूचुअल फंडों के जरिये आरजीईएसएस में निवेश करना चाहते हैं वे आरजीईएसएस-आधारित म्यूचुअल फंड योजनाओं में पैसे लगा सकते हैं। इस समय इस तरह की तकरीबन 20 योजनाएँ निवेशकों के लिए उपलब्ध हैं। सवाल यह है कि इनमें से अपने लिए बेहतर विकल्प किस तरह चुनना चाहिए। भले ही ऐसे निवेशक के पास 20 विकल्प हैं लेकिन इनमें से अधिकांश एक ही तरह के हैं। इनमें से अधिकांश सेंसेक्स या निफ्टी इंडेक्स फंड हैं।
ऐसी स्थिति में चुनाव करते समय निवेशक को इन फंडों के ट्रैकिंग एरर (यह फंड अपने सूचकांक के प्रदर्शन को कितने बेहतर तरीके से दोहरा पाता है) और इनके खर्च (एक्सपेंस) पर ध्यान देना चाहिए। इनके अलावा निफ्टी जूनियर इंडेक्स पर आधारित योजनाएँ भी उपलब्ध है जो निफ्टी में शामिल 50 कंपनियों से इतर निवेश का विकल्प देता है। इसके अलावा मोतीलाल ओसवाल एम50 भी एक विकल्प है।
राजीव गाँधी इक्विटी सेविंग्स स्कीम की शुरुआत के समय कहा गया था कि इस योजना का उद्देश्य देश में शेयरों में निवेश की संस्कृति को बढ़ावा देना है। सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर जितेंद्र सोलंकी कहते हैं, ‘आरजीईएसएस को शेयर बाजार में खुदरा निवेशकों की सहभागिता बढ़ाने के लक्ष्य के साथ बाजार में उतारा गया था।' लेकिन इससे जुड़े आँकड़े इस बात की तस्दीक नहीं करते कि यह योजना सही दिशा में आगे बढ़ रही है।
आखिर यह योजना कुछ खास सफल क्यों न हो सकी? फंड्स इंडिया डॉट कॉम के संस्थापक-निदेशक श्रीकांत मीनाक्षी कहते हैं, ‘राजीव गाँधी इक्विटी सेविंग्स स्कीम सही तरीके से रचा गया उत्पाद नहीं है और इसमें कई कमियाँ हैं। इसमें काफी प्रयत्न करना होता है और जटिलताओं का सामना करना पड़ता है, जबकि कर-बचत के मोर्चे पर काफी कम फायदा हासिल होता है।' दरअसल कर बचाने के लिए जो लोग ईएलएसएस का इस्तेमाल करते हैं, वे हर साल इस योजना में एक निश्चित राशि लगाते हैं। उनके लिए ईएलएसएस कर बचाने का एक नियमित साधन बन चुका है। लेकिन आरजीईएसएस में उन्हें इस तरह की सहूलियत नहीं मिल सकती क्योंकि इसमें अधिकतम तीन सालों तक ही निवेश किया जा सकता है।
इसके अलावा भारत में वित्तीय उत्पादों की बिक्री का रुझान यह बताता है कि यहाँ वही उत्पाद अधिक बिकते हैं जिनको बेचने के लिए ब्रोकर प्रयास करते हैं। शेयर ब्रोकर को केवल खरीद या बिक्री के समय ही कमीशन मिलता है, ऐसे में ब्रोकरों ने निवेशकों को इसके लिए आकर्षित करने का कोई खास प्रयास नहीं किया है।
दूसरी ओर इस योजना के तहत म्यूचुअल फंडों में निवेश अपेक्षाकृत अधिक हुआ है क्योंकि इसमें जब तक निवेश बना रहता है, तब तक म्यूचुअल फंडों को एक निश्चित राशि मिलती रहती है। शायद इसीलिए म्यूचुअल फंडों की ओर से आरजीईएसएस के लिए अधिक प्रयास किया गया है। हालाँकि म्यूचुअल फंड कंपनियों का भी यह मानना है कि इस योजना के प्रति निवेशकों को आकर्षित करने के लिए काफी समय और प्रयास की जरूरत पड़ती है।
इसके अलावा जानकारों का यह भी मानना है कि आरजीईएसएस में निवेश के जोखिम को देखते हुए इसमें कोई खास कर बचत नहीं होती। सोलंकी कहते हैं, ‘इसके प्रति निवेशकों के आकर्षित न होने का और बड़ा कारण है इसमें निवेशकों को मिलने वाला कर-लाभ। आरजीईएसएस में निवेश करने वालों की कर-योग्य आय में से अधिकतम 25,000 रुपये की कटौती की जाती है। आय कर के सबसे ऊँचे दायरे में आने वाले व्यक्ति को यह (मामूली) छूट शेयरों से संबंधित इस योजना में निवेश के लिए प्रोत्साहित नहीं करती। इसके अतिरिक्त आरजीईएसएस के प्रति निवेशकों का आकर्षण न होने की वजह इसकी भ्रमपूर्ण संरचना भी रही है जिसे निवेशक समझने में असफल रहे हैं।' श्रीकांत कहते हैं, ‘आरजीईएसएस के प्रति लोगों का आकर्षण कम होने की मूल वजह इसके साथ जुड़ी हुई सीमाएँ हैं। एक तो यह केवल पहली बार शेयरों में निवेश कर रहे लोगों के लिए है, दूसरे, इसमें निवेश पर मिलने वाली कटौती काफी कम है और तीसरे, यह केवल उन्हीं लोगों के लिए है जो सालाना 12 लाख रुपये से कम कमाते हैं।'
जानकारों के अनुसार आरजीईएसएस निवेश के लिहाज से एक बेहतरीन विकल्प नहीं है क्योंकि इसमें निवेश के जितने विकल्प उपलब्ध हैं वे सभी इक्विटी पर आधारित हैं। इसके तहत न तो किसी बैलेंस्ड फंड का विकल्प है और न ही इसमें किन्हीं निश्चित-आय उत्पादों को शामिल किया गया है।
इसके अलावा आरजीईएसएस की एक बड़ी कमी यह भी है कि शेयर बाजार की ओर केंद्रित होने के बावजूद यह लंबी अवधि के निवेश के लिए प्रेरित नहीं करता। सोलंकी के अनुसार, ‘आरजीईएसएस में एक साल बाद बिक्री का जो विकल्प दिया गया है, वह युवा निवेशकों को आकर्षित कर सकता है। इसके कारण वे लंबी अवधि के निवेश से चूक जायेंगे। इसके अतिरिक्त जहाँ ईएलएसएस का दायरा काफी बड़ा है, वहीं दूसरी ओर आरजीईएसएस का दायरा सीमित कर दिया गया है।'
तो सवाल यह है कि क्या कर बचाने के लिए आरजीईएसएस का इस्तेमाल किया जाना चाहिए? इसके जवाब में सोलंकी कहते हैं, ‘इस योजना की संरचना को देखते हुए निवेशक अतिरिक्त कर बचत हासिल करने के लिए इस पर विचार कर सकते हैं, लेकिन केवल तभी जब वे लंबी अवधि के निवेश के इच्छुक हों। खुदरा निवेशकों के लिए शेयरों में सीधे निवेश के बजाय म्यूचुअल फंड एक आदर्श विकल्प है क्योंकि शेयरों में निवेश के लिए अधिक कौशल की आवश्यकता होती है।'
चूँकि इसमें केवल इक्विटी में निवेश किया जाता है, इसलिए इसमें काफी जोखिम है। लेकिन अच्छी बात यह है कि इस जोखिम को समय के जरिये कम किया जा सकता है। निवेशक जितनी लंबी अवधि के लिए इसमें निवेश करेंगे उनका जोखिम उतना ही कम होता जायेगा।
कम जोखिम उठाने के इच्छुक निवेशक निफ्टी ट्रैकर फंडों में निवेश कर सकते हैं, जबकि अधिक जोखिम ले सकने वाले निवेशक निफ्टी जूनियर पर आधारित फंडों में अपना पैसा लगा सकते हैं।
राजीव गाँधी इक्विटी सेविंग्स स्कीम सही तरीके से रचा गया उत्पाद नहीं है और इसमें कई कमियाँ हैं। इसमें काफी प्रयत्न करना होता है और जटिलताओं का सामना करना पड़ता है, जबकि कर-बचत के मोर्चे पर काफी कम फायदा हासिल होता है।
श्रीकांत मीनाक्षी, संस्थापक-निदेशक, फंड्स इंडिया डॉट कॉम
आरजीईएसएस में एक साल बाद बिक्री का जो विकल्प दिया गया है, वह युवा निवेशकों को आकर्षित कर सकता है। इसके कारण वे लंबी अवधि के निवेश से चूक जायेंगे। इसके अतिरिक्त ईएलएसएस के मुकाबले आरजीईएसएस का दायरा काफी छोटा है।
जितेंद्र सोलंकी, सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर
(निवेश मंथन, फरवरी 2014)