यूटीआई म्यूचुअल फंड के ईवीपी संजय डोंगरे का मानना है कि आगामी लोक सभा चुनाव से पहले भारतीय शेयर बाजार एक दायरे में रह सकता है।
उनके अनुसार यदि इन चुनावों के बाद स्थिर सरकार बनती है तो भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी की उम्मीद से भारतीय बाजारों में उछाल आ सकती है। पेश हैं निवेश मंथन के साथ उनकी बातचीत के प्रमुख अंश।
कंपनियों के अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के अब तक के वित्तीय परिणामों को देख कर आप इन्हें कैसा मान रहे हैं?
अक्टूबर-दिसंबर 2013 के परिणाम पिछली छह तिमाहियों के परिणामों से बेहतर रहने की उम्मीद है। सेंसेक्स कंपनियों की आमदनी में वृद्धि दो अंकों में रहने वाली है। रुपये की गिरावट और कमोडिटी की स्थिर कीमतों की वजह से इन कंपनियों का एबिटा मार्जिन बेहतर रहने की संभावना है। बीती तिमाही के दौरान सेंसेक्स कंपनियों के मुनाफे में 12-14% की वृद्धि होने की उम्मीद है। जीडीपी विकास की दर में सुधार होने और रुपये में स्थिरता की वजह से साल 2014-15 में कंपनियों के मुनाफे में दो अंकों में बढ़ोतरी हो सकती है।
अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के नतीजे यह संकेत दे रहे हैं कि अमेरिका और यूरोप दोनों ही क्षेत्रों में माँग में सुधार आ रहा है। कंपनियों के प्रबंधन की टिप्पणी से यह भरोसा बढ़ रहा है कि साल 2013-14 के मुकाबले साल 2014-15 में बेहतर वृद्धि दर दर्ज की जा सकती है। निजी क्षेत्र के बैंकों के परिणामों से पता चल रहा है कि शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) में स्थिरता आयी है लेकिन परिसंपत्तियों की गुणवत्ता के मोर्चे पर चिंता बढ़ी है।
महँगाई और ब्याज दर के बारे में आपकी क्या राय है? ब्याज दरों से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों पर इसका क्या असर पड़ सकता है?
सीपीआई और डब्लूपीआई पर आधारित महँगाई दर कैलेंडर साल 2014 की पहली तिमाही में अपने ऊपरी स्तरों को छू सकती है और उसके बाद साल के बाकी महीनों में इसमें गिरावट आने की उम्मीद है। फिर भी महँगाई दर आरबीआई के इच्छित स्तर से ऊपर रहने की ही संभावना है। ऐसे में हो सकता है कि आरबीआई साल 2014 में ब्याज दरों में कटौती न करे। साल की दूसरी छमाही में महँगाई दर में गिरावट और जीडीपी विकास की दर में सुधार की वजह से ब्याज दरों से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों के पुनर्मूल्यांकन (री-रेटिंग) की जरूरत पड़ सकती है।
फेडरल रिजर्व की टैपरिंग का भारतीय बाजार पर कैसा असर पड़ सकता है?
टैपरिंग से हमारे बाजार पर असर पडऩे की संभावना नहीं है क्योंकि आरबीआई ने पहले ही एफसीएनआर (बी) जमाओं के जरिये 32 अरब डॉलर से अधिक जुटा लिये हैं और अपना भंडार मजबूत कर लिया है। रुपये में गिरावट के कारण निर्यात के मोर्चे पर तीव्र वृद्धि और आयात में कमतर वृद्धि (सोने के आयात पर लगाये गये प्रतिबंधों के कारण) की वजह से चालू खाते का घाटा (सीएडी) घट कर 50 अरब डॉलर रहने की उम्मीद है।
साल 2014 में भारतीय बाजार के संभावित प्रदर्शन के बारे में आपकी क्या राय है?
सेंसेक्स फिलहाल 21000 से ऊपर है और यह साल 2014-15 की अनुमानित आय के 14 गुने पर कारोबार कर रहा है। ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह अपने औसत से कम पर चल रहा है। मध्यम से लंबी अवधि के लिहाज से ये मूल्यांकन आकर्षक हैं।
हालाँकि मई 2014 के आसपास होने वाले आम चुनाव से पहले भारतीय बाजार के एक दायरे में रहने की संभावना है। अगर चुनाव के बाद स्थिर सरकार बनती है तो अर्थव्यवस्था की तीव्र विकास दर की उम्मीद में भारतीय बाजार में तेजी आ सकती है।
आने वाले समय के लिए आप किन क्षेत्रों पर दाँव लगा रहे हैं?
चूँकि अगले नौ महीनों में निवेश चक्र फिर से तेज होने की उम्मीद नहीं है। ऐसे में बाजार उन्हीं क्षेत्रों को अधिक भाव देगा, जहाँ आय में उच्चतर वृद्धि के संकेत हैं। सॉफ्टवेयर, फार्मा, ऑटो और टेलीकॉम में ऐसी वृद्धि देखी जा सकती है।
साल की दूसरी छमाही में महँगाई दर में गिरावट और जीडीपी विकास की दर में सुधार की वजह से चक्रीय क्षेत्रों का पुनर्मूल्यांकन हो सकता है। ऐसे में 12-18 महीनों के नजरिये से बैंकिंग और कैपिटल गुड्स क्षेत्र आकर्षक लग रहे हैं।
साल 2014 में खुदरा निवेशकों को किस तरह की रणनीति अपनानी चाहिए?
अन्य परिसंपत्तियों के मुकाबले शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव अधिक होता है। इस उतार-चढ़ाव से निबटने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि निवेशक सुनियोजित निवेश योजना (सिप) के जरिये निवेश करे। मूल्यांकन आकर्षक हैं और विकास दर अपने निचले स्तरों को पहले ही छू चुकी है, ऐसे में मध्यम अवधि में शेयर बाजार अच्छी बढ़त दर्ज कर सकता है। ऐसी स्थिति में निवेशक सिप में निवेश के माध्यम से शानदार लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
(निवेश मंथन, फरवरी 2014)