वाम्सी कृष्णा, सीनियर एनालिस्ट, जेआरजी सिक्योरिटीज :
जिस पीली धातु ने सदा से लोगों को आकर्षित किया है उसकी चाल सबसे पहले लोगों की तात्कालिक धारणा से ही तय होती है।
माँग-आपूर्ति के कारक बाद में उसकी चाल को दिशा देते हैं। इसके अलावा यह भी माना जाता है कि सोना और शेयर बाजार हमेशा विपरीत दिशा में चलते हैं। इन दोनों लिहाजों से बीता साल भी कोई अपवाद नहीं था।
अमेरिकी शेयर बाजार के प्रमुख सूचकांक अपने सर्वकालिक उच्चतम स्तरों पर हैं और सोना पिछले 13 सालों में पहली बार अपने निवेशकों को घाटे का मुँह दिखा रहा है। डॉव जोंस इस साल अब तक लगभग 25% चढ़ चुका है, जबकि डॉलर मूल्य में सोना इस साल अब तक तकरीबन 25% फिसल चुका है।
जनवरी 2013 में जो सोना अंतरराष्ट्रीय बाजार में 1,670 डॉलर/औंस के आसपास था और मई में इसने 1,179 डॉलर/औंस का निचला स्तर बनाया। अभी यह 1,210-1,220 डॉलर/औंस के स्तर के आसपास है। दूसरी ओर यदि घरेलू बाजार में मई 2013 में इसकी मासिक औसत कीमत 26,592 रुपये/10 ग्राम तक फिसल गयी थी। लेकिन अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में इसकी मासिक औसत कीमत 30,000 रुपये/10 ग्राम से ऊपर ही रही। एंजेल कमोडिटी ब्रोकिंग के एसोसिएट डायरेक्टर- कमोडिटीज ऐंड करेंसीज नवीन माथुर के अनुसार, ‘यदि रुपये में कमजोरी नहीं रही होती, तो घरेलू बाजार में भी सोने की कीमत में वैसी कमजोरी दिखती, जैसी कमजोरी डॉलर मूल्य में दर्ज की गयी थी।' जेआरजी वेल्थ मैनेजमेंट के सीनियर एनालिस्ट वाम्सी कृष्णा कहते हैं, ‘रुपये की गिरावट, आयात शुल्क में बढ़ोतरी और सोने की माँग थामने के कृत्रिम उपायों की वजह से घरेलू बाजार में इसकी कीमत 28,500 रुपये/10 ग्राम के आसपास है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में जिस तरह की गिरावट दर्ज की गयी, उस लिहाज से घरेलू बाजार में सोने की कीमत 25,000 रुपये/10 ग्राम के आसपास होनी चाहिए थी।'
क्यों पड़ी सोने की चमक फीकी
आखिर सोने की कीमत में बीते साल आयी इस बड़ी गिरावट की वजह क्या थी? माथुर के अनुसार, ‘टैपरिंग के भय ने सुरक्षित निवेश विकल्प (सेफ-हैवेन) के तौर पर सोने की स्थिति को कमजोर किया।' इसके अलावा वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्थाओं के प्रदर्शन में सुधार की बढ़ती उम्मीद की वजह से भी सोने की कमजोरी बढ़ती नजर आयी। साथ ही शेयर बाजारों की तेजी के कारण भी सोने पर दबाव बढ़ता दिखा। इस दौरान ईटीएफ माँग में गिरावट भी वैश्विक स्वर्ण बाजार के लिए एक प्रमुख चिंता रही। दुनिया के सबसे बड़े गोल्ड-ईटीएफ एसपीडीआर गोल्ड ट्रस्ट की ओर से साल 2013 में सोने की बिक्री लगातार जारी रही। विभिन्न केंद्रीय बैंकों की खरीदारी धीमी पडऩे का भी इस पर विपरीत असर पड़ा। सोने के प्रमुख उपभोक्ता भारत की माँग भी इस दौरान कम रही, जिससे सोने की कीमत पर दबाव रहा।
घरेलू मोर्चे की बात करें तो बढ़ते चालू खाते के घाटे (सीएडी) को थामने के लिए भारत सरकार ने सोने के आयात पर लगाम लगाने की कोशिश की। देश के कुल आयात में सोने की हिस्सेदारी कम करने के लिए सरकार ने इस पर आयात शुल्क को बढ़ा कर 10% कर दिया। इसका तुरंत असर देखने को मिला है। कैलेंडर साल 2013 में सोने का आयात 700 टन से कुछ अधिक रहने की उम्मीद है, जो साल 2012 के 865 टन के आयात से लगभग 19% कम है। माथुर कहते हैं, ‘स्वर्ण-आयात में गिरावट, त्यौहारों में घटी माँग, आपूर्ति की कड़ी स्थिति और निवेशकों की कमजोर होती धारणा- इन सभी कारकों ने घरेलू बाजार में सोने के प्रति नकारात्मक माहौल बनाया।'
कैसा रहेगा साल 2014
लेकिन अब सवाल यह है कि साल 2014 में इसका आउटलुक कैसा रहने की संभावना है? इस साल सोने की चाल इस पर निर्भर करेगी कि केंद्रीय बैंकों का सोने की खरीदारी के प्रति नजरिया कैसा रहता है। इसके अलावा चीन और भारत की माँग के रुझान का भी इस पर असर पड़ेगा। अमेरिकी अर्थव्यवस्था की विकास दर में सुधार से भी सोने पर दबाव बनता दिख सकता है। फेडरल रिजर्व द्वारा टैपरिंग का आरंभ इस साल की पहली छमाही में सोने की कीमत को दबाव में रख सकता है। कृष्णा के अनुसार, ‘साल 2014 की पहली छमाही में मोटे तौर पर सोने में कमजोरी रह सकती है। ऐसे में यह 1,100-1,200 डॉलर/औंस के आसपास रह सकता है। लेकिन इसके लंबे समय तक इन स्तरों पर टिकने की संभावना नहीं है। साल की दूसरी छमाही में जमने की कोशिश (कंसोलिडेशन) ने के बाद इसमें वापस-उछाल आ सकती है।‘ माथुर के अनुसार, ‘साल 2014 की दूसरी छमाही में हम सोने की कीमत में स्थिरता आने की उम्मीद कर रहे हैं क्योंकि तब तक टैपरिंग को बाजार काफी हद तक भावों में शामिल कर चुका होगा।'
घरेलू मोर्चे पर नजरें इस पर टिकी रहेंगी कि सरकार सोने के आयात को थामने के लिए और कदम उठाती है या नहीं। माथुर कहते हैं, ‘सोने के आयात के प्रति सरकार के कड़े उपाय जारी रहने की संभावना है। इसके अलावा यह सुनिश्चित करने के लिए और उपाय किये जा सकते हैं कि चालू खाते का घाटा न बढ़े।' डॉलर के मुकाबले रुपये की चाल की भी घरेलू बाजार में सोने की दिशा तय करने में भूमिका होगी। कृष्णा कहते हैं, ‘डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी या मजबूती का सोने की चाल पर कुछ असर अवश्य पड़ सकता है, लेकिन इसके मुकाबले अंतरराष्ट्रीय बाजार के रुझानों की भूमिका अधिक निर्णायक रहने की संभावना है।'
यद्यपि सोने से संबंधित बुनियादी कारक अभी कमजोर लग रहे हैं, लेकिन इसकी माँग से जुड़े पारंपरिक पहलुओं, खास तौर पर भारत में, को देखते हुए लंबी अवधि में सोने की माँग बनी रहने की संभावना है।
- नवीन माथुर एसोसिएट डायरेक्टर, एंजेल ब्रोकिंग
इस साल सोना नीचे की ओर 25,500-26,000 रुपये/10 ग्राम तक फिसल सकता है, लेकिन इसके ऊपर जाने की संभावना अधिक है। इस साल यह ऊपर की ओर 32,000-33,000 रुपये/10 ग्राम तक जा सकता है।
(निवेश मंथन, जनवरी 2014)