राजीव रंजन झा :
अक्सर मैं बोलता-लिखता रहता हूँ कि शेयर बाजार आम राय पर नहीं चला करता।
लेकिन शेयर मंथन के ताजा सर्वेक्षण में अगर मुझे कोई आम राय दिख रही है, तो वह यही है कि लोक सभा चुनाव में भाजपा जीतने वाली है और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने वाले हैं। यह आम राय मुझे बता रही है कि शेयर बाजार इस समय एक बड़ा जोखिम उठा रहा है। हालाँकि हमारा सर्वेक्षण कह रहा है कि बाजार के ज्यादातर जानकार भाजपा के न जीत पाने की स्थिति में भी बाजार में बड़ी गिरावट की आशंका नहीं देख रहे। लेकिन बाजार ने जैसी इकतरफा उम्मीद बाँध ली हैं, उसके पूरा न हो पाने की स्थिति में बाजार को लगने वाला झटका छोटा-मोटा तो होगा नहीं।
यह खतरा इसलिए पैदा होता है कि हाल के महीनों में बाजार में जो उछाल आयी है, उसमें एक बड़ा योगदान इसी राजनीतिक बदलाव की उम्मीद का है। यानी बाजार ने भाजपा के जीतने और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना को पहले ही काफी हद तक भुना लिया है। ऐसे में अगर यह उम्मीद पूरी हो गयी, तो ऊपर चढऩे के लिए ज्यादा गुंजाइश बाकी नहीं होगी। लेकिन अगर उम्मीद पूरी नहीं हो पायी तो ऊँचाई से लगने वाली चोट ज्यादा गहरी होने की आशंका जरूर बनती है।
हाल में पाँच राज्यों में जो विधान सभा चुनाव हुए, उनमें से सबसे ज्यादा चर्चा अब दिल्ली विधान सभा चुनावों के नतीजों की हो रही है। यहाँ आम आदमी पार्टी (आप) को मिली अप्रत्याशित सफलता ने न केवल राजनीतिक विश्लेषकों को, बल्कि बाजार विश्लेषकों को भी सोचने के लिए मजबूर किया है कि कहीं दिल्ली विधान सभा जैसा ही कुछ लोक सभा चुनावों में भी तो नहीं होगा।
लेकिन दिल्ली विधान सभा चुनाव में मतों के विभाजन में एक दिलचस्प रुझान दिखा है। ‘आप’ ने जो 29.7% मत हासिल किये, उनमें आधे से ज्यादा मत कांग्रेस को हुए नुकसान वाले थे। कांग्रेस को इस बार 24.7% मत मिले, जबकि पिछली बार 40.3% मत मिले थे, यानी नुकसान 15.6% का रहा। इसकी तुलना में भाजपा के खाते से ‘आप’ ने केवल 3% मत झटके, क्योंकि उसका मत प्रतिशत 36.3% से घट कर 33.3% पर आ गया। लेकिन नुकसान केवल इन दोनों का नहीं था। पाँच साल पहले दिल्ली में बसपा ने करीब 14% मत जुटाये थे, लेकिन इस बार उसके मतों की संख्या महज 5.4% पर सीमित रह गयी। यानी ‘आप’ ने अपने 8.6% मत बसपा से छीने।
इसका मतलब यह है कि ‘आप’ की वजह से ज्यादा नुकसान कांग्रेस और तीसरी शक्तियों को होने वाला है। इसका कारण मुझे यह लगता है कि ‘आप’ की ओर वे ही लोग ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं, जो कांग्रेस से नाराज हैं मगर भाजपा के साथ जाना नहीं चाहते।
साथ ही अन्य दलों से नाराज या निराश लोग भी विकल्प की तलाश में ‘आप’ का दामन थाम सकते हैं। दिल्ली और अन्य राज्यों के विधान सभा चुनावों के नतीजों को भी देखें तो तस्वीर यही उभरती है कि कांग्रेस के विरुद्ध इस समय देशव्यापी नाराजगी है। इसलिए आगामी लोक सभा चुनावों में उसे भारी नुकसान होने की भविष्यवाणी करने के लिए ज्योतिषी होने की जरूरत नहीं है। साथ ही यह भी दिख रहा है कि पिछले लोक सभा चुनाव की तुलना में भाजपा को बढ़त मिलने वाली है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या यह बढ़त भाजपा को सत्ता तक पहुँचा सकेगी? बाजार इस बात पर भरोसा करता दिख रहा है। लेकिन जमीनी हकीकत अब तक इस बात की पुष्टि नहीं कर रही है। हिंदी-भाषी राज्यों में भाजपा को भले ही बढ़त मिले, लेकिन वह अपनी पारंपरिक भौगोलिक सीमाओं को पार करने में कितनी सफल होगी इस बारे में अभी केवल अटकलें ही लगायी जा सकती हैं।
संभव है कि जो मोदी लहर बनती हुई दिख रही थी, वह ‘आप’ के करिश्मे से टकरा कर थम जाये। संभव है कि कांग्रेस से नाराजगी के चलते जो मतदाता पहले इकतरफा ढंग से भाजपा के साथ जा सकते थे, उनमें से एक बड़ा हिस्सा अब ‘आप’ की ओर आकर्षित हो जाये। लेकिन हमें दिल्ली में हुए उन चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों को भी नहीं भूलना चाहिए, जिनमें मुख्यमंत्री पद के लिए अरविंद केजरीवाल को और प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी को सबसे लोकप्रिय बताया गया था। वही युवा जो दिल्ली विधान सभा में केजरीवाल को कमान सौंपना चाहता था, पूरे देश की बात आने पर नरेंद्र मोदी के साथ था।
हालाँकि दिल्ली के महानगर में किये गये प्रयोग को पूरे देश में इतने कम समय में दोहरा पाना किसी के लिए भी बड़ा मुश्किल लगता है। विभिन्न राज्यों के चुनावी समीकरण दिल्ली से काफी अलग भी हैं। इस कारण आज किसी के लिए भी दावे के साथ यह कह पाना बड़ा मुश्किल होगा कि लोक सभा चुनाव में ‘आप’ का प्रदर्शन कैसा रहेगा और वह किसे ज्यादा नुकसान पहुँचायेगी - कांग्रेस को, भाजपा को या तीसरी शक्तियों को।
दिल्ली के आँकड़े तो बता रहे हैं कि वह कांग्रेस और तीसरी शक्तियों को ज्यादा नुकसान पहुँचा सकती है, जबकि भाजपा का मतदाता उसका साथ छोडऩे के लिए तैयार नहीं है। लोक सभा चुनाव में तो भाजपा के मतदाता को उससे दूर खींच पाना और भी मुश्किल होगा, क्योंकि वह केंद्र में सरकार बनाने की प्रबल दावेदार होगी।
ऐसे में संभव है कि लोक सभा के चुनाव भाजपा बनाम अन्य की सूरत ले लें, जिसमें ‘आप’ तीसरी शक्तियों के बीच ही कई चेहरों में से एक चेहरा बन कर जाये। यह परोक्ष रूप में भाजपा को फायदा भी पहुँचा सकता है। भाजपा का नफा-नुकसान इस बात पर निर्भर करेगा कि ‘आप’ कांग्रेस से छिटक कर भाजपा के पास जा सकने वाले वोट ज्यादा बटोरती है, या तीसरी शक्तियों के वोट ज्यादा छीनती है।
इस पहेली का आज कोई स्पष्ट जवाब दे पाना मुश्किल है, हम केवल अपने-अपने अनुमान लगा सकते हैं। लेकिन इतना तय है कि लोक सभा चुनाव के नतीजे आज पहले से कहीं ज्यादा अनिश्चित लग रहे हैं। क्या बाजार अब इस अनिश्चितता को भाँप कर अपने उत्साह को कुछ हल्का करेगा? ऐसा करना उसकी सेहत और स्थिरता के लिए बेहतर होगा, क्योंकि अगर बाजार चुनावों से ठीक पहले अपने शीर्ष पर रहा तो उसके लिए चुनावी नतीजों के बाद की उठापटक का खतरा ज्यादा होगा।
नजर रखें 6130 पर
निफ्टी के लिए 18 दिसंबर 2013 को बनी तलहटी 6130 के नीचे जाना खतरनाक होगा, क्योंकि इससे अगस्त 2013 से अब तक ऊपरी तलहटियाँ बनते रहने का सिलसिला टूटेगा। साथ ही 30 सितंबर 2013 की तलहटी 5701 से हाल में बने रिकॉर्ड स्तर 6415 तक की उछाल की 38.2% वापसी 6142 पर है। निफ्टी 6130 के नीचे जाने यह फिर से 50 एसएमए के ठीक-ठाक नीचे होगा, जो अभी 50 एसएमए 6193 पर है। इसके नीचे जाने पर 100 एसएमए 6000 के आसपास सहारा देगा, जो अभी 5969 पर है। नवंबर 2013 में दो बार निफ्टी को 5972 पर सहारा मिला था। उसके नीचे 200 एसएमए का सहारा 5900 के पास होगा।
सेंसेक्स अगर अगस्त-दिसंबर 2013 की उछाल की 23.6% वापसी के स्तर 20,532 को तोड़े तो 20,124 के पास मौजूद 100 एसएमए से कुछ सहारा मिलेगा, जबकि उसके नीचे 200 एसएमए 19,754 पर है। सेंसेक्स और निफ्टी का 200 एसएमए के नीचे जाना ज्यादा खतरनाक होगा। लेकिन वह दूर की बात है। वहीं अगर आने वाले दिनों में ये सूचकांक 50 एसएमए के ऊपर ही बने रहें और किसी गिरावट में 50 एसएमए के ऊपर ही सहारा ले सकें तो यह बाजार की मजबूती का संकेत होगा।
निफ्टी का मासिक चार्ट भी दिखाता है कि यह एक चढ़ती पट्टी में है, यानी लंबी अवधि का सकारात्मक रुझान कायम है। इस पट्टी की ऊपरी रेखा 6,500-6,600 के लक्ष्य दिखाती है। मगर इस ऊपरी रेखा पर अटकने और वहाँ से पलटने की संभावना पर नजर रखनी होगी, क्योंकि ऐसा होना निफ्टी में करीब 500 अंक तक की गिरावट का कारण बन सकता है। साथ ही चढ़ते त्रिभुज की संरचना भी खतरनाक है। कुल मिला कर अभी तेजी थमने का संकेत बना नहीं है, मगर सावधान रहना जरूरी है।
(निवेश मंथन, जनवरी 2014)