भारतीय शेयर बाजार के ताजा सर्वेक्षण की सुर्खी इस बार यह नहीं है कि सेंसेक्स और निफ्टी अगले 6-12 महीनों में कहाँ होंगे।
दिग्गज जानकारों के सर्वेक्षण में सबसे मुख्य बात यह निकल कर आयी है कि बाजार ने अपनी सारी उम्मीदें नरेंद्र मोदी के साथ बाँध ली हैं।
अगले छह महीनों में भारतीय शेयर बाजार के लिए अगर कोई एक मुद्दा सबसे ज्यादा हावी रहने वाला है, तो वह है लोक सभा चुनाव। साल 2014 में बाजार की संभावनाएँ टटोलने के लिए हमारे सहयोगी समाचार पोर्टल शेयर मंथन (222.ह्यद्धड्डह्म्द्गद्वड्डठ्ठह्लद्धड्डठ्ठ.द्बठ्ठ) की ओर से दिग्गज जानकारों के वार्षिक सर्वेक्षण में यही बात उभर कर सामने आयी है। इसमें 77.6% जानकारों ने चुनाव को ही अगले छह महीनों में भारतीय बाजार के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना है। केवल 14.3% ने फेडरल रिजर्व की ओर क्यूई-3 कार्यक्रम धीमा करने और वैश्विक अर्थव्यवस्था को ज्यादा महत्वपूर्ण माना है, जबकि घरेलू अर्थव्यवस्था से जुड़ी खबरों को सबसे महत्वपूर्ण बताने वाले जानकार केवल 8.2% हैं।
अगर साल 2014 के आगामी लोक सभा चुनाव अगर केवल शेयर बाजार के सहभागियों के बीच हों तो नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा को कुल 543 सीटों में से बहुमत के लिए जरूरी केवल 272 सीटें नहीं, बल्कि शायद पौने पाँच सौ सीटें मिल जायें! इस सर्वेक्षण में जरूर मोदी के नाम की आँधी चलने की बात कही जा सकती है।
लोग इकतरफा ढंग से मान कर चल रहे हैं कि अगली केंद्र सरकार भाजपा की होगी और नरेंद्र मोदी ही अगले प्रधान मंत्री बनेंगे। दरअसल इस सर्वेक्षण में 85.7% जानकारों ने मोदी के प्रधान मंत्री बनने का अनुमान जताया है। अगर इसमें उन जानकारों को भी जोड़ लें, जो भाजपा की जीत की संभावना तो देख रहे हैं, लेकिन मोदी को प्रधानमंत्री पद से दूर पा रहे हैं, तो भाजपा की चुनावी जीत देखने वाले जानकार 91.8% हैं।
इस इकतरफा झुकाव वाले आकलन के बावजूद ज्यादातर जानकारों का मानना है कि बाजार ने भाजपा की चुनावी जीत की संभावनाओं को अभी पूरी तरह से भुनाया नहीं है। किसी विश्लेषक को ऐसा नहीं लगता कि भाजपा के जीतने की संभावना मौजूदा भावों में पूरी तरह शामिल हो चुकी है, जबकि 93.9% की राय में बाजार ने इस संभावना को आंशिक तौर पर भुनाया है। यह अपने-आप में जरा दिलचस्प है। अगर लोग भाजपा की जीत की इतनी खुली संभावना देख रहे हैं, तो उन्हें ऐसा क्यों लग रहा है कि बाजार ने इस संभावना पर अभी पूरा दाँव नहीं लगाया है?
अगर कहीं भाजपा की सरकार नहीं बन पायी तो बाजार की प्रतिक्रिया कैसी होगी? इस सर्वेक्षण में 40.8% जानकारों के मुताबिक ऐसी स्थिति में बाजार बुरी तरह टूटेगा, जबकि बाकी 59.2% जानकारों के मुताबिक कुछ गिरावट तो आयेगी, लेकिन भारी नुकसान नहीं होगा। कोई असर नहीं बताने वाले तो शून्य हैं ही, लेकिन दिलचस्प ढंग से यूपीए या किसी तीसरी शक्ति की स्थिर सरकार बन पाने पर सकारात्मक असर देखने वाले भी शून्य हैं! यानी इस समय बाजार भाजपा के अतिरिक्त किसी अन्य को स्वीकार करने की मानसिक स्थिति में नहीं है।
यह स्थिति एक ढंग से बाजार का जोखिम बढ़ाती है। भले ही 59.2% जानकार कह रहे हों कि भाजपा की सरकार नहीं बनने पर भी भारी गिरावट नहीं आयेगी, लेकिन ऐसी इकतरफा उम्मीद टूटने का असर तो होगा ही। एक हद तक यह भी कहा जा सकता है कि बाजार ने अपनी इच्छा को अपने आकलन के रूप में पेश किया है। भाजपा के जीतने की संभावना शायद बाजार का आकलन कम, उसकी आकांक्षा ज्यादा है।
फिर सीमित हैं उम्मीदें
चाहे जनवरी 2013 का सर्वेक्षण हो या जुलाई 2013 का, जानकारों ने अगले 12 महीनों के लिए सीमित बढ़त की ही उम्मीदें जतायी थीं। जनवरी 2013 के सर्वेक्षण में सेंसेक्स के लिए 13.2% बढ़त के साथ 21,985 का लक्ष्य मिला था, जबकि निफ्टी के लिए 10.9% ऊपर 6,549 का लक्ष्य था। जुलाई 2013 आते-आते बाजार अगले 12 महीनों में और भी कम आशावादी हो गया। उस समय अगले 12 महीनों, यानी जून 2014 तक का लक्ष्य सेंसेक्स के लिए 21,275 (9.7% ऊपर) और निफ्टी के लिए 6,309 (8.0% ऊपर) का लक्ष्य सामने आया था। जुलाई 2013 के सर्वेक्षण में दिसंबर 2013 तक के लक्ष्य तो और भी हल्के थे, सेंसेक्स के लिए 20,061 और निफ्टी के लिए 5,990 के। दिसंबर 2013 के अंतिम दिन सेंसेक्स 21,171 और निफ्टी 6,304 पर है। यानी बाजार छह महीने पहले इन सूचकांकों के जून 2014 के जो लक्ष्य देख पा रहा था, वे इस समय ही हासिल हो चुके हैं।
मगर इसके बावजूद ताजा सर्वेक्षण में बाजार अगले छह महीनों और 12 महीनों के लिए ज्यादा उत्साहजनक या आक्रामक लक्ष्य नहीं बना रहा है। जून 2014 के लिए जानकारों का औसत अनुमान यह है कि सेंसेक्स इन छह महीनों में 22,714 पर होगा, यानी 31 दिसंबर 2013 के बंद स्तर से 7.3% की बढ़त हासिल हो सकेगी। बेशक, छह महीने पहले बाजार जून 2014 में सेंसेक्स के लिए 21,275 का जो लक्ष्य तय कर रहा था, यह उससे 6.8% ऊपर का लक्ष्य है। इस लिहाज से यह जरूर माना जा सकता है कि बीते छह महीनों में बाजार की धारणा कुछ सुधरी है।
सेंसेक्स की तुलना में निफ्टी के लक्ष्य जरा हल्के मिले हैं। ताजा सर्वेक्षण में जहाँ सेंसेक्स में जून 2014 तक 7.3% बढ़त का अनुमान दिखता है, वहीं निफ्टी के लिए 5.1% ऊपर 6,624 का लक्ष्य मिला है। वास्तविकता में किसी नियत अवधि में सेंसेक्स और निफ्टी की बढ़त में इतना फर्क नहीं होता। इससे लगता है कि विश्लेषक सेंसेक्स और निफ्टी के लक्ष्य देते समय एक अनुपात का ध्यान रखने के बदले उनके अलग-अलग मनोवैज्ञानिक स्तरों का ज्यादा ध्यान रखते हैं!
साल भर बाद, यानी दिसंबर 2014 के लक्ष्यों में भी यही बात दिखती है। जानकारों ने 12 महीने बाद के लिए सेंसेक्स में 13.2% वृद्धि के साथ 23,967 का औसत लक्ष्य दिया है, जबकि निफ्टी के लिए 9.7% वृद्धि के साथ 6,917 का लक्ष्य मिला है।
अगर कुछ और पहले के सर्वेक्षणों को देखें तो जुलाई 2012 के सर्वेक्षण में भी सेंसेक्स के लिए 12 महीनों में 10% वृद्धि का लक्ष्य मिला था। अगर थोड़ी ठीक-ठाक बढ़त की उम्मीद इससे पहले बाजार में नजर आयी थी तो जनवरी 2012 के सर्वेक्षण में, जब सेंसेक्स के लिए दिसंबर 2012 का लक्ष्य 17.4% ऊपर 18,144 का था। तब दिसंबर 2012 के अंत में सेंसेक्स इससे कहीं ऊपर 19,427 पर पहुँचा भी था। लेकिन ताजा सर्वेक्षण समेत बीते चार छमाही सर्वेक्षणों में बाजार तकरीबन 10-13% की बड़ी हल्की बढ़त की उम्मीदों के साथ ही चल रहा है और बाजार का वास्तविक प्रदर्शन भी हल्का ही रहा है। इस दौरान बाजार के तमाम उतार-चढ़ाव एक बड़े दायरे के बीच ही रहे हैं।
अब बाजार ने लोक सभा चुनावों के बाद एक नयी दिशा मिलने की उम्मीदें जरूर बाँध ली हैं। आगे दी गयी टिप्पणियों में कई विश्लेषकों ने 2014 में कई सालों की तेजी शुरू होने की उम्मीदें जतायी हैं। शर्त केवल यह है कि सरकार बाजार के मन की बन जाये, क्योंकि अर्थव्यवस्था का सँभलना उससे काफी हद तक जुड़ा हुआ है! लेकिन इन उम्मीदों को बाजार अभी आँकड़ों में बदलने का हौसला नहीं जुटा पाया है। इसीलिए आगे के लक्ष्य जरा सीमित हैं।
बढ़ा है 7000 छूने का भरोसा
जनवरी 2013 के सर्वेक्षण में यह बात सामने आयी थी कि बाजार निफ्टी के 7,000 तक पहुँचने की उम्मीदें लगाने लगा है। तब दिसंबर 2013 का औसत लक्ष्य तो 6,549 का था, मगर 9.8% जानकारों ने साल 2013 में निफ्टी का शिखर 7,000 के ऊपर बनने की उम्मीद जतायी थी। जुलाई 2013 के सर्वेक्षण में अगले 12 महीनों के दौरान 7,000 से ऊपर का शिखर बनने की उम्मीद जताने वालों की संख्या बढ़ कर 15.7% हो गयी थी। अब ताजा सर्वेक्षण में ऐसे जानकारों की संख्या बढ़ कर 35.5% हो गयी है।
इस बार के सर्वेक्षण में 29.2% विश्लेषकों की राय है कि साल 2014 में निफ्टी का शिखर 7,001-7,500 के बीच होगा। वहीं कुछ जानकारों ने अब 8,000 और इसके ऊपर के स्तरों की भी बात की है।
जनवरी 2013 के सर्वेक्षण में साल 2013 के लिए निफ्टी के शिखर का औसत अनुमान 6,682 का था, लेकिन निफ्टी 267 अंक के फासले से इस लक्ष्य को छूने से रह गया। इसके बाद जुलाई 2013 के सर्वेक्षण में अगले 12 महीनों के दौरान शिखर का औसत अनुमान 6,507 का था, यानी जनवरी 2013 की तुलना में कुछ कम ही। मतलब यह कि साल 2013 की पहली छमाही ने विश्लेषकों का उत्साह घटाया था। मगर दूसरी छमाही के प्रदर्शन से साफ है कि लोग अब फिर से ज्यादा ऊपर के लक्ष्यों की बातें सोचने लगे हैं। इसीलिए ताजा सर्वेक्षण में अगले 12 महीनों, यानी साल 2014 के दौरान निफ्टी के शिखर का औसत अनुमान 7,160 आया है। इस तरह अगले 12 महीनों के अनुमानित शिखर का आँकड़ा ६५३ अंक ऊपर चढ़ा है।
अब 5000 से नीचे नहीं
अगर शिखर के अनुमान ऊपर की ओर चढ़े हैं तो तलहटी का आँकड़ा भी सुधरा है। अब बाजार में यह भरोसा बना है कि निफ्टी किसी बड़ी उठापटक के दौरान भी 5,000 के नीचे नहीं जायेगा। दरअसल ताजा सर्वेक्षण में किसी भी जानकार ने साल 2014 में 5,000 से नीचे की तलहटी बनने की आशंका नहीं जतायी है। संलग्न ग्राफ में 4,501-5,000 के बीच तलहटी बनने की आशंका जताने वाले जानकार केवल 2.1% हैं। इन 2.1% लोगों का अनुमान भी ठीक 5,000 का है। वहीं अब करीब दो तिहाई (64.6%) जानकार मान रहे हैं कि साल 2014 में निफ्टी की तलहटी 5,501 से 6,000 के बीच ही कहीं बननी चाहिए।
अगर जनवरी 2013 का सर्वेक्षण देखें तो उस समय 22% विश्लेषकों ने 2013 में निफ्टी की तलहटी 5,000 या इससे कहीं नीचे ही बनने की संभावना जतायी थी। जुलाई 2013 के सर्वेक्षण में भी 21.5% विश्लेषक 5,000 या इसके नीचे तलहटी बनने की आशंका जता रहे थे। गौरतलब है कि अगस्त में निफ्टी 5,117 तक फिसला था, जो साल 2013 में निफ्टी की तलहटी बना। यह जुलाई 2013 के सर्वेक्षण में उन 66.7% जानकारों के अनुमानों के अनुरूप ही रहा, जो मान रहे थे कि तलहटी 5,001-5,500 के बीच बनेगी। अब ताजा सर्वेक्षण से जाहिर है कि बाजार का डर घटा है। वह अब निफ्टी के लिए 5,000 पर एक मजबूत आधार देख पा रहा है।
तलहटी पर अर्थव्यवस्था
भले ही इस समय बाजार का सबसे ज्यादा ध्यान चुनाव पर हो और घरेलू अर्थव्यवस्था की खबरों को सबसे महत्वपूर्ण मानने वालों की संख्या केवल 8.2% हो, मगर अंतत: बाजार की चाल अर्थव्यवस्था के साथ ही जुड़ी रहती है। सच तो यह है कि चुनाव पर इतना ध्यान होने का मुख्य कारण भी अर्थव्यवस्था ही है।
जैसा कि आगे की टिप्पणियों में ऑगमेंट फाइनेंशियल सर्विसेज के सीईओ और संस्थापक गजेंद्र नागपाल ने कहा है, घटती विकास दर, रुपये की कमजोरी, बढ़ती ब्याज दरों और अस्थिर सरकार जैसी प्रमुख चिंताएँ एक स्थायी राजनीतिक माहौल मिलने पर दूर हो सकती हैं।
ब्लू ओशन कैपिटल एडवाइजर्स के प्रबंध निदेशक निपुण मेहता भी यही बात कह रहे हैं कि त्वरित नीतिगत निर्णय ले सकने वाली सरकार चुनी गयी तो भारतीय अर्थव्यवस्था, कारोबारी धारणा और निवेशकों के मनोभाव में भारी बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
मौजूदा कारोबारी साल 2013-14 के लिए जानकारों का औसत अनुमान है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर (जीडीपी) केवल 4.92% रहेगी। वहीं अगले कारोबारी साल 2014-15 में भी लोग बहुत बड़े सुधार की आशा नहीं कर रहे हैं और 5.58% विकास दर का ही औसत अनुमान सामने आया है।
जहाँ तक सेंसेक्स की प्रति शेयर आय (ईपीएस) की बात है, मौजूदा कारोबारी साल में सेंसेक्स ईपीएस 1,297 रुपये रहने का औसत अनुमान दिखता है, जो 2012-13 की वास्तविक ईपीएस 1,165 की तुलना में 11.4% ज्यादा है। वहीं अगले कारोबारी साल यानी 2014-15 के लिए 1,453 रुपये की अनुमानित ईपीएस आ रही है, जो 2013-14 की तुलना में 12% वृद्धि दिखाती है।
अक्सर कहा जाता है कि शेयरों के भाव उनकी आय या ईपीएस के गुलाम होते हैं। अगर ईपीएस में वृद्धि को लेकर बाजार की आशाएँ हल्की हैं, तो सेंसेक्स और निफ्टी जैसे सूचकांकों को लेकर भी बाजार की उम्मीदें हल्की रहना अस्वाभाविक नहीं है। अगर चुनावों के बाद एक स्थिर सरकार बन सकी और वह अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने वाले ठोस कदम उठा सकी तो बाजार का मिजाज बदलेगा और उत्साह लौटेगा।
(निवेश मंथन, जनवरी 2014)