सुगंधा सचदेव, धातु विश्लेषक, रेलिगेयर कमोडिटीज :
आखिर जुलाई महीने में सोने के भाव ऊपर चढ़े, क्योंकि चीन में निचले भावों पर अच्छी खरीदारी हुई।
जून के अंत में सोना तीन सालों के निचले भाव पर लुढ़क गया था। उसी समय जून में चीन की उपभोक्ता महँगाई दर अनुमानों से कहीं ज्यादा बढ़ गयी थी। अप्रैल-जून 2013 की तिमाही में सोने की कीमत में सबसे बड़ी तिमाही गिरावट आने के बाद बिकवाली सौदे कटने (शॉर्ट कवरिंग) के चलते भी इसकी कीमत में उछाल को सहारा मिला।
फेडरल रिजर्व की ओर से चल रहे बॉण्ड खरीदारी कार्यक्रम के चलते जहाँ लंबी अवधि की ब्याज दरों पर दबाव के साथ-साथ महँगाई को लेकर भी चिंताएँ बढ़ रही थीं। दरअसल सोने-चाँदी को आम तौर पर महँगाई के सुरक्षा के साधन के तौर पर देखा जाता है। पर जब फेडरल रिजर्व के चेयरमैन बेन बर्नांके ने बयान दिया कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अब पर्याप्त सुधार दिख रहा है और वे मासिक 85 अरब डॉलर के बॉण्डों की खरीद के रूप में चल रही प्रोत्साहन योजना को अगले कुछ महीनों में समेटना शुरू कर सकते हैं, तो अप्रैल-जून के दौरान सोने की कीमत में 23% की सबसे बड़ी तिमाही गिरावट आयी थी।
लेकिन जब कुछ मिले-जुले संकेत देने वाले अमेरिकी आर्थिक आँकड़े सामने आये और साथ ही मिस्र एवं पुर्तगाल में राजनीतिक उथल-पुथल शुरू हो गयी तो एक बार फिर से सुरक्षा की तलाश में सोने की खरीदारी ने जोर पकड़ा। वहीं बर्नांके की ओर से यह टिप्पणी आयी कि अभी प्रोत्साहन देने वाली मौद्रिक नीति जारी रखने की जरूरत है। इसके बाद महीने के अंत में फेडरल रिजर्व की दो दिन की बैठक के बाद कहा गया कि वह अमेरिकी अर्थव्यवस्था को सहारा देना जारी रखेगा। इसने बॉण्डों की खरीदारी के कार्यक्रम को रोकने की तिथि पर कोई संकेत नहीं दिया। अनिश्चितता और घबराहट के चलते महीने के आखिरी दिनों में सोने की कीमतें कुछ नरम पड़ीं।
इस बीच एक्सचेंज ट्रेडेड फंडों (ईटीएफ) की निकासी का सिलसिला थमा है और 10 जून के बाद पहली बार इनमें बढ़त दिखी है। चीन खरीदारी उभरने का असर तो रहा ही है, इसके अलावा हेज फंडों ने भी सोने में अपने बिकवाली सौदों को भी कम कर लिया है, जिससे ये सौदे मई के बाद से अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ गये।
इन सबके बीच भारत सरकार ने चालू खाता घाटा या करंट एकाउंट डेफिसिट (सीएडी) कम करने के लिए सोने पर आयात शुल्क बढ़ा दिया है, जिससे सोने का आयात कम हो। आपूर्ति के मोर्चे पर देखें तो दक्षिण अफ्रीका में सोने का उत्पादन घट रहा है, जिससे सोने की कीमतों को सहारा मिल सकता है। लिहाजा निकट भविष्य में कीमतें मौजूदा स्तरों पर टिकी रह सकत हैं। अगर सितंबर में फेडरल रिजर्व ने प्रोत्साहन घटाने की चर्चा की, तो भी चालू वित्त वर्ष में सोने की कीमतें बढऩे की काफी संभावनाएँ हैं, क्योंकि फेडरल रिजर्व की ओर से क्यूई धीमा होने की संभावना का असर पहले से ही भावों में आ चुका है। भारत में शादियों और त्योहारों का समय करीब आने से माँग में और बढ़ोतरी हो सकती है। डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी और सोने पर आयात शुल्क में वृद्धि के चलते भी घरेलू बाजार में कीमतें ऊँची रह सकती हैं।
कॉमेक्स में सोने की कीमत अपनी ताजा तलहटी से 160 डॉलर ऊपर आ चुकी है और इस समय 1300 डॉलर के ऊपर चल रही है। कॉमेक्स पर 1350 डॉलर के स्तर पर कड़ी बाधा मिलेगी और अगर यह बाधा पार भी हो जाये तो 1400-1420 को पार करना बड़ा मुश्किल होगा। एमसीएक्स पर भी यह तेजी से सँभला है और कीमत 27,000 रुपये प्रति 10 ग्राम को पार कर चुकी है। इसमें खास कर रुपये की कमजोरी का बड़ा योगदान है। इसे 29,000 रुपये के स्तर पर बिकवाली का दबाव मिलेगा, लेकिन अगर य स्तर पार हो जाये तो इसके बाद बिकवाली सौदे कटने के चलते 30,000-30,500 तक तेज उछाल आ सकती है।
(निवेश मंथन, अगस्त 2013)