सुभाष लखोटिया, कर और निवेश सलाहकार :
हाल के दिनों में पश्चिम बंगाल और देश के कई अन्य राज्यों में चिट फंड कंपनियों की फर्जी योजनाओं में आम निवेशकों की गाढ़ी कमाई डूबने के कई मामले सामने आए हैं।
इनके जाल में छोटे और मझोले निवेशक सबसे ज्यादा फँसते हैं।
यह अच्छी बात है कि वित्त मंत्रालय खास कर आम निवेशकों के लिए कुछ निवेश योजनाओं की जरूरत महसूस कर रहा है। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने 2013-14 का बजट पेश करते समय गरीब और मध्य वर्ग की बचत को महँगाई की मार से बचाने के लिए कोई निवेश योजना शुरू करने का इरादा जताया था। वित्त मंत्री की बात पर अमल करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने जून 2013 के पहले हफ्ते में इन्फ्लेशन इंडेक्स्ड बॉन्ड पेश किया।
इन्फ्लेशन इंडेक्स्ड बॉन्ड जारी करने का मकसद गरीब और मध्यवर्ग की बचत को महँगाई के असर से बचाने के साथ आम निवेशकों को सोना खरीदने के बजाए वित्तीय साधनों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना है। जून 2013 में 1,000 करोड़ रुपये के इन्फ्लेशन बॉन्ड जारी किए गये। इसमें ज्यादातर हिस्सा पेंशन फंड, बीमा और म्युचूअल फंड्स जैसे बड़े संस्थागत निवेशकों ने निवेश किया।
इसके पहले 1997 में भी रिजर्व बैंक ने कैपिटल इंडेक्स्ड बॉन्ड जारी किए थे। वे बॉन्ड निवेश के मूलधन को ही महँगाई से बचाते थे। लेकिन नये इन्फ्लेशन इंडेक्स्ड बॉन्ड मूलधन के साथ ब्याज पर भी महँगाई से सुरक्षा देंगे। ऐसे में इन बॉन्डों में निवेश का फायदा मिलेगा। उम्मीद है कि मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान रिजर्व बैंक 15,000 करोड़ रुपये के इन्फ्लेशन इंडेक्स्ड बॉन्ड जारी करेगा। वहीं खुदरा निवेशकों के लिए बॉन्डों की नयी सीरीज अक्टूबर में आने की उम्मीद है। आरबीआई ने भरोसा दिलाया है कि अगली सीरीज खास कर खुदरा निवेशकों के लिए होगी। अमूमन अगर आम निवेशक सरकारी बॉन्डों या किसी अन्य वित्तीय योजना में निवेश करते हैं तो महँगाई बढऩे की सूरत में वास्तविक लाभ कम हो जाता है। लेकिन ये बॉन्ड महँगाई से सुरक्षा देंगे और जोखिम से मुक्त हैं।
पिछले चार दशकों में महँगाई से मुकाबले में सोने का इस्तेमाल हुआ है। हालाँकि सोने की कीमतों में मौजूदा उतार-चढ़ाव को देखते हुए मुझे लगता है कि आने वाले सालों में सोना बढ़ती महँगाई से सुरक्षा नहीं दे पायेगा। तकरीबन ऐसा ही हाल रियल एस्टेट क्षेत्र का है। अधिकतर छोटे निवेशकों के पास इतना पैसा भी नहीं होता कि वे जमीन-जायदाद में निवेश कर सकें।
जून में जारी इन्फ्लेशन इंडेक्स्ड बॉन्ड में निश्चित 1.44% कूपन रेट है और मूलधन को महँगाई से समायोजित (ऐडजस्ट) किया जायेगा। ऐडजस्टेड मूलधन पर कूपन दर के हिसाब से समय-समय पर ब्याज भुगतान मिलेगा। वहीं महँगाई के हिसाब से ऐडजस्टेड मूलधन जुड़ता रहेगा। इससे कूपन रेट और मूलधन दोनों के मामले में ये बॉन्ड महँगाई से मुकाबला कर सकेंगे। परिपक्वता के समय ऐडजस्टेड मूलधन या फेस वैल्यू में से जो ज्यादा होगा, उसका भुगतान किया जायेगा। इन बॉन्डों की मियाद 10 साल की होगी। माना जा रहा है कि ये बॉन्ड जल्दी ही शेयर बाजार में सूचीबद्ध कराये जायेंगे और उपभोक्ता चाहें तो अपने बॉन्ड परिपक्वता से पहले बेच सकेंगे और नये निवेशक इन बॉन्डों को खरीद सकेंगे।
जून में जारी इन्फ्लेशन इंडेक्स्ड बॉन्ड में महँगाई की गणना थोक महँगाई के आधार पर की जायेगी। लेकिन सरकार को थोक मूल्य सूचकांक के बजाय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के आधार पर बॉन्ड जारी करने चाहिए। इसकी वजह है सीपीआई से उपभोक्ता की खरीद-क्षमता की कहीं बेहतर तस्वीर सामने आती है। उदाहरण के लिए मौजूदा थोक महँगाई दर 4.7% है। वहीं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 9.31% है। फिलहाल थोक और उपभोक्ता सूचकांक में अंतर काफी ज्यादा है। ऐसे में आम निवेशकों के लिहाज से सरकार अगर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर महँगाई बॉन्ड जारी करती है तो निवेशकों को वास्तविक फायदा होगा।
सरकार इन्फ्लेशन इंडेक्स्ड बॉन्ड में अलग से कोई टैक्स छूट, कटौती या कोई अतिरिक्त टैक्स लाभ नहीं दे रही है। इन्फ्लेशन इंडेक्स्ड बॉन्ड पर मिली ब्याज की रकम किसी भी दूसरी आय की तरह साल भर की आपकी कमाई में जुड़ेगी। इन्फ्लेशन इंडेक्स्ड बॉन्ड की परिपक्वता पर मिली रकम पर कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स का फायदा बॉन्ड को तीन साल तक रखने पर मिलेगा। आम लोगों को सुरक्षित निवेश के तौर पर इन्फ्लेशन इंडेक्स्ड बॉन्ड में निवेश के प्रोत्साहित करने के लिए सरकार को आयकर कानून 1961 के अनुच्छेद 80 सी के तहत कर छूट देनी चाहिए। अगर ऐसा होता है तो महँगाई से मुकाबले के लिए आम निवेशकों की दिलचस्पी इन बॉन्डों में बढ़ेगी।
यह देख कर अच्छा लग रहा है कि सरकार ने आखिरकार आम आदमी के निवेश की सुरक्षा के लिहाज से इन्फ्लेशन इंडेक्स्ड बॉन्ड के तौर पर एक निवेश विकल्प मुहैया कराया है। अगर इसमें टैक्स छूट का फायदा भी मिल जाये तो आम आदमी के निवेश का बड़ा हिस्सा इन बॉन्डों में लग सकता है। निवेशकों को अब अगले कुछ महीनों में जारी होने वाले इन्फ्लेशन इंडेक्स्ड बॉन्ड की दूसरी सीरीज में निवेश का मौका नहीं चूकना चाहिए।
(निवेश मंथन, जुलाई 2013)