अजय बग्गा, निवेश सलाहकार :
अभी वैश्विक स्तर पर नकदी, फेडरल रिजर्व की ओर से क्यूई समेटे जाने, भारत में सीएडी और राजनीतिक स्थिति को लेकर चिंता जरूर है।
लेकिन बाजार ऊपर की ओर चौंकायेगा। वैश्विक और घरेलू चिंताएँ मौजूदा भावों में शामिल हैं। अर्थव्यवस्था मजबूत विकास दर के संकेत दे, इससे पहले ही बाजार उसकी संभावना को भाँप कर ऊपर जाने लगेगा। मूल्यांकन काफी आकर्षक हो चले हैं। साथ ही आर्थिक सुधारों, घटती महँगाई और कमोडिटी की घटती कीमतों से बाजार पर सकारात्मक असर होगा।
लंबी अवधि के लिए सकारात्मक नजरिया
हेमेन कपाडिय़ा , सीईओ, चार्ट पंडित :
लंबी अवधि के लिए मैं भारतीय शेयर बाजार के बारे में सकारात्मक हूँ। इस समय प्रमुख चिंताओं की बात करें तो सबसे बड़ी चिंता खुद सरकार है, जबकि भारत के लिए सबसे सकारात्मक पहलू इसकी विशाल आबादी है।
चुनावों को लेकर कैसी अनिश्चितता!
गुल टेकचंदानी , निवेश सलाहकार :
सरकारी नीतियाँ, अंतरराष्ट्रीय परिवेश और नकदी की स्थिति अभी मुख्य चिंताएँ हैं। लेकिन उम्मीद है कि रुपया वापस सँभलना शुरू करेगा। काफी अच्छा मानसून भी बाजार के लिए अच्छा है। बाजार की दिशा को लेकर मैं काफी सकारात्मक हूँ। जहाँ तक चुनावी चिंता की बात है, देश ने बहुत सारे चुनाव देखे हैं। मैंने अपने जीवन में ही 9-10 चुनाव देख लिए हैं। ये होते रहते हैं। इसलिए यह कोई बड़ी अनिश्चितता नहीं है।
अभी कुछ महीने नहीं सुधरेंगे हालात
अमर अंबानी, रिसर्च प्रमुख, आईआईएफएल :
विधानसभाओं और लोकसभा चुनावों के चलते सरकार के लिए नीतिगत फैसले करने की गुंजाइश सीमित है। रुपया अभी कमजोर ही रहेगा। आने वाले कुछ महीनों में बाजार की धारणा सुधरने की उम्मीद नहीं है।
छोटे-मँझोले शेयरों के मूल्यांकन आकर्षक
अशोक अग्रवाल, निदेशक, एस्कॉट्र्स सिक्योरिटीज :
वैश्विक अर्थव्यवस्था सँभलने की धीमी गति, अमेरिका में मौद्रिक ढील (क्यूई) पर अनिश्चितता, घरेलू अर्थव्यवस्था के हाल और आगामी आम चुनाव ने ऐसा माहौल बना दिया है, जिसमें लोग जोखिम नहीं उठाना चाहते। धीमी वृद्धि, सीएडी, रुपये की कमजोरी, सरकारी घाटा, महँगाई दर और निवेशकों के भरोसे में कमी प्रमुख चिंताएँ हैं। लेकिन बाजार की नकारात्मक धारणा और ज्यादातर लोगों का शेयर बाजार से बाहर होना मेरे ख्याल से बाजार के लिए सकारात्मक पहलू भी है। पाँच सालों से इक्विटी का प्रदर्शन कमजोर रहा है। आगे एफआईआई निवेश में मजबूती और अन्य संपत्ति वर्गों (एसेट क्लास) का प्रदर्शन कमजोर रहने से शेयर बाजार पर सकारात्मक असर होगा। कुछ मँझोले और छोटे शेयरों के मूल्यांकन काफी आकर्षक हो गये हैं, जिनमें निवेशक लंबी अवधि में अच्छा लाभ कमा सकते हैं। बाजार की धारणा चुनाव के बाद सकारात्मक होगी, भले ही चुनावी नतीजे कैसे भी रहें। अगले तीन सालों के लिए शेयर बाजार के प्रति सकारात्मक नजरिया बन रहा है।
साल भर में निफ्टी की तलहटी 4400 पर
प्रकाश गाबा, सीईओ, गाबा एंड गाबा फाइ. एडवाइजर्स:
शेयर बाजार अभी कमजोर लग रहा है। अर्थव्यवस्था की हालत चिंताजनक है। निफ्टी दिसंबर 2013 तक फिसल कर 5100 पर आ सकता है। जून 2014 तक 4400 पर तलहटी बनने की आशंका है।
सकारात्मक, मगर साथ में सावधान
अरविंद पृथी, बाजार विश्लेषक :
मैं इस समय बाजार को लेकर सकारात्मक उम्मीदें तो रख रहा हूँ, लेकिन साथ में सावधान हूँ। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अभी प्रतिकूल स्थितियाँ दिखती हैं। पोर्टफोलिओ निवेश की गति धीमी है। इसके अलावा रुपये की कमजोरी, चालू खाते का घाटा और राजनीतिक जोखिम प्रमुख चिंताएँ हैं।
बड़ी तेजी के लायक बन रही हैं स्थितियाँ
कुणाल सरावगी, सीईओ, इक्विटी रश :
शेयर बाजार इस समय सारे घरेलू सहभागियों की अभूतपूर्व निराशा का सामना कर रहा है। खुदरा निवेशकों ने शेयर बाजार को छोड़ कर जमीन-जायदाद और अन्य संपत्तियों पर ध्यान केंद्रित कर लिया है। हर सीरीज में डेरिवेटिव सौदों में कमी आती जा रही है। ये बिल्कुल ऐसी स्थितियाँ हैं, जिनके बीच से कोई बड़ी तेजी जन्म लेती है। अगर वैश्विक स्तर पर कोई बड़ी वित्तीय आपदा नहीं आये तो अगले एक वर्ष में शेयर बाजार सबको चौंका सकता है। इस समय बड़ी चिंताएँ ये हैं कि वैश्विक निवेशक उभरते बाजारों में अब कम जोखिम लेना चाहते हैं। घरेलू स्तर पर देखें तो चुनावों के बाद राजनीतिक अस्थिरता की आशंका है। साथ ही जिन कंपनियों ने विदेशी मुद्रा में कर्ज ले रखे हैं, उनकी वापसी भी परेशानी का कारण बनेगी। लेकिन घरेलू माँग मजबूत रहना भारत के लिए सकारात्मक है। साथ ही ब्याज दरों में आगे कमी ही होगी और कुल मिला कर विकास दर मजबूत रहेगी।
काफी बुरे होंगे आने वाले कुछ महीने
सुनील मिंगलानी, निदेशक, स्किलट्रैक :
आने वाले कुछ महीने हमारे शेयर बाजार के लिए काफी बुरे भी हो सकते हैं! हमारे हिसाब से बाजार का मतलब सिर्फ निफ्टी या सेंसेक्स नहीं है। केवल 10-20 शेयर अगर ऊपर रहें और बाकी सारा बाजार गिरता रहे, तो इसे तेजी नहीं कहा जा सकता। आने वाले कुछ महीनो में हम निफ्टी को 4500-4800 तक भी गिरता देख सकते हैं। आने वाले दिनों में अगर चार्ट पर कुछ नये संकेत आयेंगे तो हम भी अपना नजरिया बदलेंगे, लेकिन इस समय तक जो संकेत हैं, उन्हें देखते हुए अगर निफ्टी के ये स्तर नहीं आये तो हमें काफी हैरानी होगी। प्रमुख चिंताओं में राजनीतिक अनिश्चितता, महँगाई, रुपये की कमजोरी और बुनियादी ढाँचा क्षेत्र की वृद्धि दर काफी कम रहने को गिना जा सकता है।
यही है सही समय पोर्टफोलिओ बनाने का
जितेंद्र पांडा, बिजनेस हेड (ब्रोकिंग), कैपिटल फस्र्ट सिक्योरिटीज :
यह बाकी सभी संपत्ति-वर्गों से बेहतर लाभ कमाने वाला शेयर पोर्टफोलिओ बनाने का समय है। चतुर निवेशकों को कुशल ढंग से सोने और जमीन-जायदाद से पैसा निकाल कर वह पैसा शेयरों का पोर्टफोलिओ बनाने में लगाना चाहिए। अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने वाले सुधारों का नहीं होना जरूर चिंता की बात है। निवेश का माहौल निराशाजनक होने से रोजगार सृजन और विकास दर पर बुरा असर पड़ रहा है। कॉर्पोरेट जगत का विश्वास बढ़ाने वाले ठोस कदम उठाने की जरूरत है। रुपये के उतार-चढ़ाव से भी उद्यमियों की जोखिम उठाने की क्षमता प्रभावित हो रही है। लेकिन बाजार ने सरकारी घाटे, विकास दर में कमी, ऊँची महँगाई, रुपये की कमजोरी, एफआईआई की बिकवाली, सोने-चाँदी में गिरावट जैसी बातों को अपने भावों में पहले ही शामिल कर लिया है। अगले छह महीनों में इनमें से ज्यादातर पहलुओं में सुधार ही दिखेगा, न कि हालत और बिगड़ेगी। इन सारे झंझावातों के बीच हम शेयर बाजार के ऐतिहासिक शिखर से 10-12% पीछे ही हैं।
चुनावों के चलते बाजार में रहेगा उतार-चढ़ाव
के के मित्तल, पीएमएस प्रमुख, ग्लोब कैपिटल :
आने वाले समय में शेयर बाजार उतार-चढ़ाव भरा रहेगा। आम चुनावों के चलते भी बाजार में उतार-चढ़ाव बढ़ेगा। सरकारी घाटे, चालू खाते के घाटे, रुपये की कमजोरी, धीमी होती विकास दर और आने वाले चुनावों को प्रमुख चिंताओं में गिना जा सकता है। साथ ही अमेरिका में मौद्रिक ढील (क्यूई) को धीरे-धीरे कम करने के फैसले का भी दबाव रहेगा। हालाँकि अमेरिका के सकारात्मक आर्थिक आँकड़े बता रहे हैं कि वहाँ भले ही धीमी गति से, लेकिन स्थिति में सुधार आ रहा है। अगर यूरोपीय संघ में स्थिति और न बिगड़े तो यह भी सकारात्मक होगा। साथ ही भारतीय शेयर बाजार का मूल्यांकन आकर्षक हो गया है।
एफआईआई के सामने होगा शानदार मौका
आर के गुप्ता, एमडी, टॉरस म्यूचुअल फंड :
भारतीय शेयर बाजार मोटे तौर पर वैश्विक परिदृश्य और एफआईआई निवेश के आने-जाने पर निर्भर है। भारतीय आम निवेशक शेयर बाजार में न तो सीधे और न ही म्यूचुअल फंडों के जरिये कोई नया निवेश करने में रुचि दिखा रहे हैं। इसलिए भारतीय शेयर बाजार काफी उतार-चढ़ाव भरा रहेगा और अगले आम चुनाव तक ऐसी स्थिति बनी रहेगी।
जहाँ तक बड़ी चिंताओं की बात है, चालू खाते का घाटा बढऩा, डॉलर के मुकाबले रुपये का लगातार कमजोर होना, उद्योग जगत में नये निवेश की रुचि नहीं होना, ऊँची ब्याज दरें, पूँजी बाजार से आम निवेशकों का दूर होना, मध्यम आय वर्ग के लोगों के लिए खर्च करने योग्य आय में कमी, ऊँची महँगाई, अगले आम चुनावों से पहले राजनीतिक अनिश्चितता, लगातार घटते निर्यात और बढ़ते आयात को इनमें गिना जा सकता है। लेकिन निफ्टी लगभग 5600 पर और रुपया 60 से भी ज्यादा कमजोर होने की स्थिति में एफआईआई के सामने निवेश का शानदार मौका बनता है। सरकार भी ऐसी कई नीतियों की घोषणा कर सकती है, जिनसे एफआईआई निवेश आकर्षित हो। अच्छा मानसून भी बाजार के लिए सकारात्मक है। इसके अलावा उम्मीद है कि कंपनियों की आय दूसरी तिमाही से सुधरनी शुरू हो जायेगी।
भारत के लिए अच्छी होंगी स्थितियाँ
पंकज पांडेय, रिसर्च प्रमुख, आईसीआईसीआई डायरेक्ट:
साल 2013 की दूसरी छमाही में निवेशक नकदी का आवंटन करते समय वापस संबंधित अर्थव्यवस्थाओं और संपत्ति वर्गों के बुनियादी पहलुओं पर ध्यान देंगे। निवेशक जब ऐसा करने लगेंगे तो भारत की स्थिति दूसरों से बेहतर होगी, क्योंकि महँगाई, सीएडी और रुपये की कमजोरी जैसे मुद्दों पर तब तक हालात सुधरने लगेंगे। सोने और कमोडिटी जैसे कच्चे तेल के भावों पर दबाव बनेगा। यह बात भारत के लिए काफी फायदेमंद होगी। कॉर्पोरेट भारत की आय में वृद्धि दर अपने निचले स्तरों से सँभलने लगेगी। ब्याज दरों में भी धीरे-धीरे कमी आयेगी, क्योंकि आरबीआई ने 2012-13 में अपनी नीतिगत दरों में 1% अंक की कमी की थी। साथ ही 2013-14 के दौरान आरबीआई अभी और 0.50-0.75% अंक तक की कटौती कर सकता है। दरों में कटौती के साथ सुधारों के आगे बढऩे से पूँजीगत निवेश का चक्र तेज होगा। हमारा अनुमान है कि सेंसेक्स ईपीएस 2013-14 में 11% और 2014-15 में 15% बढ़ेगी।
निफ्टी नहीं तोड़ेगा 5,450-5,600 का दायरा
गौतम शाह, चीफ टेक्निकल एनालिस्ट, जेएम फाइनेंशियल :
मेरा मानना है कि निफ्टी को 5450-5600 के दायरे में स्थिरता मिलनी चाहिए। अगर निफ्टी इस दायरे को तोड़ कर इससे नीचे गया तो मुझे इस सर्वेक्षण के अपने अनुमानों को बदलना होगा। अभी मेरा विचार है कि साल 2012 की शुरुआत में जो तेजी शुरू हुई थी, वह अब भी कायम है। इस साल आगे चल कर मँझोले शेयर वापस तेजी पकड़ेंगे। बैंकिंग, तेल-गैस और कैपिटल गुड्स क्षेत्रों का प्रदर्शन पूरे बाजार की तुलना में बेहतर होगा।
थमेगी कंपनियों की आय में गिरावट
शर्मिला जोशी, संस्थागत और रिसर्च प्रमुख, पियरलेस सिक्योरिटीज :
रुपये में कमजोरी और एफआईआई की बिकवाली के चलते निकट भविष्य में काफी उतार-चढ़ाव रहने की संभावना है। यही दोनों बातें इस समय बाजार की सबसे प्रमुख चिंताएँ हैं। साथ ही राजनीतिक अड़ंगे भी नकारात्मक असर डालेंगे। अगले दो महीनों में नकदी की स्थिति पर बारीकी से नजर रहेगी। अभी सकारात्मक पहलू यह है कि कंपनियों की आय में गिरावट रुकने की उम्मीद है। साथ ही कच्चे तेल की कीमतों में कमी और कमोडिटी भावों के गिरने से भी सकारात्मक असर होगा।
मार्च तक किसी बड़ी तेजी की आशा नहीं
रजत बोस, चीफ मार्केट एनालिस्ट, रजतकेबोस डॉट कॉम :
अगले छह महीने काफी परेशानी वाले होंगे। अक्टूबर के बाद स्थिति कुछ सँभलने की उम्मीद है, लेकिन मार्च 2014 तक ऊपर की ओर कोई बड़ी चाल आने की संभावना नहीं लगती है। अगर अगले साल संसद की चुनाव में विभाजित जनादेश आया और केंद्र में क्षेत्रीय क्षत्रपों की मदद से कमजोर सरकार बनने की आशंका इस समय एक प्रमुख चिंता है। साथ ही यह भी चिंता की बात है कि रुपये में लगातार कमजोरी आ रही है और विभिन्न उलझनों के चलते आरबीआई ब्याज दरें (जरूरी गति से) नहीं घटा रहा है। हालाँकि वैश्विक बाजारों में कमोडिटी के भावों में कमी भारत के लिए सकारात्मक पहलू है।
आकर्षक है बाजार 14 पीई पर
देवेन चोकसी, एमडी और सीईओ, के. आर. चोकसी सिक्योरिटीज :
भारतीय शेयर बाजार एक साल आगे के आधार पर करीब 14 पीई पर चल रहा है, जो हमारे विचार से मध्यम अवधि के निवेश के लिए एक आकर्षक मूल्यांकन है। निवेशकों को अच्छी आय की उम्मीद वाले शेयरों को चुनना चाहिए। साथ ही ऐसी कंपनियों के शेयरों में निवेश करना चाहिए, जिन्हें अर्थव्यवस्था की हालत सुधरने से ज्यादा फायदा होने वाला है। अमेरिका में मौद्रिक ढील (क्यूई) की वापसी, कमजोर रुपया और चुनावों से पहले लोकलुभावन नीतियों की घोषणाएँ बाजार के लिए चिंताजनक हैं। लेकिन अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत हैं और विकास दर बढ़ाने पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है, जो सकारात्मक पहलू है।
एफआईआई बिकवाली जोखिम से बचने के लिए
संदीप सभरवाल, सीईओ (पीएमएस), प्रभुदास लीलाधर :
अर्थव्यवस्था अपना सबसे बुरा दौर देख चुकी है और आगे अच्छी वृद्धि की उम्मीद की जा सकती है। लेकिन इस बात को लेकर चिंता है कि विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) जोखिम से बचने के लिए अपने पैसे निकाल रहे हैं। कमोडिटी भावों में कमी आना भारत के लिए सकारात्मक है।
चीन का नुकसान यानी भारत का फायदा
गजेंद्र नागपाल, सीईओ, यूनिकॉन फाइनेंशियल :
छोटी अवधि में वैश्विक हलचलों के चलते भारतीय बाजार में भी उतार-चढ़ाव रहेगा। लेकिन चीन का आकर्षण घटने के चलते भारत की ओर स्वाभाविक रूप से निवेश का प्रवाह बढ़ेगा। साथ ही 2014 के चुनाव नजदीक आने के साथ घरेलू माँग में भी वृद्धि होगी। दिसंबर 2013 तक बाजार धीमी रफ्तार से चलेगा, लेकिन इसके बाद यह तेजी पकड़ेगा। चालू खाते का घाटा और विकास दर को तेज करने वाले संकेतों की कमी को मैं सबसे प्रमुख चिंता मानता हूँ। लेकिन महँगाई दर घटना, आगे ब्याज दरों में कमी की उम्मीद, भारत का घरेलू बाजार अपने-आप में बड़ा होना जैसे पहलू सकारात्मक हैं। साथ ही, आखिरकार सरकार ने बुनियादी ढाँचे के मोर्चे पर कुछ साहसिक कदम उठाये हैं, जिनसे निवेश आधारित वृद्धि संभव होगी।
अमेरिका के धीमेपन से मिलेगा फायदा
विनोद शर्मा, बिजनेस हेड (पीबीडब्लूएम), एचडीएफसी सिक्योरिटीज :
अमेरिकी अर्थव्यवस्था अगर धीमी रही तो भारतीय बाजार की संभावनाएँ बेहतर होंगी। सरकारी घाटा और सीएडी, रुपये की कमजोरी, एफआईआई की रुचि में कमी और औद्योगिक निवेश का चक्र रुक जाना अभी भारतीय बाजार के लिए सबसे बड़ी चिंताएँ हैं। अगर अमेरिकी विकास धीमी रही और फेडरल रिजर्व ने अपना बांड खरीदारी कार्यक्रम धीमा नहीं किया तो यह भारतीय बाजार के लिए अच्छा होगा। भारतीय बाजार का मूल्यांकन 2008 के स्तर से भी नीचे चला गया है। अच्छा मानसून भी एक सकारात्मक पहलू है।
सुधार जारी रहें तो नये शिखर की उम्मीद
आशीष कुकरेजा, एमडी, क्रफ्ट फाइनेंशियल एडवाइजर्स :
अर्थव्यवस्था में सुधार के शुरुआती संकेत दिखने लगे हैं। अगर सरकार का ध्यान न भटके और वह अगले कुछ महीनों में आर्थिक सुधारों को जारी रखे तो बाजार अपने ऐतिहासिक शिखर को छू सकता है। लेकिन राजनीतिक अनिश्चितता बाजार को परेशान करती रहेगी। अगर इस एक बात को छोड़ दें तो बाजार अगले 2-3 सालों में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए तैयार है। राजनीतिक अनिश्चितता के अलावा चालू खाते का घाटा, महँगाई दर रुपये की कमजोरी और वैश्विक अर्थव्यवस्था की कमजोरी को लेकर चिंता है। लेकिन महँगाई दर घटने लगी है। अगर सीएडी और ब्याज दरों में कमी आये, सुधार आगे बढ़ें, वैश्विक अर्थव्यवस्था में नकदी का प्रवाह बना रहे और यहाँ स्थिर सरकार बने तो इन सबसे बाजार पर सकारात्मक असर होगा।
अच्छा है कि बाजार में कम हैं उम्मीदें
पंकज जैन, निदेशक, सनटेक वेल्थमैक्स कैपिटल :
अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीति, रुपये की कमजोरी, घरेलू राजनीतिक स्थिति और आसन्न चुनाव जैसी बातों को लेकर चिंता है। लेकिन कमोडिटी की कीमतों का घटना और कच्चे तेल में स्थिरता का भारत को लाभ मिलेगा। अभी बाजार में उम्मीदें कम होना भी एक सकारात्मक पहलू है।
बाकी उभरते बाजारों से ज्यादा जोखिम भारत में
जगदीश ठक्कर, निदेशक, फॉच्र्यून फिस्कल :
अभी अन्य उभरते बाजारों की तुलना में भारतीय बाजार के लिए जोखिम ज्यादा है। अगर लोकसभा चुनाव समय से पहले घोषित हो गये तो इससे अनिश्चितता बढ़ेगी। अगर अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने क्यूई-3 को आंशिक तौर पर वापस लिया तो भारतीय बाजार पर इसका सबसे बुरा असर हो सकता है। चिंता यह भी है कि खाद्य सुरक्षा विधेयक से सरकारी घाटा 5% के ऊपर चला जायेगा। रुपये में कमजोरी और व्यापार घाटा बढऩा भी बाजार के लिए नकारात्मक है। लेकिन नयी एफडीआई नीति की घोषणा होने, नये बैंकिंग लाइसेंस जारी होने और एफआईआई निवेश आसान बनाने के लिए आर्थिक सुधार करने पर सकारात्मक असर दिखेगा।
चाहिए स्पष्ट जनादेश और स्थिर अर्थव्यवस्था
आशु कक्कड़, निवेश सलाहकार :
बाजार में अभी काफी उतार-चढ़ाव रहेगा। चुनाव के बाद स्थिति सुधरेगी, बशर्ते आर्थिक सुधार तेज हों। ब्याज दरें घटने से विकास दर बढ़ेगी और आर्थिक दशाएँ बेहतर होंगी। पर इसके लिए स्पष्ट जनादेश के साथ मजबूत सरकार और विश्व अर्थव्यवस्था में स्थिरता की जरूरत है।
अभी ध्यान दें बस चुनिंदा शेयरों पर
जगन्नादम तुनुगुंटला, रिसर्च प्रमुख, एसएमसी ग्लोबल :
मेरे ख्याल से अभी इस बाजार में केवल चुनिंदा शेयरों पर ही रणनीति बनायी जा सकती है, पूरे बाजार को लेकर नहीं। यह एक तरह से कारोबारी बाजार है और यह निवेश का समय नहीं है। साल 2013 के अंत तक सेंसेक्स 20,000 और निफ्टी 6,000 पर होने का अनुमान है, जबकि जून 2014 तक सेंसेक्स 22,000 और निफ्टी 6,400 तक जा सकते हैं।
दीवाली तक कमजोरी, उसके बाद बाजार तेज
पी. फणिशेखर, फंड मैनेजर, एंजेल ब्रोकिंग :
अगले तीन-चार महीने, यानी लगभग दीवाली तक बाजार कमजोर चलेगा और उसके बाद तेज चलेगा। अभी यह बिल्कुल समाचारों पर निर्भर बाजार है। निवेशकों के लिए अच्छा होगा कि वे सरकारी नीतियों से बेअसर रहने वाले क्षेत्रों - जैसे कृषि, प्रिंट मीडिया, आईटी, फार्मा जैसे क्षेत्रों पर ध्यान दें। अगले एक साल में बाजार कहाँ होगा, यह इस बात पर निर्भर है कि लोकसभा चुनाव के नतीजे कैसे रहते हैं। अभी इन नतीजों के बारे में कोई दाँव नहीं लगाया जा सकता। बाजार के लिए चिंता यह है कि एफडीआई और एफआईआई निवेश में कमी आ सकती है। हालाँकि अच्छी बात यह है कि सरकार काम करती दिख रही है और फैसले ले रही है। हालाँकि इन कदमों का फायदा शायद अगली सरकार ही उठायेगी। अगर अक्टूबर-नवंबर तक सरकार सही सुर्खियाँ बनाती रहे तो यह बाजार के लिए सकारात्मक होगा। लेकिन अगर डॉलर की कीमत वापस 55 रुपये की ओर लौट आयी तो सरकार ढीली पड़ सकती है। अभी सरकार आपात स्थिति देख कर काम कर रही है।
सीमित ही रहेगी कोई गिरावट
क्रुणाल दायमा, एमडी, फस्र्ट स्टेप कैपिटल :
चार्ट संरचना और खराब आर्थिक आँकड़ों को देख कर अनुमान है कि निफ्टी एकदम छोटी अवधि में 5600 से 5950 के दायरे में रहेगा। मध्यम अवधि में 5600 का स्तर टूटने के बाद निफ्टी 5300 को छू सकता है। मासिक चार्ट पर कारोबार की मात्रा कम होती दिख रही है, जिसके चलते बाजार में कोई गिरावट सीमित ही रहने की संभावना बनती है। इसलिए मेरा अनुमान है कि निफ्टी की तलहटी 5350-5250 के आसपास बनेगी।
6,650 के आसपास बनेगा निफ्टी का शिखर
शुभम अग्रवाल, तकनीकी रिसर्च प्रमुख, मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज :
अमेरिका में बांड यील्ड ऊपर जाने लगे हैं, जिसके चलते निवेशकों का रुझान फौरी तौर पर ऋण से हट कर इक्विटी की ओर जा सकता है। यह कुछ महीनों तक भारतीय शेयर बाजार के लिए अच्छा होगा। लेकिन इसके बाद लंबी अवधि का ठहराव (कंसोलिडेशन) फिर शुरू हो सकता है। निफ्टी का शिखर 6,650 के आसपास बनना चाहिए। तेजी जारी रहने के लिए जरूरी होगा कि निफ्टी 5,500 के महत्वपूर्ण सहारे को न तोड़े। रुपये की कमजोरी अभी प्रमुख चिंता है। साथ ही अमेरिका और भारत में वास्तविक ब्याज दरों का फर्क बढ़ता जा रहा है।
पिछले शिखर के पास अटकेगा बाजार
संदीप गुप्ता, सीनियर वीपी, मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज :
अभी छोटी अवधि के लिए चिंता के काले बादल काफी हैं। लेकिन मध्यम और लंबी अवधि के निवेशकों के लिए अच्छे अवसर हैं। सस्ते मूल्यांकन के चलते निफ्टी को 5500 के आसपास टिकने में मदद मिल रही है। लेकिन मौजूदा चिंताओं के चलते बाजार की तेजी पिछले शिखर के आसपास अटक सकती है। अगर सरकार चुनाव से पहले मजबूत प्रोत्साहन दे तो तेजी के मजबूत संकेत मिल सकते हैं। बेहतर मानसून, विश्व बाजार में कमोडिटी के भाव घटना और यहाँ ब्याज दरों में कमी का बाजार पर अच्छा प्रभाव होगा।
विदेशी निवेशक बढ़ायेंगे भारत में अपना निवेश
विवेक महाजन, रिसर्च प्रमुख, आदित्य बिड़ला मनी :
पूँजीगत निवेश का चक्र दोबारा शुरू नहीं हो पाना सबसे बड़ी चिंता है। लेकिन विदेशी निवेशकों का भरोसा कायम है। एफआईआई खरीदारी लौटती दिख रही है। केंद्र ने सरकारी घाटा और सीएडी कम करने के प्रयास किये हैं। प्राकृतिक गैस की कीमत बढ़ा कर तेल-गैस क्षेत्र में सुधारों को आगे बढ़ाया गया है। बैंकिंग लाइसेंस के लिए 26 आवेदन मिलने से स्पष्ट है कि भारत के विकास पर कॉर्पोरेट जगत का भरोसा कायम है। कई क्षेत्रों में एफडीआई सीमा बढ़ाये जाने की भी उम्मीद है। जून में मानसून काफी अच्छा रहने से फसल अच्छी होने की उम्मीद है। अभी 2013-14 की अनुमानित आय के आधार पर भारतीय बाजार का मूल्यांकन 13 पीई पर है, जो सस्ता लगता है। मेरा अनुमान है कि अंतरराष्ट्रीय निवेशक भारत में निवेश बढ़ायेंगे। अगली तेजी घरेलू खपत पर निर्भर और सुधारों से प्रभावित क्षेत्रों की अगुवाई में होगी। रुपये की कमजोरी से आईटी और दवा क्षेत्रों को फायदा होगा।
अभी मंदा ही रहेगा बाजार
अमित गोयल, निदेशक, पेस समूह :
बाजार अभी मंदा लग रहा है। क्योंकि घरेलू अर्थव्यवस्था पर दबाव है। बैंकिंग संकट और वैश्विक मंदी का खतरा मँडरा रहा है। रुपये की कमजोरी और एफआईआई बिकवाली से भी चिंता है।
कठिन साल, पूँजी बचाये रखने पर ध्यान दें
पी. के. अग्रवाल, निदेशक, पर्पललाइन इन्वेस्टमेंट :
बाजार के लिए 2013 का साल बहुत कठिन होने वाला है। जो निवेशक-कारोबारी इसे सही से पार कर जायेंगे, वे ही बाजार में विजेता रहेंगे। जो इस साल ही अपना पैसा लुटा देंगे, उनके पास अगले साल के मध्य में सही समय आने पर निवेश के लिए पूँजी बाकी नहीं बचेगी। इस समय सबसे बड़ी चिंता भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत को लेकर ही है।
सरकारी घाटा, रुपये की कमजोरी, खराब बुनियादी ढाँचा और नीतिगत प्रशासन का चुनावी दौर में चले जाना बाजार के लिए अच्छा नहीं है। कांग्रेस भाजपा से कहेगी कि चुनाव के समय ही मंदिर याद आता है। कोई कहेगा कि कांग्रेस को खाद्य सुरक्षा की याद चुनाव के समय ही आती है। क्या पिछले नौ साल से गरीबों को अनाज नहीं चाहिए था! मोटी बात यह है कि चुनाव होने तक नीति-निर्माण बाजार के अनुकूल नहीं होगा। सकारात्मक बातों को देखें तो बाजार इतना नीचे आ गया है कि मूल्यांकन के हिसाब से और बहुत नीचे जाने का कोई कारण नहीं है। बेशक ऊपर जाने का भी कोई कारण नहीं है। भारतीय बाजार नीचे आया है, जबकि वैश्विक बाजार नीचे नहीं आये हैं। इसलिए एक बिंदु पर भारतीय बाजार का मूल्यांकन काफी आकर्षक हो जाता है। निफ्टी 4500-5000 के दायरे में काफी आकर्षक लगता है।
(निवेश मंथन, जुलाई 2013)