डी. आलोक :
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने प्राकृतिक गैस की कीमत में वृद्धि के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
सीसीईए ने यह मंजूरी रंगराजन समिति के फॉर्मूले के आधार पर दी है। इस स्वीकृति के बाद नयी दरें (8.4 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू) अप्रैल 2014 से लागू होंगी और इसके बाद अगले पाँच सालों तक लागू रहेंगी। इस फैसले का देश के ऊर्जा क्षेत्र पर दूरगामी असर पडऩे की संभावना है। चूँकि देश में प्राकृतिक गैस की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार के मुकाबले खासी कम थी, ऐसे में विदेशी निवेशक भारत में इस क्षेत्र में निवेश नहीं करते थे। लेकिन इस फैसले के बाद देश में पेट्रोलियम क्षेत्र में निवेश को आकर्षित करने में मदद मिलेगी। इस फैसले के बाद देश के बिजली संयंत्रों को पर्याप्त गैस मिल सकेगी। मौजूदा स्थिति यह है कि 18,000 मेगावॉट के गैस आधारित बिजली संयंत्र बंद पड़े हैं।
तेल-गैस क्षेत्र के विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा कहते हैं कि अगर हमें आयात पर निर्भरता कम करनी है तो कीमतों को कुछ हद तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लाना होगा। सरकार ने साहस दिखा कर फैसला किया है और मेरा मानना है कि सरकार के पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था।
अन्य जानकार भी बताते हैं कि गैस की कीमत में वृद्धि के इस फैसले का अपस्ट्रीम यानी खनन करने वाली कंपनियों पर सकारात्मक असर पड़ेगा। एंजेल ब्रोकिंग के तेल-गैस क्षेत्र के विश्लेषक भावेश चौहान कहते हैं, यदि हम सरकारी क्षेत्र की अपस्ट्रीम कंपनियों पर पडऩे वाले सब्सिडी के बोझ के अनुमानों को बढ़ा दें फिर भी गैस की कीमत में प्रस्तावित वृद्धि से इन कंपनियों के ईपीएस में बढ़ोतरी होगी। निजी क्षेत्र की गैस उत्पादक कंपनियों जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज के लिए भी यह फैसला सकारात्मक है।
चौहान का मानना है कि गैस की बढ़ी कीमत की वजह से अपस्ट्रीम कंपनियाँ नये ब्लॉकों से गैस उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित होंगी। चौहान के अनुसार गैस वितरण के क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों, जैसे गेल और जीएसपीएल के लिए मध्यम से लंबी अवधि के लिहाज से यह फैसला सकारात्मक है। चौहान का मानना है कि घरेलू बाजार में गैस की कीमत और आयातित गैस की कीमत के बीच का फर्क कम होने की वजह से लंबी अवधि में पेट्रोनेट एलएनजी के लिए भी यह निर्णय सकारात्मक साबित होगा।
गैस की कीमत में प्रस्तावित वृद्धि का सीधा असर दो क्षेत्रों पर पड़ेगा, बिजली और उर्वरक। विद्युत मंत्रालय के अनुसार गैस की कीमत में एक डॉलर प्रति एमएमबीटीयू की बढ़ोतरी से विद्युत क्षेत्र पर सालाना 6,450 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ेगा। दूसरी ओर उर्वरक मंत्रालय का मानना है कि गैस की कीमत में एक डॉलर प्रति एमएमबीटीयू की वृद्धि से उर्वरक क्षेत्र पर हर साल 3,155 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च का मानना है कि गैस की कीमतों में प्रस्तावित वृद्धि से सरकार पर 83 अरब रुपये का अतिरिक्त सब्सिडी बोझ पडऩे की संभावना है। चौहान का मानना है कि सरकार बढ़ी उर्वरक सब्सिडी का कुछ हिस्सा ओएनजीसी और ऑयल इंडिया से वसूलने पर विचार कर सकती है। इसका मतलब यह हुआ कि इन कंपनियों पर सब्सिडी का बोझ बढ़ सकता है।
जानकारों के एक वर्ग का यह भी मानना है कि भले ही सरकार बिजली और उर्वरक क्षेत्रों को कुछ हद तक सब्सिडी मुहैया कराये, लेकिन इन क्षेत्रों को मिलने वाली गैस की कीमत 4.2 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू से अधिक ही होगी, लिहाजा इन क्षेत्रों की उत्पादन लागत बढ़ेगी। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि उपभोक्ताओं को उर्वरक और बिजली की अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी।
इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के अनुसार, गैस की कीमत को बढ़ा कर 8.4 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू कर दिये जाने से यूरिया उत्पादकों के कामकाजी मुनाफे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। रिसर्च फर्म के अनुसार इन कंपनियों के कामकाजी मुनाफे में गिरावट की मुख्य वजह होगी एक निश्चित सीमा से अधिक बिक्री पर हासिल होने वाला कम कामकाजी मुनाफा।
एंजेल ब्रोकिंग ने अपनी ताजा रिपोर्ट में यह कहा है कि सरकार द्वारा साल 2014-15 के लिए ओएनजीसी पर डाला गया सब्सिडी का बोझ बढ़ा दिये जाने के बावजूद हम इस साल के लिए कंपनी के ईपीएस अनुमान में 9.5% की वृद्धि कर रहे हैं। ब्रोकिंग फर्म ने ओएनजीसी के लिए अपने लक्ष्य भाव को 372 रुपये से बढ़ा कर 387 रुपये कर दिया है। गैस की कीमत में प्रस्तावित वृद्धि के मद्देनजर एंजेल ब्रोकिंग ने साल 2014-15 के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज के ईपीएस अनुमान में भी 6.8% की बढ़ोतरी की है। हालाँकि इसके शेयर में हाल में आयी तेजी को देखते हुए फर्म ने इसके लिए अपनी न्यूट्रल रेटिंग बरकरार रखी है।
लेकिन सब्सिडी बोझ के मद्देनजर आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज ने साल 2014-15 के लिए ओएनजीसी के ईपीएस अनुमान को घटा कर 43.5 रुपये और ऑयल इंडिया के ईपीएस अनुमान को घटा कर 82.4 रुपये कर दिया है। ब्रोकिंग फर्म ने ओएनजीसी का लक्ष्य भाव घटा कर 354 रुपये कर दिया है, जबकि ऑयल इंडिया का लक्ष्य भाव कम करते हुए 585 रुपये कर दिया है।
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के तेल-गैस क्षेत्र विश्लेषक मयूर मतानी कंपनियों की लाभ-हानि से परे एक दूसरे पहलू की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं। वे कहते हैं कि अन्य बातों के अलावा इस निर्णय को एक अप्रैल 2014 से लागू किये जाने का फैसला अनिश्चितता उत्पन्न करता है, क्योंकि चुनाव के बाद केंद्र में बनने वाली नयी सरकार में भी गैस की कीमत में बढ़ोतरी को लागू करने की मंशा होनी चाहिए। यानी एक तरह से इस फैसले पर अनिश्चितता बनी रहेगी।
(निवेश मंथन, जुलाई 2013)