अजितेश मलिक, एवीपी रिटेल रिसर्च, रेलिगेयर कमोडिटीज :
एक्सचेंजों में ग्वारसीड और ग्वारगम दोबारा सूचीबद्ध होने के बाद से उन किसानों और उद्योगों का भरोसा बहाल हुआ है, जो इस मंच को अपने उत्पादों की आपूर्ति के लिए उपयोगी पाते हैं।
हालाँकि दो साल पहले इसमें जैसा तीखा उतार-चढ़ाव दिखा था, उससे बचने के लिए पर्याप्त कदम उठाने होंगे।
फिलहाल ऊँचे भंडार और मानसून की अच्छी प्रगति के कारण छोटी अवधि के लिए इसके भावों में कमजोरी का रुझान ही जारी रहने की संभावना है। एनसीडीएक्स और एमसीएक्स पर ग्वारसीड के जुलाई वायदा के लिए समर्थन स्तर 7000 और उसके बाद 6400 पर हैं, जबकि ऊपर 7700 और 8100 पर बाधा मिलेगी।
छोटी से मध्यम अवधि में इन दोनों कमोडिटी के भावों का रुझान काफी हद तक मानसून पर निर्भर है। एक्सचेजों में दोबारा सूचीबद्ध होने के बाद से अब तक ग्वार की कीमतें लगातार नीचे आती रही हैं। इसकी कीमतों पर मानसून की अच्छी प्रगति और पिछले साल के ऊँचे उत्पादन के चलते भंडार ज्यादा होने का असर पड़ रहा है।
मानसून की अच्छी प्रगति : ग्वार बारिश पर निर्भर फसल है और इसकी बुवाई राजस्थान में इसकी ऊपज वाले इलाकों में पहली बारिश के बाद होती है। यह बुवाई जून-जुलाई में होगी और उससे पहले मानसून की बरसात समय पर हो जाने से कीमतें नियंत्रण में रहेंगी। इस समय किसानों के पास भी पहले की ऊपज का भंडार काफी है। इसके चलते भी कीमतें छोटी अवधि में दबाव में रहेंगी। लेकिन मध्यम अवधि में बाजार की धारणा कैसी रहेगी, यह राजस्थान (इसकी ऊपज के मुख्य क्षेत्र) में बारिश के वितरण से तय होगा। मौसम विभाग के ताजा आँकड़ों के अनुसार मानसून केरल में पहुँच चुका है और बाकी भारत में इसके आगे बढऩे की गति संतोषजनक है। हालाँकि अभी यह अंदेशा बना हुआ है कि शायद जुलाई में मानसून की प्रगति अच्छी न रहे। अगर ऐसा होता है तो ग्वार की बुवाई पर बुरा असर होगा।
पिछले साल का ऊँचा उत्पादन : अनुमान है कि 2012-13 में ग्वारसीड का उत्पादन लगभग 17 से 20 लाख टन का था, जो पिछले साल के 13 लाख की तुलना में काफी है। इसलिए पिछले कुछ महीनों में इसका निर्यात अच्छा रहने के बावजूद कीमतों में काफी कमी आयी है।
(निवेश मंथन, जून 2013)