फंड मैनेजरों की राय :
घरेलू वित्तीय संस्थाएँ (डीआईआई) रोज-रोज की बिकवाली के आँकड़े सामने रखती जा रही हैं।
इनमें केवल म्यूचुअल फंडों को देखें तो उनका हाल कुछ अलग नहीं है। मई महीने में म्यूचुअल फंडों की शुद्ध बिकवाली 3000 करोड़ रुपये को पार कर गयी। इन आँकड़ों को देख कर अगर आप सोचते हों कि घरेलू फंड मैनेजर भारतीय शेयर बाजार गिरने का खतरा देखते हैं या इसे महँगा मान रहे हैं तो एक ताजा सर्वेक्षण आपको यह राय बदलने को मजबूर कर सकता है। भारतीय म्यूचुअल फंडों के फंड मैनेजरों के बीच यह सर्वेक्षण आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज ने किया है। उसके ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक 88% फंड मैनेजर इस साल के बाकी बचे महीनों में शेयर बाजार का रुख सकारात्मक रहने का ही अनुमान जता रहे हैं। यह सर्वेक्षण हर तीन महीने पर होता है।
इनमें से आधे फंड मैनेजर सेंसेक्स में शून्य से 10% तक की बढ़त की सीमित उम्मीदें लेकर ही चल रहे हैं, जबकि 10-15% बढ़त की उम्मीद रखने वालों की संख्या 38% है। इससे ज्यादा बढ़त की बात लोग नहीं कर रहे। दूसरी ओर बाजार में इस दौरान गिरावट आने की संभावना देखने वालों की संख्या लगभग 13% है।
मूल्यांकन को लेकर दिलचस्प स्थिति बनी है। पहले से ज्यादा फंड मैनेजर भारतीय बाजार को सस्ता मान रहे हैं, लेकिन साथ ही पहले से ज्यादा फंड मैनेजर इसे महँगा भी मान रहे हैं। तीन महीने पहले 80% फंड मैनेजर भारतीय बाजार को उचित मूल्यांकन पर मान रहे थे। अब ऐसा मानने वाले घट कर 50% रह गये हैं। वहीं बाजार को महँगा बताने वाले अब 13% हैं, जबकि तीन महीने पहले किसी की नजर में यह महँगा बाजार नहीं था। लेकिन दूसरी ओर बाजार को सस्ता मानने वाले भी इन तीन महीनों में 20% से बढ़ कर 38% हो गये।
अगर 88% फंड मैनेजर इस साल दिसंबर तक बाजार की चाल सकारात्मक रहने की उम्मीद जता रहे हैं, तो क्या इससे उनकी निवेश रणनीति पर भी असर पड़ा है? तीन महीने पहले 60% फंड मैनेजर उदासीन नजरिया लेकर चल रहे थे, मगर अब केवल 38% का ऐसा नजरिया है। वहीं तेजी का नजरिया रख कर चलने वालों की संख्या 40% से बढ़ कर 63% हो गयी है। मंदी का नजरिया तीन महीने पहले भी किसी का नहीं था, अब भी नहीं है। लेकिन अब फंड मैनेजरों का ध्यान उन जोखिमों पर भी जा रहा है, जिसके बारे में वे तीन महीने पहले सोच भी नहीं रहे थे।
तीन महीने पहले किसी भी फंड मैनेजर ने भारतीय राजनीतिक उठापटक के जोखिम की बात नहीं की थी। अब आधे फंड मैनेजर इसे एक प्रमुख जोखिम मान रहे हैं। इसी तरह विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) का निवेश वापस लौटने, यानी उनके बिकवाल बनने की आशंका तीन महीने पहले किसी को नहीं थी। अब 25% फंड मैनेजर इस जोखिम की बात कर रहे हैं। हालाँकि हाल के महीनों में अब तक एफआईआई ने लगातार खरीदारी का ही रुझान दिखाया है, लेकिन फंड मैनेजरों का इस जोखिम के बारे में बात करना सचेत करता है।
लेकिन दूसरी ओर कुछ चिंताएँ पहले से हल्की पड़ी हैं। कच्चे तेल के भावों को चिंता मानने वाले 70% से घट कर 50% रह गये हैं। रुपये की कमजोरी को लेकर चिंतित फंड मैनेजरों की संख्या भी 20% से घट कर 13% रह गयी है। वहीं यूरोपीय सरकारों के कर्ज संकट और अमेरिकी अर्थव्यवस्था में धीमी प्रगति को अब किसी भी फंड मैनेजर ने प्रमुख चिंताओं में नहीं गिना है।
सेंसेक्स कंपनियों की प्रति शेयर आय (ईपीएस) में 2012-13 और 2013-14 के दौरान वृद्धि दर के अनुमानों पर फंड मैनेजरों की राय बीते तीन महीनों में कुछ खास नहीं बदली है। आकलन यह है कि 2012-13 में आय वृद्धि 5-10% और 2013-14 में 10-15% रहेगी।
दिग्गज शेयरों और मँझोले शेयरों के बीच चुनाव को लेकर एक खास बदलाव आया है। तीन महीने पहले फंड मैनेजरों का इकतरफा झुकाव दिग्गजों की ओर था, क्योंकि 80% फंड मैनेजर दिग्गजों में निवेश को पसंद कर रहे थे। अब दिग्गजों को तवज्जो देने वाले 50% रह गये हैं। वहीं मँझोले शेयरों को चुनने वाले फंड मैनेजरों की संख्या 20% से बढ़ कर 50% हो गयी है। जाहिर तौर पर यह हाल में सेंसेक्स-निफ्टी में आयी तेज उछाल और उसके मुकाबले मँझोले शेयरों के पिछड़ जाने का नतीजा है।
अगर उनके पसंदीदा क्षेत्रों को देखें तो वित्तीय क्षेत्र (बीएफएसआई) की ओर झुकाव काफी बढ़ा है। दवा क्षेत्र और बुनियादी ढाँचा/कैपिटल गुड्स क्षेत्र पहले भी फंड मैनेजरों को पसंद था और अब भी वही स्थिति कायम है। एफएमसीजी, मीडिया, ऑटो और सीमेंट शेयरों की ओर भी उनका झुकाव पहले से कुछ बढ़ा है। लेकिन आईटी क्षेत्र को पसंद करने वाले फंड मैनेजरों की संख्या पहले से काफी घटी है।
अब शायद आपके मन में सवाल होगा कि जब फंड मैनेजर बाजार के बारे में सकारात्मक राय रखते हैं तो रोज-रोज बिकवाली क्यों कर रहे हैं? इस सवाल पर जवाब यही मिलता है कि जब म्यूचुअल फंडों के निवेशक अपनी यूनिटें बेच कर पैसे निकाल रहे हों तो उस राशि का इंतजाम करने के लिए फंड मैनेजरों के सामने बिकवाली के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। तर्क यह है कि अगर फंड मैनेजर अपनी योजनाओं में नकदी का स्तर बढ़ा रहे होते, तभी यह कहना ठीक होता कि वे बाजार में कमजोरी की संभावना देख कर बिकवाली कर रहे हैं। यह तर्क एक हद तक ठीक है, लेकिन सवाल यह भी है कि बीते कुछ सालों में म्यूचुअल फंडों ने निवेशकों को आकर्षित करने के लिए या अपने साथ बनाये रखने के लिए सक्रिय रूप से क्या किया है?
(निवेश मंथन, जून 2013)