प्रदीप गुप्ता, वाइस चेयरमैन, आनंद राठी सिक्योरिटीज:
उतार-चढ़ाव का दौर अभी शेयर बाजार में जारी रहने वाला है।
जैसी खबरें आती रहेंगी, उनके हिसाब से बाजार ऊपर-नीचे होता रहेगा। उनके आधार पर ही बाजार की धारणा बनती-बिगड़ती रहेगी। एक अच्छी बात यह है कि सरकार खाद्य सुरक्षा और भूमि अधिग्रहण से संबंधित अपने दो महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराने की पुरजोर कोशिश कर रही है। मेरे विचार से इन दोनों में भूमि अधिग्रहण विधेयक ज्यादा महत्वपूर्ण है।
अगर संसद के मानसून सत्र में ये विधेयक पारित हो जाते हैं तो इससे बाजार को अच्छा संकेत मिलेगा। इस बीच मानसून की जिस तरह अच्छी प्रगति हो रही है, उसका भी सकारात्मक असर हुआ है। पर इसके अलावा और कोई खास संकेत अभी नहीं है। कम-से-कम यह तिमाही तो बाजार के लिए मुश्किल रहेगी।
लंबी अवधि के लिए कुछ सकारात्मक चीजें हो रही हैं। दिसंबर 2013 या मार्च 2014 तक हमें सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे। पर इसका मतलब यह है कि मौजूदा साल निकल जायेगा। इसलिए असली टिकाऊ असर दिसंबर या मार्च के बाद से ही दिखना शुरू होगा।
अगली तिमाही में हमें विकास दर (जीडीपी) में सुधार देखने को मिल सकता है। एक तो कमोडिटी की कीमतें घटने का सकारात्मक असर देखने को मिलेगा। दूसरे, सुधारों का जो चक्र है और खास कर ब्याज दरों में कमी की जो बात है, उसका फायदा मिलेगा। महँगाई दर नियंत्रण में आयी है, जिसे देखते हुए संभवत: 17 जून की बैठक में या उसकी अगली बैठक में आरबीआई दरों में कटौती करेगा।
अगले छह से नौ महीने की अवधि में इक्विटी यानी शेयर बाजार की तुलना में ऋण-पत्रों (डेब्ट) का बाजार ज्यादा अच्छा लगता है। इस समय भी इक्विटी के प्रति लोगों की धारणा विपरीत है। लेकिन जब इक्विटी में लाभ दूसरे क्षेत्रों से ज्यादा दिखने लगेगा तो पैसा इसकी ओर आने लगेगा। तब तक अगले छह-नौ महीने का समय शेयर बाजार के लिए मुश्किलों वाला होगा।
बातें सुनने को मिल रही हैं कि अक्टूबर-दिसंबर के बीच चुनाव हो सकते हैं। अगर अक्टूबर-दिसंबर में ही चुनाव होने हैं तो सरकार के पास सुधार कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए अब ज्यादा समय नहीं बचा है। आज अगर सरकार भूमि अधिग्रहण विधेयक पारित करा भी ले तो उसे जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए 6-12 महीने तक लग जायेंगे। इसलिए फैसले होने के बाद अर्थव्यवस्था पर उसका सकारात्मक असर दिखने में इतना समय लगेगा।
इन सबके मद्देनजर लगता है कि शेयर बाजार में निफ्टी अगले 6-8 महीनों तक ऊपर 6200 और नीचे 5700 तक के दायरे में चलता रहेगा। इस दौरान नया रिकॉर्ड स्तर आने की उम्मीद मुझे कम लगती है। वहीं 5700 के ज्यादा नीचे जाने की भी संभावना कम है। उन स्तरों पर वैश्विक बाजारों की तुलना में भारतीय बाजार सस्ता लगने लगता है और काफी खरीदारी आ जाती है। इस समय भी भारतीय बाजार 14-17 के पीई पर घूम रहा है। विश्व बाजार में अभी नकदी पर्याप्त है। इसलिए जब भी 14 पीई के पास भारतीय बाजार आता है तो नकदी इधर आने लगती है। दूसरी ओर ऊपर 17 पीई पर जाने पर यानी 6100-6200 के आसपास मुनाफावसूली आने लगती है।
निवेशकों को मेरी सलाह यही होगी कि वे चुनिंदा तौर पर बाजार में लंबी अवधि के लिए निवेश शुरू कर दें। हमेशा आपको इस तरह के मूल्यांकन नहीं मिलेंगे। जब भी बाजार 14-15 पीई के पास हो, तब लंबी अवधि का निवेश करने पर ध्यान दें। पिछले चार-पाँच साल में निवेशकों ने बाजार में काफी गँवाया है। लेकिन अगर लोकसभा चुनाव के बाद कोई राजनीतिक संकट नहीं हो तो बाजार में अच्छी तेजी आने की उम्मीद रहेगी। इसके बाद अगले दो-तीन सालों तक बाजार में मजबूती रह सकती है।
मूल्यांकन के लिहाज से मैं कैपिटल गुड्स और इन्फ्रास्ट्रक्चर शेयरों को पसंद करूँगा। लंबी अवधि में घरेलू स्तर पर इनमें अच्छी वृद्धि होगी। बैंकिंग क्षेत्र में भी तेजी की उम्मीद रहेगी। इन क्षेत्रों को मैं प्राथमिकता दूँगा। एफएमसीजी क्षेत्र पर भी मेरी नजर रहेगी, क्योंकि यहाँ घरेलू खपत में वृद्धि की कहानी जारी रहेगी। इनका मूल्यांकन ऊँचा है, पर एफएमसीजी और दवा दोनों में ऐसा इसलिए है कि ये क्षेत्र निवेशकों को ज्यादा सुरक्षित लगते हैं। आईटी क्षेत्र में मुझे अभी चुनौतियाँ दिख रही हैं। यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय बाजार पर ज्यादा निर्भर है, इसलिए उसके बारे में मेरा भरोसा कम है।
(निवेश मंथन, जून 2013)