पीके अग्रवाल, निदेशक, पर्पललाइन इन्वेस्टमेंट :
बाजार में एक मई को जो उछाल दिखी, वह दरअसल टैक्स रेजिडेंसी सर्टिफिकेट (टीआरसी) के मुद्दे पर संसद में वित्त मंत्री के बयान और आरबीआई की नयी मौद्रिक नीति से जुड़ी उम्मीदों का नतीजा था।
बाजार में एफआईआई की ओर से काफी नकदी आ जाने के चलते यह तेजी दिख रही है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि इस बाजार में ज्यादा जान है। यह तेजी कहाँ रुक जायेगी, इसे कहना तो मुश्किल है लेकिन हर अंक की बढ़त के साथ इसके लिए गिरावट का जोखिम बढ़ता जा रहा है।
एफआईआई की मौजूदा खरीदारी जारी रहने तक बाजार में यह माहौल रहेगा और उसमें किस स्तर तक बाजार चला जाये, यह कहना मुश्किल है। लेकिन 6000 के निफ्टी पर खरीदारी करना उनके लिए भी नहीं बनता है, इसलिए मुझे थोड़ा आश्चर्य है।
लेकिन बाजार ऐसे ही चलता है। आने वाले दिनों में एफआईआई निवेश की रफ्तार भी अपने-आप सुस्त हो जायेगी, क्योंकि बाजार को अब नीचे जाना है। उनकी बिकवाली शुरू होने की आशंका नहीं लगती, लेकिन खरीदारी पहले जैसी आक्रामक नहीं रह जायेगी।
मेरा मानना है कि केवल आरबीआई की मौद्रिक नीति आने तक के लिए यह खरीदारी हो रही थी। तकनीकी विश्लेषण में माना जाता है कि खबरों का इस्तेमाल किसी संरचना को पूरा करने में होता है। कल आरबीआई की ओर से क्या खबर आने वाली है, इसका पूर्वानुमान लगाया जा रहा था। बाजार के व्यवहार को देख कर यही कहा जा सकता है कि लोग आरबीआई की ओर से रेपो दर में 0.50% अंक की कमी का अंदाजा लगा कर चल रहे थे।
लेकिन आरबीआई की ओर से चाहे जो भी फैसला आता, बाजार के गिरने की स्थिति बन चुकी थी। ब्याज दर में अनुमान के मुताबिक ही 0.50% कमी होने पर भी बाजार के गिरने की संभावना रहती। वैसी स्थिति में लोग कहते कि इसमें कोई आश्चर्य की बात तो है नहीं, और जो होना था वह हो गया। इसलिए तब बाजार नीचे आने लगता।
आरबीआई ने केवल 0.25% की कटौती की, इसलिए गिरावट स्वाभाविक ही थी। दोनों ही स्थितियों में बाजार को नीचे आना था, क्योंकि आखिर 0.50% से अधिक कटौती तो नहीं हो सकती थी। मेरा आकलन पहले से यही था कि कटौती 0.25% की ही होगी।
रेपो दर में उम्मीदों से कम कटौती के चलते तीखी गिरावट हो सकती थी, लेकिन वैसा नहीं हुआ। कई बार बाजार की प्रतिक्रिया एक पर एक के अनुपात में नहीं होती। मौद्रिक नीति आने के दिन निफ्टी 55 अंक नीचे रहा। हो सकता है आने वाले सत्रों में थोड़ा फिर से बढ़ जाये, लेकिन अब बाजार की दिशा नीचे की रहेगी।
इसलिए संभव है कि हमने बाजार में छोटी अवधि के लिए एक शिखर बनता देख लिया है। यह एक शिखर बनाने की प्रक्रिया में है। निफ्टी के लिए जनवरी के शिखर 6112 को पार करना आसान नहीं होगा, क्योंकि वैसा होने पर तकनीकी रूप से बाजार में सब कुछ बदल जायेगा। दरअसल वैसा होने पर अगला बड़ा लक्ष्य तो 7500 का हो जायेगा, लेकिन जाहिर है कि वैसा नहीं होने जा रहा है। निफ्टी 6112 के ऊपर जाने के बाद सामने केवल 6357 की ही बाधा रहेगी, जो जनवरी 2008 का शिखर था। उसके आगे आपके सामने खुला आसमान होगा।
लेकिन तकनीकी विश्लेषण भी आखिरकार बुनियादी कारकों पर निर्भर होता है। छोटी अवधि के लिए आप बुनियादी कारकों (फंडामेंटल फैक्टर) को नजरअंदाज करके केवल माँग-आपूर्ति के आधार पर कोई चाल देख सकते हैं। लेकिन बाजार में बड़ी तेजी की शुरुआत के लिए बुनियादी कारकों में जो बदलाव होने चाहिए, वे अभी नहीं हुए हैं। हमारा बुनियादी ढाँचा (इन्फ्रास्ट्रक्चर) कमजोर है। बाजार में वैसी तेजी को सहारा देने वाली विकास दर (जीडीपी) पाने के लिए जो कुछ करना जरूरी है, वह नहीं हो रहा है। सरकार न तो वह समझ दिखा रही है, न ही वैसी इच्छाशक्ति और न ही वैसा अवसर है क्योंकि चुनाव करीब आते जा रहे हैं। जब तक ये सब चीजें नहीं होतीं, तब तक शेयर बाजार में छोटी अवधि की कोई भी चाल आखिरकार बिखर जायेगी, क्योंकि बुनियादी कारक उस तेजी को सहारा नहीं देंगे।
आने वाले दिनों में बाजार एक बार फिर से अप्रैल 2013 की पिछली तलहटी को छूने की कोशिश करेगा। उस समय निफ्टी ने 5500 से थोड़ा नीचे 5477 की तलहटी बनायी थी। लगभग उस स्तर तक फिसल जाने की संभावना बनती है।
(निवेश मंथन, मई 2013)