राजीव रंजन झा:
कहते हैं कि 12 वर्षों का एक युग होता है। इस हिसाब से करीब एक युग से सोने की कीमतों में केवल एक ही रुझान दिख रहा था और वह रुझान था ऊपर का।
इस दौरान सोने ने कभी निवेशकों-कारोबारियों को कोई बड़ा झटका नहीं दिया। पिछले साल सितंबर में अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमत 1900 डॉलर प्रति औंस से ऊपर चली गयी। इसी तर्ज पर नवंबर 2012 में भारतीय बाजार में भी सोने की कीमत लगभग 32,500 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुँच गयी।
लेकिन अप्रैल 2013 के मध्य में अचानक इस बाजार में खलबली मच गयी। नवंबर 2012 के अपने रिकॉर्ड ऊपरी स्तरों से तो सोना पहले ही कुछ नीचे आ गया था, मगर अप्रैल के मध्य में यह एकदम से टूटता नजर आया।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना करीब 16% नीचे आ गया। कॉमेक्स में इसका भाव 1580 डॉलर प्रति औंस से घट कर 1322 डॉलर तक लुढ़क गया। भारतीय बाजार में भी एमसीएक्स में इसका भाव करीब 30,000 के स्तर से टूट कर 25,270 तक फिसल गया, यानी यहाँ भी इसे १६% का झटका लग गया।
हालाँकि इसके बाद सोने का भाव वापस कुछ सँभला और अप्रैल के अंत में यह 26,905 रुपये पर रहा। निचले स्तर से सँभलने के बावजूद इसका मासिक नुकसान करीब 8% का रहा।
रेलिगेयर सिक्योरिटीज के प्रबंध निदेशक जयंत मांगलिक मानते हैं कि लंबी अवधि के नजरिये से सोने की कीमत में अभी और कमजोरी आनी बाकी है। मांगलिक मानते हैं कि कुछ लंबे समय तक, यानी करीब एक-डेढ़ साल तक सोना 25,000 से 30000 रुपये के बड़े दायरे में रहेगा। निकट भविष्य में सोने के लिए हाल के शिखर को वापस छू पाना बड़ा मुश्किल लग रहा है।
एंजेल कमोडिटीज के एसोसिएट डायरेक्टर नवीन माथुर भी मानते हैं कि सोने की कीमत का निचले स्तरों से सँभलना केवल राहत वाली तेजी (रिलीफ रैली) का नतीजा है। उनके मुताबिक निचले भावों पर सोने की भौतिक खरीदारी की माँग उभरने के चलते भाव वापस सँभले हैं। उनकी राय है कि इसके अलावा अभी सोने में तेजी लौटने का कोई कारण नहीं बनता है। सोने में लंबी अवधि में जरूर तेजी का रुझान बना रह सकता है, लेकिन तात्कालिक रूप से तेजी का कोई कारण नहीं है।
माथुर की राय भी यही है कि फिलहाल सोने के लिए 30,000 रुपये के स्तर पर लौट पाना मुश्किल लगता है। निचले भावों पर बिकवाली सौदे कटने (शॉर्ट कवरिंग) या भौतिक माँग के चलते भाव सुधरे हैं, लेकिन छोटी अवधि में सोने का रुझान वास्तव में नीचे का ही है। वे अनुमान जताते हैं कि सोना 26,000-27,000 रुपये के दायरे में ठहरने (कंसोलिडेशन) की कोशिश कर सकता है।
माथुर कहते हैं कि सोने की भौतिक माँग ज्यादातर गहनों की खरीदारी के रूप में है। निचले स्तरों पर खरीदारी के लिए भौतिक माँग काफी है। इसके अलावा केंद्रीय बैंक भी खरीदारी करना शुरू कर सकते हैं, ताकि उनका स्वर्ण भंडार बढ़ सके।
अप्रैल में सोने की अंतरराष्ट्रीय कीमत में आयी तीखी गिरावट इन अटकलों के चलते आयी कि यूरोपीय संघ के साइप्रस जैसे संकटग्रस्त देश नकदी की कमी से उबरने के लिए अपने स्वर्ण भंडार बेच सकते हैं। हालाँकि किसी भी देश की सरकार या केंद्रीय बैंक ने ऐसा कोई औपचारिक-अनौपचारिक संकेत नहीं दिया था। इस बारे में जो भी खबरें आ रही थीं, वे बाजार में चलने वाली अटकलबाजियाँ ही थीं।
लेकिन मांगलिक कहते हैं कि बुनियादी कारण ही सोने में गिरावट की भूमिका बना चुके थे और इसका गिरना जरूरी हो चला था। यूरोपीय देशों के बारे में अटकलबाजियाँ इस गिरावट का एक बहाना बन गयीं। वे बताते हैं कि चूँकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था सँभल रही है, अमेरिका और यूरोप में अब अर्थव्यवस्था को लेकर घबराहट की स्थिति नहीं है, इसलिए सोने में गिरावट का कोई एक तात्कालिक संकेत मिलने भर की ही जरूरत थी।
क्या अभी और गिरेगा सोना?
अप्रैल के अंत तक कुछ सँभलने के बावजूद सोने में और गिरावट की आशंकाएँ खत्म नहीं हुई हैं। बीएसपीएल इंडिया के सीईओ विजय भंबवानी कहते हैं ‘मैं 2013 की शुरुआत से सोने से दूर रहने की वकालत करता रहा हूँ। इसका कारण यह है कि संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था वाले देशों के केंद्रीय बैंक अपनी नकदी बढ़ाने के लिए सोने-चाँदी का अपना भंडार बेचने के लिए विवश हो सकते हैं। वैसी स्थिति में किसी को नहीं पता कि कीमतें कहाँ तक गिर सकती हैं। इस बारे में कोई फैसला करने से पहले मैं अगले कुछ महीनों तक इंतजार करना चाहूँगा।’
वहीं नवीन माथुर का मानना है कि छोटी अवधि में सोने की कीमत में गिरावट की सीमा अभी 26000-26500 या ज्यादा-से-ज्यादा 25,500 के आसपास लगती है। हाल में सोने में जो तलहटी बनायी है, उसे तोड़ कर इससे ज्यादा नीचे जाने की आशंका को वे सही नहीं मानते। अचानक किसी घटना से यह एकदम टूट जाये तो कुछ कहा नहीं जा सकता, लेकिन उनका कहना है कि आज की स्थिति में 20,000-22,000 के स्तर आने की आशंका नहीं है। गिरावट तेज होने पर तकनीकी वजहों से भी अगर इसका भाव टूटा तो नीचे खरीदारी के लिए लोग खड़े हैं।
उनके शब्दों में, ‘जब 26,000 के भाव पर लोग कतार लगा कर खरीदारी करने के लिए आ रहे हैं तो 22,000 का भाव आने पर लोग टूट पड़ेंगे। अगर ऐसा कोई भाव आया भी तो इतनी जबरदस्त माँग उभरेगी कि वैसे ही जबरदस्त ढंग से भाव वापस चढ़ जायेंगे। इस समय ही आपने देखा कि 25,500 के आसपास के भाव पर इतनी माँग उभरी कि यह वापस करीब 27,000 रुपये तक लौट आया है। इसलिए अगर 22,000 का भाव आ गया तो वहाँ और भी जबरदस्त माँग निकलेगी। इसलिए अगर किसी झटके में वैसा भाव आया भी तो वह टिकेगा नहीं।’
पीसी ज्वेलर के प्रबंध निदेशक बलराम गर्ग कहते हैं कि दाम घटने के चलते सोने की बिक्री की मात्रा बढ़ी है। हाल में आयी गिरावट के बाद जिस ढंग से माँग बढ़ी है, उससे स्पष्ट है कि इस गिरावट से ग्राहकों में कोई घबराहट नहीं आयी है। उनका कहना है कि भारत में लोगों के लिए सोना खरीदना केवल एक मूल्यवान वस्तु को इकट्ठा करना भर नहीं है, बल्कि इसके साथ सांस्कृतिक और भावनात्मक कारण भी जुड़े हैं।
मांगलिक कहते हैं कि डॉलर की मजबूती का सीधा संबंध अमेरिकी अर्थव्यवस्था की मजबूती से है। ऐसा लग रहा है कि अगले कुछ सालों तक अमेरिका की अर्थव्यवस्था मजबूत होती रहेगी। इसकी वजह से डॉलर में सोने की कीमत घटेगी। लेकिन उनके मुताबिक दूसरा पक्ष यह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी की संभावना दिखती है। इसलिए रुपये में सोने की कीमत पर नफा-नुकसान काफी हद तक बराबर हो जायेगा। इसलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमत में गिरावट आयेगी, लेकिन भारतीय बाजार में सोना उस अनुपात में नहीं गिरेगा।
तकनीकी रुझान पर चिंता
तकनीकी विश्लेषक फिलहाल सोने की चाल को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। स्किलट्रैक टेक्निकल्स के सुनील मिंगलानी इस बात में खतरे के संकेत देख रहे हैं कि पिछले कई सालो के मुकाबले इस बार आम निवेशको में इस गिरावट को लेकर कोई घबराहट नहीं है और निवेशक उल्टे इसे खरीदारी का अच्छा अवसर मान रहे हैं।
मिंगलानी बताते हैं कि सोने ने करीब आठ साल पुरानी एक समर्थन रेखा काटी है, जो 2005 से अब तक नीचे नहीं कटी थी। यह समर्थन रेखा 2005 में करीब 6000 के स्तर से करीब 32500 तक चली तेजी के दौरान बने निचले स्तरों को जोडऩे से बनती है। इस रेखा का समर्थन स्तर अप्रैल में 29500-30000 के बीच आ रहा था, जिसे सोने ने काट दिया है।
मिंगलानी कहते हैं कि कई अन्य तकनीकी संकेत भी और गिरावट का संकेत दे रहे हैं, जैसे कि सोना अपने 200 दिनों की मूविंग एवरेज के नीचे आ गया है। यह अपने 100 हफ्तों के मूविंग एवरेज के भी नीचे आ गया है, जिसे इसने 2005 से लेकर आज तक नहीं काटा था। आने वाले एक से तीन सालों के लिए मिंगलानी सोने अगले स्वाभाविक लक्ष्य पहले 22,000 और उसके बाद 15500-18500 के बीच देख रहे हैं।
रेलिगेयर कमोडिटीज की एवीपी सुगंधा सचदेव कहती हैं कि साप्ताहिक चार्ट मई में गिरावट जारी रहने के संकेत दे रहा है, लेकिन मई में इसे 25315-24990 के स्तरों पर मजबूत सहारा मिलेगा। साप्ताहिक आरएसआई के आधार पर उनका आकलन है कि 24990 के पास सोना अपनी तलहटी बना लेगा। सोना भले ही 50 और 100 हफ्तों के एक्सपोनेंशियल मूविंग एवरेज (ईएमए) के नीचे आ गया है, लेकिन इसने 200 हफ्तों का ईएमए नहीं तोड़ा है। इसलिए यह उम्मीद रखी जा सकती है कि वहाँ इसे सहारा मिलेगा। उनका कहना है कि पिछली तलहटी के कटने पर सोने का बाजार और कमजोर होगा, जिमें यह 200 हफ्तों के ईएमए के महत्वपूर्ण समर्थन स्तर की ओर फिसल जायेगा। अभी 200 ईएमए 24300 के पास है।
सुगंधा बिकवाली सौदे कटने (शॉर्ट कवरिंग) के चलते मई में ऊपर की ओर 27900-28650 के बाधा स्तरों को छू लेने की संभावना भी जताती हैं। इसी तरह अंतरराष्ट्रीय बाजार में उनके मुताबिक 1535 डॉलर के भाव पर बाधा मिलेगी।
ट्रस्टलाइन सिक्योरिटीज के रिसर्च प्रमुख (कमोडिटी) राजीव कपूर कहते हैं कि मध्यम अवधि के लिहाज से सोने का भविष्य अब उतना अच्छा नहीं दिखता, जितना साल भर पहले दिखता था। उनकी सलाह है कि कारोबारी 26800-27000 के आसपास बिकवाली सौदे (शॉर्ट) कर सकते हैं। इन सौदों को नीचे 26000-25500 के आसपास मुनाफा लेकर काट लेना चाहिए, जबकि इनके लिए घाटा काटने का स्तर एकदम 27450 के ऊपर रखना चाहिए, यानी इसके ऊपर जाते ही बिकवाली सौदों से बाहर आ जाना चाहिए। कपूर कहते हैं कि अगर सोना 25,000 के नीचे बंद हुआ तो इसमें कमजोरी और बढ़ेगी। इसके नीचे अगला समर्थन स्तर 23500 के पास होगा।
क्या कायम है लंबी अवधि की तेजी?
अगर सोने की कीमतों के बड़े चक्र की बात करें, जिसके तहत सोने में बीते 10-12 सालों के दौरान काफी बड़ी तेजी रही, तो मांगलिक मानते हैं कि मौजूदा गिरावट उस तेजी की एक वापसी (रिट्रेसमेंट) भर ही है। उनके अनुसार बहुत लंबी अवधि के बारे में अनुमान लगाना इस समय मुश्किल है क्योंकि अब भी पक्के भरोसे से यह नहीं कहा जा सकता कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था पलट कर मजबूती की ओर बढ़ गयी है। बेशक अभी ज्यादातर संकेत ऐसे हैं जो बताते हैं कि अमेरिका अब अपनी अर्थव्यवस्था को लेकर ज्यादा आश्वस्त है। रोजगार के आँकड़े सुधर रहे हैं। फेडरल रिजर्व ने संकेत दिया है कि वह ब्याज दरें बढ़ा सकता है। लेकिन अभी अमेरिकी अर्थव्यवस्था के बारे में अगले एक-डेढ़ साल का ही अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन अगर अगली चार तिमाहियों में उनकी अर्थव्यवस्था सँभलने की पुष्टि करने वाले आँकड़े सामने नहीं आते और उनकी ओर से वैसे कदम नहीं उठाये जाते तो समस्या फिर से खड़ी हो जायेगी।
माथुर समझाते हैं कि गहनों वगैरह की खरीदारी के लिए यह माँग इसलिए उभर रही है कि लंबी अवधि के लिए अब भी सोने में तेजी का रुख कायम है। अगर अगले 2-3 सालों की बात की जाये तो सोने के भावों में तेजी का रुख ही रहेगा, क्योंकि महँगाई दर आज भले ही कुछ कम हुई हो, लेकिन आगे यह फिर बढ़ सकती है।
मगर साथ में उनका यह भी कहना है कि जिस तरह की तेजी बीते सालों के दौरान रही है, वैसी तेजी फिर से आने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। चाँदी में भले ही वह तेजी लौट आये, लेकिन सोने की कीमत में ऐसा होना मुश्किल होगा।
मिंगलानी जिक्र करते हैं कि सोना केवल पिछले 10-12 सालों से नहीं, बल्कि 16 सालों से ऊपरी रुझान में चलता रहा है। इस दौरान अंतरराष्टीय बाजार में इसने 80 डॉलर से करीब 2000 डॉलर और भारत में करीब 1000 रुपये से करीब 32500 रुपये तक का सफर तय किया है। वे कहते हैं, %इतने लंबे सफर में अब लगता है कुछ आराम का समय आ गया है! यह आराम मेरे हिसाब से 2-5 सालों का भी हो सकता है।’
हालाँकि माथुर कहते हैं कि जब सोना 26,000 के पास या उससे नीचे गया था और वहाँ आपने खरीद लिया तो अच्छा ही है। अगर दोबारा 26,000 के पास का भाव मिले तो वहाँ फिर से खरीदारी का मौका बनेगा। लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि ऊपर की ओर ज्यादा तेजी नहीं आयेगी और ऊपरी भावों पर बिकवाली भी शुरू हो जायेगी क्योंकि छोटी अवधि का रुझान नीचे का ही है।
चाहे तकनीकी विश्लेषण के आधार पर देखें या बुनियादी बातों के आधार पर, यह स्पष्ट है कि सोने में गिरावट आने की आहट कुछ पहले ही सुनाई देने लगी थी। पिछले साल सितंबर में सोने का भाव लगभग 32500 तक गया और उसके बाद नवंबर में फिर से लगभग वहीं तक गया, जिसके बाद इसमें नरमी आने लगी। तकनीकी लिहाज से यह दोहरा शिखर (डबल टॉप) था, जो तेजी थमने की एक स्पष्ट चेतावनी थी।
जब इसने बीते कुछ सालों की रुझान रेखा को नीचे काटा और उसके बाद 200 दिनों के मूविंग एवरेज के भी नीचे चला गया तो यह इस बात की पुष्टि थी कि सोने का बाजार एक ठीक-ठाक गिरावट के लिए तैयार हो गया है। लेकिन अगर हम साल 2005 से लेकर 2012 के दौरान 5720 से 32490 तक की उछाल की वापसी देखें, तो इसने अभी केवल करीब 25% वापसी (रीट्रेसमेंट) ही की है। तकनीकी नजरिये से देखें तो किसी उछाल के बाद 23.6% या 38.2% वापसी और कई बार तो 50% या 61.8% तक की वापसी करने के बाद तेजी का रुझान फिर से शुरू हो जाता है। इससे ज्यादा गिरावट के बाद ही यह चिंता पैदा होती है कि पिछली उछाल का रुझान पूरी तरह बदल गया है।
अभी केवल करीब 25% वापसी होने के चलते यह नहीं कहा जा सकता कि इन तमाम वर्षों में दिखी तेजी खत्म हो गयी है। इसे अभी केवल एक तकनीकी सुधार (टेक्निकल करेक्शन) कहा जा सकता है। लेकिन यहाँ ध्यान रखने की जरूरत है कि अप्रैल 2013 की तलहटी से नीचे जाने पर 38.2% वापसी के अगले पड़ाव यानी 22265 तक जाने की कोशिश करना इसके लिए बहुत स्वाभाविक होगा।
लेकिन सुनील मिंगलानी जैसी चेतावनी दे रहे हैं, उसके अनुसार अगर सोना अगले कई सालों के लिए नरमी के दौर में फँस गया तो यह धीरे-धीरे अगले निचले पड़ावों की ओर, यानी पहले करीब 19000 और फिर 16000 की ओर भी जा सकता है। हालाँकि इसके लिए यह एक जरूरी शर्त होगी कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में काफी सुधार हो और उसके चलते डॉलर में भी काफी मजबूती आ जाये।
जहाँ तक चाँदी की बात है, नवीन माथुर का अनुमान है कि यह करीब 45,000 के मौजूदा स्तर से फिसल कर 42000-43000 रुपये के स्तर तक जा सकती है। तेजी का रुझान इसमें नहीं लगता। लेकिन मौजूदा स्तर से 2000 ऊपर और 2000 नीचे के दायरे में यह ठहर सकती है। ऊपर की ओर इसके लिए 46,000 का भाव पार करना मुश्किल होगा।
भंबवानी कहते हैं कि चाँदी के लिए केवल डिलीवरी आधारित निवेश करने वाले निवेशक ही इसमें हाथ डालें, जो कम-से-कम 36 महीने से ज्यादा समय तक अपना निवेश रखना चाहते हों और वे भी इसमें केवल 10% पूँजी अभी लगायें।
कतार में खरीदार
पिछले कई महीनों से सोने के भाव 30,000-32,000 रुपये के आसपास देख रहे लोगों ने जब इसके भाव 30,000 रुपये से भी नीचे आते देखे तो वे लालच रोक नहीं सके। भाव 27,000 रुपये के भी नीचे जाने पर निवेशकों और कारोबारियों को तो जाने दें, आम लोगों ने भी जौहरियों की दुकानों पर सोने की खरीदारी के लिए कतार लगा दी। महानगर हों या छोटे शहर,
करीब एक-डेढ़ साल तक सोना 25,000 से 30000 रुपये के बड़े दायरे में रहेगा। निकट भविष्य में सोने के लिए हाल के शिखर को वापस छू पाना बड़ा मुश्किल लग रहा है।
- जयंत मांगलिक, एमडी, रेलिगेयर सिक्योरिटीज
आज की स्थिति में 20,000-22,000 के स्तर आने की आशंका नहीं है। जब 26,000 के भाव पर लोग कतार लगा कर खरीदारी करने के लिए आ रहे हैं तो 22,000 का भाव आने पर लोग टूट पड़ेंगे।
- नवीन माथुर, एसो. डायरेक्टर, एंजेल ब्रोकिंग
सभी जगहों पर जौहरियों ने यही हाल बताया:
बलराम गर्ग, प्रबंध निदेशक, पीसी ज्वेलर : कीमतें गिरने पर खरीदारों की ओर से काफी बड़ी माँग उभरी। आने वाले ग्राहकों की संख्या और बिक्री की मात्रा आम दिनों से करीब तिगुनी हो गयी।
अनिल जायसवाल, बनारस स्वर्ण कला केंद्र, वाराणसी : सोने में जबरदस्त गिरावट वाले दिन तिगुने-चौगुने ग्राहक आये। कई ग्राहकों को तो दुकान में बैठने की जगह न होने से वापस जाना पड़ा। अप्रैल महीने में दो-तीन महीनों के बराबर बिक्री हुई है।
राजेंद्र अग्रवाल, श्री अम्बे ज्वेलर्स, दिल्ली : सोने में और मंदी आ सकती है और यह 24,000 रुपये तक आ सकता है।
आर के गुप्ता, आर जे ज्वेलर्स, ग्रेटर नोएडा : सोने में आयी गिरावट से ग्राहकों की संख्या काफी बढ़ गयी। अभी साफ नहीं है कि आने वाले दिनों यह चढ़ेगा या गिरेगा।
शुभम गुप्ता, जे एम ज्वेलर्स, इलाहाबाद : सोने में सबसे ज्यादा गिरावट के दिन ग्राहकों की संख्या में तिगुना इजाफा हुआ। सोना 25,000 रुपये तक आ सकता है।
मोहन सोनी, विनायक ज्वेलर्स, भोपाल : गहने बनाने वाले कारोबारियों पर दबाव रहा, हालाँकि खुदरा ग्राहकों में सोने में गिरावट से खरीदारी का रुझान रहा।
दर्शन सोनी, सोनिका ज्वेलर्स, रायपुर : जब 25,000-26,000 का स्तर था तो दो-तीन दिनों तक ग्राहकों में सोने के सिक्के खरीदने की होड़ रही।
विवेकानंद गुप्ता, अपना ज्वेलरी, पटना : शादियों का मौसम होने की वजह से लोगों ने जेवर की खरीदारी की। आने वाले दिनों में सोना 25,000 से 24,000 तक गिर सकता है।
आशीष आर्य, नवरत्न ज्वेलर्स, राँची : तेज गिरावट वाले दिन ग्राहकों की संख्या में चार गुना बढ़ोतरी हुई। खरीदारों में जेवर के प्रति रुचि ज्यादा थी। सोना 25,000 तक जा सकता है।
अवतार वर्मा, न्यू ज्वेलरी हाउस, चंड़ीगढ़ : गिरावट आने पर ग्राहक चाँदी की अपेक्षा सोना ज्यादा खरीद रहे थे, क्योंकि उनका मानना था कि चाँदी में और गिरावट आ सकती है।
शिल्पा, कमल ज्वेलर्स, देहरादून : सोने और चाँदी दोनों में अच्छी खरीदारी हुई, पर सोने के प्रति लोगों का रुझान ज्यादा था।
(प्रस्तुति : बृजेश श्रीवास्तव)
(निवेश मंथन, मई 2013)