कारवाँ फिर लुट गया और देश के नियंता और नीति-निर्माता असहाय देखते रह गये।
प. बंगाल में शारदा घोटाला हाल के समय में पोंजी योजना का सबसे बड़ा घोटाला माना जा रहा है। पोंजी योजना का सीधा अर्थ है भारी मुनाफे का झाँसा देकर जनता से रकम ऐंठना। इस घोटाले में राज्य के मेहनतकश और निम्न आय वर्ग के लाखों लोग अपने गाढ़े पसीने की कमाई गँवा बैठे हैं। अरबों रुपये के इस घोटाले से राज्य में तृणमूल कांग्रेस की सरकार हिल गयी है। लेकिन राज्य की जनता का यह दर्द यहीं खत्म होने वाला नहीं है, क्योंकि अनेक ऐसी फरेबी कंपनियाँ पतन के कगार पर बैठी हैं। इससे पहले भी कुबेर, सीआरबी, जेवीजी, प्लांटेशन कंपनियाँ, स्पीकएशिया, स्टॉकगुरु जैसी अनेक कंपनियों ने पोंजी योजनाओं के नये-नये अवतरणों से जनता को लूटा है।
शारदा समूह इस खुली लूट की ताजा कड़ी है। इस समूह और उसके जनक सुदीप्तो सेन के उत्थान और पतन की कहानी किसी फिल्म या तिलस्मी कथा से कम हैरतअंगेज नहीं है। इस समूह की 100 से अधिक कंपनियाँ हैं। शारदा रियल्टी इस समूह की अग्रणी कंपनी है, जिसके माध्यम से मेहनतकश जनता का अरबों रुपया लूटा गया। इन कंपनियों का जाल प. बंगाल के अलावा असम, ओडि़शा और झारखंड तक फैला था। ये कंपनियाँ पिछले 6-7 सालों से निर्बाध रूप से जनता को लूटने का काम कर रही थीं। ये अत्यधिक मुनाफे का लालच देकर लाखों गरीब निवेशकों को ठगने में सफल रहीं। बेहद आकर्षक प्रचार सामग्री और तृणमूल कांग्रेस से करीबी संबंधों को दिखा कर शारदा समूह को निवेशकों और एजेंटों की बड़ी फौज खड़ी करने में मदद मिली। प्रचार सामग्री में तृणमूल कांग्रेस के सांसद कुणाल घोष को समूह के मीडिया व्यवसाय के प्रमुख और शताब्दी राय को समूह के ब्रांड एंबैस्डर के रूप में दिखाया जाता था।
जालसाजी का पुराना अचूक तरीका
प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इस समूह के कई कार्यक्रमों में शिरकत की, जिसका भरपूर प्रचार इस समूह ने अखबारों और चैनलों के माध्यम से किया। समूह के पास ढाई-तीन लाख एजेंटों की फौज थी, जिन्हें भारी कमीशन दिया जाता था। समूह की योजनाएँ देखने में काफी सरल और लुभावनी थीं। इनमें 18 से 36 महीनों की अवधि के निवेश पर 30% से 50% तक लाभ देने की गारंटी दी जाती थी।
कानूनों को धता बताने के लिए ये जालसाज कंपनियाँ नायाब, मगर पुराना तरीका ही इस्तेमाल करती हैं। निवेश लेते समय भूमि या घूमने के आकर्षक पैकेज का वादा किया जाता था। निवेशकों को यह विकल्प दिया जाता था कि वायदा पूरा न करने की स्थिति में नियत भारी लाभ के साथ मूलधन वापस लौटा दिया जायेगा। लेकिन अपने वादों को पूरा करने से पहले ही यह समूह धराशायी हो गया, जैसा कि प्राय: असाधारण लाभ देने वाली लुटेरी या पोंजी योजनाओं में होता है। शारदा समूह ने एजेंट बनाने में भी काफी चतुराई दिखायी। इसने अधिकाधिक ऐसे लोगों को एजेंट बनाया, जिनका अपने आसपड़ोस में काफी रसूख था। लेकिन समूह के झाँसे से इसके एजेंट भी नहीं बच सके। इसके हजारों एजेंटों ने खुद भी समूह की फरेबी योजनाओं में पैसा लगा दिया।
शारदा समूह की 100 से अधिक कंपनियाँ रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज में पंजीकृत हैं। इनमें से ज्यादातर के मुख्यालय प. बंगाल में हैं और अधिकांश कंपनियों के नाम शारदा से शुरू होते हैं। इन कंपनियों का मुख्य व्यवसाय भूसंपदा, ऑटोमोबाइल, शिक्षा और मनोरंजन है। इनमें कोई भी कंपनी चिटफंड कंपनी नहीं है। जाँच अधिकारियों का अनुमान है कि इस समूह की कम-से-कम 10 कंपनियाँ पोंजी या मल्टी-लेवल मार्केटिंग (एमएलएम) योजनाओं में लिप्त रही हैं। कंपनी मामलों के मंत्रालय में उपलब्ध विवरणों से पता चलता है कि शारदा समूह की ज्यादातर कंपनियों का पता एक ही है - डायमंड हार्बर रोड, कोलकाता।
इन कंपनियों के बीच लेनदेन का जाल इतना जटिल है कि उनको समझने में जाँच एजेंसियों के पसीने छूट गये हैं। यह समूह जिस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करता है, उसमें काफी गड़बड़झाला है। अब सॉफ्टवेयर की कार्यप्रणाली को समझने के लिए जाँच एजेंसियाँ इसे विकसित करने वाले को ढूँढ़ रही हैं। कंपनी का सर्वर अमेरिका के बोस्टन में है, जहाँ जाकर जाँच करना एजेंसियों के लिए मुश्किल है।
मचा है हाहाकार
शारदा समूह के धराशायी होने से प. बंगाल और निकटवर्ती राज्यों के कई जिलों में हाहाकार मच गया है। अब तक छह पीडि़त निवेशक और एजेंट आत्महत्या कर चुके हैं। सेबी, रिजर्व बैंक, आयकर विभाग, स्पेशल फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस (एसएफआईओ) आदि विभाग नींद से जाग गये हैं। राज्य सरकार ने भी जाँच आयोग बिठा दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पीडि़त निवेशकों को रकम वापस लौटाने के लिए 500 करोड़ रुपये की विशेष निधि की घोषणा की है। राज्य सरकार यह राशि सिगरेट पर अतिरिक्त टैक्स लगा कर जुटायेगी।
पर राज्य सरकार की यह राहत राशि लाखों निवेशकों के डूबे धन के सामने ऊँट के मुँह में जीरा है। विभिन्न जाँच एजेंसियाँ अभी तक यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि शारदा घोटाला कितना बड़ा है। प्रारंभिक जाँच अनुमानों में यह घोटाला 1200 से 4000 करोड़ रुपये तक का आँका जा रहा है। लेकिन राज्य के अनेक औद्योगिक संगठनों और मीडिया का आकलन इससे काफी ज्यादा है। इनमें से अधिकांश का आकलन है कि शारदा घोटाले में मेहनतकश जनता की कम-से-कम 30000 करोड़ रुपये की रकम डूब गयी है।
कपटी कंपनियों की भरमार
राज्य में शारदा समूह जैसे कई संस्थान हैं, जो अरसे से कपट भरी योजनाओं में भारी मुनाफे का झाँसा देकर गरीब जनता से पैसे ऐंठ रहे हैं। कोलकाता स्टॉक एक्सचेंज के पूर्व जनरल मैनेजर शमीक दासगुप्ता का कहना है कि शारदा जैस कम-से-कम 60 जालसाज कंपनियाँ राज्य में सक्रिय हैं। श्री दासगुप्ता कहते हैं कि इनमें से कोई भी चिटफंड कंपनी नहीं है। ये सभी कंपनी अधिनियन 1956 के तहत गठित हुई हैं और कंपनी मामलों के मंत्रालय से संबद्ध हैं। मालूम पड़ा है कि शारदा समूह ने जनता से 17,000 करोड़ रुपये से ज्यादा जनता से वसूले हैं। वहीं राज्य में सक्रिय इन तमाम कंपनियों की एकत्रित राशि का आँकड़ा 10 लाख करोड़ रुपये तक जा सकता है।
हो सकता है कि दासगुप्ता का यह आकलन अतिशयोक्ति हो। फेडरेशन ऑफ कंज्यूमर एसोसिएशन की अध्यक्षा माला बनर्जी के अनुसार राज्य में अनगिनत छोटी और अनधिकृत फर्में सक्रिय हैं जो अवैध ढंग से पैसा जुटा रही हैं। उनके मुताबिक अपुष्ट सूत्रों के अनुसार केवल दक्षिण 24 परगना में ऐसी 50 इकाइयाँ सक्रिय हैं। उत्तरी 24 परगना, मालदा और वीरभूम जिले में भी ऐसी फर्में काफी सक्रिय हैं।
हाल में कंपनी मामलों के राज्य मंत्री सचिन पायलट ने लोकसभा को बताया कि शारदा समूह की नौ कंपनियों के अलावा पोंजी या मल्टी-लेवल योजनाओं की 64 शिकायतें मिली हैं। ये फरेबी कंपनियाँ अनेक तरीकों से निवेशकों से धोखाधड़ी कर रही हैं। राज्य मंत्री के अनुसार धोखाधड़ी का अर्थ है कि जनता से पैसे जुटा कर गायब हो जाना, या कंपनी अधिनियम का उल्लंघन कर अवैध रूप से जमाराशि लेना, या सेबी अधिनियम का उल्लंघन कर सामूहिक निवेश योजना (सीआईएस) चलाना, या अपने को गैर-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी बता कर जनता के पैसे जमा करना।
नक्सली शंकर का जालसाज अवतार सुदीप्तो सेन
शारदा घोटाले से पश्चिम बंगाल में व्यापक असंतोष और आक्रोश है। इस घोटाले की जो देशव्यापी चर्चा हुई है, वह असामान्य है। इसकी एक वजह तो यह हो सकती है कि यह हाल का सबसे बड़ा पोंजी घोटाला है। दूसरे, यह पहला ऐसा घोटाला है, जिसमें राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के सांसदों की संलिप्तता खुले तौर पर दिखायी दी है। इसकी तीसरी वजह शारदा समूह के जनक सुदीप्तो सेन का मायावी चरित्र है। इसे लेकर स्थानीय अखबार नाना प्रकार की चर्चाओं से पटे पड़े हैं।
सुदीप्तो सेन अपने युवा काल में नक्सली था, जिसका सपना गरीबों को शोषण से आजाद कराना था। लेकिन वही शख्स गरीबों को लूटने वालों का सरगना बन गया। सुदीप्तो सेन की जन्म तारीख पासपोर्ट में 30 मार्च 1959 दर्ज है। उसकी माँ का नाम रेणुका और पिता का नाम नृपेंद्र नारायण सेन है। विभाजन के समय यह परिवार ढाका से कोलकाता आया था। सुदीप्तो का मूल नाम शंकरादित्य था। उसके पिता सर्वे ऑफ इंडिया में काम करते थे और माँ टेलीफोन विभाग में। यह एक निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार था। इस परिवार की तीसरी संतान शंकरादित्य कब सुदीप्तो सेन बन गया, इसके बारे कोई प्रामाणिक जानकारी अब तक उपलब्ध नहीं है।
यह परिवार 1962-63 में कोलकाता के एंटाली क्षेत्र के हजराबागान लेन में रहने लगा। तब के मकान-मालिक अमिय पाल बताते हैं कि भूतल पर एक कमरा नृपेंद्र नारायण ने किराये पर लिया था। शंकरादित्य के पड़ोसी और मित्र ओंकार सिंह के अनुसार तब यह इलाका नक्सलियों के गहरे प्रभाव में था। ओंकार सिंह को याद है कि शंकर ओजस्वी वक्ता था। इस इलाके में उस समय के विख्यात नक्सली नेता चारु मजूमदार का दौरा एंटाली में होता रहता था। तभी उनकी नजर शंकर पर पड़ी और उन्होंने उसे लपक लिया। एक बंगाली अखबार के वरिष्ठ पत्रकार के साथ भी शंकर की काफी निकटता थी। यह पत्रकार भी नक्सली आंदोलन से काफी जुड़े हुए थे। नक्सली आंदोलन में शिरकत करने के कारण शंकर को जेल हुई और जेल में ही शंकर के नये अवतार यानी सुदीप्तो सेन की भूमिका बनी। जेल में वह अन्य नक्सलियों, अपराधियों और छुटभैय्ये राजनीतिक कार्यकर्ताओं के संपर्क में आया। जेल से भागने या छूटने के बाद शंकर का नक्सली चोला उतर गया। यह घटना 1970-71 के आसपास की है।
उसने एंटाली से ही जमीन जायजाद की दलाली से अपनी नयी यात्रा की शुरुआत की। शंकर ने शुरुआती व्यवसाय को जमाने में जेल में बने अपने संपर्कों का जम कर इस्तेमाल किया। कलकत्ता के संतोषपुर के सर्वे पार्क की भूमि-भरायी की पहली बड़ी योजना उसे मिली और उसके बाद अर्जुन पार्क की योजना। अगले कुछ सालों तक दक्षिण कलकत्ता में कई भूमि सौदों को शंकर ने अंजाम दिया और इस दुनिया को बहुत नजदीकी से उसे देखने का मौका मिला। अस्सी के दशक के मध्य तक उसने एंटाली में अपना मजबूत जाल बिछा लिया और बड़े भू-कारोबारियों से उसके रिश्ते बने। इस नेटवर्क को बनाने में उसने जेल से बने संपर्कों का भरपूर इस्तेमाल किया। रेणु गुहानियोगी के नेतृत्व वाले नक्सली विरोधी पुलिस दस्ते के कई लोग भी उसके नेटवर्क में शामिल थे। कलकत्ता पुलिस के डिप्टी कमिश्नर दर्जे के पूर्व अधिकारी भी उसकी मंडली में थे।
इसी दरम्यान शंकर के पिता नृपेंद्र नारायण ने सर्वे पार्क में प्लॉट खरीद लिया और पूरा परिवार एंटाली से सर्वे पार्क आ गया। इसी घर से शंकर की शादी मधुमिता से हुई और उन्हें एक बेटा हुआ, जिसका नाम शुभोजित रखा गया। लेकिन इसके बाद शंकर ने यह घर छोड़ दिया और परिवार के नाते भी न के बराबर हो गये। शंकर के बड़े भाई शिलादित्य कहते हैं कि शंकर उसके बाद 2006 तक दो बार ही परिजनों से मिला, 2001 में पिता की मृत्यु पर और दूसरी बार सर्वे पार्क का मकान बेचने पर। साल 2005 में माँ की मृत्यु के बाद परिवार के लोगों के लिए उससे संपर्क करना भी संभव नहीं रहा। असल में शंकर अब तक परिजनों के लिए पूरा अजनबी बन चुका था।
पर वह शंकर से सुदीप्तो सेन कब बना, इसके बारे में कोई भी परिजन बताने में असमर्थ है। बड़े भाई को लगता है कि नब्बे के दशक के अंत में उसका यह नया अवतरण हुआ होगा। साल 1995-96 से 2000 तक वह कहाँ रहा, क्या करता रहा इसकी कोई खास जानकारी बाहर नहीं आ पायी है। इस नये अवतरण का पहला दस्तावेजी सबूत उसका पासपोर्ट ही है, जो 2004 में जारी हुआ।
सुदीप्तो को जानने वाले लोग बताते हैं कि वह अपने अतीत के बारे में कभी कोई बात नहीं करता है। महज जान-पहचान को मित्रता में बदलने उसे गजब की महारत हासिल है। रंगीनमिजाज सुदीप्तो को ठाठ-बाट से रहने का शौक है। कलकत्ता के साल्ट लेक के महँगे इलाके में उसके पाँच मकान बताये जाते हैं। आम चर्चा है कि उसकी पाँच बीवियाँ हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी कह चुकी हैं कि सुना है, उसकी तीन बीवियाँ हैं।
देवयानी की रहस्यमय शख्सीयत
शारदा समूह के मुखिया सुदीप्तो सेन का जीवन चरित्र जितना रहस्यपूर्ण और रोचक है, उतनी ही रोचक और रहस्यमय शख्सीयत हैं इस समूह में नंबर दो की हैसियत रखने वाली देवयानी मुखोपाध्याय। कश्मीर में 22 अप्रैल को सुदीप्तो सेन की गिरफ्तारी के साथ ही देवयानी भी रातों-रात सुर्खियों में आ गयी। गिरफ्तारी के समय देवयानी भी सुदीप्तो के साथ ही थीं। कहने के लिए तो 27 वर्षीय देवयानी शारदा समूह की कई कंपनियों में निदेशक है, लेकिन जानकार बताते हैं कि सुदीप्तो उसके बिना कोई कदम नहीं बढ़ाता था। समूह में उसकी तूती बोलती थी। कोई कर्मचारी या एजेंट उसकी अनुमति के बिना सुदीप्तो से नहीं मिल सकता था। समूह के हर बड़े निर्णय में इस महिला का दखल रहता था।
पाँच साल पहले देवयानी इस समूह की ट्रैवल कंपनी में सेक्रेटरी के तौर पर आयी थी। कुछ लोगों के अनुसार उसकी नियुक्ति बतौर रिसेप्शनिस्ट हुई थी। सुदीप्तो की नजर देवयानी पर पड़ी और उसने उसे कंपनी का निदेशक बना दिया। उसकी इस तरक्की से सभी कर्मी हतप्रभ थे। इन दोनों के संबंधों को लेकर जितने मुँह उतने किस्से हैं। देवयानी को महँगी साडिय़ाँ और महँगे कॉस्मैटिक्स खरीदने का शौक है।
देवयानी का यह रूपांतरण देख कर कॉलेज और स्कूल के दिनों के उसके सहपाठी और शिक्षक भी भौंचक रहते थे। पढ़ाई के दौरान देवयानी बेहद दब्बू किस्म की लड़की थी। अंग्रेजी में एमए करने बाद वह एयरहोस्टेस बनना चाहती थी। इस चाहत को पूरा करने में उसका व्यक्तित्व सबसे बड़ी बाधा साबित हुआ। उसने 2007 में शारदा समूह में नौकरी कर ली। यद्यपि उसने अंग्रेजी में एमए किया है, लेकिन अंग्रेजी बोलने में उसे महारत नहीं है। उसके टीचर अब भी मुश्किल से विश्वास कर पाते हैं कि इस लड़की ने शारदा समूह और उसके मुखिया को अपने इशारों पर नचा रखा था। आज उसके पास दक्षिण कोलकाता की पॉश कॉलोनी में शानदार फ्लैट है। चर्चा गरम है कि अस्सी लाख रुपये का यह फ्लैट सुदीप्तो सेन ने उसे उपहार में दिया है।
कैसे ढह गया महल?
शारदा समूह की उगाही जब दिनों-दिन बढ़ रही थी तो अपार नकदी पर खड़ा यह महल अचानक कैसे ढह गया। राज्य के सत्ताधारी दल से करीबी रिश्तों के बाद भी उसे अपना कामधेनु व्यापार चलाने में अचानक क्यों दिक्कतें आने लगीं? इसका कुछ-कुछ जवाब 10 अप्रैल को फरार होने से पहले सीबीआई को लिखे उसके पत्र और पुलिस की पूछताछ के बारे में सूत्रों पर आधारित खबरों से मिलता है।
असल में 2010 में सेबी ने शारदा समूह के कारोबार को लेकर आपत्तियाँ उठायीं। इससे सुदीप्तो डर और घबराहट से जकड़ गया और यह फरेबी खुद फरेब में फँसता चला गया। पूछताछ के दौरान उसने बताया कि उसे अपना कारोबार चलाने के लिए हर महीने पुलिस और सेबी के अधिकारियों को भारी मात्रा में पैसा पहुँचाना पड़ता था। सूत्रों के अनुसार उसे हर महीने सेबी अधिकारियों को 70 लाख रुपये और असम पुलिस को 40 लाख रुपये पहुँचाने होते थे।
उसने अनेक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों को हालात ‘सँभालने’ के लिए अपने समूह में रखा था, जिनको भारी भुगतान करना पड़ता था। मुख्य अभियुक्त सुदीप्तो के सीबीआई को लिखे पत्र से पता चलता है कि उसे ‘बंगाल के प्रभावशाली राजनीतिज्ञों के हमले और शोषण से हानि उठानी पड़ी।’ इस पत्र से लगता है कि सुदीप्तो ने अपने मायाजाल का अंत निकट जान कर अपने बचाव के रास्ते तेजी से तलाशने शुरू कर दिये। लेकिन यही रास्ते उसके कपट पूर्ण साम्राज्य के लिए ताबूत की आखिरी कील साबित हुए।
खबरों के मुताबिक सुदीप्तो ने पत्र में लिखा है कि वामपंथी सरकार के एक मंत्री से मिलने के बाद बंगाली दैनिक प्रतिदिन में कुणाल घोष (जो अब तृणमूल कांग्रेस के सांसद हैं) ने शारदा समूह पर प्रहारों की झड़ी लगा दी। इन प्रहारों से खुद को बचाने के लिए उसने मीडिया जगत में प्रवेश किया और चैनल 10 को 24 करोड़ रुपये में खरीद लिया। इस चैनल के शुरू होते ही बंगाली दैनिक प्रतिदिन के दो प्रतिनिधि मिले और सुलह हो गयी। ये दोनों प्रतिनिधि बाद में तृणमूल कांग्रेस के सांसद बने। सुदीप्तो के अनुसार खबरों की साझेदारी के लिए इस मीडिया हाउस को हर महीने 60 लाख रुपये देना तय हुआ और उनके वरिष्ठ आदमी को 15 लाख रुपये के वेतन पर चैनल का मुख्य अधिकारी नियुक्त करने की बात हुई।
सुदीप्तो के दावों के अनुसार ये लोग चाहते थे कि विख्यात बंगाली अभिनेत्री शताब्दी राय को चैनल का ब्रांड एंबैस्डर बनाया जाये और उन्हें 30 लाख रुपये प्रति माह दिये जायें। शताब्दी राय भी बाद में तृणमूल कांग्रेस की सांसद बनीं। सुदीप्तो के अनुसार इस मीडिया घराने ने उसे आश्वस्त किया था कि यह समझौता उसके कारोबार की सरकार से रक्षा करने में सहायता करेगा, क्योंकि उनके मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से गहरे संबंध हैं। पिछले दो सालों में चेक या खाते में हस्तांतरण से 20 करोड़ रुपये इस मीडिया हाउस को दिये गये। गाड़ी और अन्य खर्चों के लिए कुणाल घोष को प्रति माह डेढ़ लाख रुपये अलग दिये जाते थे।
लेकिन प्रतिदिन अखबार ने शारदा समूह के इन आरोपों का खंडन किया है। प्रतिदिन में 24 अप्रैल को पहले पेज पर छपे अपने संपादकीय में सृंजॉय बोस ने कहा कि यह केवल संपादकीय सामग्री का सौदा था और इसका चिट फंड से कोई लेना देना नहीं था। उनका दावा है कि समझौते के अनुसार भुगतान भी नहीं मिला है। कुणाल घोष ने भी सुदीप्तो के लगाये आरोपों का खंडन किया और कहा कि वे शारदा समूह की मीडिया इकाई में महज एक वेतनभोगी कर्मचारी थे और समूह के अन्य कारोबार से उनका लेना-देना नहीं था।
सीबीआई को लिखे पत्र में दो और व्यक्तियों का जिक्र है। इनमें से एक नरसिंह राव सरकार में मंत्री रहे मतंग सिंह हैं। दूसरा नाम मनोरंजना सिंह का है। सुदीप्तो के अनुसार मनोरंजना सिंह उन्हें नलिनी चिदंबरम (केंद्रीय वित्त मंत्री की पत्नी) से मिलाने के लिए चेन्नई ले गयीं, जिन्होंने उससे उत्तर पूर्व में चैनल शुरू करने के लिए मनोरंजना सिंह की कंपनी को 24 करोड़ रुपये की मदद करने के लिए कहा। पत्र के अनुसार श्रीमती चिदंबरम ने एक समझौता-पत्र तैयार किया, जिसमें इस सौदे पर किसी विवाद में उन्हें मध्यस्थ बनाने की बात थी। उन्होंने अगले डेढ़ साल तक परामर्श के लिए एक करोड़ रुपये की राशि तय की। सुदीप्तो ने मनोरंजना सिंह की कंपनी जीएनएन लिमिटेड को 25 करोड़ रुपये का भुगतान करने का दावा किया है। लेकिन नलिनी चिदंबरम ने बड़े स्पष्ट ढंग से इन आरोपों का खंडन किया है।
मनोरंजना सिंह ने मतंग सिंह और उनकी कंपनी पॉजिटिव टीवी लिमिटेड के खिलाफ कंपनी लॉ बोर्ड में दायर याचिका के लिए वरिष्ठ वकील के रूप में नलिनी चिदंबरम की सेवाएँ ली थीं। कहा जा रहा है कि मनोरंजना सिंह की योजना टीवी चैनल लाने की थी, जिसमें निवेश के लिए शारदा समूह का प्रस्ताव था। मनोरंजना सिंह इस प्रस्ताव की विधि-सम्यक पड़ताल कराना चाहती थीं। इस कार्य के लिए अनेक वकीलों में से नलिनी चिदंबरम भी एक थीं। इसके लिए बेंगलूरु की एक ऑडिट फर्म की सेवाएँ भी ली गयी थीं। पड़ताल के बाद इन सब लोगों ने मनोरंजना सिंह को शारदा समूह का निवेश प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करने की सलाह दी।
इस पत्र में एक टीवी चैनल के ख्यात टीवी रिपोर्टर का भी उल्लेख है। सुदीप्तो ने इस पत्र में लिखा है कि इस रिपोर्टर ने पूरी तरह मेरा दोहन और मानसिक उत्पीडऩ किया। इस पत्र में 22 जाने-माने लोगों का उल्लेख है। लेकिन इस पत्र को लिखने का असली उद्देश्य जाँच एजेंसियों को भटकाना है या अपनी व्यथा बता, यह कहना मुश्किल है क्योंकि पत्र में लिखी तमाम विस्फोटक सूचनाओं के लिए उसने दस्तावेजी सबूत पेश नहीं किये हैं।
शारदा समूह को लेकर आरोप-प्रत्यारोपों से इतना संकेत अवश्य मिलता है कि सेबी पत्र का मिलते ही सुदीप्तो आशंकाओं से कांप उठा। नकदी के इस लुटेरे को 2013 आते-आते नकदी की भारी कमी होने लगी। दरअसल 2012 के अंत तक ही कर्मचारियों के वेतन भुगतान में विलंब होने लगा था। अंतत: वह पिछली 10 अप्रैल को फरार हो गया। भारी मशक्कत के बाद उसे कश्मीर में 22 अप्रैल को गिरफ्तार किया जा सका।
शारदा समूह के हश्र के बाद क्या ऐसी घटनाओं का अंत हो जायेगा? पश्चिम बंगाल में ऐसी अनेक फरेबी कंपनियाँ पतन के कगार पर खड़ी हैं। सेबी ने इन कंपनियों को नोटिस दे रखा है। ऐसे दर्दनाक हादसों के बाद बार-बार यह सवाल उठता है कि निम्न आय वर्ग के लोग ही इन ठग कंपनियों का शिकार क्यों बनते हैं?
कभी स्पीक एशिया तो कभी स्टॉक गुरु : कब रुकेगा यह सिलसिला?
दरअसल पोंजी योजनाओं से ठगी अमेरिका में ही शुरू हुई और वहीं ऐसी योजनाओं को पोंजी का नाम मिला। चाल्र्स पोंजी (1882-1949) इटली का एक ठग था और अमेरिका में ठगी के सबसे बड़े कारनामों की फेहरिश्त में उसका नाम आता है। उसे केवल नये निवेशकों से मिलने वाले पैसों से ही पुराने निवेशकों को पैसे देते रहने वाली ठगी योजनाओं का पिता माना जाता है। इसीलिए ऐसी ठगी को पोंजी योजना कहा जाने लगा। चाल्र्स पोंजी की ठगी 1920 के दशक में परवान चढ़ी, जब उसने अपने ग्राहकों को केवल 45 दिनों में 50% फायदा या 90 दिनों में पैसा दोगुना करने का लालच दिया था।
निवेश मंथन पत्रिका अपनी शुरुआत से ही निवेशकों को ऐसी जालसाजियों से सावधान करती रही है। जुलाई 2011 में हमारी पत्रिका के पहले अंक की ही आमुख कथा स्पीक एशिया के जालबट्टे पर केंद्रित थी। इस आमुख कथा में हमने जो भी सवाल उठाये थे, उनका कोई जवाब आज तक नहीं मिला और समय के साथ हमारे सवाल सही साबित होते रहे।
जुलाई 2011 के अंक में ही हमने ठगी की फेहरिश्त में स्टॉकगुरु इंडिया का भी नाम डाला था, जिसने शेयरों में निवेश से हर महीने 20% फायदे का लालच देकर लाखों लोगों को जाल में फँसाया। अहमदाबाद के अभय गांधी ने भी कुछ ऐसा ही तरीका अपनाया था और वह हर तिमाही में 20% से 40% तक फायदे का लालच देता था। स्टॉकगुरु उल्हार खरे की गिरफ्तारी के बाद दिसंबर 2012 के अंक में हमने उसकी जालसाजी का पूरा ब्योरा छापा था।
कभी शेयरों में निवेश, तो कभी पेड़ों से कमाई, कभी सोने के सिक्कों से बेहिसाब मुनाफा तो कभी महँगी कारों से जबरदस्त आमदनी लालच देने का जरिया कुछ भी हो सकता है। ऐसे ठग निवेशकों को इतना बड़ा मुनाफा मिलने का लालच देते हैं, जो अन्यत्र संभव नहीं होता। वे निवेशकों को फंसाने के लिए अपने एजेंटों को भी भारी कमीशन देते हैं। उनका चक्र तभी तक चलता है, जब तक पुराने निवेशकों को पैसे देते रहने के लिए नये निवेशकों से पैसे आते रहते हैं। जब उन्हें लगता है कि गुब्बारा फूटने वाला है तो वे चंपत हो जाते हैं।
मीडिया, ममता बनर्जी और ग्लैमर
पिछले दो सालों से तृणमूल कांग्रेस की मुखिया और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर विपक्ष यह आरोप लगता रहा है कि वह राज्य के मीडिया को अंकुश में रखना चाहती हैं। विपक्षी दलों का यह आरोप भी है कि शारदा समूह के फरेबी कंपनियों के चैनलों और अखबारों के माध्यम से वह अपने लक्ष्य को अंजाम दे रही हैं। शारदा समूह के चार चैनल और दस अखबार थे। इन सभी पर ताला लटक चुका है और तकरीबन 3000 मीडिया कर्मी बेरोजगार हो चुके हैं।
रोज वैली ग्रुप के नौ चैनल व एक अखबार है। इसके अलावा चक्र ग्रुप, टावर ग्रुप और राहुल ग्रुप के अपने प्रकाशन या चैनल हैं। इन सभी कंपनियों के खिलाफ कंपनी मामलों के मंत्रालय को अनेक शिकायतें मिल चुकी हैं और इनमें से कई कंपनियों के ऊपर नियामक संस्था सेबी की तलवार लटक चुकी है। गौरतलब है इन सभी अखबारों और न्यूज चैनलों को भरपूर सरकारी विज्ञापन मिला। फोंजी स्कीम चलाने वाली कंपनियों के अखबारों व चैनलों में अचानक बाढ़ आना महज कोई संयोग नहीं है।
पिछले साल ममता बनर्जी ने चार पत्रकारों को अपनी पार्टी से राज्यसभा का सांसद बनाया था। तभी से मीडिया को अंकुश में रखने के विपक्षी आरोपों को बल मिला था। अब लगता है कि विपक्ष के यह आरोप निराधार नहीं थे। प्रतिदिन अखबार के मालिक टूटू बोस और उनके बेटे सृंजॉय बोस तृणमूल कांग्रेस के सांसद हैं और उनके संपादक कुणाल घोष भी। सबसे चौकाने वाली चीज है इनका अखबार प्रतिदिन शारदा समूह पर तेज प्रहार कर रहा था। अचनाक वह कैसे शारदा समूह की गोद में बैठ गया। इस वाक्ये से अस्सी के दशक में हुई वाडिया-अंबानी की जंग में अखबारों और पत्रकारों की भूमिका की याद आती है।
अंग्रेजी का एक अखबार वाडिया की जंग लड़ रहा था, तो सर्वहारा वर्ग का एक अखबार अंबानी की जंग लड़ रहा था। गौरतलब है पोंजी या फर्जी स्कीम चलाने वाली फर्मे पहली बार मीडिया की सवारी कर रही हों। इससे पहले नब्बे के दशक में कुबेर और जेबीजी समूह भी अखबार निकाल चुके हैं। दिलचस्प बात यह है कि इनमें से कोई भी अपना कारोबार सुरक्षित या कायम नहीं रख पाया। बंगाल की इन फरेबी कंपनियों का एक और दिलचस्प पहलू है कि ग्लैमर की दुनिया से इनका गहरा रिश्ता है। रोज वैली समूह शाहरुख खान की टीम केकेआर का सहप्रायोजक है। प्रयाग समूह भी एक ऐसा संस्थान है जिसे सेबी का नोटिस मिल चुका है। इसके विज्ञापनों में भी शाहरुख खान को आसानी से देखा जा सकता है। रोज वैली के गौतम कुंडू की बनायी फिल्मों को दो बार राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है।
(निवेश मंथन, मई 2013)