सुशांत शेखर :
करीब 10 साल बाद देश में एक बार फिर नये बैंक खुलने जा रहे हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक ने 22 फरवरी को नये बैंकिंग लाइसेंस पर अंतिम दिशा-निर्देश जारी दिया। आरबीआई ने नये बैंकिंग लाइसेंस के लिए किसी खास कारोबार से जुड़ी कंपनियों से भेदभाव तो नहीं किया है, लेकिन नियम इतने सख्त हैं कि सिर्फ गंभीर खिलाड़ी ही नये बैंकिंग लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकेंगे।
नये लाइसेंस की पहली शर्त यह है कि निजी या सरकारी कंपनियाँ पूर्ण स्वामित्व वाले नॉन-ऑपरेटिव फाइनेंशियल होल्डिंग कंपनी (एनओएफसीएच) के जरिये ही बैंक खोल सकेंगी। बैंकिंग लाइसेंस चाहने वाली कंपनियों को अपनी दूसरी वित्तीय सेवाएँ भी एनओएफसीएच के तहत लाना होगा। एनओएफसीएच को रिजर्व बैंक के पास गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के तौर पर रजिस्टर कराना होगा। इससे एनओएफसीएच पर आरबीआई की सीधी निगरानी तो होगी ही, साथ ही समूह की दूसरी वित्तीय सेवाएँ भी अप्रत्यक्ष तौर पर आरबीआई की निगरानी में आ जायेंगी।
नये बैंक खोलने के लिए आवेदक कंपनी की न्यूनतम चुकता पूँजी 500 करोड़ रुपये की होनी चाहिए। साथ ही ऐसी कंपनियों और उनके प्रमोटरों के कारोबार का कम-से-कम 10 साल का सफल प्रदर्शन होना चाहिए।
रिजर्व बैंक शुरुआत में रियल एस्टेट और शेयर ब्रोकिंग कारोबार से जुड़ी कंपनियों को बैंकिंग लाइसेंस देने के पक्ष में नहीं था। लेकिन वित्त मंत्रालय चाहता था कि ऐसी कोई बंदिश न लगायी जाये। अब आरबीआई ने अंतिम दिशानिर्देशों में किसी क्षेत्र विशेष पर रोक नहीं लगायी है। लेकिन इसने कहा है कि साफ-सुथरे कारोबारी रिकॉर्ड वाले प्रमोटर ही बैंकिंग क्षेत्र में आने चाहिए। इसके लिए वह दूसरे नियामकों और एजेंसियों से रिपोर्ट ले सकता है।
रिजर्व बैंक ने स्पष्ट किया है कि एनओएफसीएच या बैंक की प्रमोटर समूह में कोई हिस्सेदारी नहीं होगी। साथ ही बैंक, एनओएफसीएच की किसी वित्तीय इकाई की इक्विटी या डेट कैपिटल में निवेश नहीं करेगा।
इन नये बैंकों में पहले पाँच सालों तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई की सीमा 49% रहेगी। इनके लिए अपनी 25% शाखाएँ ग्रामीण इलाकों में खोलना जरूरी होगा। ये शाखाएँ ऐसे क्षेत्रों में खोलनी होंगी, जहाँ पहले कोई बैंक न हो और आबादी 10,000 से कम हो। नये बैंकों को भी अपने कुल कर्ज का 40% हिस्सा प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को देना होगा।
कौन हैं लाइसेंस के दावेदार
ब्रोकिंग फर्म एंजेल ब्रोकिंग की रिपोर्ट के मुताबिक रिजर्व बैंक के नये दिशानिर्देशों पर रिलायंस इंडस्ट्रीज, लार्सन एंड टुब्रो, महिंद्रा ऐंड महिंद्रा, टाटा ग्रुप, बिरला ग्रुप और बजाज ग्रुप के साथ श्रीराम ग्रुप जैसी नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियाँ भी खरी उतरती है। इन सभी कंपनियों ने नये बैंक खोलने में दिलचस्पी दिखायी है। रिपोर्ट के मुताबिक रिजर्व बैंक ज्यादा लाइसेंस देने के बजाय 5-6 गंभीर खिलाडिय़ों को ही चुनेगा। आवेदकों को इस साल एक जुलाई तक आरबीआई के पास अर्जी देनी होगी।
नये बैंकों के फायदे
रिजर्व बैंक ने पिछली बार 10 साल पहले 2003-04 में कोटक महिंद्रा बैंक और यस बैंक को लाइसेंस दिया था। नये बैंकों के आने के बाद बैंकिंग सुविधाएँ और बेहतर भी होने की उम्मीद होगी। नये बैंक आयेंगे तो उन्हें पुराने बैंकों से कड़ा मुकाबला करना होगा। नये बैंक खाताधारकों को सस्ते कर्ज और जमा पर ज्यादा ब्याज दे कर ग्राहकों को आकर्षित करने की कोशिश कर सकते हैं। इसकी बानगी मौजूदा परिवेश में ही दिख रही है। बचत खातों पर इस समय यस बैंक और कोटक महिंद्रा बैंक 6% ब्याज दे रहे हैं, जबकि पुराने बैंक 4% की सीमा पर ही अटके हुए हैं। ऐसे में नये बैंक आम निवेशकों के लिए फायदेमंद हो सकते हैं।
(निवेश मंथन, मार्च 2013)