डी. आलोक :
विभिन्न वित्तीय उत्पादों से मिल कर बना पोर्टफोलिओ न केवल आपके वित्तीय जीवन में स्थिरता लाता है, बल्कि आपके सभी वित्तीय लक्ष्यों की प्राप्ति में मददगार भी साबित होता है।
वित्तीय पोर्टफोलियो बनाते समय व्यक्ति की उम्र, उसकी जोखिम उठाने की क्षमता, उस पर निर्भर लोगों की संख्या और उसके वित्तीय लक्ष्यों पर ध्यान देना होता है। इसमें सबसे पहले उसे अपने ऊपर निर्भर लोगों के वित्तीय भविष्य को सुरक्षित करने का प्रयास करना होता है। उसके बाद अपने रिटायरमेंट के बाद के जीवन के लिए नियमित आय की व्यवस्था करनी होती है और फिर अंत में अपने विभिन्न लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उचित वित्तीय विकल्पों में निवेश करना होता है।
लेकिन यह सब करते समय व्यक्ति को यह ध्यान भी देना होता है कि अपनी आमदनी और निवेश से मिलने वाले रिटर्न पर अधिक कर न देना पड़े। यानी वित्तीय नियोजन के साथ-साथ कर नियोजन भी उतना ही जरूरी होता है। जानकारों का कहना है कि कर नियोजन दरअसल वित्तीय नियोजन के अनुरूप होना चाहिए और उसी दिशा में होना चाहिए। लंबी अवधि की वित्तीय योजना बनाते समय कर बचत के विकल्पों का इस तरह से इस्तेमाल करना चाहिए कि कर देनदारी न्यूनतम हो जाए और कर बचत के विकल्पों से मिलने वाला रिटर्न अधिकतम होता जाए। कुछ वित्तीय योजनाकारों का यह भी कहना है कि केवल कर बचत के विकल्पों की मदद से भी व्यक्ति अपना वित्तीय पोर्टफोलिओ बना सकता है।
सबसे पहले व्यक्ति अपने ऊपर निर्भर लोगों के वित्तीय भविष्य को सुरक्षित करना चाहता है। इसके लिए आवश्यक है कि वह अपने लिए जीवन बीमा योजना खरीदे। जीवन बीमा खरीदते समय यह ध्यान देना जरूरी होता है कि व्यक्ति की बीमा राशि पर्याप्त हो। जीवन बीमा योजना के प्रीमियम की अदायगी पर आय कर अधिनियम की धारा 80 सी के तहत कर से छूट मिलती है। वित्तीय नियोजन का अगला कदम होता है चिकित्सा बीमा योजना खरीदना। इस बीमा योजना के प्रीमियम की अदायगी पर आय कर अधिनियम की धारा 80 डी के तहत कर से छूट उपलब्ध होती है।
इसके बाद क्रम आता है सेवानिवृति के बाद के जीवन की योजना बनाने का। इसके लिए आवश्यक है किसी ऐसे वित्तीय विकल्प का चुनाव, जो एक निश्चित समय के बाद (यानी रिटायर होने के बाद) के लिए एक बड़ी पूँजी का संग्रह करने में सहायता करे और उसके बाद के जीवन के लिए नियमित आय की व्यवस्था कर सके। जानकार बताते हैं कि पब्लिक प्रॉविडेंट फंड एक ऐसा विकल्प है जो इस काम के लिए अपनाया जा सकता है। पीपीएफ में किए जाने वाले निवेश पर आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत कर से छूट मिलती है। इसकी लॉक-इन अवधि 15 वर्ष होती है। इस अवधि के बाद इसे अतिरिक्त पाँच साल के लिए बढ़ाया जा सकता है। इसके चयन की सबसे बड़ी वजह यह है कि यह ऐसे कर विकल्पों की श्रेणी में आता है जिन पर ई-ई-ई सुविधा उपलब्ध है। कारोबारी साल 2012-13 के लिए इस पर 8.8% ब्याज की घोषणा की गयी है। निवेश का यह सुरक्षित विकल्प सालाना 8-9% प्रतिशत लाभ दे तो 15 से 20 सालों की अवधि के बाद अच्छी-खासी रकम मिल सकती है।
इसके बाद क्रम आता है निवेश के अन्य विकल्पों का। जानकार बताते हैं कि बड़े लक्ष्यों की खातिर अच्छी-खासी रकम जुटाने के लिए ऐसे वित्तीय उत्पादों में निवेश करना चाहिए, जिन पर सालाना 12-15% का लाभ हासिल हो सके। ऐसा लाभ पाने के लिए सबसे मुफीद विकल्प है इक्विटी म्यूचुअल फंड। लेकिन साथ ही यह ध्यान भी रखना है कि व्यक्ति को कर की बचत भी करनी है। इस स्थिति को देखते हुए ऐसी इक्विटी म्यूचुअल फंड योजनाओं में निवेश किया जाना चाहिए, जिनसे कर में छूट मिलती हो। व्यक्ति की इसी जरूरत को पूरा करती है इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम (ईएलएसएस)। इस योजना की लॉक-इन अवधि तीन साल होती है। ईएलएसएस में किये गये निवेश पर भी आय कर अधिनियम की धारा 80सी के तहत कर छूट मिलती है। ईएलएसएस से मिलने वाले लाभांश या लंबी अवधि के कैपिटल गेन पर भी कर नहीं लगता। इसमें केवल 500 रुपये की न्यूनतम राशि से निवेश शुरू किया जा सकता है। इसमें सिप यानी नियमित निवेश योजना के तहत भी निवेश किया जा सकता है।
आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत सालाना एक लाख रुपये तक के निवेश पर ही कर छूट मिलती है। ऐसे में जीवन बीमा प्रीमियम, पीपीएफ और ईएलएसएस में निवेश - इन तीनों को संतुलित कर इस सीमा का सही इस्तेमाल करना चाहिए। एक सामान्य नियम यह है कि आयु बढऩे के साथ पीपीएफ में निवेश बढ़ाते जायें और ईएलएसएस में निवेश कम करते जायें।
(निवेश मंथन, फरवरी 2013)