डी. आलोक :
निवेशकों के पास वैसे तो कर बचत के कई विकल्प होते हैं, लेकिन वे अक्सर उस विकल्प को पसंद करते हैं जो लंबी अवधि के लक्ष्य पाने में मददगार हों।
वैसे तो वित्तीय बाजार में कई सारे ऐसे वित्तीय विकल्प उपलब्ध हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश विकल्प ऐसे हैं जो बाजार से जुड़े हुए हैं, लिहाजा न केवल उनके साथ जुड़ा हुआ जोखिम अधिक है, बल्कि दूसरी ओर उनसे मिलने वाले रिटर्न में भी खासा उतार-चढ़ाव होता है।
एक आम निवेशक निश्चित दर से सुरक्षित रिटर्न देने वाले विकल्प को पसंद करता है। पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (पीपीएफ) खास तौर पर ऐसे लोगों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है, जो सुरक्षित विकल्पों में लंबी अवधि के लिए निवेश करना चाहते हैं। वैसे तो इसका लॉक-इन पीरियड 15 साल होता है, लेकिन इसके बाद और पाँच साल के लिए इसे बढ़ाया जा सकता है। पीपीएफ का इतना लंबा लॉक-इन पीरियड और इसके बाद मिलने वाली परिपक्वता राशि इसे लंबी अवधि के लिहाज से बेहतरीन विकल्प बना देते हैं।
कर के मोर्चे पर फायदा
निवेशकों के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि कराधान के मामले में पीपीएफ ईईई श्रेणी में आता है। इसका मतलब यह है कि सबसे पहले इसमें किये गये निवेश को (सालाना एक लाख रुपये तक की 80सी की सीमा के अंदर) कर योग्य आय में से घटाया जाता है, यानी उस पर कर नहीं लगता। उसके बाद पीपीएफ में किये गये निवेश पर मिलने वाले ब्याज पर भी कर नहीं लगता। यही नहीं, पीपीएफ खाते से निकाली जाने वाली परिपक्वता राशि भी कर मुक्त होती है। आयकर अधिनियम 1961 की धारा 80सी के तहत एक वित्त वर्ष के दौरान एक लाख रुपये तक के निवेश पर कर से छूट मिलती है। गौरतलब है कि पीपीएफ में किये जाने वाले निवेश पर भी इसी धारा के तहत छूट दी जाती है। इस तरह पीपीएफ में एक साल में अधिकतम एक लाख रुपये तक के निवेश पर कल लाभ लिया जा सकता है।
पीपीएफ खाते के नियम
कोई भी व्यक्ति न्यूनतम केवल 500 रुपये जमा कर अपने लिए पीपीएफ खाता खोल सकता है। यह खाता किसी नामित बैंक या डाक घर में खोला जा सकता है। लेकिन किसी व्यक्ति के एक से अधिक पीपीएफ खाते नहीं हो सकते।
इसके अलावा, पीपीएफ का संयुक्त खाता नहीं खोला जा सकता। अनिवासी भारतीय यह खाता नहीं खोल सकते। इसमें सालाना निवेश की न्यूनतम राशि 500 रुपये है, जबकि अधिकतम सालाना निवेश की राशि एक लाख रुपये है। इसमें एक साल में 12 से अधिक बार निवेश नहीं किया जा सकता।
आंशिक निकासी और कर्ज
हालाँकि इससे पूरी राशि तो परिपक्वता के समय ही निकाली जा सकती है, लेकिन जरूरत पडऩे पर इसमें से आंशिक निकासी की जा सकती है। इसके लिए कुछ शर्तें होती हैं। पीपीएफ खाता खोलने के छठे वित्तीय वर्ष से ही इसमें से आंशिक निकासी की जा सकती है। इससे पहले इसमें से पैसा नहीं निकाला जा सकता।
किसी एक साल के दौरान इसमें से एक से अधिक निकासी की अनुमति नहीं है। उदाहरण के तौर पर, अगर आपने नवंबर 2011 में अपना पीपीएफ खाता खोला हो तो आप सबसे पहले वित्तीय वर्ष 2017-18 में ही इसमें से आंशिक निकासी कर सकते हैं, उसके पहले नहीं।
इसमें से जो अधिकतम राशि निकाली जा सकती है, उस पर भी कुछ सीमाएँ लगी हुई हैं। जहाँ तक इस पर मिलने वाले कर्ज का सवाल है, खाता खोलने के बाद तीसरे वित्तीय वर्ष से ले कर छठे वित्तीय वर्ष तक इस पर कर्ज लिया जा सकता है। अगर आपने अपना पीपीएफ खाता नवंबर 2011 में खोला है तो आप एक अप्रैल 2014 से लेकर 31 मार्च 2017 तक इस पर कर्ज ले सकते हैं।
भले ही इस खाते के साथ आंशिक निकासी और कर्ज की सुविधाएँ मुहैया करायी गयी हों, लेकिन इन सुविधाओं के साथ जो शर्तें जुड़ी हुई हैं, वे सभी इस निवेश को लंबी अवधि तक रखने के लिए ही प्रोत्साहित करती हैं। आंशिक निकासी की इस सुविधा का इस्तेमाल किसी आर्थिक मुश्किल में ही करना चाहिए।
पीपीएफ पर मिलने वाला रिटर्न
पीपीएफ खाते में होने वाले निवेश पर रिटर्न की बात करें तो इस पर मिलने वाली ब्याज दर हर साल बदलती रहती है। कारोबारी साल 2012-13 के लिए इस पर 8.8% का ब्याज तय किया गया है।
यदि कोई व्यक्ति साल 2012 से पीपीएफ में एक लाख रुपये का निवेश करना शुरू करे और पूरी लॉक-इन अवधि के दौरान हर साल इतनी ही राशि का निवेश करता रहे तो लॉक-इन अवधि पूरी होने के बाद अंत में उसे तकरीबन 30 लाख रुपये मिलेंगे (यदि हम यह मान कर चलें कि आने वाले सालों में इस पर 8% की दर से ही ब्याज मिलेगा)।
(निवेश मंथन, फरवरी 2013)