सुभाष लखोटिया, कर और निवेश सलाहकार :
कारोबारी साल के अंतिम महीनों, यानी फरवरी-मार्च में यह देखना चाहिए कि कर छूट के जो लाभ लिये जा सकते हैं, वो सारे लाभ लेने की तैयारी हो।
ऐसा ना हो कि आखिरी क्षण में हमारे पास इसके लिए पैसे ही ना हों। अगर किसी कारण से ऐसी स्थिति आ जाये तो संपत्ति के कर्ज पर ब्याज भुगतान थोड़ा रोका जा सकता है, लेकिन आयकर कानून की धारा 80सी और मेडिक्लेम पर कर छूट का लाभ जरूर ले लें। अगर ब्याज का भुगतान बाकी रह जाये तो भी आयकर कानून में ब्याज के भुगतान की छूट मिलेगी। अगर एक दो महीने बाद भी ब्याज का भुगतान करेंगे तो कर छूट को गँवाना नहीं होगा।
अभी 80सी में आप एक लाख रुपये की सीमा तक कर छूट का लाभ ले सकते हैं। मेरी सलाह है कि जो 25 से 40 साल की उम्र के हैं, उनके लिए पीपीएफ बेहतर होगा। इससे उन्हें अपने निवेश पर 8.8% करमुक्त ब्याज मिलेगा। जो वरिष्ठ नागरिक हैं, चाहे वे वेतनभोगी हों या व्यवसायी हों, उनके लिए पीपीएफ में लंबे समय तक जमे रहना सही नहीं है। उनके लिए बेहतर है कि बैंक की मियादी जमाओं (फिक्स्ड डिपॉजिट) में पैसा रखें। इस पर उन्हें निश्चित आय भी मिलेगी और यदि पाँच साल पैसा बँधा रहे तो भी कोई समस्या नहीं है।
जिनके छोटे बच्चे हैं, उनके लिए सबसे जरूरी है बच्चों की शिक्षा। इसलिए स्कूल की फीस घटाने के बाद ही उन्हें देखना चाहिए कि 80सी का लाभ लेने के लिए और कितना निवेश करना है। जो लोग गृह कर्ज (होम लोन) की किश्तों का भुगतान कर रहे हैं, उनके लिए 80सी की सीमा का एक बड़ा हिस्सा गृह कर्ज के मूलधन (प्रिंसिपल एमाउंट) की वापसी से ही पूरा हो जाता है।
ईएलएसएस को लेकर लोगों के मन में अभी थोड़ी-सी दुविधा है। लेकिन लोगों की इसकी चिंता आज नहीं करनी चाहिए कि आगे चल कर ईएलएसएस में क्या होगा। मान लें कि प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) लागू हो गयी और उसमें ईएलएसएस के नियम में बदलाव हो गया, तो भी मेरे हिसाब से उसका नकारात्मक प्रभाव आज के निवेश पर नहीं पड़ेगा। लेकिन अभी ईएलएसएस के प्रति लोगों की रुचि इसलिए फीकी पड़ गयी है कि पिछले कुछ सालों में इसमें मिलने वाला लाभ काफी कमजोर रहा है। म्यूचुअल फंड अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं। जब तक म्यूचुअल फंडों के प्रदर्शन में सुधार नहीं होगा, तब तक लोगों का रूझान ईएलएसएस में नहीं होगा। जब पीएफएफ में 8.8% करमुक्त ब्याज मिल रहा है, तो लोग ईएलएसएस या बैंक एफडी जैसे विकल्पों को चुनने की इच्छा नहीं करेंगे।
पिछले साल तक इन्फ्रा बांड भी कर छूट के लिए उपलब्ध थे, जिन पर 80सी की एक लाख रुपये की सीमा के ऊपर अतिरिक्त 20,000 रुपये के निवेश पर कर छूट थी। इस बार यह छूट नहीं है। टैक्सफ्री बांड जरूर हैं, लेकिन ध्यान रखें कि इनमें 80सी के तहत किसी भी प्रकार की छूट नहीं मिलती। ऐसे बांड का केवल यही फायदा है कि उससे होने वाली ब्याज आय करमुक्त होगी। जिनकी सालाना आय दस लाख रुपये से ज्यादा है, बुजुर्ग हैं, अपने पैसे को सुरक्षित रखना चाहते हैं, वे जरूर अपने पैसे को टैक्सफ्री बांड में रखें। यहाँ ध्यान रखें कि कैपिटल गेन बचाने के लिए टैक्सफ्री बांड में निवेश न कर दें। आयकर कानून के मुताबिक कैपिटल गेन के लिए केवल दो ही बांड हैं, जिनमें निवेश करने पर टैक्स बचता है।
कई लोग सोच रहे हैं कि संभवत: टैक्सफ्री बांड में निवेश का अवसर इस साल 31 मार्च तक मिलेगा और अगले साल से शायद यह नहीं होगा। मेरा मानना है कि टैक्सफ्री बांड कल भी थे और आगे भी रहेंगे। सरकार की नीतियों के हिसाब से अलग-अलग समय में टैक्सफ्री बांड जारी किये जाते रहेंगे। आज ऐसी स्थिति नहीं लगती कि आने वाले समय में टैक्सफ्री बांड जारी नहीं किये जायेंगे।
यदि मान लें कि आने वाले समय में टैक्सफ्री बांड नहीं मिलेंगे तो भी इतनी चिंता नहीं है। ये बांड खुले बाजार में आसानी से मिलेंगे। जो लोग मार्च के बाद करमुक्त बांड खरीदना चाहते हैं तो वे बाजार से खरीद सकते हैं और जो बेचना चाहते हैं वे बेच भी सकते हैं। बाजार में इनकी खरीद-बिक्री चलती रहेगी। यदि आपने सेकेंडरी मार्केट से टैक्सफ्री बांड खरीदा तो भी आपको आयकर में छूट मिलेगी और उसकी ब्याज आय पर आयकर नहीं लगेगा।
डीटीसी इस बार ही बजट में आयेगा या फिर अगली सरकार इसे लेकर आयेगी, इसका कुछ नहीं पता। ऐसे में पाठक चिंता न करें। केवल ये सोचें कि जिस दिन यह आयेगा, उस दिन से इसके नियमों के मुताबिक हम अपनी कर प्रक्रिया को अपनायेंगे। मेरा मानना है कि ऐसा कोई सख्त नियम नहीं आयेगा, जिसकी वजह से किसी पुराने निवेश पर डीटीसी की वजह से कर लगे।
मेरी यह भी सलाह है कि एक अप्रैल से ही अगले वित्त वर्ष 2013-14 की योजना बना लें। यदि मुझे एक लाख रुपये लगाने हैं तो इस पर विचार करें कि मेरे परिवेश में, मेरे लिए कौन-सा विकल्प अच्छा है।
अपने नकद आय-व्यय (कैश फ्लो) का पूरा चार्ट बनायें, जिससे 80सी या अन्य कर संबंधी फायदों के लिए मासिक तौर पर नियमित निवेश कर सकें। आप जितना जल्दी निवेश करेंगे, उतनी जल्दी अपने नियोक्ता को सारा विवरण दे पायेंगे। इससे टीडीएस कम कटेगा। लोगों की आदत है फरवरी-मार्च के आखिरी दिनों में टैक्स बचाने की, लेकिन वह सही नहीं है।
(निवेश मंथन, फरवरी 2013)