आइये देखते हैं कि मार्च 2013 में खत्म होने वाले कारोबारी साल के लिए आय कर का बोझ हल्का करने के कौन-कौन से विकल्प आपके पास हैं।
अगर ऐसे तमाम विकल्पों का पूरा फायदा उठाया जाये तो सामान्य रूप से सालाना 5.87 लाख रुपये तक की आमदनी वाले व्यक्ति की भी आयकर देनदारी शून्य हो सकती है।
अगर आप किसी से पूछें कि सालाना कितनी आमदनी पर आयकर शून्य होता है, तो आम तौर पर आपको जवाब मिलेगा - दो लाख रुपये। कुछ लोग बता सकते हैं कि आप कर छूट की योजनाओं का लाभ उठा कर थोड़ी और आमदनी पर आय कर बचा सकते हैं। लेकिन अगर हम आपसे कहें कि सालाना 5.87 लाख रुपये, यानी लगभग छह लाख रुपये तक की आमदनी के बावजूद आप शून्य आय कर के हकदार हैं, तो शायद आपको हैरानी होगी। लेकिन यह बात है तो सच। आयकर कानून की अलग-अलग धाराओं के तहत मिली तमाम छूट का अगर पूरा फायदा उठाया जाये तो ऐसा हो सकता है। यह न सोचें कि इसमें कानूनी या नैतिक रूप से कुछ गलत होगा, क्योंकि सरकार ने आय कर में छूट की जो सुविधाएँ दे रखी हैं, उनका पूरा-पूरा फायदा उठाना आपका हक है। बस अगर आप हर कारोबारी साल की शुरुआत से ही थोड़ी तैयारी करके चलें और आय कर प्रावधानों का लाभ समझदारी से उठायें तो आप अपने आय कर का बोझ काफी हल्का कर सकते हैं। आगे हम देखेंगे कि कैसे 5.82 लाख रुपये तक की सालाना आमदनी पर शून्य आय कर देनदारी होगी।
कैसे तय होती है कर योग्य आय
आपकी कर योग्य आय का हिसाब लगाने के लिए सबसे पहले तो आपको अपनी कुल आमदनी जोडऩी पड़ती है। इसमें हर तरह की आमदनी जोडऩी चाहिए, जैसे वेतन-भत्तों, अपने किसी मकान से किराया, कोई अन्य कारोबार हो तो उससे मिला लाभ, पूँजीगत लाभ (कैपिटल गेन) और अन्य स्रोतों से आय, जैसे बैंक से ब्याज वगैरह।
अब इसमें वैसी आमदनी घटायी जायेगी, जो आय कर से मुक्त है। मुख्य रूप से मकान किराया भत्ता (एचआरए), परिवहन (कन्वेयेंस) भत्ता, बच्चों की शिक्षा का भत्ता, टेलीफोन भत्ता, छुट्टी यात्रा भत्ता (एलटीए), इलाज खर्च का भत्ता (मेडिकल रीइंबर्समेंट) जैसी चीजें तय सीमा और शर्तों के मुताबिक घटा दी जाती हैं। साथ ही कृषि से होने वाली आय को करमुक्त रखा गया है। अगर अविभाजित हिंदू परिवार (एचयूएफ) की आय या साझेदारी फर्म के लाभ में हिस्सा मिला हो तो उस पर भी आय कर नहीं लगता क्योंकि उस पर कर देनदारी एचयूएफ और साझेदारी फर्म के स्तर पर ही तय हो जाती है। इसके अलावा कुछ खास बांडों या प्रतिभूतियों (सिक्योरिटीज) पर मिले ब्याज या प्रीमियम, शेयरों और म्यूचुअल फंड योजनाओं में मिला लाभांश (डिविडेंड) भी करमुक्त है। वेतनभोगी कर्मचारी की श्रेणी में ग्रैच्युटी, कम्युटेड पेंशन, छुट्टी के बदले मिला भुगतान, छँटनी और स्वैच्छिक सेवानिवृति (वीआरएस) के समय मिलने वाला मुआवजा, प्रॉविडेंट फंड (पीएफ) की संचित निधि और ब्याज भुगतान वगैरह को भी कर योग्य आय में नहीं जोड़ा जाता है।
कहाँ-कहाँ मिलती है कर से राहत
एक वेतनभोगी कर्मचारी को कर बचत में एक बड़ी राहत मिलती है एचआरए के जरिये। आम तौर पर यह उनके मूल वेतन (बेसिक सैलरी) का 40% तक होता है। कर्मचारियों को कंपनी की ओर से मिलने वाला मासिक परिवहन भत्ता (कन्वेयेंस या ट्रांसपोर्ट एलाउएंस) 800 रुपये प्रति माह तक कर मुक्त है। नियोक्ता की ओर से कर्मचारी और उसके निकट संबंधियों के इलाज पर हुए खर्च का वापस भुगतान (मेडिकल रीइंबर्समेंट) किये जाने पर सालाना 15,000 रुपये तक का ऐसा भुगतान कर मुक्त है।
इसके अलावा हर दो साल में एक बार छुट्टी यात्रा भत्ता (एलटीए) का फायदा उठाया जा सकता है। इसमें कर छूट यात्रा पर किये गये वास्तविक खर्च के आधार पर मिलती है। यह ध्यान रखें कि होटल में रुकने, खाने-पीने वगैरह का खर्च इसमें नहीं जोड़ा जा सकता। इसके अलावा बच्चों की शिक्षा के लिए अगर कंपनी की ओर से छात्रवृति (स्कॉलरशिप) मिलती हो तो यह हर बच्चे के लिए 100 रुपये प्रति माह तक कर मुक्त है।
अगर मकान के किराये से कोई आमदनी है तो उसमें से संपत्ति कर (प्रॉपर्टी टैक्स) को घटा दिया जाता है। संपत्ति कर घटाने के बाद बची रकम का 30% काट दिया जाता है। अगर उस मकान पर कर्ज (हाउसिंग लोन) लिया गया है तो उस पर दिया गया पूरा ब्याज अब इस बाकी बची आमदनी से कट जायेगा। ध्यान दें कि अगर कर्ज लेकर खरीदे गये मकान में आप खुद रहे हों, तो 1.5 लाख रुपये तक के ब्याज भुगतान पर छूट मिलती है। लेकिन अगर कर्ज से खरीदे गये मकान से किराये की आमदनी हो रही है तो 1.5 लाख रुपये से अधिक ब्याज पर भी पूरी छूट मिलेगी।
अपनी कुल आमदनी में से कर मुक्त हिस्सा घटाने के बाद जितनी आमदनी बचती है, उससे आपको अंदाजा लग जायेगा कि आप को कितना कर देना पड़ सकता है। उसके हिसाब से आप कर बचाने की योजना तैयार करें।
आपके समूचे वेतन-भत्तों में से इन सब कर मुक्त हिस्सों को हटाने पर आपकी सकल आय (ग्रॉस टोटल इन्कम) निकलती है। फिर इसमें से उन मदों को घटाया जाता है, जिस पर आपको कर कटौती की सुविधा मिली हो।
इस कटौती में मुख्य रूप से दो तरह से फायदे लिये जा सकते हैं। पहला, आप आय कर कानून की धारा 80सी के तहत एक लाख रुपये तक के निवेश पर कर की छूट पा सकते हैं। पिछले साल तक बुनियादी ढाँचा बांडों में 20,000 रुपये के निवेश पर भी कर छूट मिलती थी, लेकिन इस साल यह छूट नहीं है।
दूसरे, आप खुद अपने लिए और अपने परिवार के लिए चिकित्सा बीमा (मेडिकल इन्श्योरेंस या मेडिक्लेम) ले कर 15,000 रुपये की कर कटौती का फायदा ले सकते हैं। अगर आपके माता-पिता वरिष्ठ नागरिक हैं और आप उनके लिए चिकित्सा बीमा कराते हैं तो उस पर 20,000 रुपये तक की छूट मिलेगी। यानी चिकित्सा बीमा पर सालाना 35,000 रुपये तक की कर कटौती का फायदा लिया जा सकता है।
इसके बाद आप गृह कर्ज (हाउसिंग लोन) पर 1.5 लाख रुपये तक के याज भुगतान पर कर में छूट पा सकते हैं। आम धारणा यह है कि मकान किराया भत्ता (एचआरए) और गृह कर्ज पर ब्याज दोनों का फायदा कर छूट के लिए नहीं लिया जा सकता।
लेकिन अगर आप किराये के मकान में रह रहे हों और गृह कर्ज लेकर खरीदा गया मकान किसी दूसरे शहर में हो तो इन दोनों पर कर छूट का लाभ उठाया जा सकता है। साथ ही, अगर आप खुद किराये के मकान में रह रहे हों और उसी शहर में गृह कर्ज लेकर खरीदा गया मकान आपने किसी अन्य व्यक्ति को किराये पर दे रखा हो तो उस स्थिति में भी एचआरए का लाभ लेने के साथ-साथ ब्याज भुगतान पर कर में छूट मिलेगी। दरअसल ऐसी स्थिति में ब्याज भुगतन पर 1.5 लाख रुपये की सालाना सीमा भी नहीं होगी। ब्याज भुगतान को उस मकान से किराये की आमदनी के विरुद्ध होने वाले खर्च के तौर पर देखा जायेगा।
आय कर की मौजूदा दरें
इस समय सामान्य श्रेणी के सभी स्त्री-पुरुषों के लिए सालाना दो लाख रुपये तक की आय को कर मुक्त रखा गया है। पिछले कारोबारी साल तक स्त्री करदाताओं के लिए करमुक्त आय की सीमा पुरुषों की तुलना में थोड़ी ज्यादा थी, लेकिन पिछले बजट में सरकार ने पुरुष करदाताओं के लिए यह सीमा बढ़ा कर स्त्री करदाताओं के बराबर कर दी। शुरुआती दो लाख रुपये की करमुक्त सीमा के बाद दो लाख से पाँच लाख रुपये तक की आय पर 10% आय कर लगता है। इसके बाद पाँच लाख से अधिक और 10 लाख रुपये तक की आय पर 20% कर लागू है। इससे अधिक आय पर 30% की अधिकतम दर से कर लगाया जाता है। हर तरह की छूट वगैरह के बाद जो अंतिम कर देनदारी बनती है, उस पर 3% का शिक्षा उपकर (सेस) लगाया जाता है।
वरिष्ठ नागरिकों, यानी 60 वर्ष या इससे अधिक आयु वाले व्यक्तियों के लिए करमुक्त आय की सीमा 2.50 लाख रुपये तक है, जबकि अति-वरिष्ठ नागरिकों, यानी 80 साल या इससे अधिक आयु के लोगों को सालाना पाँच लाख रुपये तक की आमदनी पर कोई आय कर नहीं देना होता।
80सी के तहत एक लाख रुपये की छूट
आय कर कानून की धारा 80सी के तहत कुल एक लाख रुपये तक के निवेश पर कर में छूट ली जा सकती है। इस निवेश के लिए आपके सामने कई तरह के विकल्प मौजूद हैं। आप इनमें से किसी भी एक या कई विकल्पों में कुल एक लाख रुपये तक के निवेश पर कर छूट का लाभ ले सकते हैं। आप चाहें तो एक लाख रुपये से ज्यादा निवेश भी कर सकते हैं, लेकिन आपको कर छूट एक लाख रुपये की सीमा तक ही मिलेगी। ध्यान रखें कि यह छूट हर वित्त वर्ष में 31 मार्च तक किये गये निवेश पर ही मिलती है।
आम तौर पर कंपनियाँ अपने कर्मचारियों से 80सी के तहत किये जाने वाले निवेश का ब्यौरा फरवरी के अंत तक या मार्च की शुरुआत में ही माँग लेती हैं, क्योंकि उसी के आधार पर वे तय कर पाती हैं कि उस कर्मचारी के वेतन से उन्हें पूरे कारोबारी साल के लिए स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) कितनी करनी है। जो पेशेवर या व्यवसायी वर्ग के करदाता हैं, उनके लिए भी 31 मार्च की समय-सीमा रहती है।
इसीलिए अक्सर लोग फरवरी-मार्च में हड़बड़ी में कर बचत के लिए ऐसे विकल्पों में पैसा लगा देते हैं, जो निवेश के नजरिये से या उनकी पूरे वित्तीय नियोजन के लिहाज से उनके लिए ज्यादा फायदेमंद नहीं होता। दरअसल 80सी के तहत उपलब्ध सभी विकल्प निवेश करने के समय तो कर छूट जरूर दिलायेंगे, लेकिन आगे चल कर इनसे आपको होने वाला फायदा एक जैसा नहीं होगा। इसलिए समझदारी यही है कि 80सी का फायदा उठाने के लिए ऐसे ही विकल्प चुनें, जो आपकी पूरी वित्तीय योजना में सटीक हों। ये ऐसे विकल्प होने चाहिए जो कर की बचत कराने के साथ-साथ आगे चल कर आपके लिए ज्यादा फायदेमंद भी हों और भविष्य में आपको अपने वित्तीय लक्ष्य हासिल करने में मदद करें।
80सी के तहत निवेश के लिए पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (पीपीएफ), डाक घर की राष्ट्रीय बचत योजना (एनएससी), बैंकों में कम-से-कम पाँच साल की मियादी जमा (फिक्स्ड डिपॉजिट), म्यूचुअल फंडों की इक्विटी लिमिटेड सेविंग्स स्कीम (ईएलएसएस), बीमा कंपनियों के यूनिट लिमिटेड इन्श्योरेंस प्लान (यूलिप) कुछ प्रमुख लोकप्रिय विकल्प हैं।
अलग से कितने निवेश की जरूरत?
याद रखें कि 80सी की एक लाख रुपये की सीमा को पूरा करने वाले कई ऐसे निवेश या खर्च हैं, जो अपने-आप हो ही जाते हैं। अगर आप वेतनभोगी कर्मचारी हैं और आपके वेतन से पीएफ कटता है तो वह राशि इसमें जुड़ जायेगी। अगर आपने गृह कर्ज (होम लोन) ले रखा है तो उसके मूल धन (प्रिंसिपल) भुगतान की राशि भी इसमें जुड़ती है। अगर आपके बच्चे छोटे हैं और स्कूल-कॉलेज में पढ़ते हैं तो उनका शिक्षण शुल्क (फीस) भी इस मद में जोड़ लें। इसमें ध्यान रखें कि केवल दो ही बच्चों का शिक्षण शुल्क जोड़ा जा सकता है। इसके अलावा अगर आपने पिछले सालों में राष्ट्रीय बचत योजना (एनएससी) में निवेश किया हो, तो उस पर इस साल मिला ब्याज भी 80सी का फायदा उठाने के लिए जोड़ लें। इन सब को जोडऩे के बाद यह देखें कि एक लाख रुपये की सीमा पूरी करने के लिए आपको और कितना निवेश करना होगा।
इस कड़ी में ध्यान रखें कि आपने पहले से जो जीवन बीमा पॉलिसियाँ ले रखी हैं, उन्हें जारी रखना भी महत्वपूर्ण है। ऐसा न हो कि आप पुरानी पॉलिसी को भूल जायें और कर छूट के लिए नयी पॉलिसी ले लें। आखिर पुरानी पॉलिसी के प्रीमियम पर भी आपको वैसी ही कर छूट मिलेगी और पुरानी पॉलिसी को जारी रखना कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है, वरना आप उस पॉलिसी के फायदे गँवा बैठेंगे। इस तरह पुरानी बीमा पॉलिसियों की रकम भी अलग करने के बाद देखें कि एक लाख की सीमा पूरी करने में कितनी कमी रह गयी है। उतनी राशि के नये निवेश के लिए आपके सामने तमाम विकल्प हैं।
ईपीएफ : कर्मचारी प्रॉविडेंट फंड में आम तौर पर वेतन का 12% हिस्सा जमा होता है जो वेतन से अपने-आप कट जाता है। अधिक आय वाले कर्मचारियों के लिए ईपीएफ अनिवार्य नहीं है। लेकिन यह इस समय निवेश के सुरक्षित और बेहतर विकल्पों में से एक है, लिहाजा जिनके लिए अनिवार्य नहीं हो, उनके लिए भी बेहतर है कि वे ईपीएफ (या सामान्य भाषा में पीएफ) कटवायें। आप चाहें तो पीएफ में अपना योगदान 12% से बढ़ा भी सकते हैं। हालाँकि पीएफ पर याज दर समय-समय पर बदलती रहती है, लेकिन इस समय ईपीएफ पर 8.25% ब्याज मिलता है जो अन्य सुरक्षित विकल्पों से ज्यादा ही है। यह ब्याज कर मुक्त भी है।
पीपीएफ : पब्लिक प्रॉविडेंट फंड पर इस समय 8.8% याज है। यह याज भी कर मुक्त है, यानी पीपीएफ की 15 साल की अवधि पूरी होने पर मिलने वाला ब्याज उस साल आपकी कर योग्य आय में नहीं जोड़ा जायेगा। पहले पीपीएफ में अधिकतम 70,000 रुपये के निवेश पर ही कर छूट मिलती थी, लेकिन अब इसमें पूरे एक लाख रुपये तक के निवेश पर 80सी के तहत कर छूट ली जा सकती है।
ईएलएसएस : इक्विटी लिमिटेड सेविंग्स स्कीम यानी ईएलएसएस के नाम से जाहिर है कि यह इक्विटी यानी शेयरों में निवेश से जुड़ी योजना है। यह म्यूचुअल फंडों की योजना होती है और इसमें बाजार के उतार-चढ़ाव का जोखिम होने के चलते किसी निश्चित लाभ का वादा नहीं किया जाता। लेकिन अधिक जोखिम के साथ ही इसमें अधिक लाभ का अवसर भी है, क्योंकि विशेषज्ञ फंड मैनेजर के हाथों में आपका पैसा होने के कारण शेयर बाजार से मिलने वाला लाभा बाकी विकल्पों से ज्यादा होने की उम्मीद भी रहती है। इसमें निवेश की अवधि कम-से-कम तीन साल है। इससे समय-समय पर मिलने वाले लाभांश (डिविडेंड) और अंत में मिलने वाली रकम कर मुक्त है। तीन साल की अवधि होने के कारण लंबी अवधि का पूँजीगत लाभ कर (कैपिटल गेन) नहीं लगता।
जीवन बीमा : जीवन बीमा के प्रीमियम भुगतान में आप अपनी जरूरत के मुताबिक एकमुश्त प्रीमियम या सालाना प्रीमियम वाली बीमा योजना चुन सकते हैं। बीमा पॉलिसी मुख्य रूप से दो तरह की होती हैं। शुद्ध सावधि बीमा योजना (टर्म प्लान) में आपको केवल बीमा सुरक्षा मिलती है, कोई रकम निवेश के प्रतिफल के रूप में वापस नहीं मिलती। लेकिन याद रखें कि सावधि बीमा कम प्रीमियम में आपके परिवार को सबसे ज्यादा बीमा सुरक्षा देता है। दूसरी श्रेणी निवेश-सह-बीमा योजनाओं की है। इसमें आपके प्रीमियम का एक हिस्सा हिस्सा बीमा सुरक्षा के लिए रहता है, जबकि एक हिस्सा निवेश के तौर पर जाता है, जिस पर आपको पॉलिसी की अवधि पूरी होने पर एकमुश्त रकम मिलती है। ऐसी योजनाएँ एन्डॉवमेंट प्लान, मनीबैक प्लान, पेंशन प्लान वगैरह के रूप में होती हैं। जीवन बीमा पॉलिसी की अवधि पूरी होने पर मिलने वाली रकम भी कर मुक्त होती है।
यूलिप : यूनिट लिमिटेड इन्श्योरेंस प्लान यानी यूलिप भी बीमा योजनाएँ ही हैं, जिन्हें बीमा कंपनियाँ जारी करती हैं। इनमें भी प्रीमियम का एक हिस्सा निवेश के लिए जाता है। यह निवेश इक्विटी यानी शेयरों में हो या ऋण बाजार में या मिला-जुला कर, यह विकल्प आप चुन सकते हैं। इनमें बीमा सुरक्षा आपके सालाना प्रीमियम से 10 गुना होती है, जबकि अवधि पूरी होने के बाद मिलने वाला लाभ पूरी तरह बाजार पर निर्भर होता है। इनमें निवेश की न्यूनतम अवधि या लॉक इन पाँच साल है। इससे पहले पैसा निकालने पर शुल्क तो लगेगा ही, पहले मिली कर छूट भी वापस हो जायेगी और उस छूट की रकम पैसा निकालने वाले साल में आपकी कर योग्य आय में जुड़ जायेगी। ध्यान रखें कि कम-से-कम पाँच सालों तक प्रीमियम भुगतान करते रहना भी जरूरी है। शुरुआती सालों में कमीशन आदि खर्च कटने के चलते यूलिप का असली फायदा 15-20 सालों की लंबी अवधि में ही मिलता है।
एनएससी : राष्ट्रीय बचत योजना यानी एनएससी में निवेश डाक घर (पोस्ट ऑफिस) में होता है। इसमें निवेश की अवधि पाँच साल या 10 साल है। अभी पाँच साल के एनएससी पर 8.6% और 10 साल के एनएससी पर 8.9% ब्याज मिलता है। लेकिन ब्याज हर छमाही में जुडऩे के कारण प्रभावी सालाना ब्याज 8.78% और 9.09% बैठता है। लेकिन ध्यान रखें कि इसका ब्याज कर मुक्त नहीं है। इसका ब्याज हर साल हासिल (एक्रूड) और वापस एनएससी में निवेशित माना जाता है। यह हासिल ब्याज भी 80सी के तहत एक लाख रुपये की कर छूट में जोड़ा जा सकता है। लेकिन साथ ही यह ब्याज आय हासिल होने वाले वर्ष में कर योग्य आय में जुड़ती है। अगर आपको ब्याज आय के अतिरिक्त कोई अन्य आय नहीं हो, तो आप इस हासिल ब्याज पर टीडीएस कटने से बचाने के लिए फॉर्म 15-एच (सामान्य श्रेणी) या 15-जी (वरिष्ठ नागरिक) जमा कर सकते हैं।
बैंक एफडी : बैंकों में कम-से-कम पाँच साल के लिए मियादी जमा (एफडी) पर भी कर में छूट है। हर बैंक की ब्याज दर अलग-अलग है, लेकिन इस समय पाँच साल की एफडी पर अमूमन 8% से लेकर 9% तक ब्याज दर मिल सकती है। इसमें ब्याज तिमाही जुड़ता है, इस लिहाज से यह एनएससी से ज्यादा फायदेमंद है। इस पर मिलने वाला ब्याज भी एनएससी की तरह ही कर मुक्त नहीं है। साथ ही इसके ब्याज पर भी टीडीएस कटता है।
एनपीएस : राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) में 18 से 60 साल तक के व्यक्ति श्रेणी 1 या श्रेणी 2 के तहत खाता खोल सकते हैं। श्रेणी 1 के खातों के लिए न्यूनतम निवेश की राशि एक बार में 500 रुपये और सालाना 6,000 रुपये है। इसमें साल में कम-से-कम चार बार निवेश करना जरूरी है। श्रेणी 2 के खातों में सालाना न्यूनतम निवेश 4,000 रुपये का है और साल में कम-से-कम चार बार न्यूनतम 250 रुपये डालना जरूरी है।
श्रेणी 1 के खातों से पैसा निकालने पर सीमाएँ लगी हैं, जबकि श्रेणी 2 के खातों पर ऐसी कोई रोक-टोक नहीं है। श्रेणी 2 का खाता वही खोल सकते हैं, जिनके पास पहले से श्रेणी 1 का खाता हो। ध्यान रखें कि कर छूट का लाभ केवल श्रेणी 1 के खाते पर ही उपलब्ध है। एनपीएस में आपके निवेश पर मिलने वाला लाभ पहले से निश्चित नहीं है। यह बाजार से मिलने वाले लाभ पर निर्भर है। इसके अलावा, 60 साल की उम्र में जब इस योजना से (श्रेणी 1 के खातों पर) पैसा वापस मिलेगा तो वह करयोग्य होगा। इस कारण अब तक यह योजना ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो पायी है।
वरिष्ठ नागरिक बचत योजना (एससीएसएस): इस योजना में 9.30% ब्याज मिलता है और ब्याज का तिमाही भुगतान होता रहता है। लिहाजा एक नियमित आय चाहने वाले वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह अच्छा है। इसमें 60 वर्ष या अधिक उम्र के व्यक्ति कम-से-कम 1,000 रुपये और अधिकतम 15 लाख रुपये का निवेश कर सकते हैं, लेकिन कर छूट 01 लाख रुपये तक के निवेश पर ही होगी। अगर 55-60 वर्ष के बीच की उम्र के व्यक्ति ने स्वैच्छिक सेवानिवृति (वीआरएस) ली हो तो वे भी इस योजना का लाभ उठा सकते हैं।
ध्यान देने की बात यह है कि 80सी का लाभ उठाने के लिए केवल अपने नाम पर ही निवेश करना जरूरी नहीं है। इसके तहत अपने परिवार के अन्य सदस्यों यानी जीवनसाथी और बच्चों के नाम पर किये गये निवेश पर भी कर छूट हासिल की जा सकती है।
यह सुविधा जीवन बीमा, एन्विटी प्लान, पीपीएफ, यूलिप जैसे विकल्पों में है। यहाँ तक कि वयस्क, आत्मनिर्भर और विवाहित बच्चों के नाम पर किये गये निवेश पर भी 80सी के तहत कर छूट मिलेगी।
कैसे पायें अधिकतम कर छूट?
इस लेख की शुरुआत में हमने बताया कि कोई व्यक्ति चाहे तो आय कर में छूट के अलग-अलग नियमों का लाभ उठा कर 5.87 लाख रुपये तक की आय पर अपनी कर देनदारी शून्य रख सकता है। यह बात हैरान जरूर करती है, लेकिन सच है। इस बचत को हम दिल्ली में रह रहे नौकरीपेशा विवेक कुमार के उदाहरण से समझते हैं।
विवेक कुमार को वेतन-भत्तों से सालाना 5.87 लाख रुपये मिलते हैं। उनका मूल (बेसिक) वेतन 2.50 लाख रुपये है। उन्हें एचआरए एक लाख रुपये, परिवहन भत्ता 9,600 रुपये, चिकित्सा खर्च भुगतान (मेडिकल रीइंबर्समेंट) 15,000 रुपये, एलटीए 20,000 रुपये और बच्चों की छात्रवृति के मद में 2,400 रुपये मिलते हैं। उनके अन्य भत्तों 1,90,000 रुपये हैं। सब मिला कर हुए 5.87 लाख रुपये। आइये अब देखते हैं कि इन्हें कहाँ कितनी छूट मिल सकती है।
एचआरए पर छूट : इस छूट की अधिकतम सीमा निकालते समय तीन बातों पर गौर किया जाता है। पहली बात यह कि एचआरए कितना है? दूसरे, वास्तव में जितना किराया दिया गया, उसमें से मूल (बेसिक) वेतन का 10% घटा दें। तीसरे, मूल (बेसिक) वेतन का 50% (महानगरों के लिए) या 40% (अन्य शहरों के लिए) कितना बनता है? इन तीनों में जो सबसे कम हो, एचआरए के मद में उतनी ही छूट मिलेगी।
विवेक के मामले में इन तीनों बातों को देखें तो उन्हें मिलने वाला एचआरए एक लाख रुपये है। दूसरे, अगर वे 12,000 रुपये प्रति माह का किराया दे रहे हैं, तो सालाना किराया 1,44,000 रुपये बना। इसमें मूल वेतन का 10% यानी 25,000 रुपये घटाने पर बचते हैं 1,19,000 रुपये। अब तीसरी बात, इनके मूल वेतन का 50% है 1,25,000 रुपये। इनमें से सबसे कम एचआरए ही है, यानी इन्हें 1,00,000 रुपये के एचआरए पर पूरी कर छूट मिल जायेगी।
सकल आय कितनी : एचआरए के बाद परिवहन भत्तों (कन्वेयेंस) के 9,600 रुपये, चिकित्सा खर्च के 15,000 रुपये, एलटीए के 20,000 रुपये और छात्रवृति के 2,400 रुपये घटाने पर इनकी सकल (ग्रॉस टोटल) आय होती है 4,40,000 रुपये।
निवेश पर कर छूट : अब इन्होंने पीएफ, पीपीएफ, बीमा योजना, ईएलएसएस वगैरह से धारा 80सी के तहत कुल एक लाख रुपये तक की कर छूट का फायदा लिया।
घर कर्ज पर छूट : इन्होंने घर कर्ज लेकर चंडीगढ़ में एक मकान खरीदा है, जिस पर ये सालाना करीब एक लाख रुपये का ब्याज चुका रहे हैं। ब्याज भुगतान पर 1.50 लाख रुपये की सीमा होने के कारण इन्हें पूरे ब्याज भुगतान पर छूट का फायदा मिल जायेगा। (अगर किसी का ब्याज भुगतान पूरे 1.5 लाख रुपये का हो तो इस उदाहरण में उनकी करमुक्त आय की सीमा और भी बढ़ जायेगी!)
उन्होंने 15,000 रुपये का चिकित्सा बीमा (मेडिकल इन्श्योरेंस) भी कराया है। इसके अलावा अब तक शेयर बाजार से दूर रहे विवेक ने इस साल राजीव गाँधी इक्विटी सेविंग्स स्कीम (आरजीईएसएस) का फायदा लेने के लिए शेयरों में 50,000 रुपये का निवेश किया, जिस पर उन्हें 50% कर छूट का फायदा मिला और उनकी कर योग्य आय से 25,000 रुपये और भी घट गये।
इन सबको घटाने पर उनकी कुल कर योग्य आय रही एकदम दो लाख रुपये, और इस सीमा तक की आय तो कर मुक्त है। यानी उनकी कर देनदारी हो गयी शून्य।
अगर विवेक किसी तरह की कर छूट का फायदा नहीं उठाते तो उनकी कुल आय में से शुरुआती दो लाख रुपये तक की आय कर मुक्त होती, इसके बाद पाँच लाख रुपये तक की आय पर उन्हें 10% और उसके बाद की शेष 87,000 रुपये की राशि 20% आय कर लगता। इस तरह आय कर की राशि 47,400 रुपये हो जाती। इस 3% शिक्षा उपकर (सेस) मिला कर उनकी कुल देनदारी 48,822 रुपये होती। लेकिन समझदारी से कर नियोजन करके उन्होंने अपनी कर देनदारी शून्य कर ली और इस तरह शुद्ध रूप से 48,822 रुपये बचा लिये।
(निवेश मंथन, फरवरी 2013)