जेरोधा की शुरुआत का संबंध जुड़ता है 2009 के चुनावी नतीजों से। मुझे साल 2004 के चुनावी नतीजों का भी दिन याद है और 2009 के चुनावी नतीजों का भी।
मैंने 2004 में चुनावी नतीजों से पहले पुट ऑप्शन खरीद रखे थे और उस एक दिन में ही मेरे काफी पैसे बने थे। हालाँकि तब मैंने अपने पोर्टफोलिओ का केवल 10-15% हिस्सा ही उस सौदे में लगा रखा था, लेकिन उस पर मिलने वाला फायदा काफी बड़ा था। एक दिन में ही साढ़े छह सात लाख रुपये का फायदा हो गया था। लेकिन 2009 आते-आते मैं कुछ समझदार हो गया था, इसलिए मैंने उस समय कुछ नहीं करने का फैसला किया! इसका मुझे बड़ा खामियाजा उठाना पड़ा।
उस समय कामत एसोसिएट्स में मेरे पास करीब 100 ग्राहकों के खाते थे। साल 2005 में मेरे पहले ग्राहक प्रकाश ने अपनी जान-पहचान के लोगों के बीच काफी ग्राहक दिलाये थे। मेरे पहले 10 ग्राहक तो प्रकाश के संपर्क से ही मिल गये। एक ने दूसरे को बताया, दूसरे ने तीसरे को। उसी बीच मैं रिलायंस मनी का सबब्रोकर बन गया। मैंने बेंगलूरु में रिलायंस मनी का दफ्तर खोल लिया। मेरे ज्यादातर ग्राहक आईटी क्षेत्र के वरिष्ठ लोग, जैसे वीपी, सीनियर वीपी वगैरह थे। ये पढ़े-लिखे जानकार ग्राहक थे, जो बाजार के बारे में जानते थे। उन्हें पता था कि इसमें किस तरह का जोखिम है। ऐसे लोगों के बीच काम करना आसान होता है। मैं अपने ग्राहकों से कहता था कि अगर आप साल में 15% फायदा कमा सकें तो यह अच्छा मुनाफा होगा। हमेशा यही बेहतर है कि आप कम दावा करें और ज्यादा बेहतर प्रदर्शन करें।
रिलायंस मनी का काम शुरू करने के पहले साल में 2005-2006 के दौरान मेरे पास करीब 30 ग्राहक थे, जो बाद में बढ़ता गया। मैंने सलाहकार सेवाएँ भी शुरू कर दीं। इस सेवा में भी मेरे पास करीब 200 ग्राहक थे। यह सेवा ऑनलाइन थी और उसका मासिक शुल्क 499 रुपये का था। लेकिन इस सलाहकार सेवा पर मुख्य जोर नहीं था। मैं बहुत-से ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी काफी सक्रिय रहता था और उससे भी मुझे ग्राहक मिलते थे।
रिलायंस मनी उस समय दूसरों से काफी अलग एक नये विचार के साथ बाजार में आयी थी। उसका कहना था कि आप एक बार 5,000 रुपये दें और उसके बाद छह करोड़ रुपये तक के सौदों पर केवल 15 रुपये प्रति सौदे का ब्रोकिंग शुल्क दें। मैंने जनवरी या फरवरी 2006 में रिलायंस मनी का दफ्तर खोला था। जिस समय मेरे पास 100 ग्राहकों के पोर्टफोलिओ हो गये थे, तो उन सबको मिला कर मैं करीब 8-9 करोड़ रुपये का पोर्टफोलियो सँभाल रहा था। मेरे पहले ग्राहक का पोर्टफोलिओ धीरे-धीरे बढ़ कर 1.4 करोड़ रुपये का हो गया था। वे सालाना 30-40% फायदा कमा रहे थे, इसलिए खुश थे।
लेकिन रिलायंस मनी के साथ एक दिक्कत यह हो गयी कि वे किंगफिशर वाले तौर-तरीकों से एयर डेक्कन वाला कारोबार चलाना चाहते थे। हालाँकि मैंने रिलायंस मनी के लिए काम करते समय कारोबार बढ़ाने के लिए काफी प्रयास किये थे। मैं ग्राहकों की संख्या तो ज्यादा नहीं बढ़ा पाया था, लेकिन मुझे याद है कि तब कई दिन ऐसा भी होता था कि उनके देश भर के करीब 1000 सब-ब्रोकरों के कारोबार से ज्यादा कारोबार मेरा अकेला होता था। इसका कारण यही था कि मैं 100 पोर्टफोलिओ सँभाल रहा था। करीब साल डेढ़ साल तक हम उनके लिए सबसे ज्यादा ब्रोकरेज दिलाने वाले सब-ब्रोकर रहे।
इसी दौरान मेरे छोटे भाई निखिल ने भी मेरे साथ काम करना शुरू कर दिया। पहले उनसे कुछ समय तक इंडियाबुल्स के लिए काम किया था। निखिल मुझसे सात साल छोटा है और उसने काफी छोटी उम्र में ही शेयरों की खरीद-बिक्री शुरू कर दी थी। वह सौदे करने में मुझसे भी तेजतर्रार है। युवा हमेशा ज्यादा तेज और चतुर होते हैं! हालाँकि जब उसने शेयरों की खरीद-बिक्री शुरू की तो एक बार उसने भी सब-कुछ लुटाया। किस्मत से उस समय करीब 21 साल की उम्र में उसे इंडियाबुल्स में काम करने का प्रस्ताव मिल गया। उसने बेंगलूरु में ही इंडियाबुल्स के लिए साल डेढ़ साल काम किया।
रिलायंस मनी का काम शुरू करने के शुरुआती 6-8 महीनों में हमने खुदरा ग्राहकों को खींचने के लिए काफी कड़ी मेहनत की। हमने बेंगलूरु के बहुत-सी कंपनियों में स्टॉल वगैरह लगाये थे।
फिर साल 2008 आ गया। हम उस समय बाजार में बिकवाल थे और हमने काफी पैसा बनाया। आज जेरोधा जिस रूप में सामने है, वह मोटे तौर पर साल 2008 का नतीजा है। हमारे पोर्टफोलिओ 200% से 300% तक की बढ़त पर थे। अपने निजी पोर्टफोलिओ में हम ज्यादा आक्रामक थे और हमारी अपनी बढ़त 400% की थी। उस समय पैसा बनाना आसान था क्योंकि बाजार की दिशा एकदम साफ थी।
लेकिन 2009 में चुनावी नतीजों से पहले हमने सुरक्षित चलने का फैसला किया। एक कारण तो यह था कि इससे पिछले साल हम काफी फायदा कमा चुके थे। दूसरे, मैंने यह सोचा कि साल 2004 में तो मैं किस्मत का धनी रहा, लेकिन दूसरी बार भी किस्मत चले यह जरूरी नहीं है। चुनावी नतीजे से पहले मुझे अहसास था कि यह खरीदारी करके चलने का समय है। लेकिन मैंने बस यही सोचा कि दो बार किस्मत नहीं चमक सकती। इसलिए मैंने अपने पोर्टफोलिओ के 10% हिस्से पर भी उस समय जोखिम लेना ठीक नहीं समझा।
उस समय तक मेरे ग्राहकों ने पोर्टफोलिओ में काफी पैसा डाल रखा था। जिन लोगों ने 50,000 रुपये या एक लाख रुपये से शुरुआत की थी, उन्होंने 2008 में मिले फायदे को देख कर 4-5 लाख रुपये डाल दिये थे। लेकिन जब मैंने मई 2009 में तेजी के वो दो खास दिन गँवा दिये तो ग्राहकों ने पूछना शुरू कर दिया कि हमने पहले खरीदारी क्यों नहीं कर रखी थी। उस समय मैंने यह सोचा कि पोर्टफोलिओ सँभालने के इस काम से अलग हटा जाये, क्योंकि इसमें लोग पिछला आभार नहीं मानते। अमेरिका में बैठे ग्राहक आधी रात को फोन करते थे। लेकिन जब आप कोई चाल एक बार चूक जायें तो उसमें ज्यादा कुछ नहीं किया जा सकता। जब दो दिनों में बाजार इतना बढ़ गया हो तो उसके बाद भी कुछ करने में नहीं बनता। इसलिए हम शांत ही रहे। ग्राहक कहने लगे कि मैंने इतना पैसा डाल रखा है, मेरा म्यूचुअल फंड तो इतना बढ़ गया, शेयर इतने चढ़ गये, आपने क्या किया। उस समय हमने सभी ग्राहकों के पोर्टफोलिओ लौटा देने का फैसला किया और उनसे अपने-अपने पैसे वापस ले लेने के लिए कहा।
डिस्काउंट ब्रोकिंग ने अमेरिका और यूरोप में ब्रोकिंग कारोबार को बदल दिया था। साथ ही 2009 में भारत में काफी लोग बड़ी तेजी से फेसबुक जैसे माध्यमों पर ऑनलाइन आ रहे थे। हमने यह महसूस किया कि अभी एक स्टॉक ब्रोकर के रूप में पूरी तरह से ऑनलाइन होने का अच्छा मौका है, क्योंकि शाखाएँ खोलने की जरूरत नहीं है। आपकी टीम ऑनलाइन रह कर ज्यादा तेजी से काम निपटा सकती है। वहीं तकनीक की लागत शून्य रखने के लिए हमने उस समय केवल एनएसई के साथ काम शुरू किया।
हमें अपने मॉडल पर भरोसा था। हमारा मॉडल यह है कि हम किसी भी सौदे पर केवल 20 रुपये ब्रोकिंग शुल्क लेते हैं। उसमें आप चाहे जितना भी खरीदें या बेचें। कम कारोबार करने वालों से हम कहते हैं कि ब्रोकिंग शुल्क इंट्राडे पर 0.01% या 20 रुपये दोनों में जो भी कम है, वही लगेगा। डिलीवरी पर यह 0.1% होता है। इसलिए अगर कोई डिलीवरी पर 1,000 रुपये के शेयर खरीदे तो उसे केवल एक रुपये का ब्रोकिंग शुल्क देना होगा। अगर सौदा बड़ा हो, तो भी उसे 20 रुपये से ज्यादा नहीं देना होगा।
हमने साल 2009 में एनएसई की सदस्यता के लिए आवेदन किया था। लेकिन काम शुरू होते-होते अगस्त 2010 का समय आ गया था। इस बीच अपनी ट्रेडिंग से भी महीने-दर-महीने मुनाफा निकालना जरूरी था। हमें पता था कि ग्राहक बनने और उनसे ब्रोकिंग शुल्क की आय मिलने में समय लगेगा। अगस्त 2010 में तो हमने शून्य ग्राहकों के साथ शुरुआत की थी। हमने रिलायंस मनी के पुराने ग्राहकों को खींचने की कोशिश नहीं की। जब आप छोटे हों और आप लोगों के पास खाते खुलवाने के लिए जायें तो उन्हें लगता है कि आप मदद माँगने गये हैं।
जेरोधा के शुरू के छह महीने मुश्किल रहे। इस दौरान हमने 200-300 ग्राहक बनाये। लेकिन इन शुरुआती ग्राहकों से आगे विस्तार करने के लिए हमने एक एसोसिएट कार्यक्रम बनाया। हमने अपने सभी ग्राहकों को यह विकल्प दिया कि वे अपने मित्रों का संदर्भ (रेफरेंस) दें। हमने उनसे कहा कि उनके बताये नामों को ग्राहक बनाने का काम हम अपने स्तर पर करेंगे, उनके खाते हम खुलवायेंगे, लेकिन हम हमेशा इन ग्राहकों से मिलने वाली राशि का 10% हिस्सा उनके साथ बाँटेंगे। यह मल्टीलेवल मार्केटिंग नहीं थी, क्योंकि इसमें केवल एक ही स्तर था। हमने कहा कि आपके मित्र अगर शेयर खरीदते-बेचते हैं तो आप उनसे हमारा परिचय करायें और उन मित्रों से जो आमदनी होगी, वह हम आपके साथ बाँटेंगे। लेकिन ऐसा नहीं था कि वे मित्र आगे जो संदर्भ देंगे, वह भी उनके खाते में जुड़ता जायेगा।
हमारे कारोबारी मॉडल का यह एक खास पहलू था कि हमारे ग्राहक ही हमारे बारे में दूसरों को बतायें। अब तक हमने विज्ञापन पर एक रुपया भी खर्च नहीं किया है। न तो हमने समाचार-पत्रों में पर्चे डलवाये, न ही गूगल पर कोई विज्ञापन दिया। हमारे बहुत-से ग्राहक अपने परिचितों के नाम बताते हैं, पर कोई कमीशन नहीं चाहते।
साथ ही हमने अपने सभी ग्राहकों के लिए शुल्कों का एक ही ढाँचा रखा। अभी जो ब्रोकिंग फर्म हैं, वे हर ग्राहक के लिए अलग-अलग तरह की दरें रखते हैं। लेकिन कामकाज चलाने के लिहाज से यह एक बड़ी दिक्कत है। आज हमारे 15,000 से ज्यादा ग्राहक हैं, लेकिन किसी के लिए भी अलग से कोई खास दरें नहीं रखी गयी हैं। सबको खाते खोलने के लिए बराबर शुल्क देना होता है, ब्रोकिंग दरें सबके लिए बराबर हैं, मार्जिन के नियम सबके लिए एक जैसे हैं।
इस समय निफ्टी फ्यूचर खरीदने-बेचने वाले एकदिनी कारोबारी (डे-ट्रेडर) औसतन 4 पैसे का ब्रोकिंग शुल्क देते हैं। ऐसे कारोबारियों को अपने सौदे पर लाभ में आने के लिए निफ्टी में कम-से-कम 10 अंक से ज्यादा की चाल पकडऩी पड़ती है। किसी एक दिन ऐसा कर लेना अलग बात है, लेकिन हर दिन ऐसा करते रह पाना मुश्किल है। यह बात ठीक है कि फायदा कमाने में कम ब्रोकिंग शुल्क का योगदान केवल 5% हो सकता है और बाकी 95% निर्भरता उनके अपने कौशल पर है। लेकिन मान लें कि दो कारोबारी हैं, जिनमें एक हमारा ग्राहक है और दूसरा किसी अन्य ब्रोकिंग फर्म का। दूसरे कारोबारी को निफ्टी में 10-12 अंक की चाल आने का इंतजार करना होगा, तब जा कर वह फायदे में आ सकेगा। लेकिन मेरा ग्राहक केवल दो अंक की चाल पर ही फायदे में आ जायेगा। इसलिए उसके जीतने की गुंजाइश बढ़ जाती है।
अगर अमेरिकी बाजार को देखें तो 1997-98 के आसपास सबसे बड़े ब्रोकिंग फर्मों में गोल्डमैन सैक्स, सिटी, मेरिल लिंच वगैरह का नाम था। लेकिन साल 2001 तक बाजार का 80% हिस्सा ई-ट्रेड, चाल्र्स, जेको, अमेरिट्रेड वगैरह के पास आ गया था। अमेरिका में डिस्काउंट ब्रोकिंग ने एक तरह की क्रांति ला दी थी। यह ऑनलाइन दुनिया है। अगर मैं एक लॉट खरीद रहा हूँ और आप 10 लॉट खरीद रहे हैं तो दोनों सौदों को पूरा करने में ब्रोकर का काम बराबर ही होता है। अगर काम बराबर है तो शुल्क अलग क्यों होना चाहिए? अगर ग्राहक ने एक शून्य ज्यादा लगा कर थोड़ा ज्यादा प्रयास किया, तो ब्रोकर ने उस ऑर्डर को कार्यरूप देने में क्या कोई अतिरिक्त मेहनत की? यही तर्क है, जिस पर ऑनलाइन डिस्काउंट ब्रोकिंग का मॉडल चलता है।
ब्रोकिंग में सबसे बड़ी लागत तकनीक की होती है। हमारे लिए अच्छी बात यह रही कि उसी समय एनएसई ने %नाऊÓ नाम से अपना एक नया प्लेटफॉर्म शुरू किया था। यह एक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म है, जिसके जरिये आप एनएसई पर खरीद-बिक्री कर सकते हैं। एनएसई यह प्लेटफॉम मुफ्त उपलब्ध करा रहा था। हमारे लिए आगे बढऩे का एक बड़ा कारण यह भी था कि एनएसई यह प्लेटफॉम मुफ्त दे रहा था। हमारी अब तक की जो सफलता है, उसमें इसका बड़ा हाथ है। अगर नाऊ नहीं होता तो हम 20 रुपये प्रति सौदे के ब्रोकिंग शुल्क के साथ अपनी शुरुआत नहीं कर पाते।
पिछले साल नवंबर में हमने अपना ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म विकसित करने का फैसला किया। हम लोगों को सलाह नहीं देते, लेकिन उन्हें जरूरी सुविधाएँ देते हैं। अपनी तकनीक विकसित करने के लिए हमने ओम्नीसिस को चुना और उसके देखभाल के लिए अपने यहाँ तकनीकी टीम रखने के बदले इसकी जिम्मेदारी ओम्नीसिस को ही दे दी। ऐसा करना बेशक महँगा है, लेकिन तकनीक के मोर्चे पर हम कोई समझौता नहीं करना चाहते थे। ओम्नीसिस को साथ में लेने के बाद हमने कई नयी सुविधाएँ विकसित करनी शुरू की। हाल में हमने एमीब्रोकर प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया। यह तकनीकी चार्ट देखने की सुविधा है, जो दुनिया भर में काफी लोकप्रिय है। इसके साथ हमने एक अपने-आप ट्रेडिंग करने वाला प्लग-इन तैयार किया। कोई व्यक्ति तो एक समय में केवल एक-दो चार्ट देख सकता है। लेकिन एमीब्रोकर पर कोई व्यक्ति अपनी रणनीति 200 शेयरों पर एक साथ लागू कर सकता है। जब भी उन शेयरों पर खरीदने या बेचने का संकेत आता है, तो ट्रेडिंग प्लेटफॉम पर वह सामने आ जाता है।
हमने जो कारोबार खड़ा किया है, वह ब्रोकिंग व्यवसाय के लिए सबसे बुरे समय के बीच किया है। इसलिए जो चीज ऐसी स्थिति में भी चल पायी है, हम उसके साथ आगे बढऩा चाहेंगे। हमारा यह भी मानना है कि आगे ज्यादा-से-ज्यादा लोग ऑनलाइन कारोबार करेंगे। इसलिए हम शाखाएँ खोलने वाले मॉडल की ओर नहीं जायेंगे। लेकिन हम ग्राहक सेवा के लिए अलग-अलग केंद्र जरूर खोलेंगे। हमने हैदराबाद और कोचीन में ऐसे सहायता-केंद्र शुरू किये हैं और जल्दी ही दिल्ली में करने वाले हैं।
सवाल उठ सकता है कि हमने जिस कारोबारी मॉडल पर अपनी शुरुआत की, उसी को अपना कर कोई और कंपनी हमें चुनौती दे सकती है। लेकिन किसी नयी कंपनी के लिए प्रतिस्पर्धा आसान नहीं होगी, क्योंकि आज हम ऐसी कारोबारी सुविधाएँ देते हैं जो आम तौर पर उपलब्ध नहीं हैं। एमीब्रोकर के अलावा हमने स्पैन कैलकुलेटर दिया है। मान लीजिए आपने निफ्टी फ्यूचर के साथ-साथ निफ्टी पुट भी खरीदा है, तो ऐसे सौदे पर एक्सचेंज आपको मार्जिन में छूट देता है, क्योंकि आपका जोखिम घट गया है। देश में ज्यादातर ट्रेडिंग प्लेटफॉम पर आपको तब तक यह पता नहीं चलता कि मार्जिन में कितनी छूट मिली है, जब तक आप सौदा कर न लें। सौदा करने के बाद ही पता चलता है कि कितनी रकम मार्जिन में चली गयी है। लेकिन स्पैन कैलकुलेटर में आप अपने सौदे में लगने वाली मार्जिन की रकम को पहले से देख सकते हैं।
इसके अलावा हमने तकनीकी विश्लेषण के आधार पर स्वचालित (ऑटोमेटेड) ट्रेडिंग की सुविधा दी है। जैसे, मान लें कि आप कोई मूविंग एवरेज कटने पर खरीदारी करना चाहते हैं तो हम इसे स्वचालित कर सकते हैं। वहीं मौजूदा कंपनियों के लिए हमारा मॉडल अपनाना मुश्किल होगा, क्योंकि ऐसा करते ही मौजूदा ग्राहकों से उनकी आमदनी एकदम घट जायेगी। ठ्ठ
(निवेश मंथन, जनवरी 2013)