डॉ. प्रसून माथुर, वरिष्ठ विश्लेषक, रेलिगेयर कमोडिटीज :
वर्ष 2012 में सरसों में अच्छा लाभ मिला। सरसों की आपूर्ति सीमित रहने के कारण पूरे वर्ष स्टॉकिस्ट बाजार में सक्रिय रहे।
वर्ष 2011-12 में सरसों के उत्पादन में 16% की गिरावट आने के कारण अगस्त 2012 तक सरसों की कीमतों में भारी तेजी देखने को मिली थी। हालाँकि इसके बाद ऊपरी भावों पर माँग घटने के कारण कीमतों में गिरावट शुरू हो गयी थी। अन्य तिलहनी फसलों, जैसे सोयाबीन से भी बाजार धारणा को काफी हद तक समर्थन मिला।
वर्ष 2012-13 में सरकार ने सरसों के समर्थन मूल्य में उल्लेखनीय बढ़ोतरी की थी। वर्ष 2013-14 के लिए भी इसने समर्थन मूल्य 20% बढ़ा कर 3,000 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। सरसों के बिजाई-क्षेत्रफल में भी इस वर्ष सुधार की संभावना है। देश में 20 दिसंबर, 2012 तक 64.44 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सरसों बिजाई हो चुकी थी, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में 62.66 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ही बुवाई हो पायी थी। मौसम अनुकूल रहने के कारण सरसों का उत्पादन बढ़ कर वर्ष 2013-14 में लगभग 65 लाख टन के स्तर तक पहुँच सकता है।
वर्ष 2013 की पहली दो-तिमाहियों में बाजार धारणा में नरमी की स्थिति बनी रह सकती है। हालाँकि इसके बाद नयी लिवाली निकलने से कीमत में दोबारा मजबूती आ सकती है। बाजार का रुख तय करने में तीसरी तिमाही का अलग महत्व है, क्योंकि इस दौरान मानूसन शेष वर्ष के लिए मार्गदर्शक की भूमिका अदा करता है। हमारा मानना है कि मार्च-अपै्रल में यह 3200-3300 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर आ सकता है। हालाँकि इसके बाद अक्टूबर-नवंबर तक इसका भाव फिर मजबूत हो कर 4,200-4,300 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर तक जा सकता है।
सोयातेल
वर्ष 2012 में सोयातेल की कीमतों में भारी उठापटक की स्थिति रही। पहली तीन तिमाहियों के दौरान बाजार पर तेजडिय़ों का शिकंजा कसा रहा, जिसके कारण खाद्य तेलों की कीमतों में भारी तेजी देखने को मिली। जनवरी 2012 की तुलना में सितंबर 2012 तक सोयातेल के भावों में करीब 11% तक बढ़ोतरी दर्ज की गयी।
वर्ष 2013 में माँग और आपूर्ति से संबंधित तमाम बुनियादी कारक मंदडिय़ों के पक्ष में झुके हैं। भारत और चीन जैसे प्रमुख आयातक देशों में तिलहनों की पर्याप्त आपूर्ति बनी हुई है, जबकि दूसरी ओर ब््रााजील और अर्जेंटीना जैसे निर्यातक देशों में इस मौसम में सोयाबीन के बेहतर उत्पादन के साथ-साथ सोयातेल का उत्पादन भी अच्छा रहने का अनुमान है। इससे कीमत पर दबाव की स्थिति बन सकती है।
वर्ष 2012-13 में देश में सोयातेल के आरंभिक स्टॉक, उत्पादन और आपूर्ति में क्रमश: 57%, 3% और 5% तक की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। दूसरी ओर, देश में सोयातेल की खपत में 11% वृद्धि का अनुमान है, जबकि आयात में 2% गिरावट आ सकती है। वर्ष 2013 की पहली दो तिमाहियों में सोयातेल की कीमतों में भारी गिरावट आ सकती है। बाद में घटे भावों पर माँग बढऩे से इसमें मजबूती लौट सकती है। सोयातेल वायदा को 510-530 रुपये के स्तर पर सहारा मिल सकता है, जबकि 730-760 रुपये पर बाधा दिखती है।
सोयाबीन
वर्ष 2012 में सोयाबीन में 29% का बेहतरीन लाभ मिला। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अच्छी माँग निकलने से वर्ष के मध्य तक कीमतें बढ़ कर दोगुनी हो गयी थीं। जहाँ जनवरी 2012 में इसका भाव 2,500 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास था, वहीं जुलाई आते-आते भाव बढ़ कर 5,000 रुपये प्रति क्विंटल तक जा पहुँचा। हालाँकि बाद में कुछ गिरावट आयी।
वर्ष 2013 में परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका है। वैश्विक स्तर पर पूरे वर्ष सोयाबीन की अतिरिक्त आपूर्ति का जोर बना रहेगा। इस वर्ष सोयाबीन के उत्पादन में करीब 12% बढ़ोतरी का अनुमान है। चीन में सोयाबीन की खपत माँग ज्यादा है। इसलिए चीन को पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति के लिए सोयाबीन का भरपूर स्टॉक रखने वाले देशों - ब््रााजील, अर्जेंटीना और अमेरिका के बीच माल बेचने की होड़ शुुरू हो सकती है, जिससे भाव नीचे आ सकते हैं।
इस वर्ष पहली तिमाही में प्रमुख निर्यातक देशों से आपूर्ति बढऩे के कारण सोयाबीन में नरमी आ सकती है। भारतीय बाजार में पहली तिमाही में सोयाबीन के भाव घट कर करीब 2,700-2,800 रुपये प्रति क्विंटल पर आ सकते हैं। लेकिन बाद में घटे भावों पर नयी लिवाली निकलने से कीमत सँभलेगी। इसके चलते बाद आगे चल कर इसका भाव वर्ष 2013 के दौरान बढ़ कर 3,800 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर तक भी जा सकता है।
(निवेश मंथन, जनवरी 2013)