बावजूद इसके कि साल 2012 में शेयर बाजार ने 26-28% की अच्छी बढ़त दी, भारतीय म्यूचुअल फंडों ने बीते साल के दौरान लगातार बिकवाली का ही रास्ता अपनाये रखा।
साल 2012 में केवल एक ही महीना ऐसा रहा, जब इक्विटी म्यूचुअल फंडों की बिक्री की मात्रा धन-वापसी से ज्यादा रही। संयोग से यह महीना था मई 2012 का, जब बाजार दबाव में नजर आ रहा था। इसके अलावा बाकी सभी 11 महीनों में निवेशकों ने इक्विटी योजनाओं से शुद्ध रूप से पैसा बाहर ही निकाला। अगर पूरे साल का आँकड़ा देखें तो 2012 के दौरान इक्विटी म्यूचुअल फंड योजनाओं की कुल बिक्री 38,997 करोड़ रुपये की रही, जबकि इसके मुकाबले म्यूचुअल फंडों के निवेशकों ने 53,145 करोड़ रुपये का निवेश वापस निकाल लिया। इस तरह इक्विटी म्यूचुअल फंडों ने अपने निवेशकों को शुद्ध रूप से 14,148 करोड़ रुपये लौटाये।
जैसे-जैसे शेयर बाजार ऊपर चढ़ता रहा, वैसे-वैसे निवेशक अपनी यूनिटें बेच कर पैसे निकालते रहे। बीते कई सालों से शेयर बाजार के निराशाजनक प्रदर्शन के दौरान इक्विटी म्यूचुअल फंडों में भी निवेशकों को आम तौर पर नुकसान ही देखना पड़ा था। हालाँकि निवेशकों का यह रवैया मुनाफेदार तो नहीं ही कहा जा सकता। इसे केवल मनोवैज्ञानिक रूप में ही समझा जा सकता है, आर्थिक समझदारी के तौर पर नहीं देखा जा सकता। एक तरह से बाजार के अच्छे दौर का फायदा उठाने के बदले वे इससे बाहर निकलते रहे।
एस्कॉट्र्स म्यूचुअल फंड के सीईओ अशोक अग्रवाल कहते हैं कि निवेशकों को साल 2008 से 2012 के दौरान अपने निवेश पर कोई खास फायदा नहीं मिला। इन चार सालों में उन्हें 3-5% जैसा मामूली फायदा दिखा। इसीलिए जैसे ही बाजार ऊपर आया और एनएवी थोड़े बेहतर दिखे, उसके साथ ही पैसा निकालने का दबाव बढ़ गया। अकेले दिसंबर 2012 के महीने में म्यूचुअल फंडों के करीब छह लाख फोलिओ कम हो गये, यानी इतने निवेशकों ने अपनी यूनिटें लौटा कर पैसे निकाल लिये। निवेशकों का शेयर बाजार पर भरोसा काफी कम हो गया है।
दाइवा एएमसी के इक्विटी प्रमुख डेविड पेजारकर मुनाफावसूली को ही इक्विटी योजनाओं से निवेशकों की धन-निकासी (रिडेंप्शन) का कारण मानते हैं। उनका कहना है कि अभी ज्यादा नयी योजनाएँ भी बाजार में नहीं आ रही हैं और इससे भी म्यूचुअल फंडों में नया निवेश कम हो रहा है।
कमीशन पर सेबी के सख्त नियम लागू होने से म्यूचुअल फंडों की पारंपरिक वितरण व्यवस्था चरमरा गयी है। म्यूचुअल फंडों के वितरक अब ज्यादा सक्रिय नहीं रह गये हैं। वितरकों का सहारा कमजोर पडऩा नयी योजनाओं के कम आने का एक प्रमुख कारण है।
टॉरस म्यूचुअल फंड के सीईओ वकार नकवी मानते हैं कि ‘कुछ निवेशक इक्विटी योजनाओं से निकल कर ऋण (डेट) फंडों में भी गये हैं, क्योंकि उन्हें ब्याज दरें घटने की संभावना के चलते वहाँ मौका दिख रहा था। लेकिन जिन लोगों ने 2007-08 की तेजी में पहली बार निवेश किया था, उनमें ज्यादातर लोग शेयर बाजार और म्यूचुअल फंड को समझते ही नहीं थे। वे लोग तो अब म्यूचुअल फंडों से ही पूरी तरह निकल गये होंगे। अफसोस यही है कि खुदरा निवेशक अभी निकल जायेगा और जब सेंसेक्स 22,000-23000 के शिखर पर होगा तो वह दोबारा लौटेगा। जब बाजार नीचे हो, उस समय बेचना तो समझदारी नहीं है।'
अग्रवाल कहते हैं कि निवेशकों का यह रुझान बिल्कुल वैसा ही है, जैसा शेयरों में होता है। जैसे उन्हें अपना खरीद-भाव वापस मिलता नजर आता है, वे उससे यह सोच कर पैसा निकाल लेते हैं कि पीछा छूटा। यह समस्या निवेशकों की वित्तीय शिक्षा से जुड़ी है। यह कोई स्वस्थ रणनीति नहीं है। लोगों ने 2003 से 2008 तक एसआईपी पर काफी जोर दिया। लेकिन जब 2008 में बाजार गिरने लगा तो लोगों ने एसआईपी बंद कर दिये। इस तरह जब बाजार में निचले भावों पर खरीदारी के समय उनकी एसआईपी रुक गयी।
वितरकों के कम सक्रिय रहने से भी मौजूदा योजनाओं में नया निवेश कम आ रहा है, जबकि पैसा निकालने का दबाव लगातार बना हुआ है। इसी वजह से शुद्ध रूप से म्यूचुअल फंडों से निकासी ज्यादा दिख रही है।
लेकिन अग्रवाल कहते हैं कि इस समय जो निवेशक म्यूचुअल फंडों में आ रहा है, वह खुद अपनी समझ से और एक वाजिब उम्मीद के साथ ही आ रहा है। उन्हें आगे यह शिकायत नहीं होगी कि किसी एजेंट ने ऊँचे लाभ का सपना दिखा कर गलत निवेश करा दिया। लंबी अवधि में यह बात इस क्षेत्र की सेहत के लिए अच्छी रहेगी।
अपने निवेशकों की धन-वापसी या रिडेंप्शन के दबाव में म्यूचुअल फंडों ने भी शेयर बाजार में लगातार बिकवाली का रास्ता चुना। अगर महीने-दर-महीने इक्विटी योजनाओं में शुद्ध आमद और शेयर बाजार में उनके शुद्ध निवेश (बिकवाली) के आँकड़ों को मिला कर देखें तो दोनों में सीधा संबंध जुड़ता है। साल भर में इक्विटी म्यूचुअल फंडों ने अपने निवेशकों को 14,148 करोड़ रुपये लौटाये और इसका पैसा उन्होंने शेयर बाजार में शुद्ध रूप से 20,955 करोड़ रुपये की बिकवाली करके निकाला।
पेजारकर कहते हैं, ‘मोटे तौर पर म्यूचुअल फंडों ने जो बिकवाली की है, उसका मुख्य कारण निवेशकों की ओर से पैसा निकालना ही है। म्यूचुअल फंडों ने अपने पोर्टफोलिओ में नकदी का प्रतिशत नहीं बढ़ाया है। नकदी के स्तर को तो अभी काफी नीचे कहा जा सकता है।'
(निवेश मंथन, जनवरी 2013)