राजीव कपूर : कमोडिटी प्रमुख, ट्रस्टलाइन सिक्योरिटीज :
भारतीय भोजन में खूब इस्तेमाल होने वाली काली मिर्च या गोल मिर्च मसालों के दुनिया भर के कारोबार में सिरमौर है।
हाल में काली मिर्च के कारोबारियों में इस खबर से खलबली मच गयी कि कोच्चि के वेयरहाउसों (भंडारों) में घटिया स्तर की और खनिज तेल के मिलावट वाली काली मिर्च होने की शिकायत आ रही है। काली मिर्च का अंतरराष्ट्रीय एक्सचेंज (इंटरनेशनल एक्सचेंज ऑफ पेपर या आईपीपी) कोच्चि में स्थित है।
जिन वेयरहाउसों में घटिया काली मिर्च जमा होने का आरोप लगा, वे एनसीडीईएक्स में पंजीकृत (रजिस्टर्ड) हैं। खबरों के मुताबिक एनसीडीईएक्स से जुड़ी हुई भंडारण कंपनियों, नेशनल कोलैटरल मैनेजमेंट सर्विसेज (एनसीएमएसएल) और जेआईसीएस लॉजिस्टिक्स ने 2,500-3,000 टन घटिया काली मिर्च की जमा (डिपॉजिट) स्वीकार कर ली। एनसीडीएक्सई के मापदंडों के मुताबिक एमजी1 श्रेणी की ऐसी काली मिर्च की ही आपूर्ति की जा सकती है, जिसमें 11% तक नमी, 2% हल्की काली मिर्च, 1% बाहरी सामग्री हो और जिसमें मोल्ड और तेल का इस्तेमाल नहीं हुआ हो। सूत्रों के हवाले से आने वाली खबरों के मुताबिक वेयरहाउसों में जो घटिया गुणवत्ता की काली मिर्च जमा की गयी, उसमें 13.5% से भी ज्यादा नमी और लगभग 4% हल्की काली मिर्च है। साथ ही इसमें खनिज तेल का काफी इस्तेमाल किया गया है जो मनुष्यों के खाने के लायक नहीं होता है।
खनिज तेल मुख्य रूप से पेट्रोलियम परिशोधन के दौरान मिलने वाले रंगहीन, गंधहीन तेल हैं, जो खाने में इस्तेमाल नहीं हो सकते। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अशोधित खनिज तेल में मनुष्यों के लिए कैंसर पैदा करने वाले तत्व होते हैं। पूरी तरीके से शुद्ध किये गये खनिज तेल को समूह तीन में रखा गया है, जिसका मतलब यह है कि इनमें कैंसरकारी तत्वों का संदेह नहीं रहता है, लेकिन इन्हें हानिरहित भी नहीं कहा जा सकता। लिहाजा खनिज तेल मनुष्य के उपभोग के लिए सटीक नहीं है।
जब काली मिर्च खरीदने वाले कुछ कारोबारियों ने एनसीडीईएक्स से शिकायत की तो एक्सचेंज ने इसके नमूने जाँच के लिए भिजवाये। कमोडिटी बाजार के नियामक फॉरवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी) की ओर से इस मामले में जाँच शुरू किये जाने की भी खबर आयी। जब ऐसी खबरें आयीं कि भारतीय काली मिर्च उत्पादक घटिया स्तर की काली मिर्च की आपूर्ति कर रहे हैं तो इससे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में माँग पर भी असर पड़ा।
भाव चढ़ने की उम्मीद
इस विवाद के बावजूद तकनीकी और बुनियादी रूप से काली मिर्च का भाव आगे बढऩे की उम्मीद है। खनिज तेल की मिलावट की खबरों का जो भी असर भाव पर दिखना था, वह दिख चुका है। लिहाजा निचले स्तरों पर खरीदारी करने वाले कारोबारी अब अपनी खरीदारी शुरू कर सकते हैं। काली मिर्च के दो अग्रणी उत्पादक देशों, भारत और वियतनाम में निकट भविष्य में उत्पादन में गिरावट की आशंका के चलते माँग ज्यादा हो सकती है। तकनीकी रूप से इसके चार्ट पर ऑसिलेटर (संकेतक) तेजी का इशारा कर रहे हैं, क्योंकि आरएसआई और एमएसीडी इस समय हद से ज्यादा बिकवाली के क्षेत्र में हैं।
इसका दैनिक चार्ट अच्छे संकेत दे रहा है और 38,700 के ऊपर भाव जाना खरीदारी के लिए एक स्पष्ट संकेत होगा। काली मिर्च के भाव को 37,500 के आसपास मजबूत सहारा मिलता दिख रहा है। लिहाजा 37,500 से ऊपर के भाव पर खरीदारी करके इसमें 40,200 रुपये का लक्ष्य रखना बेहतर होगा।
काली मिर्च मुख्यत: दक्षिण पूर्व एशिया में उपजती है। भारत में इसका उपयोग कम-से-कम ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से हो रहा है। मूल्य के हिसाब से सूखी काली मिर्च का व्यापार विश्व भर में मसालों के व्यापार में सबसे ऊपर है। 2002 में सभी मसालों के आयात का यह 20% थी।
उत्पादन
काली मिर्च के लिए गर्म और नम जलवायु की आवश्यकता होती है। यह समुद्र तल से 1500 मीटर ऊपर उत्तरी और दक्षिणी अंक्षाश के 20 डिग्री के बीच पैदा होती है। यह फसल 10 डिग्री से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान को सहन करती है। काली मिर्च के लिए वार्षिक 125 से 200 सेंटीमीटर की बारिश आदर्श मानी जाती है।
मूल रूप से काली मिर्च दक्षिण भारत की उपज है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में इसकी बड़े पैमाने पर खेती की जाती है। विश्व में वियतनाम काली मिर्च का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है। यह काली मिर्च के वैश्विक उत्पादन में करीब 34% योगदान करता है।
इसके अन्य बड़े उत्पादक देश भारत (19%), ब्राजील (13%), इंडोनेशिया (9%), मलेशिया (8%), श्रीलंका (6%), चीन (6%) और थाईलैंड (4%) हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा 3.55 लाख टन काली मिर्च का उत्पादन साल 2003 में हुआ था, लेकिन खराब फसल की वजह से 2008 तक यह वैश्विक उत्पादन घट कर 2.71 लाख टन रह गया।
निर्यात
काली मिर्च के निर्यात बाजार में वियतनाम शीर्ष पर है, क्योंकि वह न केवल इसका सबसे बड़ा उत्पादक है, बल्कि वह अपने उत्पादन का घरेलू उपयोग लगभग न के बराबर करता है।
इस साल अक्टूबर महीने में काली मिर्च के प्रमुख निर्यातक देशों का निर्यात बढ़ा है। इसमें खास कर वियतनाम के लैंपुंग से निर्यात में तेज बढ़ोतरी का योगदान रहा है। साथ ही श्रीलंका से भी निर्यात बढ़ा है, जबकि ब्राजील, भारत और मलेशिया से इसके निर्यात में कमी आयी है।
काली मिर्च के छह बड़े निर्यातक देशों ने अक्टूबर 2011 में 18,000 टन निर्यात के मुकाबले अक्टूबर 2012 में 21,600 टन का निर्यात किया है, यानी 20% ज्यादा। हालाँकि पिछले महीने यानी सितंबर 2012 में 25,540 टन निर्यात की तुलना में अक्टूबर के दौरान निर्यात में 16% की गिरावट दर्ज हुई है। जनवरी-अक्टूबर 2012 के 10 महीनों की अवधि में इन देशों से काली मिर्च का निर्यात 3% घटा है। जनवरी-अक्टूबर 2012 में इन देशों का निर्यात 201,700 टन रहा, जो पिछले साल की समान अवधि में 207,900 टन था।
वैश्विक स्तर पर काली मिर्च के बड़े उत्पादक देशों, वियतनाम और भारत में उत्पादन में गिरावट की आशंका ने सरकार को सचेत कर दिया है। हालाँकि भारतीय किसान बेहतर मुनाफे की उम्मीद में काली मिर्च की तरफ आकर्षित होंगे।
(निवेश मंथन, दिसबंर 2012)