सर्वोच्च न्यायालय ने निवेशकों की रकम लौटाने के लिए सहारा समूह को कुछ समय दे दिया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने दिसंबर के पहले हफ्ते में सहारा समूह की कंपनियों, सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्पोरेशन और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन के निवेशकों को 24,000 करोड़ रुपये की रकम 15% ब्याज के साथ वापस करने के लिए नौ हफ्तों यानी फरवरी 2013 के पहले हफ्ते तक का समय दिया। साथ ही न्यायालय ने सहारा को शेयर बाजार नियामक सेबी के पास तत्काल 5,120 करोड़ रुपये जमा करने का आदेश दिया।
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर, न्यायमूर्ति एस एस निज्जर और न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर की खंडपीठ ने सहारा समूह को शेष रकम दो किस्तों में फरवरी 2013 के शुरू तक सेबी के पास जमा कराने का निर्देश दिया। सहारा समूह को पहली किस्त में 10,000 करोड़ रुपये का भुगतान जनवरी 2013 तक और शेष रकम का भुगतान फरवरी के पहले हफ्ते में करने का आदेश दिया गया है। सर्वोच्च न्यायालय में सेबी की सहारा समूह के खिलाफ अवमानना और सहारा समूह की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई हो रही थी।
सर्वोच्च न्यायालय ने 31 अगस्त 2012 को प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (एसएटी) के आदेश को वैध मानते हुए सहारा समूह को 15% ब्याज के साथ 24,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम तीन महीनों में निवेशकों को लौटाने का आदेश दिया था। इस भुगतान पर निगरानी रखने की जिम्मेदारी सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश बी एन अग्रवाल को सौंपी गयी थी। भविष्य में भुगतान प्रक्रिया में कोई अवरोध नहीं आये, इसके लिए न्यायालय ने सेबी को पर्याप्त अधिकार भी दिये थे। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा था कि सहारा समूह की दोनों कंपनियों ने वैधानिक नियमों की उपेक्षा करते हुए 2008 से 2011 के बीच 2.96 करोड़ निवेशकों से यह रकम जुटायी।
पूरे मामले की शुरुआत अक्टूबर 2009 में हुई, जब सहारा समूह की कंपनी सहारा प्राइम सिटी ने सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) की अनुमति के लिए दस्तावेज जमा किये। इस दस्तावेज के आधार पर सेबी की नजर सहारा समूह की अन्य कंपनियों पर पड़ी। सेबी ने सहारा समूह की कंपनी सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्प और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्प के वैकल्पिक पूर्ण परिवर्तनीय (ओएफसीडी) डिबेंचरों के माध्यम से जुटायी गयी बड़ी रकम को नियमों के विरुद्ध ठहरा दिया और निवेशकों को उनकी धनराशि वापस करने का आदेश दिया। इस आदेश के खिलाफ सहारा समूह ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सेबी के आदेश पर रोक लगा दी। इस स्टे को रद्द कराने के लिए सेबी ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिसने सेबी को प्रतिभूति अपीलीय आधिकरण (सैट) में सहारा की इन दोनों कंपनियों के खिलाफ अपील करने का निर्देश दिया। सैट ने सेबी के आदेशों को कायम रखा। तब सहारा समूह ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की।
अगस्त 2012 के अंत में सर्वोच्च न्यायालय ने सहारा की अपील खारिज कर सेबी के आदेश को बहाल रखा। इस आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने सहारा की ओर से रकम न लौटाये जाने की स्थिति में इन कंपनियों की संपत्ति और बैंक खातों को फ्रीज करने का अधिकार भी सेबी को दे दिया था।
सेबी की यह भी शिकायत है कि सहारा समूह की दोनों कंपनियों निवेशकों के दस्तावेज सौंपने में हीला-हवाला कर रही हैं। खबरों के मुताबिक सेबी ने यह शिकायत भी रखी है कि सहारा समूह अपने निवेशकों को ओएफसीडी का पैसा निकाल कर समूह की ही दूसरी योजनाओं में डालने का दबाव डाल रही हैं। हालाँकि अगर किसी निवेशक पर ऐसा दबाव डाला जा रहा हो तो उसके सामने सेबी में शिकायत दर्ज कराने का विकल्प खुला है। दूसरी ओर सहारा समूह ने हाल में जारी विज्ञापनों में दावा किया है कि अब निवेशकों के केवल 2,620 करोड़ रुपये बाकी बचे हैं।
(निवेश मंथन, दिसबंर 2012)